My photo
पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

22 June 2012

शिखर पर अकेलापन.....युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति


अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका लांसेट का सर्वे कहता है कि भारत में युवाओं की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है आत्महत्या।  हालांकि हमारे समाज और परिवारों का विघटन जिस गति से हो रहा है किसी शोध के ऐसे नतीजे चौंकाने वाले नहीं हैं। जीवन का अंत करने वाले इन युवाओं की उम्र है 15 से 29 वर्ष है। यानि कि  वो  आयुवर्ग जो  देश का भविष्य है। एक ऐसी उम्र जो अपने लिए ही नहीं समाज, परिवार और देश के लिए कुछ स्वपन संजोने और उन्हें पूरा करने की ऊर्जा और उत्साह का दौर होती है। पर जो कुछ हो रहा है वो हमारी आशाओं और सोच के बिल्कुल विपरीत है। 
शिखर पर अकेलापन 

आमतौर पर माना जाता है कि गरीबी अशिक्षा और असफलता से जूझने वाले युवा ऐसे कदम उठाते हैं। ऐसे में इस सर्वे के परिणाम थोड़ा हैरान करने वाले हैं। इस शोध के मुताबिक उत्तर भारत के बजाय दक्षिण भारत में आत्महत्या करने वाले युवाओं की संख्या अधिक है। इतना ही नहीं देशभर में आत्महत्या से होने वाली कुल मौतों में से चालीस प्रतिशत अकेले चार बड़े दक्षिणी राज्यों  में होती हैं । यह बात किसी से छिपी ही नहीं है कि शिक्षा का प्रतिशत दक्षिण भारत में उत्तर भारत से कहीं ज्यादा है। काफी समय पहले से ही वहां रोजगार के बेहतर विकल्प भी मौजूद रहे हैं। ऐसे में देश के इन हिस्सों में भी आए दिन ऐसे समाचार अखबारों में सुर्खियां बनते हैं । इनमें एक बड़ा प्रतिशत जीवन से हमेशा के लिए पराजित होने वाले ऐसे युवाओं का है जो सफल भी हैं, शिक्षित भी और धन दौलत तो इस पीढ़ी ने उम्र से पहले ही बटोर लिया है। 

सच तो यह है कि बीते कुछ बरसों में नई  पीढ़ी पढाई अव्वल आने की रेस और फिर अधिक से अधिक वेतन पाने की दौड़  का हिस्सा भर बनकर रह गयी है । परिवार और समाज में आगे बढ़ने और सफल होने के जो मापदंड तय हुए वे सिर्फ आर्थिक सफलता को ही सफलता मानते हैं । इसके लिए शिक्षित होने के भी मायने बदल गए । पढाई सिर्फ मोटी तनख्वाह वाली नौकरी पाने  का जरिया बन कर रह गयी । इस दौड़ में शामिल युवा पीढ़ी परिवार और समाज से इतना दूर  हो गयी कि वे किसी की सुनना और अपनी कहना ही भूल  गए  । समय के साथ उनकी आदतें भी कुछ ऐसी हो चली  हैं कि मौका मिलने पर भी वे परिवार के साथ नहीं रहना चाहते। उनके जीवन में ना ही रचनात्मकता बची है और ना ही आपसी लगाव का  कोई स्थान रहा है  ।  परिणाम हम सबके सामने हैं । आज  जिस आयुवर्ग के युवा आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं वे परिवार और समाज के सपोर्ट सिस्टम से काफी दूर ही रहे हैं। इस पीढी का लंबा समय घर से दूर पढाई करने में बीता है और फिर नौकरी करने के लिए भी परिवार से दूर ही रहना पड़ा है।  इनमें बड़ी संख्या में ऐसे नौजवान हैं जो घर से दूर रहकर करियर के  शिखर पर तो पहुंच जाते हैं पर उनका मन और जीवन दोनों सूनापन लिए है।  उम्र के इस पड़ाव पर उनके पास सब कुछ पा लेने का सुख  है तो पर कहीं कुछ छूट जाने की टीस भी है। कभी कभी यही अवसाद और अकेलापन जन असहनीय हो जाता है तो वे जाने अनजाने अपने ही जीवन के अंत की राह  चुन लेते हैं । 

देखने में तो यही लगता है कि सफलता के शिखर पर बैठे इन युवाओं के जीवन में ना तो कोई दर्द है और ना ही कोई दुख।  ऐसे में ये आँकड़े सोचने को विवश करते हैं कि क्या ये पीढी इतना आगे बढ गयी है कि जीवन ही पीछे छूट गया है ? जिस युवा पीढी के भरोसे भारत वैश्विक शक्ति बनने की आशाएं संजोए है वो यूं जिंदगी के बजाय मौत का रास्ता चुन रही है, यह हमारे पूरे समाज और राष्ट्र के लिए दुर्भागयपूर्ण  ही कहा जायेगा । 

01 June 2012

तुम्हारे आ जाने से...चैतन्य

चैतन्य


चैतन्य
तुम्हारा आना
जीवन में नई चेतना
ले आया है
उग आये हैं कुछ
नए विचार
मेरे ह्रदय के आँगन में
और 
मैं गर्वित हूँ
कि संवेदनशीलता से
फूटती ये वैचारिक कोंपलें
अपनी जड़ें जमा रही हैं 

        मनुष्यता की सीढियाँ 
 चढ़ते हुए
प्रकृति के समीप
ले आया है मुझे 
तुम्हारा  साथ
लौट आयीं हैं मेरे
जीवन में तितलियाँ
और भवरों की गुंजन
फिर चला आया है
इन्द्रधनुष देखने का हठ
 दृढ़ता पा गया है
अपनी हर बात साधिकार
कहने का आत्मविश्वास 
 फिर समेट लिए हैं मैंने
माटी के रंग
अपने आँचल में
 जो स्नेह और ममत्व के
अनगिनत प्रतिमान
गढ़ते हुए
मुझे सही अर्थों में
मानवी बना रहे हैं

तुम्हारे आ जाने से
  माँ हो जाने से
चैतन्य
मुझे संसार के
हर बच्चे से
प्रेम हो गया है