जीवन में प्राथमिकताएं तय कर पाना और उन्हें निभाने के संकल्प पर डटे रहना किसी के लिए भी सरल नहीं होता। कई बार ऐसा भी होता है कि जो बातें जीवन में अधिक महत्व रखती हैं उन्हें हम जानते समझते तो है पर उस विषय पर समय रहते सही कदम नहीं उठा पाते। अक्सर महिलाओं को इस द्वन्द में कहीं ज्यादा उलझते देखा है क्योंकि उन्हें अपनी प्राथमिकताओं के विषय में विचार करने से पहले अपने से जुड़े अन्य लोगों की सहमति-असहमति के विषय में अधिक सोचना होता है।
कई हमउम्र महिलाओं से मिलती हूं तो उन्हें इस उहापोह से जूझते हुए देखती हूं कि नौकरी की जाय या फिर घर संभाला जाय। जो पहले से कामकाजी हैं उनके मन में यह अपराधबोध है कि बच्चे और घर उपेक्षित हो रहे हैं । वहीं दूसरी ओर उच्च शिक्षित गृहणियों के मन में यह दुख है कि वे अपनी क्षमता और योगयता का घर ही नहीं घर के बाहर भी इस्तेमाल कर सकती हैं। कभी मन को थाम कर खुद को संतुष्टि दे भी लेती हैं तो आसपास मौजूद विकल्प मन को भरमाने में कोई कसर नहीं छोङते। कुल मिलाकर कहें तो ऊपर से शांत और संतुष्ट प्रतीत होने वाले जीवन में एक बड़ा मनोवैज्ञानिक युद्ध चल रहा होता है।
मुझे लगता है जीवन में जब तक प्राथमिकताएं तय नहीं होतीं तब तक कोई कार्ययोजना भी नहीं बनाई जा सकती। कभी-कभी तो यह भी लगता है कि कामकाजी बनना हो या गृहणी, गुणवत्ता हासिल करनी है तो प्राथमिकता और भी जरूरी हो जाती है। चूंकि एक महिला हूं इसलिए महिलाओं के संदर्भ में अपनी बात कह रही हूं। महिलाओं के लिए यह जानना और मानना दोनों आवश्यक है कि जीवन के हर पड़ाव पर प्राथमिकतायें बदल जाती हैं। उनसे जुड़ा लक्ष्य भले ही ना बदले पर उनका स्वरूप तो निश्चित रूप से परिवर्तित हो ही जाता है।
कामकाजी हों या गृहणी, महिलाओं के जीवन में एक समय ऐसा आता है जब परिवार और बच्चों से बढकर कुछ नहीं होता। ऐसे अनगिनत उदाहरण मिल जायेंगें जब मांओं ने बच्चों की परवरिश को सबसे अधिक प्राथमिकता दी और पूरी तरह से समर्पित होकर अपनी जिम्मेदारी को निभाया। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि कभी-कभी एक माँ, एक पत्नी के रूप में महिलाओं के लिए सफलता का प्रतिमान अपनी उपलब्धियों तक ही सीमित नहीं होता बल्कि बच्चों की सफलता में भी अपने आपको ही आगे बढते हुए देखती है। क्योंकि वास्तविक प्राथमिकताएं ऊंचे लक्ष्यों और आर्थिक उपलब्धियों से कहीं ज्यादा आत्मसंतुष्टि से जुड़ी होती हैं।
आजकल उच्च शिक्षित लड़कियां विवाह के बाद इन हालातों से जूझती नज़र आती हैं । मुझे लगता है कि विवाह से पहले माता-पिता को भी अपनी बेटियों से इस विषय पर बात कर उन्हें मार्गदशन ज़रूर देना चाहिए । ताकि आगे चलकर उन्हें अपनी प्राथमिकतायें तय करने में आसानी हो और वे पूरे आत्मविश्वास के साथ अपना निर्णय ले पायें । महिलाएं चाहें घर संभाले या नौकरी करें, मैं इतना जरूर महसूस करती हूं कि स्वयं को उन परिस्थितियों के लिए भी तैयार जरूर करें जब जीवन में किसी एक पहलू को प्राथमिकता देनी ही होती है । ख्याल इस बात का भी रखना होगा कि अपनी प्राथमिकतायें दूसरों को देख उनसे तुलना करके निर्धारित न की जाएँ । खुद को ऐसे मानसिक द्वंद्व में ना उलझाएं रखें जो आगे चलकर आपको अपराधबोध का शिकार बना दे।
100 comments:
मोनिका जी, सही कहा आपने। बिना प्राथमिकत के जीवन सूना सूना ही रह जाता है।
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..की-बोर्ड वाली औरतें।
सार्थक आलेख,
सादर
दिक़्कत ही यही है कि लोग दोनों ही लड्डू अपने हाथों में रखना चाहते हैं वर्ना कलसते रहना ही जीवन समझते हैं
बहुत ही सुन्दर पोस्ट |
निःसंदेह यह एक श्रेष्ठ रचना है।
आपकी व्यावहारिक सूझ-बूझ की दाद देनी पड़ेगी, यह रचना आम लोगों के साथ-साथ खास लोगों में भी जगह बना लेगी।
सही सोच -जैसी प्राथमिकता हो ,वैसे दोनों क्षेत्र कुशलता की मांग करते हैं -और दोनों में समंजन अधिक दक्षता की मांग करता है !
द्वन्द को कृपया द्वंद्व कर लें !
प्राथमिकताएं निहायत ही जरुरी हैं, दिशाहीनता घातक होती है।
A very well written article. Without a doubt our priorities are very important and the way we define our priorities, it defines us. It is very important to understand our circumstances and accordingly set our priorities. Although your article is intended for women but the points are very important for men as well.
Regards
Fani Raj
आदरणीय मोनिका जी,
आप ने एक दम सही बात कही है!
प्राथमिकतायें निश्चित होने से केवल मेहनत करना शेष रहता है..
वक्त के साथ बहते रहें. अपने आप किनारे मिल जायेंगे.
प्राथमिकताएं तय कर लेने से असमंजस होने की स्थिति स्वयम समाप्त हो जाती है |
सार्थक लेख |
बहुत सुन्दर आलेख, बहुत से शिक्षित लोग इसे समझते है मगर कुछ लोग अपने अहम् और दिखावे के आगे प्राथमिकता की अहमियत नहीं समझ पाते!
ज़रूरी तो है पर तय करने में भी बाधाएँ सर पटकती हैं ...
मोनिका जी बिलकुल ठीक कहा है आपने जीवन में प्राथमिकता आवश्यक है, और इसे सोच समझकर हमें मन से स्वीकारना है, तभी इस अंतर्द्वंद से मुक्ति संभव है... सार्थक आलेख के लिए आभार
बिचारानीय,एवं श्रेष्ठतम आलेख.
Bahut vicharprerak likhtee hain aap!
लेख के साथ ही विशेषकर अंतिम पंक्तियों मे दिया निष्कर्ष उत्तम हैं।
अत्यंत सार्थक आलेख...
sarthak lekh..
एक बार प्राथमिकताएं तय कर लेने के बाद उस से संतुष्ट रहना भी उतना ही जरूरी है
सार्थक पोस्ट.....
प्राथमिकता तो निश्चित करनी ही होगी.....
क्या करें ,क्या ना करे.....
ये उलझन सुलझाना सबसे आवश्यक है...
बहुत सार्थक लेख मोनिका जी..
मेरा मानना है जीवन के हर स्तर पर कुछ न कुछ प्राथमिकताओं का होना बहुत ज़रूरी है।
प्राथमिकता ही आगे का लक्ष्य तय करती हैं।
सादर
जीवन में कुछ उपलब्धि के लिये प्राथमिकताओं का निर्धारण तो करना ही होता है...बहुत सार्थक आलेख..
अद्भुत अभिव्यक्ति !
बधाई !
अद्भुत
सच कहा है ... दर असल ... जीवन में प्रार्थमिकता तो तय करनी ही पढ़ती है .... तभी जीवन सुचारू रूप से चल पाता है ...
bahut sahi kaha ...man ki desk saf suthri ho to aage chalna bhi majboot kadmon ke sath hoga ...
बहुत ही सही सलाह दी है आपने,,,
कार्य छेत्र में जो कार्य अधिक आवश्यक है उसे ही प्राथमिकता देनी चाहिए नहीं तो आगे चलकर अपराध बोध का शिकार हो सकते है..
सार्थक पोस्ट...
दैनिक, सामाजिक एवं आर्थिक जीवन प्राथमिकता में ही निहित है
mushkil hai par sukhad jeevan ke liye behad jaruri..bahut achcha aalekh
बिलकुल सही..प्राथमिकताएं निर्धारित करना बहुत जरुरी है..हालाँकि अब द्वंद्व कुछ कम हुआ है.
एक श्रेष्ठ रचना है।प्राथमिकतायें तय की जाएँगी तभी तो जीवन की सार्थकता सिद्द्ध होगी ,आभार ।
सही लिखा है आपने ...जीवन में प्राथमिकताएं तो स्पष्ट होनी ही चाहिए
प्राथमिकता तय करना तो प्रथम सोपान जैसा होता है जीवन के किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए . सुन्दर चिंतन
prathmiktaye jarur honi chahiye lekin kai baar na chahte huye bhi unka swarup badalna padta hai.
sahi kaha aapane
life mein priorities set karna bahut jaruri hain,varna hamesha confusion ki situation bani rahti hain
अपना उद्देश्य समझ लेना चाहिए। धरती पर मनुष्य योनी जन्म लिया तो किसी उद्देश्य के लिए ही। अपना उद्देश्य पहचानें और लग जाएं उसे पूरा करने में।
अच्छा लेख...
अतिआवश्यक है जीवन में प्राथमिकताएं तय करना..
तभी काम सफल होंगे...
आभार.
जीवन में प्राथमिकताएन परिस्थितिवश बदलती रहती हैं ... इस लिए समय के अनुसार यह तय करना ज़रूरी होता है कि आपकी इस समय क्या प्राथमिकता है ... सुंदर लेख ॥सही दिशा कि ओर ध्यान दिलाता हुआ .
काजल कुमार जी से सहमति...!
अगर समय रहते हमने इस तरह का प्रबंधन नहीं किया तो फिर पछताते रहने के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा !
गृहिणी होने या कामकाजी होने के बीच की कश्मकश को सार्थक दिशा देने की जरुरत है ...
एक बार प्राथमिकतायें तय हो जाए तो फिर कोई कसमसाहट या छटपटाहट नहीं होती !
सुन्दर एवं सार्थक...!!
जीवन में प्राथमिकताएं बदलती रहती हैं. तदनुसार सही दिशा तय होती है. आपके आलेख में "जीवन प्रबंधन" का सार निहित है. आभार.
इस प्रकार की कश्मकश से हर महिला गुजरती है !
मेरा मानना यही है जो भी विकल्प आप चुनते हो उसी पर कायम रहो
बाद में पछताना न पड़े, क्योंकि सबकुछ तो इकट्ठा नहीं मिलता !
सहमत हूँ अच्छा आलेख है !
monika jii saarthak lekh ke liye aabhar main aap kii baat se sahmat hun par ek saty ye bhi hai ki kabhi kabhi praathmiktayen tay karne kaa adhikaar hii mahilaaon se chhin liya jaata bas pati ke dabaav men hii nirnay lene padte hain
tabhi asantish panapta hai
sarthak lekh...
sach kaha aapne ye sab pahle se hi decide kar lena chaahiye. lekin aise decision lene itne aasan bhi nahi hain....upar se aaj ki mahngayi, aur luxurious life jeene ki chaah.
vicharneey post.
जीवन में प्राथमिकताएं आवश्यक है.......हम बनाते भी हैं......परन्तु कब दिशा बदल जाती है पता ही नहीं चलता .....अतः आवश्यक है न केवल प्राथमिकताएं बनाने की ......वरन उन पर धैर्य पूर्वक धृढता से आगे बढ़ने की भी......
प्राथमिकताओं का निर्धारण जीवन के हर सोपान में महत्वपूर्ण है और एक बड़ी चुनौती और समस्या भी है जो विशेषकर महिलाओं के लिए ज्यादा बड़ी है । बहुत अच्छा लेख ।
जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता...आपकी प्राथमिकताओं के द्वारा तय होतीं हैं...पर उहापोह और द्वन्द इसलिए है कि हम हर जगह खुद को सर्वोच्च स्थान पर पाना चाहते हैं...
you are such a good house wife as well as agood thinker.we must keeep our priorities between our different role. SUPERB THOUGHT AND NICE GUIDE LINE
SUCH A NICE POST.
प्राथमिकताएँ तो समय रहते तय कर ही लेनी चाहिए.लेकिन कई बार होता ये हैं कि हमारे फैसले तो सही लेते हैं लेकिन हमारे आस पास के लोगों में से कुछ की नकारात्मक बातें ही हमें विचलित कर देती हैं खासकर महिलाओं के मामले में ऐसा ज्यादा होता हैं.ऐसे लोगों से बचकर रहना चाहिए साथ ही खुद पर विश्वास भी होना चाहिए कि मैं अपनी जगह सही हूँ.
बढिया चिंतन।
सही है, बगैर प्राथमिकता तय किए काम करने से किसी भी काम में परिपक्वता और गंभीरता नहीं आ पाती और काम सही नहीं हो पाता।
मोनिका जी,.सफल जीवन के लिए प्राथमिकताए तय कर लक्ष की ओर बढ़ना चाहिए,...
बहुत अच्छी प्रस्तुति,इस सुंदर आलेख के लिए बधाई,...
MY NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
प्राथमिकताएं चुनने में थोडा वक़्त अवश्य लग जाता है ...लेकिन उन्हें त्याग की कुंठा के साथ न चुनकर सही विकल्प मानकर चुना जाये तो हमें अखरता नहीं ..आपका लेख विचारप्रेरक लगा. ....अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर
Behtreen Prastuti.
प्राथमिकताएं तय हो जाने परअसमंजस का तो प्रश्न ही नहीं बचता ,अच्छा विश्लेषण ......
सत्य वचन।
सटीक लेख....बिलकुल सहमत हूँ आपसे.....आत्मसंतुष्टि सबसे अधिक महत्त्व रखती है।
Praathmikta har vyakti vishesh ke sath badal jati hai aur mujhe nahi lagta ki aisa koi bhi jeevit vyakti is sansaar mein hoga jiski koi prathmikta na ho... koi bhalayi k raaste hoga to koi burayi k... par raasta aur praathmikta to jaroor honge... khair monika ji rachna achhi hai...
जीवन की केवल एक ही प्राथमिकता हो सकती है:अपने को प्रभु को समर्पित करना.बाकी सब प्राथमिकतायें समय विशेष से जुडी होती हैं और लक्ष्य की प्राप्ति के साथ बदलती रहती हैं.
जीवन में जब तक प्राथमिकताएं तय नहीं होतीं तब तक कोई कार्ययोजना भी नहीं बनाई जा सकती...................
मोनिका जी,
आप ने एक दम सही बात कही.........
बिलकुल ठीक कहा आपने कि ख्याल इस बात का भी रखना होगा कि अपनी प्राथमिकतायें दूसरों को देख उनसे तुलना करके निर्धारित न की जाएँ। सार्थक एवं विचारणीय आलेख....
@मुझे लगता है कि विवाह से पहले माता-पिता को भी अपनी बेटियों से इस विषय पर बात कर उन्हें मार्गदशन जरूर देना चाहिए । ताकि आगे चलकर उन्हें अपनी प्राथमिकतायें तय करने में आसानी हो और वे पूरे आत्मविश्वास के साथ अपना निर्णय ले पायें ।
आपके विचार अमल में लाने योग्य है।
sahi kaha aapne...thoda problem aati h pr sahi se adjust karo to sab thik ho jata h
जीवन में प्राथमिकता आवश्यक है, बहुत अच्छी प्रस्तुति,इस सुंदर आलेख के लिए बधाई,..
निःसंदेह प्राथमिकताएं तय करना बेहद जरूरी है....एक बार प्राथमिकताएं तय हो जाती हैं तो काम सरल हो जाता है!
बिलकुल सार्थक पोस्ट .....प्राथमिकताए तो तय करनी ही होगी तभी जिंदगी एक निश्चित लक्ष्य की ओर बढ़ सकेगी और उलझनों से बचे रहेगे......ऐसे सटीक लेख पढवाने के लिए धन्यवाद
जीवन की प्राथमिकताओं पर सार्थक लेख.
हार्दिक बधाई..
खुद को ऐसे मानसिक द्वंद्व में ना उलझाएं रखें जो आगे चलकर आपको अपराधबोध का शिकार बना दे।
bilkul sahi kaha aapne ,magar kuchh faisle haath me nahi hote apne ,pristhiti jakad leti hai apne panje main ,chahna aur karna aksar aapas me virodhi ban jaate hai ,phir bhi koshish jaari rahni chahiye .sundar bisya
खुद को ऐसे मानसिक द्वंद्व में ना उलझाएं रखें जो आगे चलकर आपको अपराधबोध का शिकार बना दे।
bilkul sahi kaha aapne ,magar kuchh faisle haath me nahi hote apne ,pristhiti jakad leti hai apne panje main ,chahna aur karna aksar aapas me virodhi ban jaate hai ,phir bhi koshish jaari rahni chahiye .sundar bisya
उपयोगी विमर्श! कितने लोग इसलिये प्राथमिकतायें नहीं तय कर पाते हैं क्योंकि उन्हें आधा-अधूरा जीवन जीने की आदत है। कई बार संकीर्ण विचारधारा और निहित स्वार्थ भी इस अधूरेपन को ही पोषित करते हैं।
प्राथमिकताए उन्ही को दे जो निहायत जरूरी हो, बेहतरीन आलेख ,..
NEW POST...फिर से आई होली...
मोनिका जी होली की शुभकामनायें
सार्थक और मार्गदर्शन करता बहुत सुंदर लेख
बिना प्राथमिकत के जीवन सूना सूना ही रह जाता है। सार्थक आलेख|
उम्दा चिन्तन!!
बहुत बढ़िया मार्गदर्शक लेख , बेटियों को अकेलापन महसूस न हो यह बहुत आवश्यक है !
शुभकामनायें होली की ....
सही कहा आपने।
बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना,
इंडिया दर्पण की ओर से होली की अग्रिम शुभकामनाएँ।
सही कहा आपने. बहुत ही विचारनीय प्रस्तुति.
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क्या सिलेंडर भी एक्सपायर होते है ?
बहुत उम्दा और विचारणीय लेख ......
आप को होली की खूब सारी शुभकामनाएं
नए ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित है
नई पोस्ट
स्वास्थ्य के राज़ रसोई में: आंवले की चटनी
razrsoi.blogspot.com
सुंदर भाव अभिव्यक्ति....सार्थक आलेख
होली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...
RECENT POST...काव्यान्जलि ...रंग रंगीली होली आई,
प्राथमिकता --स्त्री हो या मर्द सभी के लिए जरुरी है !किन्तु महिलाओ के प्रति ज्यादा जटिल ! सुन्दर लेख
प्राथमिकता --स्त्री हो या मर्द सभी के लिए जरुरी है !किन्तु महिलाओ के प्रति ज्यादा जटिल ! सुन्दर लेख
बहुत सूझ से भरा लेख..बहुत सही विचार है आप के..
होली पर बहुत बहुत शुभकामनाएं
आपको और परिवार में सभी को होली की शुभ कामनाएं ...
सार्थक आलेख मोनिका जी ......प्राथमिकताएं ही मानसिक शांति निर्धारित करती हैं ...किसी को देख कर अपनी प्राथमिकता तय नहीं की जा सकती ...!!जो आप चाहें वो दृढ़ता ही आपको दे सकती है ....!!
सकारत्मक सोच...
बहुत सुन्दर विचारणीय प्रस्तुति.
यदि प्राथमिकता सोच समझकर
समयानुसार तय न की जाएँ तो
जीवन में कठिनता आ सकती है.
होली की आपको व् सभी जन को
हार्दिक शुभकामनाएँ.
प्रार्थमिकता तय करने से जीवन की एक दिशा निश्चित हो जाती है, जिससे हम कई अनावश्यक मुश्किलों से बच सकते हैं!
आपका लेख हमेशा की तरह सारगर्भित और सार्थक है !
आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं !
होली के पावन पर्व की आपको हार्दिक शुभकामनाये !
जीवन में प्राथमिकताएँ तय करना अत्यंत आवश्यक है नहीं तो ना तो कोई लक्ष्य निर्धारित किया जा सकता है, ना योजनाएँ बनाई जा सकती हैं और ना ही उन को क्रियान्वित किया जा सकता है।
बहुत ही सार्थक और उपयोगी लेख।
होली मुबारक !
निश्चित ही प्राथमिकताएं तय हों तो आगे की कई झंझटों से बचा जा सकता है। महिलाओं के लिए ही क्यों, प्राथमिकताएं तो सभी के लिए
जरूरी हैं।
एक दम सही बात कही है! बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
कई बार ऐसे हालात होते हैं कि प्राथमिकता समझते हुए भी निर्णय विपरीत लिया जाता है । जैसे बच्चा होने के बाद हर माँ चाहती है कि वह बच्चे को सारा समय दे पर आर्थिक मजबूरी उसे ऐसा करने से रोकती है ।
फिर भी झीवन में एक समतोल रखकर सांमजस्य बना कर रखा जा सकता है ।
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