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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

27 September 2012

व्यस्तता नहीं, अर्थपूर्ण व्यस्तता आवश्यक है


यूँ तो आजकल हर कोई व्यस्त है । जीवन की गति से तालमेल बनाये रखने को आतुर । जीवन से भी अधिक तेज़ी से दौड़ने को बाध्य । आपाधापी इतनी कि  हम यह विचार करना भी भूल ही गए  कि जितना व्यस्त हैं , इस व्यस्तता के चलते जितना लस्त-पस्त हैं, उसकी आवश्यकता है भी या नहीं। भागे तो जा रहे हैं पर जितना स्वयं को उलझा रखा है उसका प्रतिफल क्या है ? हमारी यह व्यस्तता अर्थपूर्ण और सकारात्मक है भी या नहीं । 

कुछ भी करके समय काट दिया जाय ऐसी व्यस्तता का तो कोई अर्थ नहीं । यह तो हम सब समझते हैं । फिर भी कई बार जाने अनजाने ऐसे कार्यों में भी लगे रहते हैं  जिनमें ऊर्जा का सदुपयोग नहीं हो पाता  । जो कि एक विचारणीय पक्ष है । हम चाहे जो भी करें।  श्रम और समय का व्यय तो होता ही है । ऐसे में जहाँ भी , जिस रूप में भी, श्रम और समय लगाया जाय उसका सकारात्मक प्रतिफल कुछ ना हो तो स्वयं को ही छलने का आभास होता है । व्यस्तता का लबादा  ओढ़ कई बार स्वयं से दूर हो जाने मार्ग चुन बैठते हैं । उचित समन्वय  के अभाव में ऊर्जा और समय का उपयोग इस तरह होने लगता है कि उसके परिणाम ऋणात्मक दिशा की ओर  मुड़  जाते हैं।

यही वो समय होता है जब चेत जाना आवश्यक है । अपनी ऊर्जा और विचारों के प्रवाह को सही दिशा में मोड़ने के प्रयास ज़रूरी हो जाते हैं। यह जाँचने  की आवश्यकता होती है कि हम 'व्यस्त रहो मस्त रहो'  वाली कहावत के अनुरूप चल रहे हैं या तकनीकी युग में स्वयं भी किसी गैजेट के समान  व्यस्त तो बहुत हैं पर मस्त नहीं । आजकल तो  आँखें ,कान, हाथ सब व्यस्त रहते हैं।  मन मस्तिष्क को कुछ न कुछ हर पल परोस रहे हैं।   क्या सच में हम यही चाहते हैं ? हर क्षण कोई सूचना, कुछ कहना , कुछ सुनना,  फिर चाहे मन की मर्ज़ी हो या न हो ।

इसीलिए जब भी किसी कार्य में श्रम और समय लगाया जाय उसकी एक  रूपरेखा भी बनाई जाय । कार्ययोजना का एक सतही विचार तो मन में ज़रूर होना ही चाहिए । समय और ऊर्जा के समन्वय के साथ  जीवन की प्राथमिकताओं को इस सूची में उचित स्थान देने का उपक्रम करना भी आवश्यक है । ऐसा करने के कई सारे लाभ हैं पर सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि ज़रूरी  काम भी समय पर होंगें और गैर -ज़रूरी कार्यों में समय और ऊर्जा की खपत भी न होगी। ऐसा करने हेतु स्वयं को सही तैयारी और सही समय के अनुसार व्यस्त रहने का अभ्यस्त करना होगा । इससे अर्थपूर्ण व्यस्तता तो रहेगी पर जीवन अस्त-व्यस्त नहीं होगा । 

87 comments:

जयकृष्ण राय तुषार said...

समय प्रबंधन बहुत आवश्यक है |एक बेहतरीन पोस्ट
मेरे ब्लॉग सुनहरी कलम पर जनकवि नागार्जुन की कवितायें समय मिले तो पढ़ने का कष्ट करें |
www.sunaharikalamse.blogspot.com

वाणी गीत said...

इस विचार या दर्शन पर असहमत होने का तो सवाल ही नहीं , मगर व्यवस्थित हो पाना भी हर किसी के वश में नहीं !

अज़ीज़ जौनपुरी said...

prabandhn jiwvn ke har kshetra ke liye anyant mahtvpurn hai,aur jivan ka samay se purnth aabritt hone ke karan samy prabandhn survopari mahatw ka hai,pr hai bhut mushkil

संतोष त्रिवेदी said...

सार्थक कामों में लगना ही व्यवस्थित व्यस्तता है!

Suman said...

अच्छी पोस्ट है !
व्यस्त रहना एक अच्छी बात है पर व्यस्तता सकारात्मक हो
और हमें उस कार्य का आनंद मिले उर्जा का सदुपयोग हो !

vandana gupta said...

्समय प्रबंधन तो सबके लिये जरूरी होता है।

सदा said...

सार्थकता लिए सशक्‍त लेखन ...

Anonymous said...

बहुत उलझनें आती हैं लेकिन व्यवस्थित रहना परम आवश्यक है

रश्मि प्रभा... said...

बात पते की है....

कुमार राधारमण said...

हमारा परिवेश प्रारम्भ से ही कचरा भरता है। "खाली दिमाग़ शैतान का घर" सीखा हमने,जबकि दिमाग़ को खाली रखना सबसे कठिन काम है और ध्यान में न उतर पाने की सबसे बड़ी बाधा।
और फिर,जीवन की प्राथमिकता भी क्या होगी। जीवन स्वयं सबसे बड़ी प्राथमिकता है।

आशा बिष्ट said...

yakinan vyast to sabhi hai... par kahan hain ye nahi maloom..

shikha varshney said...

सोलह आना सच्ची बात ...

संध्या शर्मा said...

बहुत जरुरी है व्यवस्थित होकर जीना, ऐसा करने से हर काम के लिए वक़्त मिलता है... सुन्दर सार्थक विचार

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

समय बड़ा मूल्यवान है,गवांए ना इसे निर्थक
समय का सदउपयोग प्रबंधन अति आवश्यक,,,,,

RECENT POST : गीत,

दीपिका रानी said...

सकारात्मक सोच और संदेश

Pallavi saxena said...

आपके इस विचार से असहमत होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता मगर वास्तविकता वही है जो आपने लिखी आज कल लोग व्यस्त न होते हुए भी खुद को व्यस्त दिखाना चाहते हैं जिस से भी पूछो वह यही कहता नज़र आयेगा कि यार मेरे पास टाइम की बहुत कमी है या फिर इतना काम है कि मरने तक कि फुर्सत नहीं है वगैरा-2 उसी का परिणाम है यह सोश्ल नेटवर्क साइट्स जो इंसान को busy without work जैसे जुमलों से जोड़े रखती हैं। मगर सार्थक कामों में लगे रहकर व्यस्त होने वाले लोग अब कम ही दिखाई देते हैं। सार्थक आलेख....

प्रवीण पाण्डेय said...

पहले जीवन की रूपरेखा फिर दिन की।

anshumala said...

वैसे ये कौन तय करेगा की अर्थपूर्ण व्यस्तता किसे कहते है किसी के लिए घर पर बैठा कर सिलाई कढाई करना अच्छा है तो किसी के लिए बेकार उससे अच्छा है कुछ साहित्यिक किया जाये किसी को घर गृहस्ती में व्यस्त रहना अच्छा लगता है तो किसी को बाहर जा कर काम करना सभी का अपना जीवन और उसे जीने का तरीका है टीवी देखना या नये गैजेट में व्यस्त रहना भी बुरा नहीं है |

sangita said...

सार्थक आलेख प्रस्तुत किया है आपने, दरअसल व्यस्तता आज कल का चलन है जो व्यस्त नहीं मानो वो किसी काबिल ही नहीं ,और यही एक कारण है की गुणवत्ता ख़तम होती जा रही है,|
विकास की तौल परिमाणात्मक होती जा रही है|

Ramakant Singh said...

जीवन की प्राथमिकताओं को इस सूची में उचित स्थान देने का उपक्रम करना भी आवश्यक है
VERY NICE POST TO FOLLOW

ashish said...

समय का समुचित और व्यवस्थित प्रयोग ,आज की मांग है . दिखने के लिए व्यस्त होना तो फैशन सा हो गया है .

Asha Joglekar said...

समय और ऊर्जा के समन्वय के साथ जीवन की प्राथमिकताओं को इस सूची में उचित स्थान देने का उपक्रम करना भी आवश्यक है । इससे समय भी बचेगा । इससे अर्थपूर्ण व्यस्तता तो रहेगी पर जीवन अस्तव्यस्त नही होगा ।

सही मार्गदर्शन ।

Madhuresh said...

Sahi baat.. cheezon ko prioritize kar pana bahut hi zaroori hai..
Saarthak sandesh deta aalekh..

rashmi ravija said...

अपनी ऊर्जा और विचारों के प्रवाह को सही दिशा में मोड़ना बहुत जरूरी है..वरना ज़िन्दगी गुजर जाती है...और कुछ हाथ नहीं आता.
सार्थक पोस्ट

मेरा मन पंछी सा said...

समय प्रबंधन बहुत जरुरी है..
इससे हम अस्त व्यस्त नहीं होते..
अच्छी सोच ,, सार्थक पोस्ट...
:-) :-) :-)

Maheshwari kaneri said...

वो कहते है..मस्त रहो व्यस्थ रहो पर अस्त व्यस्त न रहो..सार्थक पोस्ट

Anand Rathore said...

100% agreed .. arz kiya hai

sab yahin hain.. fir bhi koi nahi hai...
kitni hai tanhayi..lekin poocho to, waqt nahi hai..

गिरधारी खंकरियाल said...

तकनीकी युग में आदमी भी मशीन की भांति घूम रहा है।























संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जिसकी जिस कार्य में रुचि है जिसे करने से उसे आनंद मिले और एक नयी ऊर्जा ... उसी के आधार पर रूपरेखा बनाई जा सकती है .... सार्थक लेख ।

Kunwar Kusumesh said...

Agreed with what you have suggested,Monika ji.

ऋता शेखर 'मधु' said...

सार्थक आलेख...काम की गुणवत्ता भी जरूरी है|

Anonymous said...

बहुत सही बात कही आपने.....सहमत हूँ आपसे .....जीवन उर्जा से भरपूर है और इसका सदुपयोग करना भी आवश्यक है ।

अजित गुप्ता का कोना said...

कार्य सकारात्‍मक अवश्‍य होने चाहिए। स्‍वयं का निर्माण और साथ ही समाज और देश का निमार्ण की भूमिका रहनी चाहिए।

Arvind Mishra said...

बहुत अच्छा विमर्श ...
व्यस्त क्यों रहें यह भी एक कारण है -
काव्य शास्त्र विनोदेन काले गच्छति धीमताम।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहने वा।

मदन शर्मा said...

एक बेहतरीन पोस्ट ....व्यवस्थित रहना परम आवश्यक है......

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही अच्छी और सार्थक बात कहता आलेख !


सादर

प्रतिभा सक्सेना said...

अच्छा विचार-विमर्ष!

virendra sharma said...

। यह जाँचने की आवश्यकता होती है कि हम 'व्यस्त रहो मस्त रहो' वाली कहावत के अनुरूप चल रहे हैं या तकनीकी युग में स्वयं भी किसी गैजेट के समान व्यस्त तो बहुत हैं पर मस्त नहीं ।

अर्थ पूर्ण व्यवस्था बोध ही नहीं सारगर्भित व्यस्तता जीवन को ऊर्ध्वमुखी बनाती है .सूचना का हमला इस दौर में बिला वजह है .बढ़िया है कुछ लोग बुद्धु बक्से से चैनलियों के प्रलाप से बचे हुएँ हैं .जो समय का बड़ा हिस्सा बिला वजह ले जाते हैं .और धारावाहिक तो जीवन ऊर्जा क्या सारे मूल्यों को ही मेट रहें हैं जो वैसे ही विलुप्त प्राय : हो चलें हैं .

निवेदिता श्रीवास्तव said...

सकारात्मक श्रम का महत्व अक्सर अनदेखा ही रहता है .....

mridula pradhan said...

हमारी यह व्यस्तता अर्थपूर्ण और सकारात्मक है भी या नहीं.....yah janna bahut zaroori hai.

रचना दीक्षित said...

सच है काम को सही ढंग से निपटाने के लिये सही व्यवस्था बनाना सबसे जरुरी है.

Coral said...

व्यस्तता जीवन को एक रूप देती है इसके लिए समय प्रबंधन की आदत बचपनसे ही जीवन मे आनी चाहिए I

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

उपयोगी एवं बेहद सार्थक बात - आभार

Arvind kumar said...

candid post....

Vaanbhatt said...

अर्थयुग में अर्थपूर्ण व्यस्तता अत्यंत आवश्यक है...बिज़ी तो हर कोई है...पर प्रायोरिटी निश्चित करना भी ज़रूरी है...

Anonymous said...

आज के समय में यह सोचना बहुत जरुरी है ,खास तौर पर महिलाओ के लिए जो कहीं पर पीछे नही रहना चाहती हैं ! आभार मोनिका जी !

कविता रावत said...

bahut badiya saarthak prastuti ..

Kailash Sharma said...

समय प्रबंधन के बिना व्यस्त रहते हुए भी कभी सफलता नहीं मिलती..बहुत सार्थक आलेख..

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

अच्छी पोस्ट
कभी कभी ही ऐसी पोस्ट पढने को मिलती है।


जब भी समय मिले, मेरे नए ब्लाग पर जरूर आएं..
http://tvstationlive.blogspot.in/2012/09/blog-post.html?spref=fb

Rakesh Kumar said...

आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी.सुन्दर सीख के साथ
शब्दों का सुन्दर अर्थ और संगीत उत्पन्न करती.
व्यस्त,लस्त-पस्त,व्यस्त रहो मस्त रहो.
व्यस्त तो बहुत पर मस्त नही,
व्यस्त रहने का अभ्यस्त.
जीवन अस्त व्यस्त,



वाह! क्या बात है,मोनिका जी.
आभार.

Udan Tashtari said...

उत्तम और सार्थक चिन्तन!! आभार!!

Anupama Tripathi said...

समय पर जो कार्य करे सफलता पाता है ...व्यस्थित होना बहुत ज़रूरी है ...!!

सार्थक आलेख ....!!
आभार मोनिका जी ॥

amit kumar srivastava said...

अर्थपूर्ण व्यस्तता में तो व्यस्तता प्रतीत भी नहीं होती और कार्य सिद्ध हो जाता है | अर्थपूर्ण आलेख |

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 said...

sunder rchna..badhayee

कुमार राधारमण said...

मुझे तो आसपास एक भी बंदा नज़र नहीं आता,जिसकी व्यस्तता "अर्थ"-पूर्ण न हो!

मनोज कुमार said...

बहुत चिन्तन हो चुका है।
नया कुछ कहने को नहीं है।

Shalini kaushik said...

बहुत सही कहा है आपने अरविन्द की पार्टी :क्या अलग है इसमें -कुछ नहीं

abhi said...

बिलकुल सहमत...कभी कभी सोचता हूँ आप क्यों नहीं अपने ब्लॉग की सभी पोस्ट को एक किताब का रूप दे दीजिये....कितनी अच्छी और सच्ची बातें आप लिखती हैं!!

विकास गुप्ता said...

जीवन में समय प्रंबधंन बहुत आवश्यक है ।

Always Unlucky said...

I’m really amazed by this blog. Tons of useful posts and info on here. Thumbs up, From it's all about humanity

अनामिका की सदायें ...... said...

acchha jeewan darshan prastut kiya. lekin har insan apni banayi hui dincharya me apne swabhav ke anusar hi chalta hai. kisi se prabhavit hokar kuchh din k liye apni zindgi ka dharra agar vo badal bhi de to vo asthayi hota hai...dheere dheere vo vapis apne hi dharre par aa jata hai. han itna kar sakta hai ki jis kaam me vo vyast hai use prasannata poorvak mahol pradan kar ke kare to mushkil, bhari aur neeras se neeras kaam bhi aanand se poshit ho kar kar sakta hai.

virendra sharma said...

काम से ज्यादा काम है यह एहसास व्यस्तता से ज्यादा उसका बोध भी ऐसा होने पर नहीं मारेगा ,आज तो सुबह से शाम तक आदमी यूं ही बिखरा बिखरा रहता है .सार्थक व्यस्तता बोध हीना .निर -बुद्ध .

समय चक्र said...

badhiya Abhivyakti ..abhar

Rachana said...

yahi to nahi ho pata ..............smy aur kaam
rachana

अनुभूति said...

समय क उचित प्रभंदन नितांत आवश्यक है....
जो कि एक कठिन कार्य हो रहा है आज के परिवेश में..पर असंभव नहीं....
सादर !!!

virendra sharma said...

द्रुत टिपण्णी के लिए आपका आभार .

virendra sharma said...

द्रुत टिपण्णी के लिए आपका आभार .समय उचित प्रबंधन और समायोजन ही तो जीवन को सही अर्थ वत्ता देता है जब हम अपने लक्ष्यों का निर्धारण कर पाते हैं उनकी प्राप्ति के लिए सायास प्रयास रत रहतें हैं .

Arvind Jangid said...

बात तो सही कही आपने. व्यक्तिगत व्यस्तता के साथ थोडा सी सामाजिक व्यस्तता हो तो वो सार्थक व्यस्तता है. लेकिन व्यस्तता कहीं हमें मशीनी उपकरण भी ना बना दे ये भी ध्यान रखने की बात है. पति पत्नी के के पास बच्चों के लिए समय नहीं है, बड़े बूढों के लिए समय नहीं तो ऐसी व्यस्तता मुझे तो नहीं चाहिए....आभार

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

यदि निरर्थक भाग - दौड़ में व्यस्त रहोगे
अस्त-व्यस्त होकर तन-मन से पस्त रहोगे
समय प्रबंधन सही रखो तो सच ये मानो
आप सदा खुशहाल , हमेशा मस्त रहोगे |

24 घंटे का एक दिन, न कम न ज्यादा.बस इसी में सारी व्यवस्थायें करनी है.पल-पल बदलती प्राथमिकताओं के कारण कुछ सूझ नहीं पाता, यही परेशानियों का कारण बनता है.बेहतर है कि कुछ पल सब कुछ भूल कर मनन करें कि अत्यावश्यक क्या है.तत् पश्चात ही काम करना शुरु करें. काफी हद तक सफलता मिलेगी.

आज की आपाधापी में सभी जिस महत्वपूर्ण विषय को नजर अंदाज कर रहे हैं उस पर सार्थक और सारगर्भित आलेख .पाठकों के लिये निश्चय ही अति उपयोगी है.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

यदि निरर्थक भाग - दौड़ में व्यस्त रहोगे
अस्त-व्यस्त होकर तन-मन से पस्त रहोगे
समय प्रबंधन सही रखो तो सच ये मानो
आप सदा खुशहाल , हमेशा मस्त रहोगे |

24 घंटे का एक दिन, न कम न ज्यादा.बस इसी में सारी व्यवस्थायें करनी है.पल-पल बदलती प्राथमिकताओं के कारण कुछ सूझ नहीं पाता, यही परेशानियों का कारण बनता है.बेहतर है कि कुछ पल सब कुछ भूल कर मनन करें कि अत्यावश्यक क्या है.तत् पश्चात ही काम करना शुरु करें. काफी हद तक सफलता मिलेगी.

आज की आपाधापी में सभी जिस महत्वपूर्ण विषय को नजर अंदाज कर रहे हैं उस पर सार्थक और सारगर्भित आलेख .पाठकों के लिये निश्चय ही अति उपयोगी है.

Rajput said...

श्रम और समय लगाया जाय उसका सकारात्मक प्रतिफल कुछ ना हो तो स्वयं को ही छलने का आभास होता है..
सही है समय का सुदुपयोग होना चाहिए न की टाइम-पास ।
हमारे मैंजमेंट मे कुछ जापानी लोग है, कभी मीटिंग मे कोई एक मिनिट भी लेट हो तो डबल्यूपी मीटिंग केंसिल कर देते हैं ।

Dr Varsha Singh said...

सार्थक पोस्ट......

रचना दीक्षित said...

वैसे आधे तो इसी श्रेणी में आते है. बिना बात के व्यस्त. अब इससे अर्थ हो याँ अनर्थ.

kuldeep thakur said...

सुन्दर रचना... पढ़कर मन प्रसन्न हो गया...
शुभकामनायें... कभी आना... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com

Dr. sandhya tiwari said...

सहमत हूँ आपसे .....सार्थक चिन्तन........ आभार!!

उपेन्द्र नाथ said...

jiwan ka moolmantra.... bilkul sahi kaha aapne.

Satish Saxena said...

आभार एक आवश्यक लेख के लिए ...
शुभकामनायें आपको !

महेन्‍द्र वर्मा said...

निरर्थक व्यस्तता निष्फल होती है जबकि सार्थक व्यस्तता सुपरिणाम देती है।
उपयागी आलेख।

हरकीरत ' हीर' said...

बिलकुल सही कहा मोनिका जी ....:))

पी.एस .भाकुनी said...

व्यस्तता ऐसी की सब-कुछ अस्त-व्यस्त हो गया......आवश्यक है की व्यस्तता का परिणाम सार्थक निकले.......
विचारणीय पोस्ट ......आभार.

प्रेम सरोवर said...

सुंदर एवं ज्ञानवर्धक आलेख । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

संतोष पाण्डेय said...

सहमत हूँ. प्रबंधन के बिना जीवन सफ़र नहीं, भटकाव है.

पी.एस .भाकुनी said...


स: परिवार नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार कीजियेगा.

Arvind Mishra said...

आज तो मल्टी टास्किंग का जमाना है जीवन की गुणवत्ता गयी समझिये

लोकेन्द्र सिंह said...

हा हा हा.... हंस इसलिए रहा हूँ इसी विषय पर एक पोस्ट मैंने भी लिखी है.. एक-दो दिन में "फुर्सत" पाकर पोस्ट करता हूँ...

Madan Mohan Saxena said...

बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,,,,,,

G.N.SHAW said...

अस्त व्यस्त जीवन की सकारात्मक रुख ही चाहिए | यह लेख मेरे मन में गहराई से पैठ गया | ऐसा लगा जैसे ...........किन्तु बहुत ही सार्थक लेख मोनिका जी |

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