देश या विदेश, जहाँ भी रही 'कालनिर्णय' हमेशा साथ रहा है | जाने कितनी बार पर्व-त्योहार, तिथि-वार, अवकाश और दिनांक तक, कुछ देखने को 'कालनिर्णय' लेकर बैठी हूँ | दिन-वार देखते हुए पन्ना पलटकर पीछे छपी सामग्री पढ़ने में भी रुचि रही है | घर-घर की दीवार टँगे रहने वाले 'कालनिर्णय' की पहुँच अनगिनत पाठकों तक है, इसबार मेरे विचार भी इसमें शामिल हैं | सुखद यह भी कि (परवरिश) बच्चों से जुड़े विषय पर यह लेख है | अब तक सबसे अधिक इसी विषय को लेकर ना केवल लिखा है बल्कि इस दायित्व को मन से जीया भी है | तकनीकी विस्तार के दौर में जब हम सब मशीनी व्यवहार के आदी होते जा रहे - बच्चों को मनुष्य बनाए रखने के लिए उनकी मासूम मुस्कुराहटों को सहेजना ज़रूरी है |
- डॉ. मोनिका शर्मा
- पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'
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