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अमर उजाला |
इस आलेख संग्रह में समाज की इस साझी ज़िम्मेदारी से जुड़े सवाल, समस्याएँ और सुझाव ही समाहित हैं। आशा है बच्चों के पालन-पोषण से जुड़े विचार अभिभावकों की उलझती सोच को सुलझाने और बालमन की किवाड़ी पर स्नेहपगी दस्तक देने में मददगार बनेंगे। अपना मन ना खोलने के मामले हों या तकनीक के फेर में दिशाहीन होती सोच | पारिवारिक दबाव की असहजता हो या ख़ुद को साबित करने की धुन में बिखरता बालपन | मन की मज़बूती पर पिछड़ने के हालात हों या आपराधिक घटनाओं तक में लिप्त होने का दुस्साहस | बच्चों के मन-जीवन को समझना एक पहेली बन गया है | देश, समाज और परिवार का भविष्य कहे जाने वाले बचपन को सहेजने-समझने वाले शब्दों को समेटती यह किताब अद्विक पब्लिकेशन से ..... इस आशा और विश्वास के साथ कि हम बालमन की किवाड़ी पर समय रहते दस्तक दें |
किताब मँगवाने की जानकारी और लिंक
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प्रकाशक से सम्पर्क कर के पुस्तक मँगवाने पर प्रथम सौ पाठकों के लिए डाक-शुल्क ‘अद्विक पब्लिकेशन’ द्वारा वहन किया जाएगा। प्रथम 100 प्रतियां खरीदने वाले मित्रों के नामों में से पर्ची निकालकर 3 नाम चुनेंगे और उन्हें किताब के दाम लौटा देंगे यानी पर्ची वाले 3 मित्र किताब की अपनी प्रति मुफ्त में पायेंगे। आप भी इन तीन में से एक हो सकते हैं। अपनी प्रति प्राप्त करने के लिए कृति का मूल्य रु.220/- 9560397075 नंबर पर ‘पेटीएम’, ‘गूगल पे’ या ‘फोन पे’ द्वारा अदा करें और स्क्रीन-शॉट सहित अपना पूरा पता व्हाट्स करें |
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छोटे-छोटे बच्चों से लेकर उम्र की थकान से जूझते बुज़ुर्गों तक, लोग भयंकर बीमारियों के जाल में फँस रहे हैं | आए दिन ऐसे किसी समाचार से सामना हो जा रहा है कि हैरान-परेशान होने से ज़्यादा कुछ नहीं किया जा सकता |
देश या विदेश, जहाँ भी रही 'कालनिर्णय' हमेशा साथ रहा है | जाने कितनी बार पर्व-त्योहार, तिथि-वार, अवकाश और दिनांक तक, कुछ देखने को 'कालनिर्णय' लेकर बैठी हूँ | दिन-वार देखते हुए पन्ना पलटकर पीछे छपी सामग्री पढ़ने में भी रुचि रही है | घर-घर की दीवार टँगे रहने वाले 'कालनिर्णय' की पहुँच अनगिनत पाठकों तक है, इसबार मेरे विचार भी इसमें शामिल हैं | सुखद यह भी कि (परवरिश) बच्चों से जुड़े विषय पर यह लेख है | अब तक सबसे अधिक इसी विषय को लेकर ना केवल लिखा है बल्कि इस दायित्व को मन से जीया भी है | तकनीकी विस्तार के दौर में जब हम सब मशीनी व्यवहार के आदी होते जा रहे - बच्चों को मनुष्य बनाए रखने के लिए उनकी मासूम मुस्कुराहटों को सहेजना ज़रूरी है |
हाल ही में हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी का निधन हो गया | उन्हें याद करते हुए उनके प्रशंसकों ने उनकी चर्चित कृति 'आपका बंटी' का सबसे ज्यादा जिक्र किया | सोशल मीडिया के साझे मंच पर श्रद्धांजलि देने और उनके लेखन को याद करने वाले पाठकों ने इस लोकप्रिय उपन्यास को लेकर अपनी भावनाएं साझा करते हुए एक नए विमर्श को भी समाने रखा | यह विमर्श बच्चों के मन को समझने का अनुभव भी लिए है और टूटते परिवारों में उनके के हिस्से आती पीड़ा की बात भी करता है |
दरअसल, 'आपका बंटी' अलगाव झेलते अभिभावकों के एक बच्चे के मनोभावों की भावनात्मक परतों को खोलने वाला उपन्यास था | 1979 में प्रकाशित यह उपन्यास हिन्दी साहित्य की लोकप्रिय पुस्तकों की पहली पंक्ति में शुमार किया जाता है । कहा जाता है कि मन्नू भंडारी द्वारा किये गये एकल अभिभावक के साथ रह रहे बच्चे बंटी के मन के मर्मस्पर्शी चित्रण को पढने के बाद कई अभिभावकों ने तलाक का फैसला तक टाल दिया था |
जमीनी लेखन से जुड़ी मन्नू भंडारी जी के लिखे का यह असर वाकई विचारणीय है | किताबों में उतरे शब्दों की सार्थकता का इससे बढ़कर कोई पैमाना नहीं हो सकता कि वे समाज की सोच को बदलने में कामयाब हों | मन के द्वंद्व के सुलझाव की राह सुझाएँ | ऐसे में यह रेखांकित करने योग्य है कि अपने लेखन में महिला जीवन से जुड़े सभी पक्षों पर मजबूती से बात रखने वाली एक लेखिका ने बालमन से जुड़ा गहरा चिंतन पूरे समाज के समक्ष रखा | पति-पत्नी के संबंध विच्छेद की पीड़ा से बच्चे के मन में उपजते भय और अकेलेपन का इतना मार्मिक चित्रण किया कि लोगों ने अपने बच्चों को ऐसे दुःख से बचाने की सोची | रिश्तों में सामंजस्य और आपसी समझ को जगह देने पर विचार किया | नई पीढ़ी की साझी परवरिश को प्राथामिकताओं की फेहरिस्त में रखना जरूरी समझा | यही वजह है कि बालमन की पीड़ा को उकेरता यह लोकप्रिय उपन्यास ना केवल उनकी बेजोड़ रचनाओं में से एक है बल्कि बालमन को समझने की राह सुझाने वाली कहानी भी है |
विचारणीय है कि सोशल मीडिया से लेकर आम जीवन तक , लोकप्रिय लेखिका मन्नू भंडारी के दुनिया से विदा होने के बाद हो रही बाल मनोविज्ञान को उकेरने वाले इस उपन्यास की चर्चा कहीं ना कहीं समाज में बिखरते रिश्तों के प्रति चिंता को भी दर्शाती हैं | लाजिमी भी है क्योंकि टूट रहे पारिवारिक सम्बन्धों के मौजूदा दौर में कितने ही बंटी यह कामना करते हैं कि ' मम्मी पापा अलग अलग न रहें | ' टूटते बिखरते रिश्तों में कई बच्चे अकेलेपन और डर से जूझ रहे हैं | बहुत से बच्चों के हिस्से नासमझी के दौर में ही संबंधों की कटुता आ रही है | माँ-बाप के झगड़े और अलगाव बच्चों को अपराधी तक बना दे रहे हैं | बाल मनोविज्ञान के अध्येता भी मानते हैं कि ऐसी स्थिति से गुजरने वाले बच्चे बेहद संवेदनशील हो जाते हैं । माता-पिता के बीच अलगाव और आपसी मतभेद को देखने वाले बच्चे ख़ुद भी भीतर से बिखर जाते हैं । संबंधों की टूटन से उपजी भावनात्मक चोट कई बार तो सदा के लिए परिवार के इन मासूम सदस्यों का मनोबल तोड़ देती है ।
कहना गलत नहीं होगा कि आज के दौर में बालमन की घायल संवेदनाओं को और गहराई से समझने की दरकार है | कामकाजी माताओं के बढ़ते आंकड़े, बिखरते परिवार और संयुक्त परिवार की लुप्त होती संस्कृति का यह दौर देश के भावी नागरिकों के विषय में कई चिंताएं पैदा करने वाला है | आज का बदलता परिवेश बच्चों को डराने-बहकाने और यहाँ तक कि जीवन से ही हर जाने की स्थितियां खड़ी कर रहा है | खासकर अभिभावकों के अलगाव से उपजी परिस्थितियाँ बच्चों को या तो आक्रामक बना रही हैं या आत्मकेंद्रित | ऐसे बच्चों के व्यवहार में कुंठा, रिश्तों में भरोसा करने के मोर्चे पर दुविधा और मन में अवसाद जड़ें जमा रहे हैं | यह पूरी सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था के लिए चिंता का विषय है |
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट "प्रोग्रेस ऑफ द वर्ल्ड्स विमेन 2019-2020 - फेमिलीज इन ए चेंजिंग वर्ल्ड" के मुताबिक़ भारत में परिवारों के टूटने के मामले बढ़ रहे हैं | जिसके चलते देश में सिंगल मदर्स की संख्या भी तेज़ी से बढ़ी है | यू एन के अध्ययन के मुताबिक़ भी एकल परिवारों की बढ़ती अवधारणा के कारण देश में एकल दंपतियों वाले परिवारों की संख्या भी बढ़ रही है | भारत जैसे सुदृढ़ सामाजिक-पारिवारिक ढांचे वाले देश में टूटते परिवारों के बढ़ते आँकड़े कई मोर्चों चिंतनीय हैं | सबसे बड़ी फ़िक्र बच्चों की सधी, संतुलित और स्नेह-सुरक्षा से भरी परवरिश को लेकर है | जो अभिभावकों के मतभेद और मनभेद के चलते कई नकारात्मक वृत्तियों और दुविधाओं के घेरे में आ जाती है | बचपन में अभिभावकों के संबधों में टूटन देखने वाले बच्चों का बालपन ही नहीं भावी जीवन भी बहुत हद तक प्रभावित होता है । उनका व्यक्तित्व और विचार दोनों ही इन परिस्थतियों से मिली उहापोह से नहीं बच पाते । इन हालातों में बच्चे का विश्वास टूटता है। उसकी उम्मीदें बिखरती हैं । उसके मन में भय और असुरक्षा घर कर जाती है । कई बार तो यह मोड़ बच्चों के लिए जीवनभर के भटकाव का रास्ता खोल देता है । अध्ययन तो यहाँ तक कहते हैं कि पेरेंटल कॉन्फ्लिक्ट के चलते संवाद में मौजूद तल्ख़ी और अपमानित करने वाली बातें मात्र 6 माह के बच्चे को भी समझ आती हैं । जिसके चलते बालमन आहात होता है |
इसमें कोई दो राय नहीं कि हालिया बरसों में वैवाहिक रिश्तों में तेजी से बिखराव की स्थितियां पैदा हुई हैं | कारण कई सारे हैं पर बच्चों के मन-जीवन में बढ़ रहीं परेशानियों के रूप में सामने आ रहे परिणाम साझे हैं | ये नतीजे हर टूटते घर के हिस्से हैं | यों वैवाहिक जीवन में अलगाव जैसे व्यक्तिगत निर्णय समग्र रूप से समाज को भी प्रभावित करते हैं | पारिवारिक स्तर पर ही नहीं सामाजिक परिवेश पर भी रिश्तों की उलझनों और टूटन के निजी फैसलों का व्यापक असर पड़ता है | यही कारण है नाकामयाब शादियों की बढ़ती संख्या केवल एक आँकड़ा भर नहीं है | यह बिखरते सामाजिक ताने-बाने और भावी पीढी के लिए पैदा हो रही असुरक्षा और अकेलेपन के हालात का आईना भी है | कई कालजयी कृतियाँ रचने वाली मन्नू भंडारी के 'आपका बंटी' के उपन्यास को पढ़ते हुए समझा जा सकता है कि माता -पिता के बिखरते रिश्ते की दहशत बालमन को कितना भयभीत करती है | स्त्री-विमर्श और रिश्तों की उलझनों की बुनियादी स्थितियां समझाने वाला उनका लेखन व्यावहारिक धरातल पर आज के दौर में भी बड़ी सीख देता है और देता रहेगा |