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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

03 July 2012

जब भी, जिससे भी मिली, उसी से कुछ सीखा

कहते हैं कि गुरु बिन ज्ञान नहीं । सच भी है गुरु जीवन के मार्गदर्शक होते हैं । ये बात और है कि जीवन की इस यात्रा में  ऐसे लोग गिनती के ही होते  हैं जिन्हें हम औपचारिक रूप से अपना गुरु मानते हैं । जिनका सानिध्य पाकर  हमारी अकादमिक या आध्यात्मिक उन्नति होती है ।  इसी नाते हम इन्हें गुरु मान इनका सम्मान करते हैं ।  लेकिन जीवन की इस राह में अनगिनत लोग ऐसे भी मिलते हैं  जिन्हें औपचारिक रूप से  गुरु नहीं मानते हम , पर उनसे भी हमें ज्ञान और मार्गदर्शन ज़रूर मिलता है ।

हर जीवन में है नया  रंग 
कभी कभी लगता है कि इस जीवन में कोई एक गुरु कैसे हो सकता है ? मैंने हमेशा यह महसूस किया कि हमारा जीवन तो सबके सहयोग से ही संवरता है । हमारे परिवेश से लेकर हमारे माता-पिता और यहाँ तक कि हमारे अपने बच्चे भी हमें बहुत कुछ सिखाते हैं । औपचारिक रूप से हम इन्हें गुरु भले न माने पर जीवन में हर व्यक्ति, हर परिस्थिति हमें कुछ ऐसा सिखा जाती है, जिससे मिली सीख सदा के लिए हमारी पथप्रदर्शक बन जाती है । यही सीखें वे उत्प्रेरक तत्व होती  हैं जो समय रहते संभल जाने का संबल देती हैं । एक गुरु की तरह हमें सही गलत को समझने की शक्ति और दूरदर्शिता  देती हैं । 

अगर अपनी बात करूँ तो लगता है कि आज तक जीवन में जिससे भी मिली उसी से बहुत कुछ सीखा । इस सूची में ऐसे भी कई लोग हैं जिन्हें अक्षर ज्ञान भी नहीं था । जैसे मेरी दादी माँ । एक निरक्षर महिला ,पर जीवन से जुड़े ज्ञान की थांती जो उनसे मिली आज तक मेरा आत्मबल है और हमेशा रहेगी । आज भी अपनी नाते रिश्तेदारी में ऐसी कई महिलाओं से मिलना हो जाता है जिनका आम सा दिखने वाला जीवन अपने आप में संघर्ष की मिसाल है । उनसे सुनी कई बातें अनायास ही इतना  कुछ सिखा बता देती हैं कि मुझे वे ज्ञान देने वाले किसी गुरु से कम नहीं लगतीं । 

अपने दोस्तों ,सखियों-सहेलियों सभी से कुछ न कुछ सीखा है और आज भी यह सिलसिला जारी है  । जब भी जिससे भी मुलाकात होती है लगता कि हर किसी में  कुछ विशेष बात है । मुझे भी इसे सीखने की कोशिश करनी चाहिए । किसी की भाषाई दक्षता तो किसी का शांत स्वाभाव , किसी का अपने घर की साज-संभाल  का ढंग तो किसी का नौकरी में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाने की सनक ।  कभी बड़ी उम्र  के किसी अपने के अनुभव कुछ सिखा जाते हैं तो कभी अपने से छोटी उम्र वालों के जद्दोज़हद भरे निर्णय  मेरे अपने जीवन को अनुशासित बनाये रखने का पाठ पढ़ा जाते है । सच ही है कि मन चेतन हो तो पूरा परिवेश ही एक विद्यालय के समान है । मन की सजगता हर कहीं से कुछ न कुछ ढूंढ ही लेती है जो ज्ञान और मार्गदर्शन देता है । हर बार यही लगता है कि मुझे मिलने वाले हर व्यक्ति के जीवन से जुड़े निर्णय और परिस्थितियां  मुझे बहुत कुछ सिखा जाती है । कुछ ऐसा समझा जाती है जो मेरे लिए  गुरु के दिए ज्ञान से कम नहीं । यह कृतज्ञता ज्ञापन उन तमाम नाम अनाम के प्रति है जिनसे कुछ सीखने का सौभाग्य मिला ।

76 comments:

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही उम्दा और शिक्षाप्रद पोस्ट |

Arvind Mishra said...

यह कृतज्ञता ज्ञापन उन तमाम नाम अनाम के प्रति है जिनसे कुछ सीखने का सौभाग्य मिला ...
जीवन भर सीखने की यह ललक बनी रहे!

virendra sharma said...

गुरु पूर्णिमा पर विशेष दीक्षा देदी आपने .आँखें खुली और दिमाग की स्लेट साफ़ रखो तो हर पल छिन सीखने की गुंजाइश रहती है .आपकी पोस्ट जीवन जगत और अनुभव से जुडी होती है .अच्छा लगा इस पोस्ट को पढके .सादर -वीरुभाई ,कैंटन ,मिशिगन .

संतोष त्रिवेदी said...

गुरु को नमन करना हमारा कृतज्ञता-ज्ञापन है.हमारी जिंदगी में एक नहीं अनेक गुरु हैं जिनसे हम सीख लेते हैं !

Anupama Tripathi said...

बहुत सुंदर भाव ...बहुत सहजता से व्यक्त किये ...यही बड़प्पन की निशानी है ..!!
सुंदर आलेख ....शुभकामनायें.

Arvind Jangid said...

जिससे कुछ सीखने को मिले वही गुरु है. बहुत ही शिक्षाप्रद लेखन...आभार

Smart Indian said...

उत्तमतरीन आलेख! समझदार लोग ताउम्र सीखते हैं।

वाणी गीत said...

सच है हमारे जीवन में आने वाले प्रत्येक इंसान से हम कुछ न कुछ सीखते ही हैं !

सुज्ञ said...

बेशक हम सभी से सीखते है और उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए, लेकिन यह अनुभव ज्ञान है और गुरू से प्राप्त होता ज्ञान बिना अनुभव के दौर से गुजरे सहज और साक्षात हो जाता है.
आपने ज्ञानदाताओं के प्रति उत्तम कृतज्ञता ज्ञापन किया!! आभार!!

Suman said...

bahut badhiya sahmat hun .....

केवल राम said...

हमारा जीवन तो सबके सहयोग से संवारता है ।
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
सच ही है कि मन चेतन हो तो पूरा परिवेश ही एक विद्यालय के समान है । मन की सजगता हर कहीं से कुछ न कुछ ढूंढ ही लेती है जो ज्ञान और मार्गदर्शन देता है ।
जीवन की अनुभूतियों को आपने सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है ..हम जीवन में हर किसी से सीखते हैं यह सत्य है औ रहमारा जीवन चाहे कामयाबी के किसी भी मुकाम पर हो लेकिन जो सीखें और सहयोग हमें दूसरों से मिला होता है उसे किसी भी स्थिति में नजरअंदाज नहीं कर सकते ...आपका आभार इस वैचारिक प्रस्तुति के लिए ...!

M VERMA said...

सीखने का सिलसिला कभी खत्म नहीं होता, कौन कब कहाँ क्या सिखा दे पता नहीं

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर बात कही मोनिका जी आपने.....
अपने आस पास हर चीज़ हमें सिखाती है...प्रकृति,जीव जंतु..पंछी ..सभी...
बहुत प्यारी पोस्ट.

अनु

शिवम् मिश्रा said...

जय हो ...

आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है एक आतंकवाद ऐसा भी - अनचाहे संदेशों का ... - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बिलकुल सही कहा है .... जीवन में हम हर पल और हर एक से कुछ न कुछ सीखते हैं यहाँ तक की एक नवजात बच्चे से भी .... उम्दा पोस्ट

समय चक्र said...

सीखना कोई बुरी बात नहीं है ... गुरु के वगैर ज्ञान संभव नहीं है ... आभार

मनोज कुमार said...

न तो सीखने की कोई उम्र होती है, न सीमा। कई बार मुझे मेरे दफ़्तर का चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी मुझे बहुत बड़ी सीख दे-देता है, और मुझे गर्व होता है कि मेरे मातहत इतने क़ाबिल लोग हैं।

Roshi said...

bahut sunder lekh ......ab aapke lekh se hi bahut kuch seekhne ko mila

रश्मि प्रभा... said...

mann se kritagya hona hi seekhne ka manobal hai

अनामिका की सदायें ...... said...

JAHAN TAk bacchon se gyan milne ki baat hai to aap gehenta se sochiyega hame bahut kuchh ek maa banNe aur bacchon ki jimmedari milne k baad hi bacchon se bahut kuchh seekhne ko milta hai aur khas taur par tab jb vo teenager hon unki soch ko samajhne, khud me usi tarah badlaav laane unka ham se hat k ek alag nazariya hame bahut kuchh sikha jata hai aur ham me badlaav bhi laata hai.

vicharneey post.

दिगम्बर नासवा said...

जीवन में एक नहीं अनेकन ऐसे लोग आते हैं जो सच मानों तो गुरु के समकक्ष ही होते हैं ... ये पर्व सभी कों नमन करने के लिए है ... उनको याद करने के लिए है ...

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही अच्छा आलेख

सादर

BS Pabla said...

मन की सजगता हर कहीं से कुछ न कुछ ढूंढ ही लेती है जो ज्ञान और मार्गदर्शन देता है।

कृतज्ञ हम भी हैं उन तमाम नाम अनाम के प्रति जिनसे हम सीख पाए

shikha varshney said...

बिलकुल सच ..सीखना चाहें हम तो एक नवजात शिशु से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं.
सुन्दर पोस्ट.

Anonymous said...

बिलकुल सहमत हूँ आपसे....जीवन में हर कुछ हमे कुछ न कुछ सिखाता है बशर्ते की हममे शिष्यत्व की भावना हो।

मेरा मन पंछी सा said...

जब तक जीवन है सीखते रहना चाहिए..
और जिससे ही शिक्षा मिले वही गुरु होता है..
उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए..
सुन्दर,सिख देती पोस्ट...
:-)

Pallavi saxena said...

बिलकुल सही कहा आपने जीवन में आने वाली हर चीज़ हमें कुछ न कुछ सीखाया ही करती है। फिर चाहे वो इंसान हो या परिस्थितियाँ,आपके इस आलेख को पढ़कर बचपन में स्कूल में पढ़ी एक कहानी याद आगयी। जिसमें यह संदेश था ज्ञान कि तीन बातें हमेशा याद रखनी चाहिए। कि कभी किसी का दिल दुखने वाली बात करो, रास्ते में जहां भी ज्ञान कि दो बाते सुनने को मिले सुनो, और अपने से सामने वाले व्यक्ति को कभी कमजोर मत समझो...क्यूंकि हर यदि एचएम ध्यान दें तो व्यक्ति से हमे कुछ न कुछ सीखने को ज़रूर मिलता है।

ashish said...

हमारे जीवन में आने वाले प्रत्येक इंसान से हम कुछ न कुछ सीखते ही हैं !

Sawai Singh Rajpurohit said...

बहुत ही सुंदर प्रस्तुति,शिक्षाप्रद पोस्ट...

संध्या शर्मा said...

हम जीवन भर सीखते रहते हैं, और जिनसे सीखते हैं भले उन्हें गुरु ना मानते हों लेकिन जब भी उनसे मिली सीख हमारे काम आती है, साथ में वे भी याद आते हैं और मन उनके प्रति कृतज्ञता से भर जाता है... बहुत सुन्दर आलेख. शुभकामनायें...

kavita verma said...

sach hai jeevan ke har pal milane vale logon se bahut kuchh seekha ja sakta hai..sundar post..

Maheshwari kaneri said...

सही कहा मोनिका जी हम पग-पग पर हर परिवेश में हर किसी से कुछ न कुछ सीखते ही रहते हैं..जिससे भी कुछ सीखने को मिले वही गुरु है.. मेरा भी उन सभी महान गुरू जनों को नमन..बहुत सुन्दर सार्थक लेख..आभार

राजन said...

यदि हम सीखना चाहें तो हमारे आस पास बहुत कुछ हैं जिससे हम सीख सकते हैं और हमारा गुरु भी कोई भी हो सकता हैं.लेकिन ये सीखने की योग्यता भी हर किसीमें नहीं होती कई लोग तो ऐसे हैं जो अपने अनुभवों से भी सीख नहीं लेते.
बढ़िया आलेख!

ऋता शेखर 'मधु' said...

सही कहा...जीवन में हम हर जगह कुछ न कुछ सीखते हैं.गुरू पूर्णिमा के लिए सार्थक पोस्ट|

Arvind kumar said...

हर पल सीखना ही जिंदगी है....

G.N.SHAW said...

" सच ही है कि मन चेतन हो तो पूरा परिवेश ही एक विद्यालय के समान है । " बिलकुल सही मोनिका जी ! निस्वार्थ , अज्ञान और जागरुक मन की जिज्ञासा ही कुछ समझने और सिखने की इच्छा उतपन्न करती है !

rashmi ravija said...

सही है..सीखने की चाह हो..तो संपर्क में आया हर व्यक्ति कुछ ना कुछ सिखा ही जाता है..
बहुत ही अच्छी पोस्ट

Dr. sandhya tiwari said...

गुरु पूर्णिमा की शुभकामनायें मोनिका जी ............जीवन सफर में हम जिनसे भी कुछ सीखें वे गुरु तुल्य ही हैं

प्रवीण पाण्डेय said...

सीखने की उत्कण्ठा और उनके प्रति कृतज्ञता सदा ही बनी रहे..

anshumala said...

एक अच्छा गुरु आप के जीवन की धारा को ही बदल सकता है आप के सोचने के तरीके को ही कुछ का कुछ बना सकता है जो आप के भविष्य को कही बेहतर बना देता है |

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 05 -07-2012 को यहाँ भी है

.... आज की नयी पुरानी हलचल में .... अब राज़ छिपा कब तक रखे .

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सीखने की चाह हो..तो संपर्क में आया हर व्यक्ति कुछ ना कुछ सिखा ही जाता है..

बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,

MY RECENT POST...:चाय....

sm said...

बहुत सुंदर भाव

kshama said...

Aapke nazariye se hee kaafee kuchh seekha ja sakta hai.

lori said...

सच है मोनिका जी!
मुझे लगता है, प्रकृति से बड़ा कोई शिक्षक नहीं
और सीखने से बड़ा कोई गुर नहीं!!!
बिलकुल वर्डस्-वर्थ के अंदाज़ में : "नेचर इस द नर्स, द गाइड द गार्जीयन......"
खूबसूरत पोस्ट.

Kailash Sharma said...

अगर सीखने की चाह हो तो हम ज़िंदगी में हर किसी से कुछ न कुछ सीख सकते हैं...बहुत सुन्दर आलेख..

bajrang lal samota said...

very nice
plz visit here http://blsamota.wordpress.com

nayee dunia said...

ये ही होता है ..हम किसी ना किसी से कुछ ना कुछ सीख सकते हैं ........

nayee dunia said...

ये ही होता है ..हम किसी ना किसी से कुछ ना कुछ सीख सकते हैं ........

सदा said...

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ... आभार

आत्ममुग्धा said...

sarthak rachana......harek vyakti hume kuchh sikhata h bas humi me sikhne ka bhav hona chahiye.....aur aise hi sikh-sikh kar to hum anubhavi kahlaate h....dhanywaad

कविता रावत said...

सीखने के लिए क्या छोटा क्या बड़ा..सबसे कुछ न सीखने को मिलता ही है बस जरुरत इस बात की होती हैं की हमारा नजरिया कैसा है ... जिससे भी कुछ सीखने को मिले मैं तो उसे ही गुरु समझती हूँ ..
बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति ..आभार

Ragini said...

बेहतरीन प्रस्तुति.....जीवन के अंतिम पलों तक व्यक्ति किसी न किसी से कुछ न कुछ सीखता ही रहता है और यही जीवन-गति है...

virendra sharma said...

सीखना भी एक रुझान है एक प्रवृत्ति है जो सबमें मुखर नहीं होती .बढ़िया पोस्ट .शुक्रिया .

Rahul Singh said...

ताजगी देता है सीखते रहना.

अजित गुप्ता का कोना said...

मेरा भी यही मानना है कि हम जीवन में न जाने कितने लोगों से सीखते हैं। लेकिन आपकी पोस्‍ट पढ़ते हुए ख्‍याल आया कि कभी हम अपने अंदर भी झांककर देखे कि लोग हमसे मिलकर भी कुछ सीखते हैं क्‍या?

Satish Saxena said...

बहुत सुंदर ...

Vinamra said...

वास्तव में सीखने की प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है, पर काश के सभी सीखी हुई बातों को ठीक से प्रयोग कर पाते.

आज आपका ब्लॉग पहली बार पढ़ा. अब पढता रहूँगा.

धन्यवाद.

Rachana said...

bahut khoob kuchh samjhne ke liye likha hai aapne bahut uchit shbdon me
rachana

abhi said...

सही बात है, किसी व्यक्ति का एक ही गुरु नहीं होता, वह तो बहुत लोगों से सीखता है!!

संतोष पाण्डेय said...

सही कहा है आपने. जीवन तो सतत सीखने की प्रक्रिया का ही नाम है.

संतोष पाण्डेय said...

सही कहा आपने. जीवन तो सतत सीखने की प्रक्रिया का ही नाम है.

संजय भास्‍कर said...

संपर्क में आया हर व्यक्ति कुछ ना कुछ सिखा ही जाता है.... मोनिका जी!

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बहुत सही लिखा है आपने हम सदा एक-दूसरे से निरन्तर कुछ न कुछ सीखते हैं...

मदन शर्मा said...

देर से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ .....आप का कहना बिलकुल सच है मोनिका जी!सबसे बड़ा गुरु तो वह परम पिता परमात्मा है जिसके प्रेरणा से से हम नयी नयी बातें सीखते हैं उसके बाद माता पिता एवं अन्य गुरुजन हैं जिनका हमें आभार माननी चाहिए यह प्रकृति भी हमें बहुत कुछ सिखाती है.....गुरु पूर्णिमा पर बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी ......

प्रेम सरोवर said...

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद।

हरकीरत ' हीर' said...

जीवन का अनुभव ही सबसे बड़ा ज्ञान है ....
इसलिए बुजुर्गों के अनुभव का हमें सम्मान करना चाहिए .....

S.N SHUKLA said...

इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें .

Dr.NISHA MAHARANA said...

बहुत अच्छी अभिवयक्ति .....

virendra sharma said...

शुक्रिया डॉ मोनिका आपका .आपकी ब्लॉग तवज्जो का .सीखना डॉ साहब एक निरंतर प्रक्रिया है ता -उम्र हम सीखतें हैं .जिससे सीखा वही हमारा गुरु .

कुमार राधारमण said...

जीवन में जिस किसी से भी जो कुछ भी मिला,उसके प्रति जो अहोभाव रखता है,वही शिष्य है और उसे ही गुरू मिलने की संभावना होती है।
अब गुरू शब्द का अनेक अर्थों में प्रयोग होता है।गुरूघंटाल भी आपने सुना ही होगा। मूलतः,गुरू की अवधारणा उस व्यक्ति को लेकर है जो परमात्मा से मिलन का माध्यम है। बाक़ी सब गुरू स्थूल जगत के हैं।

Rajesh Kumari said...

बहुत जबरदस्त आलेख है मोनिका जी क्षमा करना देर से पढ़ा आपकी हर बात में मेरी सहमती है इतना कहूँगी आज के ये सो काल्ड गुरु जो कदम कदम पे पैदा हो रहे हैं उनसे बचकर बस आपका ये आलेख पढ़ लें उन गुरुओं के अनुयायिओं को कुछ सबक मिलेगा

amit kumar srivastava said...

सीखना तो सतत प्रक्रिया है |

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

एक निरक्षर महिला ,पर जीवन से जुड़े ज्ञान की थांती जो उनसे मिली आज तक मेरा आत्मबल है और हमेशा रहेगी
आदरणीया मोनिका जी ..बिलकुल सच वक्तव्य आप का ....कहते हैं न की मूर्ख विद्वान से उतना नहीं सीख पाते जितना विद्वान मूर्खों से ...अंत तक सीखना है ...जरुरी नहीं की जो बहुत पढ़े लिखे हैं वहीं हमें सिखा पायें
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय
भ्रमर ५

virendra sharma said...

सुन्दर और मनोहर दर्पण विचारों का आपने परोसा है .शुक्रिया . बिन गुरु ज्ञान खान ते पाऊं ...

Anonymous said...

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