हाल ही में हुए एक अंतर्राष्ट्रीय सर्वे की मानें तो आर्थिक संकट से लेकर प्राकृतिक विपदाओं तक , हर तरह की समस्याओं को झेलने के बावजूद भी भारतीय दुनिया के सबसे अधिक खुश एवं संतुष्ट रहने वाले वाले लोगों की सूची में दूसरे स्थान पर हैं। निश्चित रूप से हमारे पास कुछ तो ऐसा है जो विकसित देशों में हर तरह की सुख-सुविधाओं से सम्पन्न आरामपरस्त जिंदगी जीने वाले लोगों के पास नहीं। इसका अर्थ यह भी है कि सब कुछ पा लेना, हर तरह की सुविधा जुटा लेना या धन बटोर लेना, हमारी खुशियों की गारंटी नहीं है।
यह बात अनगिनत लोगों को हैरान परेशान करती है कि इतनी सारी समस्याओं से घिरा जीवन जीने वाले भारतीय खुशी से भरी जिंदगी जीने के मामले में सुख-सुविधाओं से लैस विकसित देशों से आगे कैसे निकल जाते हैं ? यूं भी खुश रहने का अर्थ नहीं है हमने सब कुछ पा लिया हो। खुशी को हमारी आर्थिक उपलब्धियों से नहीं आंका जा सकता। सिर्फ धन-दौलत खुशी का पैमाना नहीं, क्योंकि ऐसा होता तो हम भारतीय शायद इस सूची में स्थान में नहीं पाते।
मुझे लगता है हमारी खुशी का एक बङा कारण तो हमारी स्वीकार्यता की प्रवृत्ति है। समस्याएं तो बहुत आती है पर जब जो है सो है कि सोच हमें अपने घर या बाहर हर जगह जो भी घटता है उसे सहजता से स्वीकारने की मजबूती देती है। अच्छे बुरे दिनों में ऐसे विचार हमें सकारात्मक एवं आशावादी बनाये रखते हैं।
पारिवारिक और सामाजिक वातावरण में रम जाना भी हम भारतीयों का खूब आता है। किसी एक सामाजिक समारोह का हिस्सा बनकर तो मानो साल भर की थकान उतर जाती है। अपनों का साथ, अपनों से बात, दिल ही हल्का नहीं करती मानसिक तनाव भी हर लेती है। अपनों से जोड़ने वाली यही छोटी-छोटी खुशियां हमें जीवन से भी जोड़कर रखती हैं, तो फिर खुशी तो मिलेगी ही ।
हम भारतीय वैसे भी स्वभाव से ही उत्सवधर्मी हैं। यहां आज दिवाली है तो कल ईद और परसों कोई और त्योंहार । हमारे यहां सामाजिक,पारिवारिक उत्सवों में खुशियां छाई रहती हैं। बहाना कोई भी उत्साह हमारे जीवन में नृत्य करता है और हम भी उसके साथ झूमते रहते हैं। खुशियां मनाने और एक दूजे के साथ जुड़ने में हम ज्यादा दिमाग का इस्तेमाल नहीं करते। अब ऐसा है तो भारतीय खुश रहेंगें ही, क्योंकि यहां तो सब दिल का मामला है ।
आम जीवन में औपचारिकता का ना होना भी हमारी खुशी का कारण है। फुरसत के कुछ पल मिलें तो मित्र हो या रिश्तेदार मंडली जमने में देर नहीं लगती। यह मेल-मिलाप तो बस हमारे यहां ही होता है। आज भी रिश्तो में वैसी औपचारिकता नहीं आई है जैसी पश्चिमी देशों की जीवन शैली में मौजूद है और समय के साथ बढती भी जा रही है। जबकि अपनों का साथ मिलते ही हम भारतीय ना तो मन की पीड़ा कहने में हिचकिचाते हैं और ना ही खुशियां साझा करने में।
सर्वे की माने तो शादी के बाद भी भारतीय ही है जो सबसे ज्यादा खुश रहते हैं। ऐसा हो भी क्यों नहीं आज भी भारत में शादी जैसा जीवन भर का संबंध पूरी तरह से समर्पण के भाव के साथ ही जोड़ा जाता है। हमारे यहां तो आज भी शादियां निभाने के लिए ही की जाती है। हमारे यहां आज भी विवाह केवल व्यक्तिगत निर्णय नहीं है। पारिवारिक और सामाजिक संदर्भों में भी इस रिश्ते का बड़ा मूल्य है। इसी संबंध की बदौलत हमारा परिवार बनता है और यही परिवार एक आम इंसान को आश्वस्त करता है कि दुख की घङी हो सुख के पल वो अकेला नही है, असहाय नहीं हैं। तो फिर हम खुश क्यों ना होंगें ?
86 comments:
बहुत अच्छी पोस्ट सहमत हूँ आपसे !
हमारे यहां आज भी विवाह केवल व्यक्तिगत निर्णय नहीं है। पारिवारिक और सामाजिक संदर्भों में भी इस रिश्ते का बङा मूल्य है। इसी संबंध की बदौलत हमारा परिवार बनता है और यही परिवार एक आम इंसान को आश्वस्त करता है कि दुख की घङी हो सुख के पल वो अकेला नही है, असहाय नहीं हैं। तो फिर हम खुश क्यों ना होंगें ?
वाह मोनिका जी बहुत सुंदर आलेख ...बंधन जो बांधे रखता है हमें अपनी संस्कृति से...अपनी जड़ों से ...इन्हीं आस्थाओं पर तो हमारे जीवन की नीव टिकी है ..
@खुशी को हमारी आर्थिक उपलब्धियों से नहीं आंका जा सकता। सिर्फ धन-दौलत खुशी का पैमाना नहीं"
सटीक बात कही है आपने ...ख़ुशी भीतरी संतुष्टि का प्रतीक है ......जो व्यक्ति मन से जितना संतुष्ट होगा, वह उतना ही खुश होगा ..छोटी छोटी बातों में भी ख़ुशी ढूढ़ लेना सचमुच जिन्दगी को हर पल खुश बनाये रखता है ...!
बिलकुल सही विवेचन -दरअसल यह भारतीयों का हज़ारों वर्षों का आशावादी जीवन दर्शन है जो उन्हें हर हालत में जीने का संबल देता है -ईश्वर में अपार आस्था ,खुद को निमित्त मात्र मानते रहने का संकल्प आदि ऐसे प्रबल कारण हैं कि सुब कुछ खत्म हो जाने के बाद यहाँ लोग जीवन के प्रति मोह नहीं छोड़ते-होयिहें वही जो राम रचि राखा .....
मुझे लगता है हमारी खुशी का एक बङा कारण तो हमारी स्वीकार्यता की प्रवृत्ति है। समस्याएं तो बहुत आती है पर जब जो है सो है कि सोच हमें अपने घर या बाहर हर जगह जो भी घटता है उसे सहजता से स्वीकारने की मजबूती देती है। अच्छे बुरे दिनों में ऐसे विचार हमें सकारात्मक एवं आशावादी बनाये रखते हैं।
भारतीयों की ख़ुशी के कुछ फलसफे हैं मूल बिंदु हैं :
(१)
बहुत दिया देने वाले ने तुझको ,आँचल ही न समाये तो क्या कीजे ,
बीत गए जैसे ये दिन रैना ,बाकी भी कट जाए दुआ कीजे .
(२)जब जब जो जो होना है ,तब तब सो सो होता है .
(३)तुलसी भरोसे राम के रहियो खाट पे सोय ,अन -होनी होनी नहीं ,
होनी होय ,सो होय .
(४)होई है वही जो राम रची राखा ,को करी तर्क बढ़ावे,साखा .
संतोष ही सबसे बड़ा धन है .
यहाँ गर्मी में भी रिक्शे वाला रिक्शे पर ही लम्बी तान के सो जाता है . फुट पाठ पे अपने जूते का तकिया लगाके लोग सो जातें हैं .
कुछ लोग मुलायम गद्दों पर भी साड़ी रात करवट बदलतें हैं .
"मुझे लगता है हमारी खुशी का एक बङा कारण तो हमारी स्वीकार्यता की प्रवृत्ति है। समस्याएं तो बहुत आती है पर जब जो है सो है कि सोच हमें अपने घर या बाहर हर जगह जो भी घटता है उसे सहजता से स्वीकारने की मजबूती देती है। अच्छे बुरे दिनों में ऐसे विचार हमें सकारात्मक एवं आशावादी बनाये रखते हैं।"
Exectly, ये बात और है कि अधिकाँश समय में अपनों(देशवासियों ) के ही द्वारा खुशी में विघ्न पैदा किये जाते है ) खैर, आप सभी को पुण्यपर्व महाशिवरात्रि की मंगलमय कामनाये !
संतोषः परमो धर्मः!
संतोष में भी खुश, असंतोष में भी खुश, शांति रखने वाले भी खुश, दंगा करने वाले भी खुश. 32 रुपये आमदनी से नीचे वाले भी खुश और अपनी चिल्लर स्विस बैंक्स में रखने वाले भी खुश। गरज ये कि हर नागरिक खुशदिल खुशहाल सिंह ...
बहुत अच्छा और समाजोपयोगी लेखन है आपका.महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें.
मजबूरी को कोई भी नाम दे दीजिए. चलेगा...
खुशी का पैमाना यह है कि आपके भीतर कुछ देने का भाव अकारण पैदा हुआ है या नहीं। और कुछ हो न हो,सलाह के बारे में तो यह बात हम भारतीयों के मामले में पक्के तौर पर लागू होती है!
हम खुशनसीब हैं कि हम खुश रहते हैं।
समाज और परिवार का साथ आदमी के दुखों को भुलाने में सहायक होता है।
बढि़या आलेख।
हम अपनों के अपनेपन में ही खुशी पा लेते हैं ...
येही हमारी खुशियों का राज़ है ..??
सही में, हज़ार वजहें हैं हमारे ख़ुश रहने की.
सटीक विश्लेषण, आर्थिक सम्पन्नता कभी भी खुशियों की गारंटी नहीं हो सकती.
अति सुन्दर पोस्ट... महाशिवरात्रि की शुभ कामनाएं.
बहुत सार्थक मोनिकाजी ! हमारी सांस्कृतिक धरोहर ही इसकी मूल तंत्र है ! जो duniya ke any किसी देशो में नहीं मिलता ! शिव रात्रि की जय-जय हो !
उन्होने खुश लिख दिया तो और खुश हो गये, नहीं तो खुश तो थे ही..
कुछ बात तो है...जो इतनी विषमताओं के बाद भी हम खुश रहना जानते हैं...ये शायद नियम कानून से बंध कर ना रहने के कारण है...
सहमत हूँ...भारतीय संस्कृति की जड़ें बहुत गहरी हैं|
बहुत सच कहा है कि खुशी केवल आर्थिक उपलब्धियों से नहीं आती. आतंरिक संतुष्टि ही सच्ची खुशी प्रदान करती है. बहुत सुंदर और सार्थक विश्लेषण...
मुख्या बात यही है कि सुख या दुःख अपने मन के भाव हैं.और भारतीय दर्शन संतुष्टि सिखाता है.
सत्य है!
हमारे पास वो निधि है जो कहीं अन्यत्र है ही नहीं!
एकदम सटीक एवं सार्थक बात कही है आपने हमारे खुश रहने का कारण है हमार संस्कार ! जो जिससे मिला सिखा हमने ,गैरो को भी अपनाया हमने ,मतलब के लिए अंधे होकर रोटी को नहीं पूजा हमने ...अब हम तो क्या सारी दुनिया सारी दुनिया से कहती है ..हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है
आज शिव रात्रि तथा दयानंद बोध दिवस के अवसर पर आपको हार्दिक शुभकामनाये
मुझे लगता है हमारी खुशी का एक बङा कारण तो हमारी स्वीकार्यता की प्रवृत्ति है। समस्याएं तो बहुत आती है पर जब जो है सो है कि सोच हमें अपने घर या बाहर हर जगह जो भी घटता है उसे सहजता से स्वीकारने की मजबूती देती है। अच्छे बुरे दिनों में ऐसे विचार हमें सकारात्मक एवं आशावादी बनाये रखते हैं।
Bilkul sahee kah rahee hain aap!
बिल्कुल सहा कहा ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
..शिव रात्रि पर हार्दिक बधाई..
bahut sundar aalekh hai monika ji badhaai humare desh ki neev hi parivaar sanskrati utsavon tyoharon par padi hai sahansheelta aasha vadita hi hume khushhaal rakhte hain jo doosre deshon me nahi hai ve log parivaar ki manyataaon se anbhigya hain is liye unki life me swarthparta aupcharikta adhik hoti hai.
निस्संदेह मौलिक भारतीय दर्शन का उद्देश्य ही 'मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध'बनाना ही है।
सही और सटीक विश्लेषण किया है आपने ....सहमत हूँ .
बहुत ही अच्छा आलेख।
सादर
मुझे लगता है की हमारी संस्कृति और धार्मिक विचार इस तरह की सोच के लिए प्रमुख कारण हैं ... और ये प्रवृति अब तो भारत में कम हती जा रही है जैसे जैसे भोग वाद बढ़ता जा रहा है ...
आपकी काही एक-एक बात सही है सटीक एवं सार्थक पोस्ट जय हिन्द :-)
जा विध रखिए राम उस विध रहिए। हमारे यहाँ यही भाव कूट-कूटकर भरा हुआ है, इसलिए सब हर परिस्थिति में खुश रहते हैं। बहुत अच्छा आलेख है।
बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना,
शिवरात्रि की शुभकामनाएँ।
हम भारतीय व्यवहार को सिद्धांत से, तथा कर्म को विश्वास से अलग नहीं करते इसीलिए खुश रहते हैं।
अगर विवाह के बाद भी खुश रहते हैं तो इसका भी यही कारण है!
आपने सही कहा है। इस पोस्ट पर कमेंट्स भी बहुत अच्छे-अच्छे आए हैं। सच में आपका ये लेख बेहद सार्थक है।
आपको महाशिवरात्रि पर्व पर मंगलकामनाएं।
अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर सटीक आलेख.
कृपया संदर्भित ''अंतरराष्ट्रीय सर्वे'' का लिंक अथवा प्राप्ति-स्थल सूचित कने का कष्ट करें.
धन्यवाद सहित
>ऋ.
छोटी -छोटी बातों में बड़ी खुशियाँ तलाशना , पारिवारिक संरक्षण और संबल , स्वीकार्यता निश्चित रूप से हम भारतीयों का सकारत्मक पक्ष है !
बहुत अच्छा और समाजोपयोगी लेखन है| धन्यवाद।
औपचारिकता रिश्तों का रस सोख लेती है और भारतीयों से अधिक अनौपचारिक कौन होगा, जहां हम सिर्फ अपने परिवार से ही नहीं, बल्कि पूरे समाज से इस तरह जुड़े होते हैं कि हर किसी से एक रिश्ता बना लेते हैं, जहां नौकर को भी काका कह कर बुलाया जाता है और किसी से भी चाचा, चाची, ताई आदि का रिश्ता जोड़ लेते हैं... बस इसे पश्चिमी हवा से बचाकर रखने की जरूरत है..आमीन
हम भारतीय वैसे भी स्वभाव से ही उत्सवधर्मी हैं। यहां आज दिवाली है तो कल ईद और परसों कोई और त्योंहार । हमारे यहां सामाजिक,पारिवारिक उत्सवों में खुशियां छाई रहती हैं। बहाना कोई भी उत्साह हमारे जीवन में नृत्य करता है और हम भी उसके साथ झूमते रहते हैं। खुशियां मनाने और एक दूजे के साथ जुङने में हम ज्यादा दिमाग का इस्तेमाल नहीं करते। अब ऐसा है तो भारतीय खुश रहेंगें ही, क्योंकि यहां तो सब दिल का मामला है ।
बिलकुल सही कहा आपने .....यहाँ दिल और दिमाक का सही तालमेल है इसीलिए तो इतने तीज-त्यौहार होते हुए भी हम पश्चिमी तारीखों को भी अपने खुशियों के कलेंडर में जगह देते है.....क्योकि हमारा उद्देश्य तो हर दिन की ख़ुशी में है फिर चाहे वो पश्चिम का १४ फेबुअरी हो या पूरब का करवां चौथ का व्रत....यहाँ सब सर-आँखों पर है...बस ख़ुशी मनाने का बहाना चाहिए हमे तो.
इतने सुन्दर लेख के लिए बधाई
बहुत अच्छा और सार्थक विश्लेषण...
बहुत सुन्दर और सार्थान लेखन...
हमारे संस्कार अब भी जीवित हैं....सो हम खुश है..
:-)
सस्नेह
हम भारतीयों के खुश रहने की तमाम कारकों पर आपकी दृष्टि पड़ी. सार्थक आलेख .
खुश मिजाजी के भी जीवन खंड होतें हैं .खुश रहना जन्मजात इनायत है खुदा की ,कुदरत की जीवन खंडों का लेखा है .
सुंदर और सार्थक विश्लेषण...
भारतीयों के खुश रहने के कारणो को सटीक रूप से बताया है ...सुंदर लेख ...
सार्थक पोस्ट, आभार.
यह सर्वे सतु को रेखांकित करता प्रतीत होता है... निश्चित ही हम भारतीय दुनिया में सबसे ज्यादा खुश रहनेवालों में से हैं... हर परिस्थितियों में खुशियाँ ढूंड लेना ही शायद भारतवासी की खूबी है...
सादर.
जानकार बहुत अच्छा लगा की कहीं तो भारतीय आगे है जनसंख्या और राजनीती के आलावा :-)
पहले स्थान पर कौन सा देश था ?
बिल्कुल सही कहा है आपने ...अच्छी प्रस्तुति ।
मोनिका जी ,,,बहुत सुंदर आलेख,समाज का बंधन जो हमे बांधे रखता है हम अपनी संस्कृति से इन्हीं आस्थाओं पर तो हमारे जीवन की नीव टिकी है.
बेहतरीन प्रस्तुति,...
MY NEW POST ...काव्यान्जलि...सम्बोधन...
बहुत सही और सार्थक पोस्ट है मोनिका जी
ऐसे सर्वे कितने सटीक होते हैं,ये कहना तो मुश्किल हैं.लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि हम भारतीय सिर्फ खुद के लिए नहीं जीते.रिश्ते हमारे लिए बहुत महत्तव रखते हैं.और अपनी किसी व्यक्तिगत खुशी को भी व्यक्ति तब दुगुना महसूस करता हैं जब उसे बाँटने के लिए भी ढेर सारे लोग हो.वहीं दूसरी तरफ दुख बाँटने से कम हो जाते हैं.
बहुत अच्छा आलेख...
हम अपनी परम्पराओं और बुजुर्गों के कारण ही आज इतना खुश हैं
check this http://drivingwithpen.blogspot.in/2012/02/another-award.html
an award for you
आपकी बात से पूरी तरह से सहमत ये बात सच है खुशियों का कोई निश्चित पैमाना नहीं वो थोड़े में भी खुशी बाडोर सकता है |सुंदर पोस्ट |
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 23-02-2012 को यहाँ भी है
..भावनाओं के पंख लगा ... तोड़ लाना चाँद नयी पुरानी हलचल में .
हमारी खुशी का एक बङा कारण तो हमारी स्वीकार्यता की प्रवृत्ति है। समस्याएं तो बहुत आती है पर जब जो है सो है कि सोच हमें अपने घर या बाहर हर जगह जो भी घटता है उसे सहजता से स्वीकारने की मजबूती देती है। अच्छे बुरे दिनों में ऐसे विचार हमें सकारात्मक एवं आशावादी बनाये रखते हैं...................सटीक बात कही आपने
आकाशवाणी सूरतगढ़ (कॉटन सिटी चैनल) आज आपकी सेवा करते हुए ३१ वर्ष का हो गया है .इस केंद्र व इस जिले (श्री गंगानगर ) का प्रथम उद्ध्घोषक होने के नाते मेरी सेवायों को सभी सुनने वालों का भरपूर प्यार मिला है और मिल रहा है .इस अवसर पर आप सभी को मेरी तरफ से हार्दिक बधाई,धन्यवाद् .शुभकामनाएं .आशा करता हूँ आपका प्यार इसी तरह से मुझे व चैनल को मिलता रहेगा
Dr.JOGA SINGH KAIT "JOGI"
M.D.ACUPRESSUR
NATUROPATH
SR.ANNOUCER
ALL INDIA RADIO,
SURATGARH
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अमुमन भारतीय दुख व सुख दोनो को कर्माधीन मानकर तनाव से मुक्त रहता है। न तो दुखों की गठरी हमेशा उठाए घुमता है न सुखों के लिए उतावला बन तनाव मोल लेता है। वर्तमान में जीता है और अच्छे कर्मो पर भरोसा करता है। संतोष शायद इसी को कहते है।
ख़ुशी और सुख की विभाजन रेखा बहुत बारीक़ होती है..अब भी हमारी संस्कृति ने हमे ख़ुशी के पाले में रखा है..यही सबसे अच्छी बात है..
ख़ुशी और सुख की विभाजन रेखा बहुत बारीक़ होती है..अब भी हमारी संस्कृति ने हमे ख़ुशी के पाले में रखा है..यही सबसे अच्छी बात है..
यह तो भारतीय संस्कृति और संस्कारों का कमाल है।
गहन , विचारशील तथ्यों को समेटा है... सहमत हूँ
'जेहि विधि राखे राम '
सही कहा...सबकुछ हंस कर स्वीकार कर लेने की आदत ही हम भारतीयों को संतुष्टि प्रदान करती है और अवसाद से दूर रखती है
आपके प्रस्तुत लेख पर ढेरों टिप्पणियां शोभायमान हैं! जिससे ये बात स्वत: ही पुष्ट होती है कि-
"मोनिका जी आप अच्छी लेखिका हैं!"
लेकिन लेख की विषय-वस्तु पर टिप्पणी नहीं कर मैं विनम्रता पूर्वक आपका ध्यान लेख में प्रयुक्त निम्न शब्दों में बार-बार प्रयुक्त एक गलत अक्षर की ओर दिलाने की ध्रष्टता कर रहा हूँ!
"बङा", "जोङने", "पीङा"
यहाँ स्पष्ट करना ही उचित होगा कि मैं यह भी समझता हूँ की आप अकेली नहीं हैं, जो इस भूल को कर रही हैं! लेकिन कहीं तो इस पर विराम लगना चाहिए! आपसे निवेदन है की हिन्दी के हित में आगे से आप इन और ऐसे ही अन्य शब्दों को निम्न प्रकार लिखेंगी तो इससे आने वाले पीढ़ियों को हम हिन्दी वर्णमाला के बारे में सही जानकारी दे पाएंगे!
बड़ा, जोड़ने, पीड़ा!
आपने जो "ङ" अक्षर प्रयुक्त किया है, वह "न" ध्वनि का द्योतक है! जबकि आप कुछ और ही लिख रही हैं!
इतने अच्छे लेख में इस प्रकार की भूल देखकर मुझसे रहा नहीं गया! कृपया इसे अन्यथा नहीं लें!
शुभाकांक्षी
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
@ Bass Office
जी ध्यान दिलाने का आभार,
हार्दिक शुभकामनायें .....
खुश रहिये .............ओर कभी कभार हमारे ब्लॉग पर आते रहिये
सही बात है!!
मैंने भी वो सर्वे देखा था और मुझे ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ था..
हमारे संस्कार हमारी शिक्षा ही इस खुशी का कारण है ।
जिंदगी में सिर्फ वही नही होता जो हम चाहते हैं हम कोशिश करते हैं कि हम उसे चहने लगते हैं जो हमारे साथ होता है ।
सुंदर उत्साह वर्धक आलेख ।
इस खुशी के बीज हमारे बुजुर्गों ने बोये थे. हम पीढ़ी दर पीढ़ी सुख की फसलें काट रहे हैं. हमारे संस्कार, हमारी गौरवशाली परम्परायें इस सुख के मूल में रचे बसे हैं. बढ़िया आलेख.
बहुत,बेहतरीन अच्छी प्रस्तुति,सुंदर सटीक आलेख के लिए बधाई,.....
MY NEW POST...आज के नेता...
आदरणीया डॉ मोनिका जी खूबसूरत विचार आप के सच में सुकून शान्ति त्याग मेल मिलाप सातों जन्म साथ रहने की चाह और कहाँ ?..हम अलबेले हैं गले लगे हैं मेले हैं मंडलिया बन जाती हैं दो पल में ही मन से जब मिल जाते हैं ...बहुत अच्छा ...जय भारत
आभार आप का
भ्रमर ५
भारतीय सदा खुश ही रहेंगे क्योंकि वे संतुष्ट प्राणी हैं। आत्म संतुष्टि होना अच्छी बात है किन्तु राष्ट्र के प्रति असंतुष्टि बनी रहनी चाहिए, इससे वे सतत राष्ट्र निर्माण के लिए प्रयासरत रहेंगे। तभी समस्त राष्ट्र को सुखी रहने का एक सार्थक कारण मिलेगा।
करना फकीरी ,फिर क्या दिलगीरी ,सदा मग्न मैं रहना जी ,कोई दिन गाडी ,न कोई दिन बंगला ,सदा भुई पर लौटना जी .यही फलसफा है भारतीयों के मीरा भाव का ख़ुशी का जीवन से लगाव का .ब्लॉग पर आपकी टिपण्णी से उत्साह बढ़ा .शुक्रिया .
करना फकीरी ,फिर क्या दिलगीरी ,सदा मग्न मैं रहना जी ,कोई दिन गाडी ,न कोई दिन बंगला ,सदा भुई पर लौटना जी .यही फलसफा है भारतीयों के मीरा भाव का ख़ुशी का जीवन से लगाव का .ब्लॉग पर आपकी टिपण्णी से उत्साह बढ़ा .शुक्रिया .
aapki post padh kar main bhi khus ho gayi :) khushiya kharidi nahin ja sakti..bheetar se aati hai...
sarthak rachna
प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपकी उपस्थिति पार्थनीय है । धन्यवाद ।
मोनिका जी .. बेहद सुन्दर लेख... आपने काफी कुछ विश्लेषण किया ...और बहुत सही कारण धुंध कर बताए .... हमारे यहाँ खुशी का एक बहुत बड़ा कारण यह भी है कि ज्यादातर भारतीय आस्तिक है.. नास्तिक उस काफी कम ... ईश्वर अल्लाह हो या गुरुनानक या आस्था का किसी और तरह से जैसे धार्मिक गुरु या सप्रीचुअल गुरु... जिसे किसी मानसिक तनाव या मुसीबत के समय अपनी तकलीफे और परेशानियां भगवान भरोसे छोड़ देता है... इस से उस व्यक्ति के दिल पर उतना बोझा नहीं पडता जो कि एक ऐसा व्यक्ति ( नास्तिक) जो ऐसे मुसीबत के समय एकदम मानसिक तौर पर अकेला पड जाता है...यह मुझे लगता है ...इस लिए मैंने आपके इस बहुत सार्थक लेख के साथ अपनी बात भी रखी है...सादर
परिवार एक आम इंसान को आश्वस्त करता है कि दुख की घङी हो सुख के पल वो अकेला नही है, असहाय नहीं हैं। तो फिर हम खुश क्यों ना होंगें ?
IT IS OUR TRADITIONAL FEATURE OR CHARACTERSTIC SO WE ARE ALWAYS UNITE.
BEAUTIFUL POST.PRANAM.
yadi aap mere dwara sampadit kavy sangrah mein shamil hona chahti hain to sampark karen
rasprabha@gmail.com
behad dil chasp post ...sochane pr vivash karati hui post..sadar abhar.
आज के परिप्रेक्ष्य में भारतीयों पर एक अच्छे सकारात्मक लेख के लिए हार्दिक बधाई ...
bahut deep thoughts..
.
आस्था , संतुष्टि और आशावाद हमें सुखी रखते हैं …
अच्छी पोस्ट है मोनिका जी !
आभार और बधाई !!
मुझे लगता है हमारी खुशी का एक बङा कारण तो हमारी स्वीकार्यता की प्रवृत्ति है
sach kaha aapne
sampoorn lekh ek bahut achchha vishleshan
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