देश या विदेश, जहाँ भी रही 'कालनिर्णय' हमेशा साथ रहा है | जाने कितनी बार पर्व-त्योहार, तिथि-वार, अवकाश और दिनांक तक, कुछ देखने को 'कालनिर्णय' लेकर बैठी हूँ | दिन-वार देखते हुए पन्ना पलटकर पीछे छपी सामग्री पढ़ने में भी रुचि रही है | घर-घर की दीवार टँगे रहने वाले 'कालनिर्णय' की पहुँच अनगिनत पाठकों तक है, इसबार मेरे विचार भी इसमें शामिल हैं | सुखद यह भी कि (परवरिश) बच्चों से जुड़े विषय पर यह लेख है | अब तक सबसे अधिक इसी विषय को लेकर ना केवल लिखा है बल्कि इस दायित्व को मन से जीया भी है | तकनीकी विस्तार के दौर में जब हम सब मशीनी व्यवहार के आदी होते जा रहे - बच्चों को मनुष्य बनाए रखने के लिए उनकी मासूम मुस्कुराहटों को सहेजना ज़रूरी है |
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