आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-06-2015) को चर्चा मंच के 2000वें अंक "बरफ मलाई - मैग्गी नूडल से डर गया क्या" (चर्चा अंक-2000) पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है। जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-06-2015) को चर्चा मंच के 2000वें अंक "बरफ मलाई - मैग्गी नूडल से डर गया क्या" (चर्चा अंक-2000) पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है। जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
20 comments:
प्रकृति भी खेलती है. बिलकुल खेलती है। लेकिन लोग जल्दी समझ नहीं पाते।
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
प्रकृति के लिए खेल हमारे लिए सिख, सटीक !
aur namein tab sujh bujh se kaam lena hoga
आज की ब्लॉग बुलेटिन बांग्लादेश समझौता :- ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सुंदर और सटीक बात...समय -समय पर प्राकृतिक आपदाएं मनुष्य को झकझोरती और सचेत करती रहती हैं. बहुत दिनों बाद पोस्ट देखकर अच्छा लगा.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-06-2015) को चर्चा मंच के 2000वें अंक "बरफ मलाई - मैग्गी नूडल से डर गया क्या" (चर्चा अंक-2000) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-06-2015) को चर्चा मंच के 2000वें अंक "बरफ मलाई - मैग्गी नूडल से डर गया क्या" (चर्चा अंक-2000) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
True
सहमत हूँ आपकी इस बात से .. कई बार दुःख के बाद नए रिश्ते नाते उभर के आते हैं जो मजबूत होते हैं पहले से ज्यादा ...
प्राकृति भी तो यही खेल खेलती है ...
सत्य ..
शाश्वत् सत्य है किन्तु मनुष्य शीध्र स्वीकार नही करता।
सचमुच, ये सब भी एक खेल ही लगता है....
............
लज़ीज़ खाना: जी ललचाए, रहा न जाए!!
सच है।
Sach
आपदाएं चाहें जितनी आएं, पर हम हौसला नहीं खोने वाले।
बिल्कुल सही कहा आपने
abhipray samzhane ke prayojno me. - bhut accha h.
बहुत खूब..........ये(आपदाएं) भी जीवन के एक अंग की तरह से है अगर ये न हो तो मनुष्य जीवन सही रूप में जी नहीं सकता!
सही कहा है.
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