My photo
पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

12 July 2011

आम औरत की छवि बिगाड़ते टीवी धारावाहिक...!

टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले अधिकतर धारावाहिकों में मुख्य किरदार महिलाओं के ही होते हैं।  छोटे पर्दे दिखाये जाने वाले ज्यादातर धारावाहिकों में महिलाएं नई-नई कूटनीतिक चालें चलकर बड़े-बड़े घरानों को बर्बाद या आबाद कर सकती हैं। उच्च वर्ग का रहन सहन इन सीरियल्स पर इतना हावी है कि आम महिलाओं के जीवन से जुडी समस्याओं के लिए इनमें कोई जगह नजर नहीं आती। इतना ही नहीं इन धारावाहिकों में कुछ बातें तो हकीकत से बिल्कुल उलट ही नजर आती है। 

 इन सीरियल्स के ज्यादातर महिला किरदार कामकाजी न होकर गृहणी के रूपे में गढे जाते हैं । इन धारावाहिकों  में घरों में होने वाली उठा-पटक काफी तड़क-भड़क  के साथ परोसी जाती है। जिनमें महिला किरदार अहम भूमिका निभाते नजर आते है। 

इन धरावाहिकों में परंपरा के नाम पर कुछ भी परोसा जा रहा है | आधारहीन कल्पनाशीलता के नाम पर इनमें कई गैर जिम्मेदाराना बातें दिखाई जाती है। हद से ज्यादा खुलापन और और सामाजिक रिश्तों की मर्यादा से खिलवाड़ को तकरीबन हर सीरियल की कहानी का हिस्सा बनाया जाता है। हैरानी की बात तो यह है कि यह सब कुछ भारतीय सभ्यता और संस्कृति के नाम पर पेश किया जा रहा है। जिसका विचारों और संस्कारों पर गहरा असर पड रहा है। बहुत से धारावाहिकों में विवाहेत्तर संबंधों को प्रमुखता से दिखाया जाता है। 

अधिकतर भारतीय भाषा और साज सज्जा में दिखाये जाने वाले महिला पात्रों को व्यवहारिक स्तर पर ऐसे कुटिल, कपटी और षडयंत्रकारी रूप में टेलीविजन के पर्दे पर उतारा जा रहा है जो हकीकत के सांचे में फिट नहीं बैठते। विवाह संस्कार हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी  विशेषता रही है, जबकि इन धारावाहिकों में शादी जैसे गंभीर विषय को भी मनमाने ढंग से दिखाया जाता है। 

 भारतीय सभ्यता ,संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों के नाम पर दिखाई जा रही ये कहानियां  परंपरागत मान्यताओं अवमूल्यन और सामाजिक सांस्कृतिक विकृति को जन्म दे रही हैं.है। दिनभर में कई बार प्रसारित होने वाले इन धारावाहिकों के दर्शक लगभग हर उम्र के लोग है। आमतौर पर सपरिवार देखे जाने वाले इन टीवी सीरियलों से परिवार का हर सदस्य चाहे छोटा हो बडा, जैसा चाहे वैसा संदेश ले रहा है। 

आलीशान रहन सहन और हर वक्त सजी धजी रहने वाली महिला किरदारों की जीवन शैली एक आम औरत को हीनभावना और उग्रता जैसी  सौगातें दे रही है।  टीवी चैनलों पर हर वक्त छाये रहने वाले इन धारावाहिकों में संस्कारों की बातें तो बहुत की जाती है पर पात्रों की जीवन शैली और दिखाई जाने वाली घटनाओं का देखकर महसूस होता है कि इनके जरिए कुछ नई धारणाएं , नए मूल्य गढ़े जा रहे हैं। 

ऐसे कार्यक्रमों के बीच में दिखाये जाने वाले विज्ञापन भी खासतौर महिलाओं को संबोधित होते हैं। कई टीवी सीरियलों के तो कथानक ही विज्ञापित प्रॉडक्ट का सर्मथन करने वाले होते हैं। बात चाहे पार्वती और तुलसी जैसे किरदारों द्धारा पहनी मंहगी साड़ियों की हो या रमोला सिकंद स्टाइल बिंदी की । इन सास बहू मार्का सीरियलों में दिखाये जाने वाले उत्पाद आसानी से बाजार में अपनी जगह बना लेते हैं।  इन सीरियलों में महिला किरदारों का प्रेजेंटेशन और साज सज्जा  का इतना व्यापक असर होता है कि बाजार में इन चीजों की मांग लगातार बनी रहती है। 


ये महिला किरदार या तो पूरी तरह आदर्श होते हैं या नैतिकता से कोसों दूर। जिसका सीधा सा अर्थ यह है कि टीवी सीरियल्स में दिखाये जा रहे महिला चरित्र वास्तविकता से परे हैं। क्या एक आम महिला दिन भर सज-धज कर सिर्फ कुटिलता करने की योजना बनाती  रहती है ..? ज़्यादातर गृहणियां ऐसा करते दिखाई जाती हैं ...जबकि हकीकत यह है घर पर रहने वाली महिलाओं को इतना काम होता है की स्वयं के लिए भी समय नहीं मिलता | कामकाजी महिलाओं की व्यस्तता तो और भी ज्यादा है ... |  सच में मुझे तो ये किरदार घर-परिवार और समाज में मौजूद आम महिलाओं की छवि बिगाड़ने वाले ही लगते हैं...!



98 comments:

Amit Chandra said...

एकदम सही अवलोकन किया है आपने। ऐसे सिरीयल बकवास से ज्यादा कुछ नही है।

Dr (Miss) Sharad Singh said...

सही कहा आपने कि आजकल टीवी धारावाहिकों के महिला किरदार घर-परिवार और समाज में मौजूद आम महिलाओं की छवि बिगाड़ने वाले ही हैं.
बहुत ही उम्दा लेख...

kshama said...

सच में मुझे तो ये किरदार घर-परिवार और समाज में मौजूद आम महिलाओं की छवि बिगाड़ने वाले ही लगते हैं...!
Bilkul sahee kaha! TV serials me achhe honeka matlab hota zaroorat se zyada bewaqoof hona!

योगाचार्य विजय said...

आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा, आपकी लेखन शैली प्रशंसनीय है. यदि आपको समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आये, यह ब्लॉग योग व हर्बल के माध्यम से जीवन को स्वस्थ रखने के लिए बनाया गया है. हम आपकी प्रतीक्षा करेंगे. यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो समर्थक बनकर हमारा हौसला बढ़ाये. योग और हर्बल

Dr Varsha Singh said...

आपसे पूरी तरह सहमत हूं कि उच्च वर्ग का रहन सहन इन सीरियल्स पर इतना हावी है कि आम महिलाओं के जीवन से जुडी समस्याओं के लिए इनमें कोई जगह नजर नहीं आती। इतना ही नहीं इन धारावाहिकों में कुछ बातें तो हकीकत से बिल्कुल उलट ही नजर आती है।
गहन विचारपूर्ण लेख के लिए बधाई....

Arvind Mishra said...

आपकी बात बिलकुल दुरुस्त है भारतीय टी वी धारावहिक यहाँ की नारी का अमूमन यथार्थ चित्रण न करके एक अस्वाभाविक इमेज प्रोजेक्ट कर रहे हैं और नारियां भी मजे से ऐसे रोल में काम किये जा रही हैं -इसका पुरजोर विरोध होना चाहिए -एक सचेतक पोस्ट !

Anonymous said...

"हकीकत यह है घर पर रहने वाली महिलाओं को इतना काम होता है की स्वयं के लिए भी समय नहीं मिलता| कामकाजी महिलाओं की व्यस्तता तो और भी ज्यादा है ...

ये किरदार घर-परिवार और समाज में मौजूद आम महिलाओं की छवि बिगाड़ने वाले ही लगते हैं..."

यही सत्य है - आपके आलेख के विषय या विश्लेषण के तो मेरे जैसे बहुत लोग कायल(प्रभावित)होंग.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बिल्कुल सही कहा है ... या तो एक दम आदर्श बहू दिखा दी जायेगी या फिर षड्यंत्रकारी ... जबकि आम जीवन में ऐसा नहीं होता ...सार्थक लेख

प्रवीण पाण्डेय said...

कई ऐसे पात्र हैं जो संस्कृति और समाज से जरा भी नहीं मेल खाते हैं। चटपटा बनाने के प्रयास में तीखापन भर देते हैं ये धारावाहिक।

Sunil Kumar said...

इन को महिलाओं के जीवन और समस्याओं की चिंता नहीं है अपना सीरियल चलना चाहिए | सटीक अवलोकन ,आभार

अशोक सलूजा said...

कुटिलता को ही सजा कर पेश किया जा रहा है..
एक सार्थक लेख ...
शुभकामनायें!

virendra sharma said...

डॉ मोनिका शर्मा -आजकल हर बिगडेल /तुफैल /मरखनी लड़की की माँ पूछती है -शर्माजी आप सीरियल्स नहीं देखते मेरी बेटी तो बहुत अच्छी है .ऐसा व्यापक और मारक प्रभाव है एकता कपूरों का .मानकीकरण के लिए इन नारी पात्रोंका स्तेमाल होने लगा है .बधाई आपको .और ये घरेलू कभी हल्दी सनी सूती साडी में नहीं होतीं ...

आशुतोष की कलम said...

मोनिका जी यही बात अपनी धर्मपत्नी जी को समझाते समझाते बहुत कुछ टूट गया मगर ये धारावाहिक जोक की तरह चिपक गए हैं..कुछ उपाय भी बता दें..

आप के विचार सुव्यवस्था सूत्रधार मंच.. पर आमंत्रित हैं..

Atul Shrivastava said...

सामयिक पोस्‍ट।
एकता कपूर के सास बहू सीरियलों से पीछा छूटा तो ऐसे दर्जनों सीरियल और आ गए।
आपका नजरिया सही है।
इन टीवी सीरियलों ने माहौल को बिगाडने में कोई कसर नहीं छोडी है....

Unknown said...

एकदम सही आंकलन किया है आपने, क्या मकशद है इन धरावाहिकों का, निर्माता ही जाने मुझे तो बाज़ार की तरह लगते है जो कुछ भी अनर्गल बेचने से बाज़ ही नहीं आते.

डॉ. मनोज मिश्र said...

बिलकुल सही कह रही हैं आप,सहमत.

anshumala said...

बिल्कुल सहमत हूं | पूरे धारावाहिकों में महिला किरदार ही हावी रहती है उन्हें या तो पूरी तरह से देवी के रूप में रखा जाता है जो हर बात में त्याग की प्रतिमूर्ति बनी होती है या फिर बिल्कुल ही काले रंग में रंग किरदार जो हर समय दूसरे का बुरा ही चाहता है | कोफ़्त तो तब होती है जब लोग इन किरदारों को सच मन आम जीवन में भी उनकी तुलना करने लगते है | ऐसे दिमाग वालो के लिए ही इस तरह के धारावाहिक बनाते है |

Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com ) said...

न मनोरंजन न कोई संदेश.पता नहीं ये पात्र कहाँ पाये जाते हैं.आपकी पोस्ट से पूर्णत: सहमत.

प्रतुल वशिष्ठ said...

आपने जिन कारणों से स्त्री-छवि को चोटिल होते देखा है ठीक उन्हीं कारणों से मैंने काफी समय से टीवी सीरियलों को देखना ही छोड़ दिया है. यदा-कदा देखने पड़ते भी हैं तो उदासीन ही रहता हूँ.

संध्या शर्मा said...

क्या एक आम महिला दिन भर सज-धज कर सिर्फ कुटिलता करने की योजना बनती रहती है ..?

सही कहा आपने है... ये धारावाहिक हमारी भारतीय संस्कृति और भारतीय नारी की छवि को बिगाड़ने में लगे हैं...सटीक अवलोकन

upendra shukla said...

ek sahi lekh jo sachai saamne lata hai

दिवस said...

आपने बिलकुल उचित मुद्दा उठाया है...ये सीरियल्स भारतीय नारी की छवि खराब कर रहे हैं, विशेषकर गृहणियों की...इनके अनुसार स्त्री या तो सटी सावित्री है या चुड़ैल...
वास्तविकता से इनका कोई लेना देना नहीं है|
खैर मैं तो इन सीरीयल्स से बचा हुआ हूँ, क्यों कि मैं सीरियल्स देखता ही नहीं, और अकेला ही रहता हूँ तो ऐसा भी नहीं कि कोई और देख रहा है तो मुझे भी देखना पड़ रहा है|

Udan Tashtari said...

पूरी तरह सहमत...बेहतरीन आलेख.

Arun sathi said...

आपने बातें सौ प्रतिशत सही है। आज जिस तरह से घारावाहिकों ने महिलाओं को अपने चपेट में ले लिया है उससे यह और ही असरकारक हो गया जिससे समाज में बुराई फैलने की संभावना है।

वाणी गीत said...

आदर्श चरित्र और नकारात्मक छवि के बीच संतुलन तो होना ही चाहिए ताकि वाकई कहानी घर घर सी ही लगे !

जयकृष्ण राय तुषार said...

डॉ० मोनिका जी मैं भी आपके इस विचारोत्तेजक आलेख से सहमत हूँ बधाई |

जयकृष्ण राय तुषार said...

डॉ० मोनिका जी मैं भी आपके इस विचारोत्तेजक आलेख से सहमत हूँ बधाई |

Rajesh Kumari said...

Monika aapne is lekh me saari mere man ki baat likh di.maine to koi bhi serial dekhna hi chhod diya.vaastvikta se pare inhone to vivaah jaise pavitra rishte ka makhol bana kar rakh diya.apko is lekh ke liye dheron badhaai.

Rajesh Kumari said...

aapke aane ka intjaar rahega.

vijai Rajbali Mathur said...

आपकी सोच और विचार सकारात्मक हैं और आपने एकदम हाकीकत बयानी की है.दरअसल टी.वी.,फ्रिज और कूलर भारतीय संसंस्कृति को नष्ट करने के उपादान हैं.चैनल वाले व्यापारी हैं उनका उद्देश्य मुनाफ़ा कमाना है भारतीय संस्कृति की रक्षा करना नहीं.
कूलर हमने कभी रखा ही नहीं और टी.वी.भी १२ वर्ष से नहीं है.अतः हम इन सब से स्वतः दूर हैं.

Yashwant R. B. Mathur said...

बिलकुल सही बात कही आपने इस आलेख में.

सादर

पी.एस .भाकुनी said...

समाज में मौजूद आम महिलाओं की छवि बिगाड़ने वाले ही हैं.
बहुत ही उम्दा लेख...

Urmi said...

बहुत ही बढ़िया, शानदार और उम्दा लेख! लाजवाब पोस्ट!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

हरकीरत ' हीर' said...

बिलकुल सही कहा आपने .......!!

रेखा said...

बिलकुल सही बात उठाई है आपने ..ये सारे किरदार आम जिंदगी से कोसों दूर होतें हैं

Jyoti Mishra said...

I literally hate these TV serials from the bottom of my heart. >_<

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 14-07- 2011 को यहाँ भी है

नयी पुरानी हल चल में आज- दर्द जब कागज़ पर उतर आएगा -

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

इसके विरूद्ध औरतों को ही आगे आना होगा, तभी कुछ संभव है।

------
साइंस फिक्‍शन की तिलिस्‍मी दुनिया
लोग चमत्‍कारों पर विश्‍वास क्‍यों करते हैं ?

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बिल्कुल सही कहा आपने। अभी ये बात हम कह रहे तो लोग महिला विरोधी का तमगा चिपका देते। हाहाहाहा. लेकिन वाकई बढिया और विचारपूर्ण मंथन है आपका।

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

कभी कभी तो इन टी वी सीरियल्स के नारी चरित्रों को देख कर भौचक्का रहा जाता हूँ मैं| कहाँ होती हैं ऐसी भारतीय नारियाँ? यदि कुछ एक हैं भी तो - क्या जरूरत है उन्हें कथानकों का मुखी पात्र बनाने की? पर वही रेटिंग का टोटका..............

shikha varshney said...

११०% सहमत आपसे.इन धारावाहिकों में जीवन का १% सच भी नहीं होता.बल्कि गुमराह करने में १००% हाथ होता है.

Anonymous said...

यकीन जानिए मोनिका जी पोस्ट का शीर्षक पढ़ते ही तुरंत यहाँ पहुंचा हूँ.......मेरे मन की बात कह दी है आपने.....इन सब का ठीकरा मैं तो एकता कपूर के सर ही डालूँगा........मुझे याद है पहले दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक कितने अच्छे हुआ करते थे.......हाँ अभी कुछ दिनों पहले 'ज्योति' नाम का एक धारावाहिक मैंने देखा था.........एक भारतीय नारी का मजबूत, साचा, ईमानदार और संस्कारी किरदार मैंने तो अरसे के बाद देखा था टेलिविज़न पर.........बहुत सार्थक लेख है आपका......आपकी यात्रा सुखद रहे.....आमीन|

सदा said...

बहुत सही कहा है, सुन्‍दर अवलोकन करती पोस्‍ट ।

दीपक जैन said...

शुक्रगुज़ार हूँ आपका जो आपने कई लोगो की भावनायो की भलीभांति प्रकट किया
शुभकामनाये

Shalini kaushik said...

मोनिका जी आपका आलेख सार्थक बातों पर आधारित है किन्तु मैं इससे पूरी तरह से सहमत नहीं हूँ और मैं ये देखती हूँ और सच में कहूं तो भुगत भी चुकी हूँ की जो औरतें घरों में रहती हैं उनका दिमाग खाली दिमाग शैतान का घर होता है और वे नयी नयी साजिशें रचने में लगी रहती हैं और अभिनेत्री बंनने में कोई कसर नहीं छोडती.ये अधिकांश के बारे में मेरी राय है सभी के बारे में नहीं.

गिरधारी खंकरियाल said...

solah ane sachchi baat likhi hai aapne. do took baat!

शिखा कौशिक said...

मोनिका जी आप सही कह रही हैं .ये धारावाहिक बिना किसी अच्छी पटकथा के शुरू कर दिए जाते हैं और रास्ते से भटक जाते हैं .दिखाना क्या है -कुछ पता नहीं .स्त्रियाँ ही इनके केंद्र में रह जाती हैं और ये अनर्गल चरित्रों का सृजन कर आम स्त्री की छवि को ख़राब करते हैं .सार्थक पोस्ट .आभार

ashish said...

शत प्रतिशत सहमत , रात के २ बजे सजी धजी गृहणी , खूबसूरत जडाऊ जेवर से लदी फदी , इतनी मन्थराएँ, बाप रे एक ने तो त्रेता में उथल पुथल मचा दी थी अब तो अनगिनत है इन धारावाहिकों की माने तो . वितृष्णा होती है . हम तो नजर भी नहीं डालते ऐसे कार्यक्रमों पर .

सुधीर राघव said...

सही कहा आपने.

Maheshwari kaneri said...

सही कहा आपने..गहन विचारपूर्ण लेख के लिए बधाई....

Gopal Mishra said...

aapka blog har ek mahila ko padhna chahiye.

Rachana said...

ekdam sahi sawal hai aur smy ki mang hai aapne sahi baat uthai ai
rachana

Vandana Ramasingh said...

बहुत सही पोस्ट ...समय की माँग है यह इस पोस्ट से एक आंदोलन शुरू होना चाहिए हर ब्लॉग लेखक को ऐसी विसंगतियों के खिलाफ लिखना चाहिए

Nidhi said...

सही आकलन किया गया है ,आपके द्वारा ..ये सब सीरियल ..बाजारवाद की देन हैं...इनमें वाकई स्त्री की सही मायनों में जो समस्याएं हैं ...उनके लिए कोई स्थान नहीं है

कमलेश खान सिंह डिसूजा said...

सार्थक और सुन्दर लेख...
धारावाहिक घरेलू महिलाओं के अंदर इस तरह घर कर चुके हैं, कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि धारावाहिक से महत्वपूर्ण उनके लिए कुछ भी नहीं है न परिवार न बच्चे कुछ भी नहीं !

सुज्ञ said...

चंद चांदी के टुकडों के बदले संस्कृति को विकृत कर बेचते है। इनसे सुधार की कोई आशा नहीं है। हमें ही अपने मनोरंजन के पैमाने और अनुशासन निश्चित करने होंगे।

Kunwar Kusumesh said...

आपके लेख सटीक, सामयिक और सार्थक होते हैं.
Please come back soon.

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सही कहा आपने पर मुझे तो लगता है कि ज्यादा कुसूरवार महिलाएं ही हैं कयोंकि वे यह सब झेल नहीं रही हैं अपितु उत्साह पूर्वक स्वीकार भी कर रही हैं। ये मेरी अपनी राय है बुरा लगे तो माफ़ करना

naresh singh said...

इन धारावाहिको का समाज पर बहुत बुरा प्रभाव पद रहा है | इनहे बनाने वाले अपने पक्ष में तर्क देते है कि नाटक व फिल्मे समाज का आईना है जब मेरा मानना है कि समाज इनके प्रभाव से मुक्त नहीं हो पा रहा है |

Anupama Tripathi said...

। क्या एक आम महिला दिन भर सज-धज कर सिर्फ कुटिलता करने की योजना बनाती रहती है ..? ज़्यादातर गृहणियां ऐसा करते दिखाई जाती हैं ...जबकि हकीकत यह है घर पर रहने वाली महिलाओं को इतना काम होता है की स्वयं के लिए भी समय नहीं मिलता | कामकाजी महिलाओं की व्यस्तता तो और भी ज्यादा है ... |
मुझे लगता है धारावाहिक में कुछ सत्य होता ही नहीं है ...और बुरे रिश्ते दिखा कर लोगों को बुराई का रास्ता दिखाते हैं ...
बहुत बढ़िया लेख है ...
आपकी यात्रा मंगलमय हो ....!!

जीवन और जगत said...

लेकिन इन सीरियलों को सबसे ज्‍यादा महिला दर्शक ही देखती हैं। यह भी एक कड़वा सच है।

Suman said...

यथार्थ से कोसो दूर ऐसे सीरियल देखना सिर्फ
समय बर्बाद करने के अलावा और कुछ नहीं है !

बढ़िया लेख सहमत हूँ !

दिगम्बर नासवा said...

सही क्कः है आपने ... ऐसे किरदारों को खालिस बाजार की तरह और अपना सीरियल बेचने के लिए घड़ा जाता है ... और सच बात तो ये है की महिलाए ही ज्यादा देखती हैं ये सब ...

रंजना said...

शब्दशः सहमत हूँ आपसे...

घोर दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है...स्थति बदलने की क्षीण आशा भी रखने की हिम्मत नहीं पड़ती...

पुराने दिन बहुत याद आते हैं,जब टी वी जानी मानी कहानियां भी तय एपिसोड में ही प्रसारित होती थीं...

Kailash Sharma said...

बहुत सच कहा है..बहुत सार्थक और विचारणीय आलेख..

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

शुभयात्रा के लिए मंगल कामनाएं॥

अनामिका की सदायें ...... said...

आपका विषय बहुत सटीक है और मैं कई बातों में आपसे सहमत भी हूँ. आज जिस चैनल पर देखो यही सब परोसा जाता है....लेकिन आजकल आपने देखा नहीं शायद नीचे एक घोषणा आ रही होती है....की यदि आपको इसके विषय में कुछ शिकायत करनी है तो आप फलां पते पर शिकायत दर्ज कर सकते हैं.
दूसरी बात...अब अगर हम अपने दिमाग को गलत बातों में, षड्यंत्रों में लगायेंगे तो यही करेंगे...और भक्ति के चैनल भी आते है उन्हें क्यों नहीं देखते लोग...अब ये उनकी इच्छा शक्ति ही ऐसे नाटको को देखने की होती है तो कोई क्या कर सकता है.
तीसरी बात...घर की स्त्रियों को समय नहीं होता घर के कामो से इन सब को देखने का...लेकिन फिर भी सब देखती हैं और अपनाती भी हैं.
हाँ दुःख होता है इस बात का की ये नाटक वाले आज आम महिला से जुडी समस्याओं को नहीं दिखाया जाता.

ये सब कह कर मैं आपकी बात को नहीं काट रही हूँ, सिर्फ तस्वीर का दूसरा रुख पेश कर रही हूँ. कृपया अन्यथा न लें.

निवेदिता श्रीवास्तव said...

मोनिका ,एकदम सही आकलन किया है .... सीरियल्स सिर्फ़ बकवास ही दिखाते हैं .... दुर्भाग्य ये है कि इनका असर हम-आप पर नहीं बल्कि कम वय के बच्चों पर अधिक होता है और शायद इसका ही परिणाम इतनी जल्दी टूटते रिश्ते हैं .... बेहद दुखद है ये सब ....
शुभकामनायें !

संजय भास्‍कर said...

आपसे पूरी तरह सहमत हूं
धारावाहिक हमारी भारतीय संस्कृति और भारतीय नारी की छवि को बिगाड़ने में लगे हैं......उम्दा लेख

Anonymous said...

मोनिका जी बहुत ही सार्थक लेख.

आज के धारावाहिक भारतीय संस्कृति और भारतीयता के नाम पर जो परोस रहे हैं उसका वास्तविक ज़िंदगी से तो कोसों दूर तक कोई वास्ता नहीं है. ना ही ऐसी सज-धज देखने को मिलती है असल ज़िंदगी में, ना ही औरतों के पास इतना वक्त होता है.. हर कोई आपा-धापी कि ज़िंदगी गले तक डूबा हुआ है. असल ज़िंदगी के किरदारों में, इन तथाकथित भारतीयता से भरपूर धारावाहिकों में दिखाए जाने वाले किरदारों से, ढूँढ़े से भी कोई साम्य नहीं मिलेगा.

tips hindi me said...

डॉ॰ मोनिका शर्मा
नमस्कार,
आपके ब्लॉग को http://cityjalalabad.blogspot.com/p/blog-page_7265.html के हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज पर लिंक किया जा रहा है|

Vaanbhatt said...

ऐसी महिलाएं सिर्फ और सिर्फ टीवी पर ही मिलतीं हैं...शुक्र है...आम समाज इन सबसे दूर है...

Unknown said...

बिलकुल सही कहा आपने ये आम महिलाओं की छवि बिगाड़ने वाले ओर समाज में अस्वस्थ मानसिकता को फैलाने वाले धारावाहिको पर रोक लगनी चाहिए ..कला के नाम पर विद्रूप दर्पण
दिखाने की क्या आवश्यकता है ???

Asha Joglekar said...

बिलकुल सही कहा आपने । महिला किरदार एकदम नकली वास्तविकता से कोसों दूर होते हैं । आज की कामकाजी महिला जो घर की जिम्मेदारी भी भरसक सम्हाल रही है उसके संघर्षों का तो अता पता नही होता है इनमें ।
आपकी यात्रा शुभ हो सफल हो ।

सु-मन (Suman Kapoor) said...

bilkul sahi likha hai aapne..maine to ye tv serial dekhne hi band kar diye hain..

महेन्‍द्र वर्मा said...

टी.वी. पर महिला किरदारों की कृत्रिमता का अच्छा विश्लेषण।
चमक-दमक, शान-शौकत, ईर्ष्या-द्वेष, झगड़ा-झंझट आदि का प्रदर्शन धारावाहिकों में हो रहा है जिसका समाज पर बुरा असर पड़ रहा है।

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

aapki chintao se poori tarah sahmat.Seriols are creating a hype that ladies are the naturalconspirators,indulged in different type of nuesence for 24 hrs.
Plenjoy yr holidays and come back soon.best wishes.
dr.bhoopendra

Amrita Tanmay said...

सार्थक विषय पर सुन्दर लिखा है.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

शत प्रतिशत सही लिखा है आपने | अब ये टी वी धारावाहिक फिल्मों से भी खतरनाक हो गए हैं क्योंकि इनकी घुसपैठ घर-घर में है | सब कुछ टी आर पी के लिए हो रहा है , इन्हें मूल्यों और संस्कारों से कुछ भी लेनादेना नहीं |

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

monika ji...ye to kai baar bichar mein aata tha..lekin itne acche tarike se bahut sacchi aur acchi baat kahi hai..dekhta rahta hoon aapke comment blogs pe...apne blog pe amantran ke sath

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan said...

आपने सही कहा. यह काफ़ी समय से देखा जा रहा है.
सुंदर प्रयास. बधाई स्वीकारें

ज्योति सिंह said...

इन धरावाहिकों में परंपरा के नाम पर कुछ भी परोसा जा रहा है | आधारहीन कल्पनाशीलता के नाम पर इनमें कई गैर जिम्मेदाराना बातें दिखाई जाती है। हद से ज्यादा खुलापन और और सामाजिक रिश्तों की मर्यादा से खिलवाड़ को तकरीबन हर सीरियल की कहानी का हिस्सा बनाया जाता है। हैरानी की बात तो यह है कि यह सब कुछ भारतीय सभ्यता और संस्कृति के नाम पर पेश किया जा रहा है। जिसका विचारों और संस्कारों पर गहरा असर पड रहा है। बहुत से धारावाहिकों में विवाहेत्तर संबंधों को प्रमुखता से दिखाया जाता है।
shat pratishat sahmat hoon is baat se ,phir sawaal ye uthta hai hum ise dekhte hi kyo hai ,jabki aadha sach bhi nahi nazar aata ,hamare yahan ek sajjan aakar ye updesh de gayi ki tv mahilao ko barbaad kar raha hai ye saajish wale serial kyo dekhti hai aaplog ,hamare yahan aese faltoon cheejo par koi waqt nahi barbaad karta hai ,bas hum sabhi nirutar khade rahe aur bataiye kahte bhi kya .unhe kaun samjhaye mahilaye manoranjan ke liye dekhti hai .mujhe to bahut kuchh yaad aa raha hai ,lagta hai ek post mujhe hi taiyaar karni padegi is par monika ji ,dilchsp avam aham charcha .jise aapne badi sundarata se pesh kiya .

abhi said...

अच्छा है,ऐसे सीरिअल्स मैं देखता ही नहीं :)

Fani Raj Mani CHANDAN said...

बहुत सही अवलोकन किया है आपने. ऐसा प्रतीत होता है कि दूरदर्शन पर आने वाले कार्यक्रमों का स्तर काफी हद तक गिर गया है. यह केवल सास-बहू वाले धारावाहिकों तक सीमित नहीं वरन जो धार्मिक या फिर ऐतिहासिक धारवाहिकों में भी आडम्बर का प्रभाव कही बढ़ गया है.

आभार
फणि राज

उपेन्द्र नाथ said...

बहुत ही विचारणीय प्रस्तुति। वाकई ये सीरियल नारी की गलत छवि पेश कर रहे हैँ ।

उपेन्द्र नाथ said...

बहुत ही विचारणीय प्रस्तुति। वाकई ये सीरियल नारी की गलत छवि पेश कर रहे हैँ ।

उपेन्द्र नाथ said...

बहुत ही विचारणीय प्रस्तुति। वाकई ये सीरियल नारी की गलत छवि पेश कर रहे हैँ ।

उपेन्द्र नाथ said...

बहुत ही विचारणीय प्रस्तुति। वाकई ये सीरियल नारी की गलत छवि पेश कर रहे हैँ ।

उपेन्द्र नाथ said...

बहुत ही विचारणीय प्रस्तुति। वाकई ये सीरियल नारी की गलत छवि पेश कर रहे हैँ ।

उपेन्द्र नाथ said...

बहुत ही विचारणीय प्रस्तुति। वाकई ये सीरियल नारी की गलत छवि पेश कर रहे हैँ ।

G.N.SHAW said...

"इन धरावाहिकों में परंपरा के नाम पर कुछ भी परोसा जा रहा है | आधारहीन कल्पनाशीलता के नाम पर इनमें कई गैर जिम्मेदाराना बातें दिखाई जाती है। " मोनिकाजी आप ने सही और सार्थक चिंतन को प्रस्तुत किया है ! इस तरह की परिवेश महिलाओं को अलग सिख और अलग छवि की तरफ इंगित करते है ! ऐसी सीरियलों पर पावंदी लगनी चाहिए ! बहुत बहुत बधाई !

Dorothy said...

प्रासंगिक और सटीक अभिव्यक्ति. इस सुंदर विश्लेषण युक्त आलेख के लिए आभार.
सादर
डोरोथी.

सुनीता शानू said...

आपकी चर्चा अवश्य देखें यहाँ पर...http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

इस तरह के सीरियल बनाने वाले तो मुझे मानसिक रोगी लगते हैं...

कविता रावत said...

बिलकुल सही बात उठाई है आपने
सार्थक और विचारपूर्ण आलेख के लिए आभार!

bhawna newaskar said...

sahi kaha me bhi isase puri tarah sahamat hu. bhut khub likhati he aap.

#vpsinghrajput said...

बहुत सुन्दर रचना प्रभावशाली।

Post a Comment