बनवारी कुमावत 'राज' |
नदी औरत / हमेशा बहती हैं
सवाल दोनों के मन में है / जवाब
कोई नहीं देता ।
ऐसी ही एक मर्मस्पर्शी रचना है 'घर बनाती बेटी' । यह आम जीवन से जुड़ी सी रचना है। घरौंदा बनाती छुटकी हर आँगन में दिख जाती है । बस, उसी भाव और अवलोकन को लिए है ये कविता । खुश होकर बेटियां घर बनाती है पर समय के साथ कैसे ढह जाता है उनका ये मिट्टी का घरौंदा और गुम हो जाती है उनकी खिलखिलाहट, एक कटाक्ष भी है और उस विडंबना का आइना भी जो हमारे समाज और परिवार का अनकहा सच है ।
मिट्टी का घरौंदा बनाती / आज बहुत खुश है
मेरी छुटकी………
अपना घर बनाती बेटी / नहीं जानती
हाथों की मिट्टी धोने से पहले / ढहा दिया जायेगा घर
और ढहते हुए घर के साथ / ढह जाएगी
इसकी खिलखिलाहट/ इसके सपने
संसार……… सब कुछ ।
बनवारी की कविताओं में प्रेम के रंग भी बिखरे हैं । प्रेम का सहज दृष्टिकोण इन पंक्तियों में परिलक्षित होता है जहाँ प्रेम के अहसास में गुम मन इससे बढ़कर क्या सोच सकता है कि अपने अस्तित्व को ही उसके होने से जोड़ दे । साथ ही स्वयं को मुकम्मल करने के लिए किसी और का अस्तित्त्व विलीन हो जाये ऐसी चाह भी नहीं । बनवारी की ये प्रेमपगी दो रचनाएँ ऐसी ही भाव लिए हैं ।
मिट्टी का घरौंदा बनाती / आज बहुत खुश है
मेरी छुटकी………
अपना घर बनाती बेटी / नहीं जानती
हाथों की मिट्टी धोने से पहले / ढहा दिया जायेगा घर
और ढहते हुए घर के साथ / ढह जाएगी
इसकी खिलखिलाहट/ इसके सपने
संसार……… सब कुछ ।
बनवारी की कविताओं में प्रेम के रंग भी बिखरे हैं । प्रेम का सहज दृष्टिकोण इन पंक्तियों में परिलक्षित होता है जहाँ प्रेम के अहसास में गुम मन इससे बढ़कर क्या सोच सकता है कि अपने अस्तित्व को ही उसके होने से जोड़ दे । साथ ही स्वयं को मुकम्मल करने के लिए किसी और का अस्तित्त्व विलीन हो जाये ऐसी चाह भी नहीं । बनवारी की ये प्रेमपगी दो रचनाएँ ऐसी ही भाव लिए हैं ।
ये सच है / कि तुम हो
मेरा होना / इस बात को पुख्ता करता है ।
मुझे समंदर कहकर / तुम्हारा नदी हो जाना
और फिर दूर पहाड़ों से ज़मीन पर गिरकर / ढूंढते हुए मुझमे मिल जाना
मुझे अच्छा नहीं लगता / मुझ में मिलकर तुम्हारा खारा हो जाना ।
कविता 'पहली जीत' युवा मन के उत्साह के उस आधार को लिए है जो सकारात्मक भी है और सुखद भी । जिसमें आशाएं तो हैं ही, विश्वास को पुख्ता करने वाले भाव भी भरे हैं । नयी उम्मीद जागती ये रचना बस मन की कहती है ।
मुरझा गए पौधे पर /ओस की बूंदों से
जब तुमने लिखा/ वो वक़्त पर
मेरी पहली जीत थी ।
बनवारी की रचनाओं में गांव, खेत, खलिहान, पनघट, बरगद सब हैं । सब, जो ग्रामीण जीवन की जीवंत अनुभूति करवाते हैं । ऐसी ही एक रचना है 'कविता में किसान', जो ज़मीन जुड़ी गहरी अभिव्यक्ति लिए है । इसमें बनवारी का ग्रामीण जीवन का देखा जिया अनुभव झलकता है । इस कविता के अंत में कुछ विचार हैं जो एक बड़ा प्रश्न उठाते हैं । कविता में अभिव्यक्त भावों को आधार देते हैं ………
शब्दों में महकती हैं फसलें । विज्ञापनों में खिलखिलाते हैं किसान । ये कौन है , जो हल की नोंक थामे पसीने में बह रहा, खुद को किसान कहता है……… यह एक पढ़ने वाली रचना है । मन में हमारे अन्नदाता के प्रति संवेदना जगाती है । सोचने को विवश करती है । इस संग्रह में ऐसी ही एक और कविता है 'क्रांति का ज्वार' , जो समाज में बदलाव के नाम पर उपजे दोगलेपन को प्रतिबिंबित करती है । जिसमें क्रांति के नाम पर आम आदमी के छले जाने और मानवीयता के खो जाने का सन्दर्भ लिए है । ये रचनाएँ आज के दौर का कटु सच सामने रखती हैं । जो मन मष्तिष्क को झकझोरती है । हकीकत बयां करती है ।
जब गाँव और घर छूटते हैं तो कई रिश्ते नाते भी । ऐसे में माँ से जुड़ा बंधन कभी विस्मृत नहीं होता । वो हमेशा याद आती है और माँ भी हमें याद करती है, हमारा इंतज़ार करती है, ये हम सबका मन जानता है ऐसी ही एक मर्मस्पर्शी रचना है ' माँ ' जो इस संग्रह में शामिल है । यह हर पढ़ने वाले के मन को छूने वाली कविता है ।
माँ के हाथों में / ये जो
आड़ी- तिरछी लकीरें हैं / ये महज लकीरें नहीं
पीछे छूटते / मेरे सफर की पगडंडियां हैं ।
बुढा गये घर से पीठ सटाये / माँ घर की नींव बनी बैठी है
गली के बच्चों से मन बहलाती / माँ तेरा बचपन देखती है ।
बुढा गये घर से पीठ सटाये / माँ घर की नींव बनी बैठी है
गली के बच्चों से मन बहलाती / माँ तेरा बचपन देखती है ।
युवा कवि को इस अर्थपूर्ण रचनात्मक प्रयास के लिए बधाई । बनवारी कुमावत 'राज' को सतत लेखन की शुभकामनाएं, शब्दों और ज़मीन से जुड़ाव का ये भाव सदैव बना रहे ।
25 comments:
शुभकामनायें युवा कवि को. बढ़िया लेख.
पुस्तक के मर्म को छुआ है आपने.....निश्चय ही यह मेरी रचनात्मक उपलब्धि है... बेहद सुंदर और अर्थपूर्ण समीक्षा के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया और आभार
बेहतरीन कवितायेँ हैं, यूँ ही लिखते रहें ...शुभकामनयें बनवारी ...
सुन्दर समीक्षा ! युवा कवि के लिए शुभकामनाएं !
धर्म संसद में हंगामा
क्या कहते हैं ये सपने ?
पुस्तक के मर्म को छूते हुए सुन्दर समीक्षा की है मोनिका गी आप ने.....बनवारी कुमावत जी को मेरी तरफ से भी बहुत बहुत शुभकामनाएं
बहुत अच्छी रही बनवारी जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा हार्दिक शुभ कामनाएं
भ्रमर ५
बनवारी जी की रचनाये बेहद खूबसूरत है ,शुक्रिया मोनिका जी इस परिचय के लिये
बढ़िया समीक्षा की है आपने मोनिका जी,बहुत बहुत शुभकामनायें इस युवा कवि को और उनके इस सुन्दर
रचनात्मक प्रयास के लिए ! परिचय करवाने का आभार !
बहुत सुंदर समीक्षा.बनवारी जी की कविताएँ बेहतरीन हैं.
बढ़िया समीक्षा..........बनवारी जी को हार्दिक शुभ कामनाएं ....
बहुत सुन्दर और प्रभावी समीक्षा...शुभकामनायें!
सुन्दर। शुभकामनाएं।
बहुत बढ़िया
aap ek achhi lekhak hi nhi, sameekshk bhi hain monika ji!
kawi ki Abhiwyaktiyon ko swar dene me apka koi saani nhi......
जितना भी पढ़ा है इस समीक्षा में, पढ़कर अच्छा लगा. बनवारी जी को जानना भी अच्छा लगा इस पोस्ट के माध्यम से !
ब्लॉग बुलेटिन की गुरुवार २८ अगस्त २०१४ की बुलेटिन -- समझें और समझायें प्यार की पवित्रता को – ब्लॉग बुलेटिन -- में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ...
एक निवेदन--- यदि आप फेसबुक पर हैं तो कृपया ब्लॉग बुलेटिन ग्रुप से जुड़कर अपनी पोस्ट की जानकारी सबके साथ साझा करें.
सादर आभार!
आपकी संवेदनशील रचना मन के भावों को दोलायमान कर गई। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है। शुभ रात्रि।
आपकी संवेदनशील रचना मन के भावों को दोलायमान कर गई। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है। शुभ रात्रि।
बहुत सुुंदर कविताओं की उतनी ही सुंदर समीक्षा। इस पोस्ट से एक और संवेदनशील और ुत्तम कवि के बारे में जाना, पढना होगा
इन्हें।
बहुत बढ़िया ...
समीक्ष से यह स्पष्ट होता है कि बनवारी जी के कविता के कथ्य और कहने का अंदाज़ नितांत नवीन हैं।
युवा कवि के लिए शुभकामनाएं।
सरल शब्दों की जुगलबंदी में बड़ी सहजता से अपनी बात कह देने का आला हुनर रखते हैं कवि बनवारी 'राजÓ... और इसी तरह राज की कविताओं को सार्थक बनाती आपकी यह समीक्षा। कवि को शुभकामनाएं एवं बेहतरीन समीक्षा के लिए समीक्षक को बधाई
बनवारी जी के शब्दों में गहरी संवेदना, और नया दृष्टिकोण देखने को मिल रहा है ... बहुत ही प्रभावी अंदाज़ में बातों को रखा है इन्होने ... बहुत बहुत शुभकामनायें हैं बनवारी जी को ...
sundar samiksha ...
बहुत सुंदर समीक्षा.बनवारी जी की कविताएँ बेहतरीन हैं
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