शब्दों का ही खेल है सारा
भावनाओं से साक्षात्कार होता ही कब है
जो विचार शब्दों में ढल मुखरित हों
वो भावों की प्रबलता को
सहेजे हैं भी या नहीं
यह सोचने का अवकाश नहीं किसी के पास
शब्द जो कहे गये, शब्द जो सुने गये
वे उच्चारित होते ही जीवंत हो जाते हैं
और बन जाते हैं हमारी
अमर, अमिट पहचान
अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं
भले ही उनकी पृष्ठभूमि में गूँजती
अंतर्मन की अभिव्यक्ति
पृथक ही क्यों न हो
70 comments:
Bahut sundar prastuti, sach ye shabd hi humaari pahchaan ban jaate hai. Badhiya!
Aabhaar
Fani Raj
बहुत मौजू सवाल .बाहर सिर्फ शब्द होतें हैं अर्थ हमारे अन्दर होतें हैं .सुनने वाला जो मर्जी अर्थ निकाले .अक्सर आदमी जो कहना चाहता कह नहीं पाता और जो कह जाता है वह तो वह कहना ही नहीं चाहता है .
मानव मन है जुबां है .जाने कब फिसल जाए .
जी हाँ, शब्दों का ही खेल है..
भले ही उनकी पृष्ठभूमि में गूँजती
अंतर्मन की अभिव्यक्ति
पृथक ही क्यों न हो ..
In panktiyon mein bahut gehri baat keh di aapne!! :)
अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं
सटीक अभिव्यक्ति ....! साथक रचना ..!
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं
भले ही उनकी पृष्ठभूमि में गूँजती
अंतर्मन की अभिव्यक्ति
पृथक ही क्यों न हो!
एक दम सच्ची बात ...मन क्या कहता है , शब्द भी कह दे , जरुरी नहीं :)
शब्द विचारों के वाहक हैं। इसका खेल भी निराला है। लाठी व पत्थर से हड्डियॉं टूटती है परन्तु शब्दों से प्राय: सम्बन्ध टूट जाते हैं।
शब्द विचारों के वाहक हैं। इसका खेल भी निराला है। लाठी व पत्थर से हड्डियॉं टूटती है परन्तु शब्दों से प्राय: सम्बन्ध टूट जाते हैं।
in shabdon me bahut takat hoti hi jara galat prayog aur sansaar idhar se udhar.... tab kya kare jab shabd sahi ho magar samhane vaale ki soch me vo kuchh aur hi arth rakhta ho?! :(
बहुत सुन्दर..
और सच्ची बात...
प्यारी रचना.
अनु
तभी तो कहा जाता है की " मेरे बयानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया.........सही कहा आपने ! शब्दों का ही खेल है सब,
एक बेहतरीन कविता शब्दों की महत्ता और उनकी सार्थकता को परिभाषित करती हुई |आभार |
आश्चर्य है इस पोस्ट से पृथक भी ऐसा ही कुछ विचार साम्य मैंने फेसबुक पर शेयर किया है -
जो लिखते हैं अच्छा, कोई जरुरी नहीं कि वे होते भी अच्छे हों और जो होते अच्छे हैं वो जरुरी नहीं कि लिखते भी अच्छे हों!
अच्छे होने और अच्छे लिखने में समानुपातिक सम्बन्ध हो यह कतई जरुरी नहीं -मैंने तो वीभत्स व्युत्क्रमानुपात देखे हैं!
shabd vicharon ke vaahak hote hain. lekin shabd hi vo takat bhi hain jo bhaawnaao ka saakshaatkaar karane ki kshamta rakhte hain.
bahut sunder rachna.
अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं
भले ही उनकी पृष्ठभूमि में गूँजती
अंतर्मन की अभिव्यक्ति
पृथक ही क्यों न हो
शब्द और ह्रदय का अनोखा ताल मेल जहाँ भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं
शब्दों में बहुत सारी भावनाएं छिपी होती है..........सही कहा आपने ! शब्दों का ही खेल है सब,
भावना प्रधान सुन्दर रचना है।
सच्चाई से रूबरू ..कराते आपके शब्द !
आभार!
शब्दशः सहमत . सुँदर अभिव्यक्ति .
भावहीन शब्द गले के नीचे नहीं उतरते , भावनाएं हों तो सन्नाटों में भी आकारहीन शब्द गूंजते हैं - अनकहे को सुनना इसे ही कहते हैं
sach kaha aapne sab shabdo ka hi khel hai ..........acchi rachna shabdo ke madhyam se
शब्दों को कहती सुंदर रचना .... कभी कभी लिखने वाला कुछ और सोच कर लिखता है लेकिन हर पाठक अपने मनोभावों से उसको जोड़ लेता है ...
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं ...sahi kaha..
सुन्दर प्रस्तुति ...भावनाए कौन समझता है आज ...सब शब्दों का ही खेल है .......
सच है मोनिका जी शब्दों ही खेल है सारा
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/10/blog-post_20.html
अभिवादन मोनिका जी,
वैसे तो आपने सदा ही शब्दों को नै चाहत भरी उमंगों भरी उड़ान दी है ,शब्दों से घायल मन कभी संभल नहीं पाता भावनाओं कि आदत अब ज़माने को न रही ,सार्थक पोस्ट ,बधाई|
मेरे ब्लॉग विविधा पर आपका स्वागत है |
Jo shabdon ke peechhe kee bhavnaon ko samajh ke likhte/bolte hain,wahee to achhe lekhak ya wakta kahlate hain!
अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं
भले ही उनकी पृष्ठभूमि में गूँजती
अंतर्मन की अभिव्यक्ति
पृथक ही क्यों न हो !
सुन्दर...!
ज्यादा कहने में शब्द निरर्थक हो जायेंगे..!
शब्दों को चाहिए कि भावनाओं के बंदी रहें वे
शब्द ही अभिव्यक्ति का माध्यम है...
बहुत ही बेहतरीन और प्रभावी रचना....
:-)
मन का आइना होते है शब्द
शब्द कविता को आकार देते है,
आग लगा सकते है शब्द
शब्द आग बुझा सकते है;,,,,,,,
RECENT POST : ऐ माता तेरे बेटे हम
झ्यादा तर हमारे भाव ही ढलते हैं शब्दों में और जब ऐसा नही होता कृति में भी वह बात नही होती ।
धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये ।
भाव तो शब्द ही से व्यक्त होते हैं, बहुत सुन्दर रचना।
.इसीलिए ज़िन्दगी में थोड़ा सऊर सलीका भी जरूरी है ताकी शब्दों को बोध सकें बूझ सकें .जो जीवन का स्थूल रूप जी रहें हैं उन्हीं के लिए कहा गया है
:काला अक्षर भैंस बराबर .
ये तुमने क्या कहा ,
ये मैं ने क्या सुना ,
अरे !ये दिल गया ,
गया होगा .
अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं
भले ही उनकी पृष्ठभूमि में गूँजती
अंतर्मन की अभिव्यक्ति
पृथक ही क्यों न हो
sahi baat hai.
बहुत ही सुंदर व्याख्या... एक नजर इधर भी... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com
बहुत सशक्त शब्दों के साथ एक बेहतरीन सुन्दर रचना ..आभार..
भावयुक्त शब्द ही ह्रदय तक पहुचते हैं, अंतर्मन की बात कहते हैं... सुन्दर अभिव्यक्ति
भावयुक्त शब्द ही ह्रदय तक पहुचते हैं, अंतर्मन की बात कहते हैं... सुन्दर अभिव्यक्ति
सही फ़रमाया आपने
शब्दों के जंजाल को सब समझते है मगर साधारण सी भावनाएं किसी के पले ही नही पड़ती.
.. सुन्दर प्रस्तुती
बधाई स्वीकारें। आभार !!!
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं
http://rohitasghorela.blogspot.com
अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं
अद्भुत सुन्दर पंक्तियाँ !
sundar v sarthak abhivyakti badhai
जैसे पिता मिले मुझे ऐसे सभी को मिलें ,
डॉ. मोनिका शर्मा जी, हाँ, शब्दों का ही खेल है.यह सोचने का अवकाश नहीं किसी के पास.बहुत सुन्दर
रचना.
शब्दों का ही खेल है और आप माहिर खिलाड़ी!
ढ़
--
ए फीलिंग कॉल्ड.....
सटीक कही है बात बहुत सुन्दर !
अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं
शत प्रतिशत सही कहा आपने दुनिया हमे हमारे शब्दों से ही जानती है.....सुन्दर पोस्ट।
shabdon ka khel lekin aapne samajh liya hai.. bahut khoob
सही कहा आपने .....वह मुट्ठी भर शब्द...जो किसी की पहचान बन जाते हैं......नहीं होते मोहताज ......की उनके सही मतलब पहचाने कोई .....वह तो धरोहर हो जाते हैं हर पाठक की ....जो उन्हें अपना जामा पहनाता है ...अपनी भावनाओं को उनमें ढूंढता है ....और अपनी तरह से विस्थापित कर ...अपने अर्थ निकालता है ...!
बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ
---
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शब्दों का ही खेल है सारा
भावनाओं से साक्षात्कार होता ही कब है
बहुत सुन्दर भाव रचना .....!!
शब्द अमिट हैं ...
शब्द मुख से बाहर आते ही सजीव जरूर हो जाते हैं किंतु उसकी आत्मा बोलने वाले के हृदय में ही रहती है। शब्द की उस आत्मा को आत्मसात करने वाले बिरले ही होते हैं।
शब्दों के संस्कार पर सृजित एक स्वागतेय अभिव्यक्ति।
'चाभयदा'---लिखा मिलेगा दुर्गा सप्तशती के कुंजिका स्त्रोत मे और इसे यों ही पढ़ेंगे तो अर्थ होगा कि,'और भय दो' परंतु यदि इसे संधि-विच्छेद करके जैसा पढ़ा जाना चाहिए पढ़ेंगे ---च+अभय+दा तो अर्थ होहा कि,'और अभय दो'।
वास्तविकता को दर्शाती कविता ज्ञानवर्द्धक है।
http://krantiswar.blogspot.in/2012/10/blog-post_24.html
अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं
...बहुत सच कहा है..बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति..
हाँ शब्दों का ही खेल है सारा ,
शब्दों से ही हो जाते हैं ,पराये अपने ,
अपने पराए ,
शब्दों से ही हो जाते हैं अर्थ के अन-अर्थ .
व्यर्थ के कुतर्क ,
खड़े करते हैं आडम्बर कितने ही शब्द .शुक्रिया मोहतरमा .आप कौन देश हैं ?
मैं यहाँ कैंटन ,मिशिगन में हूँ फिलवक्त .जीवन संक्रमण में ही बीत रहा है .लिखते लिखाते .
शब्दों का ही खेल है सारा
भावनाओं से साक्षात्कार होता ही कब है
बेशक सच कुछ हद तक यही है. सुंदर प्रस्तुति.
sunderta ke saath likhi hai.....
utam-***
wah bahut sundar rachan lagi ....abhar monika ji
कई बार
नहीं पल्ले पड़ता कहा भी
और कभी
सुनाई देता है अनकहा भी!
कई बार
नहीं पल्ले पड़ता कहा भी
और कभी
सुनाई देता है अनकहा भी!
शब्द जो कहे गये, शब्द जो सुने गये
वे उच्चारित होते ही जीवंत हो जाते हैं
और बन जाते हैं हमारी
अमर, अमिट पहचान
बहुत सुन्दर ..तभी तो बहुत ही तोल मोल के जुबान खोलना है शब्द नष्ट तो होते नहीं
भ्रमर ५
बहुत सुन्दर प्रस्तुति मोनिका जी शब्द ही तो हैं जो हमारी अंतर्मन के भावों को मुखरित करते हैं बहुत सुन्दर विश्लेषण किया है शब्दों का
शव्द तो दिल के आईने होते है | जो रूप न कहा सका , जो भाव न कह सके .. वह थोड़े से शव्द उजागर कर देते है | बेहद सुब्दर कविता |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
सारा शब्दों का खेल है पर शब्द जो अंतर्मन से निकलते हैं जीवंत हो जाते हैं ।
बहुत अहम सवाल शब्दों की मात्र औपचारिकता क निर्वाहन करते हैं हम या भावों का संबल भी होता है ...??? भौतिक युग में भावुक होने और भावनाएं समझने का वक्त ही नहीं रहा ...कहाँ तक औपचारिक होगा ये प्राण ??? बेहद गहन प्रस्तुति ..हार्दिक शुभ कामनाएं !!!!
aapke blog par aana har baar sukhad hota h mere liye ...:)
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