हम सबका का देखा, जाना और माना एक सच यह है कि हर भारतीय को हर हाल में कुछ कहना होता है । हमारे विचार प्रवाह की तीव्रता इतनी अधिक है कि कभी किसी विषय को लेकर अधिवक्ता बन बहस करने लगते हैं तो कभी स्वयं ही जज बन निर्णय भी सुना देते हैं । स्वयं को अभिव्यक्त करने की आदत या ज़रुरत हर हिन्दुस्तानी के जीवन का अहम् हिस्सा रही है, आज भी है । हो भी क्यों नहीं ? हम तो हर परिस्थिति के लिए कुछ न कुछ कह सकते हैं । अपनी विचारशीलता को प्रस्तुत करने का कोई अवसर हम न अपने घर-परिवारों में छोड़ते हैं और न ही देश-दुनिया के मसलों को बतियाने -गरियाने के मामले में पीछे रहते हैं ।
तकनीक का अजब खेल है कि आज हम सबके पास स्वयं को अभिव्यक्त करने के अनगिनत साधन भी मौजूद हैं। ट्विटर , फेसबुक या ब्लॉग । जहाँ जो मन में आया लिख डाला । अच्छी बात है, इन साझा मंचों पर विचारों को अभिव्यक्ति मिल रही है पर मुझे लगता है इस तरह जो विचार बिना सोचे समझे साझा किये जा रहे हैं उससे सिर्फ और सिर्फ हमारी अभिव्यक्ति की विश्वसनीयता पर प्रश्न ही उठ रहे हैं । जिस तरह लिखने वाले ज़रूरी -गैर ज़रूरी सब कुछ परोस रहे हैं ठीक उसी तरह लाइक्स और टिप्पणियों के ज़रिये हर कोई विचारों के आदान प्रदान में नहीं, बस लेन-देन में जुटा है । देखने में आ रहा है कि इन प्लेटफॉर्म्स पर रचनात्मक और वैचारिक ऊर्जा का जिस तरह प्रयोग होना चाहिए था काफी कुछ उससे उलट ही हो रहा है । वैचारिक स्वतंत्रता देने वाले मंचों पर एक दूसरे के विचारों के प्रति सहिष्णुता का भाव तो बस नाममात्र को बचा है ।
आज़ादी जब भी, जिस रूप में भी मिलती है हमें अधिकार संपन्न बनाती है । जब अधिकार मिलेंगें तो कर्तव्यों के रूप में जिम्मेदारी भी तो हमारे ही हिस्से आएगी । जिम्मेदारी की यह सोच हमें स्वतंत्र बनाये रखती है पर स्वच्छंद नहीं होने देती ।
क्या हम सब इसी तरह की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाहते हैं ? जब हमारी कही बात की विश्वसनीयता ही न रहे । सब कुछ पसंद -नापसंद या सुंदर है अच्छा है , तक ही सिमट जाये । अभिव्यक्ति के इन प्लेटफॉर्म्स पर हमारे विचारों की विश्वसनीयता ही यह तय करेगी कि किसी विषय पर दिए हमारे मत का क्या मूल्य है ? यह तभी संभव है जब हम स्वयं अपने लिए कुछ मापदंड तय करें । अपने विचारों की प्रस्तुति से लेकर औरों के विचारों को मान देने तक । मतभिन्नता कोई बड़ी बात नहीं पर उसे सामने रखने का ढंग तो हमें सीखना ही होगा । हम यह बात क्यों भूल रहे हैं कि स्वयं को अभिव्यक्त करने का अधिकार चाहने वाले हर व्यक्ति को सभ्य व्यवहार का पाठ पढना भी आवश्यक है । यह जानना और मानना ज़रूरी है कि हमारी ही तरह किसी और को भी अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है । हमारे लिखे शब्दों के मायने और मान दोनों बने रहें इसके लिए आवश्यक है कि जो भी लिखा जाय , जहाँ भी लिखा जाय वो अर्थपूर्ण हो । उसकी विश्वसनीयता का स्तर बना रहे ।
66 comments:
आप सही कहती हैं -एक अजब सी वैचारिक अव्यवस्था अपना प्रभाव फैला रही है .....जो स्वस्थ विमर्श के लिए किसी भी दशा में ठीक नहीं है
इस प्रकार का प्रलाप न अभिव्यक्ति है न प्रति -क्रिया ,अपने हाथों अपनी विश्वसनीयता के पंख कुतरना है .अपने को बौद्धिक रूप से पंगु और विकलांग बनाना है .आपको इसके बाद कोई गंभीरता से लेता भी नहीं है .आपने एक सही विषय को परवाज़ दी है ,जिस पर इस मंच पर ब्लोगिया विमर्श ज़रूरी है आज की अपरिहार्यता भी है .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 12 जुलाई 2012
घर का वैद्य न बनें बच्चों के मामले में
घर का वैद्य न बनें बच्चों के मामले में
http://veerubhai1947.blogspot.de/
गरिमामय बातें या कथन सदैव सर्वकालिक, सर्वमान्य, सर्वग्राह्य और लोकहितकारी होते हैं , आप इस सुन्दर मंच का उपयोग करें न की
बुद्धिमानी दिखाकर अपने सम्मान का सत्यानाश करें .न आपको जीवन दुबारा मिलेगा न ही आप लिखे को मेट सकते . मैंने सुना है लिखाकर डिलीट
कर दें लेकिन उसे फिर रिकव्हर किया जा सकता है .तो क्यों लिखा जाये ऐसा जिस पर दुसरे ही पल खुद को शर्मिंदगी हो ..
। मतभिन्नता कोई बड़ी बात नहीं पर उसे सामने रखने का ढंग तो हमें सीखना ही होगा । हम यह बात क्यों भूल रहे हैं कि स्वयं को अभिव्यक्त करने का अधिकार चाहने वाले हर व्यक्ति को सभ्य व्यवहार का पाठ पढना भी आवश्यक है ।
सार्थक ...सार्गर्भित आलेख ...
किसी से ना -इत्तेफाकी भी रखें तो इतनी ,आइन्दा मिलें तो शर्मिंदा न हों .
आपसे पूरी तरह सहमत हूँ.....
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाजायज़ फायदा उठाना गलत है...
सादर
अनु
हमारी मानसिकता की आत्मा है, लेखन जो अपनी पहचान कराने में समर्थ है !
आपने सही तथ्य प्रकट किया।
वैचारिक अराजकता स्व-पर सभी के लिए पतनोमुखी है।
अभिव्यक्ति के अधिकार में स्वतंत्रता प्रमुख आधार है किन्तु स्वच्छंदता लेश मात्र भी नहीं। और यह केवल दूसरों के विचारों के प्रति सहिष्णुता के लिए ही नहीं स्वयं अपने व्यक्तित्व के प्रति सहिष्णुता है।
"जो विचार बिना सोचे समझे साझा किये जा रहे हैं उससे सिर्फ और सिर्फ हमारी अभिव्यक्ति की विश्वसनीयता पर प्रश्न ही उठ रहे हैं । जिस तरह लिखने वाले ज़रूरी -गैर ज़रूरी सब कुछ परोस रहे हैं ठीक उसी तरह लाइक्स और टिप्पणियों के ज़रिये हर कोई विचारों के आदान प्रदान में नहीं, बस लेन-देन में जुटा है ।"---आपका कथन शत-प्रतिशत सही है। प्रत्येक को अपने कर्तव्य -पालन का ध्यान रखना ही चाहिए।
हम यह बात क्यों भूल रहे हैं कि स्वयं को अभिव्यक्त करने का अधिकार चाहने वाले हर व्यक्ति को सभ्य व्यवहार का पाठ पढना भी आवश्यक है ।
यह जानना और मानना ज़रूरी है कि हमारी ही तरह किसी और को भी अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है ।
-------
आप के इनदोनो वाक्यों में कितना अंतर विरोध हैं आप खुद देखे
पहला वाक्य पाठ पढ़ाने की बात करता हैं
दूसरा वाक्य निरंकुश छोड़ देने की बात करता हैं
जरुरी ये हैं की जो जहां हैं वहाँ के कानून के , नियम के दायरे में काम करे ,
अभिव्यक्ति की आज़ादी के अंतर्गत कुछ भी सिर्फ लिखने के लिए लिखना हो रहा है , वह भी प्रबुद्ध कहलाने वाले लोगों में ! नासमझ लोंग ऐसा करें तो अखरता नहीं है .
सार्थक चिंतन !
@ रचना
दोनों का अर्थ एक ही है अगर आलेख को समग्र रूप से देखा जाये तो और वो है मतभिन्नता है तो उचित ढंग से अपनी बात रखें | वैसे मेरे आलेख में बात वैचारिक
भिन्नता के बजाय इस बात की ज्यादा है कि जो भी लिखा जाय उसकी विश्वसनीयता हो ब्लॉग, फेसबुक आदि पर सिर्फ उपस्थिति दर्ज करवाने भर के लिए अपने विचार न पोस्ट्स में रखे जाएँ और न ही टिप्पणियों में
Bahut acche prashn uthaaye hain aap ne.
repeating Veerubhaayee ji 's comment -
किसी से ना -इत्तेफाकी भी रखें तो इतनी ,
आइन्दा मिलें तो शर्मिंदा न हों .
Bahut acche prashn uthaaye hain aap ne.
repeating Veerubhaayee ji 's comment -
किसी से ना -इत्तेफाकी भी रखें तो इतनी ,
आइन्दा मिलें तो शर्मिंदा न हों .
जिस तरह लिखने वाले ज़रूरी -गैर ज़रूरी सब कुछ परोस रहे हैं ठीक उसी तरह लाइक्स और टिप्पणियों के ज़रिये हर कोई विचारों के आदान प्रदान में नहीं, बस लेन-देन में जुटा है
ये तो फेसबुक और कुछ हद तक ब्लॉग की भी एकदम सच बात कही है :)
विश्वसनीयता तो बेहद ज़रूरी है
जब मै पहली बार हिंदी ब्लॉग जगत में आई तो यहाँ पर लोगों के सामाजिक मुद्दों , स्त्री और धर्म पर विचार पढ़ कर बिल्कुल आश्चर्य में पड़ गई की की पढ़े लिखे लोग भी ऐसा सोच सकते है | किन्तु तब लगा की हा मै पहली बार समाज दुनिया की सच्चाई को जान रही हु लोगों की असली सोच को समझ रही हूं जो अभी तक मैंने नहीं जाना था , कारण वही था की लोग बिना किसी विचार के खुल कर अपनी बात यहाँ रख रहे थे वो गलत , बुरा गन्दा घिनौना था उसके बाद भी अच्छा था क्योकि ये पता चला गया था की आखिर लोगों को असली बीमारी क्या है जो अब तक ढंका तुपा था वो सामने था , अब पता था की किसकी सोच क्या है किसे क्या समझना है और किसे समझाने की जरुरत ही नहीं है और किसकी सोचा पूरे समाज के लिए खतरनाक है और उसका जम कर विरोध करना है | कभी कभी खुले घावों से गन्दा मवाद बाहर आ जाये तो अच्छा ही होता है |
सही कहा मोनिका जी. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब नहीं कि जो चाहो बाँट लो ...सार्थक आलेख
अपसे सहमत हूँ। अच्छा आलेख।
कल 13/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
यह विश्वसनीयता का चक्कर ही विवाद की जड़ है। हर कोई तर्क करता ही इसलिए है कि अपने को विश्वसनीय मनवा सके। हम केवल अपनी बात कहें,उसमें क्या विश्वास योग्य है,क्या नहीं-सामने वाले पर छोड़ दें।
बहुत सार्थक पोस्ट ....
आज़ादी जब भी, जिस रूप में भी मिलती है हमें अधिकार संपन्न बनाती है । जब अधिकार मिलेंगें तो कर्तव्यों के रूप में जिम्मेदारी भी तो हमारे ही हिस्से आएगी ।
लेकिन ज़िम्मेदारी कोई नहीं निबाहना चाहता ...अधिकार चाहिए .... लोग भूल जाते हैं कि नेट पर आपके शब्द ही आपकी छवि बनाते हैं ...क्यों कि यहाँ कोई आमने सामने तो मिलता नहीं ... विचारणीय लेख .... खुद को विश्वसनीय बनाने के लिए सोच समझ कर शब्दों का प्रयोग करना चाहिए ...
साझा मंचों पर विचारों को अभिव्यक्ति मिल रही है पर मुझे लगता है इस तरह जो विचार बिना सोचे समझे साझा किये जा रहे हैं उससे सिर्फ और सिर्फ हमारी अभिव्यक्ति की विश्वसनीयता पर प्रश्न ही उठ रहे हैं । जिस तरह लिखने वाले ज़रूरी -गैर ज़रूरी सब कुछ परोस रहे हैं ठीक उसी तरह लाइक्स और टिप्पणियों के ज़रिये हर कोई विचारों के आदान प्रदान में नहीं, बस लेन-देन में जुटा है । देखने में आ रहा है कि इन प्लेटफॉर्म्स पर रचनात्मक और वैचारिक ऊर्जा का जिस तरह प्रयोग होना चाहिए था काफी कुछ उससे उलट ही हो रहा है ।
सटीक विषय पर एक सार्थक लेख.....हर तस्वीर के दो रुख होते ही हैं ये प्रत्येक व्यक्ति की ज़िम्मेदारी है की वो अपनी भाषा और लेखन को संयम में रखे और सामने वाले को भी अपना मत प्रकट करने का पूरा मौका दे.....पूर्णतया सहमत हूँ आपसे।
आजादी की अहमियत तब समझ में आती है जब छीन ली जाती है . आलेख के मूल भाव से मेरी सहमती है
अभिव्यक्ति करने की सदा,रहती पूरी स्वतंत्रता
लेखन सदा ऐसा करे, बनी रहे विश्वसनीयता,,,,,,,
RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
SAHMAT HUN AAPKE VICHARON SE .SARTHAK POST HETU BADHAI
सहमत हूँ आपकी बात से ... स्वतंत्रता तभी तक ठीक है जब तक वो दूसरे के अधिकार का अतिक्रमण नहीं करती ... और अभुव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ तो विश्वसनीयता का दायित्व और भी बढ़ जाता है ... काश हमारा मीडिया सबसे पहले इस बात कों समझे ...
बिलकुल ठीक कहा आपने अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता ही नहीं विश्वसनीयता भी ज़रूरी है। इसलिए तो शायद वो कहावत बनी होगी की "धनुष से निकला हुआ बाण और मुंह से निकले हुए शब्द कभी लौटकर नहीं आते" इसलिए हमेशा तोल मोल के बोलना चाहिए। मगर अपने ब्लॉग जगत में अक्सर होता इसका उल्टा ही है। सार्थक आलेख।
हमारे लिखे शब्दों के मायने और मान दोनों बने रहें इसके लिए आवश्यक है कि जो भी लिखा जाय , जहाँ भी लिखा जाय वो अर्थपूर्ण हो । उसकी विश्वसनीयता का स्तर बना रहे ।
बिल्कुल सही आपकी बात से पूर्णत: सहमत हूँ .. .बेहद सार्थक विषय .. आभार
सच्ची अभिव्यक्ति ..
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि कुछ भी लिख दो। लेखक को किसी के प्रति नहीं तो स्वयं के प्रति जिम्मेदार होना चाहिए।
बिलकुल सच कह रही हैं..अभिव्यक्ति की ही क्या किसी भी स्वतंत्रता का नाजायज और अर्थविहीन प्रयोग गलत है.
अर्थ हिन् अभिव्यक्ति , हमारे व्यक्तित्व को उजागर करती है और सामने वाला , चतुर हो तो हमारे चरित्र को आसानी से पढ़ लेता है | अभिव्यक्ति प्रकाशमय होनी चाहिए | बहुत सुन्दर और तीखी नजर , आज के समसामयिक घटनाओ पर | बधाई
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिलने पर भी अपनी जिम्मेवारी नहीं भूलनी चाहिए अन्यथा...अपनी ही विश्वसनीयता पर आंच आती है..
आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ हम जो भी लिखें अर्थपूर्ण हो और उसकी विश्वसनीय का स्तर बना रहे इसके लिए हम स्वयं अपने लिए कुछ मापदंड तय करें.. सार्थक आलेख...
sahmat hun ....
आपकी यह पोस्ट कुछ जरुरी और जिम्मेवारी पूर्ण तरीके से सोचने को मजबूर करती है ...जो जितनी जिम्मेवारी से काम करेगा उसका उतना ही रुतवा बढेगा और उसकी अभिव्यक्ति की उतनी ही प्रासंगिकता भी ...!
ye to ekdam sahi hai ....apni jimmedaari nibhaane se hi vishwsniyata prapt hoti hai...
संभव है जब हम स्वयं अपने लिए कुछ मापदंड तय करें । अपने विचारों की प्रस्तुति से लेकर औरों के विचारों को मान देने तक । मतभिन्नता कोई बड़ी बात नहीं पर उसे सामने रखने का ढंग तो हमें सीखना ही होगा । हम यह बात क्यों भूल रहे हैं कि स्वयं को अभिव्यक्त करने का अधिकार चाहने वाले हर व्यक्ति को सभ्य व्यवहार का पाठ पढना भी आवश्यक है
आदरणीया डॉ मोनिका जी बहुत सुन्दर विचार आप के कुल मिलकर हम यह पाते हैं की पहले खुद को जगाना सम्हालना जानना होगा फिर विचारों की अभिव्यक्ति को पंख लगा सीमा में रख प्यारी चीजें परोसना होगा ..आभार .
भ्रमर ५
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ तो भी बकबक आदमी करना चाहता है.. ये ठीक प्रवृति नहीं..
हमे अपने बात कहने का साधन सुलभ हुआ है तो मर्यादा और विश्वश्नियता को बनाये रखना जरुरी है.
आपकी बातों से सहमत
तोल मोल के बोल और नाप तौल के लिख ,
नहीं तो मूर्खता तुम्हारी जायेगी सबको दिख |
सच कहा, विश्वसनीय बात सदा सुनी जायेगी और नक़ली खुशबू कुछ देर में ही उड़ जायेगी।
सबसे पहली आवश्यकता है समाज को संस्कारित करने की। जो लोग परिवार और समाज के नियन्त्रण से दूर हैं अक्सर वे ही अमर्यादित अभिव्यक्ति करते हैं।
संयम और विश्वसनीयता हर क्षेत्र के लिए जरूरी है|
स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए|
सार्थक चिंतन... विचारणीय तथ्य... प्रभावी आलेख...
सादर.
bahut hee sarthak prashn hai..aapke bichaaron se main purntaya sahmat hoon..bishwsneeytaa kaa bana rahana atyant abasyak hai.kalamkaaron ka mahti uddeshya samaj ko disha dena hai..uske utkarsh uska unnayan karna hai..bichaar ek urja hain ..khob takaraayein ..par aisee sakaratmak urja ke sath takrayein takee unk synergistic effect ho ..koi naya urjawan bichaar paida ho sake...sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath
.राजनीति से अभिव्यक्ति की आज़ादी का दुरूपयोग शुरु हुआ कहकर मुकर जाना स्वभाव बना .जूतों में दाल बंटने लगी .अब ब्लोगी और ब्लोगिये एक दूसरे पे छींटाकसी में मशगूल है वह भी ऐसी जिसने शालीनता के पर नोंच लिए हैं .इस दलदल से निकलना ही पड़ेगा ब्लॉग की न्यू मीडिया के रूप में विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए भी यह ज़रूरी है .आपकी ब्लॉग दस्तक के लिए शुक्रिया .
@हमारे लिखे शब्दों के मायने और मान दोनों बने रहें इसके लिए आवश्यक है कि जो भी लिखा जाय , जहाँ भी लिखा जाय वो अर्थपूर्ण हो । उसकी विश्वसनीयता का स्तर बना रहे ।
बिलकुल सही लिखा है आपने।
हमें अपना उत्तरदायित्व अच्छी तरह समझना होगा।
सच कहा आपने, यदि अर्थपूर्ण नहीं कहा जायेगा तो बात का मूल्य समाप्त हो जायेगा।
उसकी विश्वसनीयता का स्तर बना रहे ।
Mai kahungee...aapke lekhan ka star bana rahe...
बहुत सार्थक विचार है आपके यह स्वतंत्रता अवश्य है हमारे पास लेकिन हमें भी इसका सदुपयोग करना चाहिए
आज़ादी जब भी, जिस रूप में भी मिलती है हमें अधिकार संपन्न बनाती है । जब अधिकार मिलेंगें तो कर्तव्यों के रूप में जिम्मेदारी भी तो हमारे ही हिस्से आएगी । जिम्मेदारी की यह सोच हमें स्वतंत्र बनाये रखती है पर स्वच्छंद नहीं होने देती ।
vicharneey post.
बहुत ही बढ़िया विश्लेषण है....... लेखन का अर्थपूर्ण और विश्वसनीय होना बेहद जरुरी है।
sahmati!!
sahi kaha aapne!
अत्यंत विचारणीय लेख है..बात एकदम सही है..अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सही इस्तेमाल करना ही सच्चे मायने में लेखन कार्य करना है ना कि कुछ भी लिखकर रख देना.....
बिल्कुल...सहमत हूँ....
सही कहा आपने कि जो भी लिखा जाए, कहा जाए वो अर्थपूर्ण और विश्वसनीय होनी चाहिए
वैचारिक अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता के साथ हमें अपने कर्त्तव्यों का भी जरुर ध्यान होना चाहिए
सुंदर व सार्थक लेख ...
साभार !!
.सहमत हूँ....
बिलकुल सही कहा आपने ...अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता स्वछंदता नहीं है....सार्थक एवं गारिममायी वैचारिक अभिव्यक्ति अत्यावश्यक है ....सार्थक आलेख के लिए
आभार एवं शुभ कामनाएं !!!
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को जिम्मेदारी के साथ निभाने में
ही सार्थकता है...न की उसका दुरूपयोग करने में
कार्य ऐसा हो जो किसी को कस्ट ना दे.
और विचार ऐसे हो जो विचारणीय हो
न की आघाती ..
सार्थक और उत्कृष्ट लेखन:-)
आपने बिकुल सही कहा....स्वयं को अभिव्यक्त करने का अधिकार चाहने वाले हर व्यक्ति को सभ्य व्यवहार का पाठ पढना भी आवश्यक है ....
विचार परक सुन्दर आलेख ...
सादर !!!
हम यह बात क्यों भूल रहे हैं कि स्वयं को अभिव्यक्त करने का अधिकार चाहने वाले हर व्यक्ति को सभ्य व्यवहार का पाठ पढना भी आवश्यक है । यह जानना और मानना ज़रूरी है कि हमारी ही तरह किसी और को भी अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है ।
बिलकुल ...और हमें उसकी कही बात पर भी उतनी सहजता से विचार करना चाहिए ....!!
हमारे विचारों की अभिवयक्ति में तकनीक का प्रवेश हाल की घटना है। बहुत सी तकनीक और सुविधाओं के लिए जिस परिपक्वता की अपेक्षा थी,वह हममें नहीं थी। हमारे पात्र न होने का ही नतीज़ा है हमारी उच्छृंखलता।
bilkul sahmat hu aapse.....anargal likhne se accha h ki naa hi likha jaaye....facebook aur blog ke baare me bhi aapki baat sahi h.....upsthiti darz karane se jyada mahtvpurn h ki log aapki anupsthiti mahsus kare...aapki kami is manch par khale...iske liye jaruri h ki aapke lekhan me ek garima ho....jo kisi bhi platform ko garimamay banaye....badhaiyaa sarthak lekh ke liye
जी हाँ डॉ मोनिका आपके कहे की साख नहीं होगी तो आप किसी की गोद का पूडल (गोदी का कुत्ता /पिल्ला /पपी)ही कहलाएंगे .शब्द किस के मुख से निसृत हुएँ हैं उसका महत्व तभी है जब आपको ईमानदार अभिव्यक्ति के लिए जाना जाता हो .
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