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25 February 2013

मायूसी ज़िन्दगी से भी मिलवाती है


कहने को तो मायूसी एक मनोदशा भर है । यूँ भी नैराश्य भाव होता ही इतना सूक्ष्म है कि इसे समझ पाना स्वयं के लिए भी सरल नहीं । तभी तो  बस,  अरुचि और हारे हुए मन के रूप में रेखांकन नहीं किया जा सकता निराशा का । आज के दौर में तो  हर किसी का अपने जीवन में इससे साक्षात्कार हो ही  रहा है । जीवन की वास्तविकता और कल्पनाशीलता को यही रेखा बारीकी से विभक्त करती  है । कुछ भीतर बिखरता और हो जाता है सच से आमना सामना । यही वो बिंदु है जहाँ से एक मार्ग नैराश्य भाव की ओर ले जाने के  लिए खुलता है । जाने अनजाने , चाहे अनचाहे हम चल भी पड़ते हैं उस ओर । ऐसे में विषय पर समग्रता से सोचा जाना आवश्यक सा लगता है। 

संसार का कोई भी मनुष्य अपने जीवन में हताशा नहीं चाहता । ऐसे पल तो जीवन में बिन बुलाये ही चले आते हैं ।  जैसे आशाएं जीवन से कहीं गहरे जुड़ी होती हैं । वैसे ही निराशा भी जीवन का अभिन्न अंग है । दुःख और विषमता से भरी परिस्थितियां हर किसी के जीवन में आतीं हैं । पर नैराश्य का दौर सदैव नकारात्मक नहीं होता । यह समय उत्थानकारी भी होता है । हमें कर्म और आशावादिता से भी जोड़ता  नैराश्य ।

निराशा का दौर वो समय होता है जब हर प्रसंग, हर पात्र पर या तो विश्वास हो जाता है या पूरी तरह से भरोसा खो जाता है । यह विरक्ति एक नई सोच को जन्म देती है । ऐसे अनगिनत उदहारण हैं जो ये सिद्ध करते हैं कि जीवन के उतार-चढाव को जीने के बाद लोगों ने एक नवीन दृष्टिकोण पाया । जिसने  आगे चलकर उनकी सफलता में विशिष्ट भूमिका निभाई । विचारधारा का यह परिवर्तन जिस मार्ग से होकर गुजरता है, उसी पथ पर निराशा से भी साक्षात्कार होता है ।

यह आत्मावलोकन और स्वमूल्यांकन की ओर मोड़ने वाला समय होता है । इस मोड़ से पार पाने के बाद सीख भी मिलती है और संबल भी । जीवन जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार कर जिया जाय और उसे श्रेष्ठतर बनाने का प्रयास किया जाय । इस हेतु भावी जीवन  में सकारात्मक रहते हुए किस तरह अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करने की कोशिश करते रहना है यह भी सबक भी मिलता है।  जीवन की इन परिस्थितियों में यथार्थ को जीने और उससे मुठभेड़ करने का संबल भी हमारी झोली में आ जाता है । कष्टप्रद परिस्थितियों के चलते जीवन में उपजा क्षोभ भी एक ऊर्जा लिए होता है । जो कभी रचनात्मकता का रुझान लाती है तो कभी नया जीवन दर्शन रचती है । बस, हमें समय रहते इस शक्ति बोध हो । ताकि  हम अपने ही आत्मबल से उपजे दृष्टिकोण को स्वीकृत कर पायें ।

असंतोष और अवसाद से भरा यह समय बहुत कुछ सिखा समझा देता है । निराशा से भरा समय हमें स्वयं का विश्लेषण करने की शक्ति और समझ देता है ।  हर भूल, हर भ्रम से निकालकर जीवन के वास्तविक रूप से हमारी भेंट करवाता है । जिससे  हमारा उत्साह एवं  आत्मबल और दृढ़ता पाता है । विपरीत परिस्थतियों से निकलकर हम समझ जाते हैं कि ये जीवन है, एक साहस पूर्ण अभियान । जिसमें हर परिस्थिति में स्वयं को गढ़ते रहना है ।

43 comments:

शारदा अरोरा said...

बहुत ही सुन्दर मोनिका जी ..मन को उठाने वाला लेख ...दरअसल मन नैराश्य में किसी भी तरह इस बात को समझने को तैय्यार नहीं होता कि इसी वक्त ने उसे गढ़ना है ...कोई छलाँग , पुल सी कोई भरपाई न ..

Unknown said...

thoughtful article .. very nice ..and very true..

मुकेश कुमार सिन्हा said...

man bhavan post.. achchha laga padh kar... :)

प्रवीण पाण्डेय said...

जब बाहर से स्वयं से अलग कर देखते हैं तो अपने बारे में जानते हैं।

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर ....

रश्मि प्रभा... said...

मायूसी ही ज़िन्दगी की असलियत से रूबरू करवाती है ....

विभा रानी श्रीवास्तव said...

मेरे मनोभाव के अनुकूल ....।
कुछ ऐसे ही साथ की जरूरत थी ....।
शुक्रिया !!

Anupama Tripathi said...

सकारात्मक सार्थक और संबल देता हुआ ...बहुत सुंदर आलेखा ...

वाणी गीत said...

यह तो है , हमारी आन्तरिक उर्जा इस समय अपने सर्वोच्च पर होती है !

Ayodhya Prasad said...

असंतोष और अवसाद से भरा यह समय बहुत कुछ सिखा समझा देता है । निराशा से भरा समय हमें स्वयं का विश्लेषण करने की शक्ति और समझ देता है ।

बेहतरीन पोस्ट ..

Shalini kaushik said...

.एक एक बात सही कही है आपने par monika ji nirash vyakti kee samjh is yogya hi nahi rahti ki ye uski samjh me aaye. आभार .अरे भई मेरा पीछा छोडो आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते

Ranjana verma said...

bahut achchi rachana

कालीपद "प्रसाद" said...

एक सकारात्मक लेख : सुन्दर प्रस्तुति
new postक्षणिकाएँ

Dr. sandhya tiwari said...

बहुत सुन्दर ....

Ranjana verma said...

behatarein rachna........humesha ki tarah....

इमरान अंसारी said...

यह विरक्ति एक नई सोच को जन्म देती है । ऐसे अनगिनत उदहारण हैं जो ये सिद्ध करते हैं कि जीवन के उतार-चढाव को जीने के बाद लोगों ने एक नवीन दृष्टिकोण पाया । जिसने आगे चलकर उनकी सफलता में विशिष्ट भूमिका निभाई ।

शत प्रतिशत सत्य है.......निर्भर करता है आप कितना सीखते हैं ।

दिगम्बर नासवा said...

निराशा की स्थिति से बाहर आना ही सबसे पड़ी चुनौती होती है ... ऐसी स्थिति में सब बातें बेमानी लगती हैं ... स्वस्थ दृष्टि से सोच नहीं पाता ओर गहरे उतरता जाता है निराशा में ... जो सोच पाता है की ये पल आते जाते हैं ... वो जल्दी उभर आता है ...

shikha varshney said...

गहन मायूसी के पलों में ही कोई बड़ा अवसर जन्म लेता है.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

हर क्षण कुछ न कुछ देकर ही जाता है, उससे हम कितना सीख पाते हैं ये हम पर निर्भर है.

अरुण चन्द्र रॉय said...

sach kah rahi hain ap.. jiwan awsado aur mayusiyon kee galiyon se nikal aur bhi nikharti hai

अज़ीज़ जौनपुरी said...

behad sundaraur vicharniy rachna,

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

निराशा से भरा समय हमें स्वयं का विश्लेषण करने की शक्ति और समझ देता है ।

बेहतरीन सार्थक पोस्ट,,,,

Recent Post: कुछ तरस खाइये

anshumala said...

कही पढ़ा था की गलती वो है जिससे हम कुछ सिखते नहीं है जिस घटना से सिख जाते है वो सबक बना जाता है । एक सकरात्मक पोस्ट ।

Udan Tashtari said...

सार्थक आलेख!!

Arvind Mishra said...

बहुत प्रेरक -मेरे लिए इन दिनों यह बहुत आवश्यक था-आभार!

पी.एस .भाकुनी said...

निराशा का दौर वो समय भी होता है जब हर प्रसंग, हर पात्र, पर या तो विश्वास हो जाता है या पूरी तरह से भरोसा खो जाता है, शायद इसीलिए कहा जाता है की " जीवन में निराशा ही व्यक्ति को नास्तिक बना देती है।
आभार ..................

अजित गुप्ता का कोना said...

आज ऐसी ही निराशा और विरक्ति हो रही थी कि आपका आलेख पढ़ने को मिल गया। कभी लगता है कि सबकुछ सम्‍पन्‍न हो चुका अब क्‍या शेष है? अब जीवन का उद्देश्‍य क्‍या है? सभी जगह तो संघर्ष है, और ये संघर्ष भी आखिर कब तक? संघर्षों से लड़कर स्‍वयं को स्‍थापित करके भी क्‍या होगा? मन तो सभी का साथ चाहता है लेकिन अधिकांश लोग अकेले ही निर्णायक की भूमिका में रहना चाहते हैं। खैर आपकी पोस्‍ट सामयिक है।

rashmi ravija said...

सचमुच ऐसी मानसिक अवस्था, अपने भीतर झाँकने का अवसर प्रदान करती है
चिंतनपरक आलेख

Asha Joglekar said...

निराशा जहां उत्थान की और ले जाती है हताशा गर्त में । गीता में ज्ञानी का वर्णन करते हुए कृष्ण उसे निराशी बताते हैं । वह जो किसी प्रकार की आस न रखता हो । मायूस होना आपको प्रयत्नशील होने से बी वंचित रकता है जब की आस के बिना बी आप प्रयत्न शील हो सकते हैं और अपना कर्तव्य निभा सकते हैं । सोचने को बाध्य करता हुा लेख ।

Pallavi saxena said...

जीवन का हर पहलू कुछ न कुछ सीखा जाता है जरूरत केवल विपरीत परिस्थतियों से निकलकर एक साहस पूर्ण अभियान चलाये मान रखना होता है जिसके अंतर्गत हमें हर परिस्थिति में स्वयं को गढ़ते रहना है। सार्थक पोस्ट

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

बहुत अर्थपूर्ण, भावपूर्ण चिंतन भरा आलेख !
परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ता है...संयम से, सोच-समझकर करें.. तो राह काफ़ी कुछ आसान हो जाती है...!
~सादर!!!

Amrita Tanmay said...

ये भी तो सकारात्मकता पर निर्भर करता है कि ऐसे पलों में भी मोती चुग ले..

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

हताशा-निराशा का जोड़
पाए एक नवआशा मोड़

Kailash Sharma said...

एक सकारात्मक सोच ही निराशा के सागर से उबार सकती है..बहुत सुन्दर और सार्थक आलेख..

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही बेहतरीन विचारणीय आलेख |आभार

Vandana Ramasingh said...

.... पर नैराश्य का दौर सदैव नकारात्मक नहीं होता । यह समय उत्थानकारी भी होता है । हमें कर्म और आशावादिता से भी जोड़ता नैराश्य ।

आपका चिंतन और प्रस्तुतिकरण बहुत सुन्दर होता है

Ramakant Singh said...

असंतोष और अवसाद से भरा यह समय बहुत कुछ सिखा समझा देता है । निराशा से भरा समय हमें स्वयं का विश्लेषण करने की शक्ति और समझ देता है । हमें हर भूल, हर भ्रम से निकालकर जीवन के वास्तविक रूप से भेंट करवाता है । अंततः इसी से हमारा उत्साह एवं आत्मबल और दृढ़ता पाता है । विपरीत परिस्थतियों से निकलकर हम समझ जाते हैं कि ये जीवन है, एक साहस पूर्ण अभियान । जिसमें हर परिस्थिति में स्वयं को गढ़ते रहना है ।

सकारात्मक और सार्थक लेख बहुत सुन्दर सुप्रभात

tips hindi me said...

TeckWekin परिवार का सदस्य बनने पर बधाई स्वीकार करें |

महेन्‍द्र वर्मा said...

निराशा ही आशा के महत्व को समझने का अवसर देती है।

प्रेरक और उपयोगी आलेख के लिए आभार।

virendra sharma said...

धीरज धरम मित्र अरु नारी ,आपद काल परखिये ही चारी -

इससे आगे निकलके ये खुद की परीक्षा होती है .हमारा मानना है जीवन में अघटित कुछ नहीं होता ,कल्याण ही लिए रहता है .जो हुआ अच्छा ही हुआ होगा .हो सकता ही इससे भी बुरा कुछ हो जाता .यही मूल मन्त्र रहा उम्र भर .बस दृष्टा भाव से घटित को देख चलते रहे आगे और आगे .

सुन्दर सार्थक चिंतन परक पोस्ट .आभार .आपकी टिपण्णी हमारी शान है .

अज़ीज़ जौनपुरी said...

SUNDAR LEKH , SUNDAR VICHAR

amit kumar srivastava said...

उम्दा प्रस्तुति ।

G.N.SHAW said...

नैराश्य हमारी कमजोरी है और सार्थक पथप्रदर्शक

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