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08 August 2012

कुचक्रों में फंसती बेटियां और परिवारजनों का दायित्व





फिज़ा और गीतिका के साथ जो कुछ भी हुआ इस विषय में सबकी अपनी-अपनी सोच हो सकती है। किसी के लिए यह आज के दौर की लड़कियों की अति-महत्वाकांक्षी सोच का परिणाम है तो किसी के लिए नेताओं के जीवन से नदारद होते मानवीय मूल्यों का नतीजा।  इस विषय पर अनगिनत दृष्किोण सामने आ चुके हैं। जो हो चुका उस पर काफी बातें हो रही है  । हर बार जब भी ऐसी कोई घटना घटती है दोषारोपण का खेल शुरू हो जाता है | ऐसे में कुछ बातें हम सबके लिए, जो ऐसी घटनाओं पर पूरी तरह से लगाम भले ही ना लगा पायें  पर इनकी संख्या तो ज़रूर कम कर सकती हैं |

मुझे लगता है कि समाज और परिवारों में ऐसी घटनाओं को लेकर कुछ इस तरह से भी सोचा जाना आवश्यक है कि बेटियों को ऐसे कुत्सित षड्यंत्रों में फंसने से पहले ही बचाया जा सके। आज के इस असुरक्षित समाज में बेटियों के लिए परिवारजनों का दायित्व क्या होना चाहिए? इस पर हर घर में विचार किया जाना आवश्यक है माता-पिता या घर के अन्य बड़े  किस तरह बेटियों को सचेत और  सुरक्षित रहने की समझाइश दे सकते हैं  , इस बारे में सोचा जाना चाहिए। यह बात भले ही हम सहजता से स्वीकार ना कर पायें पर सच है कि आज हमारे देश में जो परिस्थितियां हैं उनमें सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर बदलाव लाने में लंबा समय लगेगा। सच कहूँ तो कभी कभी यह असंभव सा भी लगता है। ऐसे में पारिवारिक स्तर पर बच्चों को समझाइश देकर उनमें भला बुरा समझने की सोच पैदा कर जरूर कुछ किया जा सकता है। शायद इसी तरह हर परिवार जागरूक बने तो समाज में कुछ  बदलाव आएँ।

फिज़ा, गीतिका या भंवरी ये सभी महिलाएं जिस तरह इन कुचक्रों में फंसी हैं कुछ बातें सभी मामलों में एक सी हैं। अगर समय रहते परिवारजन इन पर गौर करते  तो शायद इनमें से किसी की भी जान जाने के हालात पैदा नहीं होते। 
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क्षमता और  योग्यता  से अधिक धन दौलत या सुख-सुविधाओं का अर्जन आपकी लाडली अचानक ही कैसे करने लगी? उसकी नौकरी क्या है और उसमें वो कितनी कमाई कर सकती है?  इस विषय  में जानकारी रखना परिवारजनों का दायित्व है क्योंकि ऐसे कुचक्रों में फंसने की शुरूआत यहीं से होती है। 

आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना देना ही काफी नहीं है। अपनी बेटियों भावनात्मक रूप से भी संतुलित सोच और दूरदर्शिता का पाठ पढायें। क्योंकि इन दिनों जो घटनाएं हुईं है वे लड़कियाँ ना केवल पढी-लिखी थीं बल्कि आर्थिक रूप से भी सक्षम भी थीं।  तो फिर वे ऐसे जाल में कैसे जा फंसीं?

अगर आपका परिवार आम परिवार है तो घर की  बेटी का ऊँचे रूतबे वाले लोगों के साथ अत्यधिक मेलजोल यूँ ही तो नहीं हो जायेगा। इस बारे में  भी  सोचा जाना चाहिए।  यह परिवारवालों को भी समझना होगा और बेटी को भी समझाना होगा कि धन-बल के ऐसे पुजारी क्यूँ किसी आम परिवार से जुडऩा चाहेंगें।  

घर की बेटी को इतना विश्वास ज़रूर दिलाएं कि अगर वे ऐसी किसी दुविधा फंस जाये या उसे जानबूझकर फंसाया जाय  तो घर पर, कम से कम अपने माता-पिता को तो जरूर बताएं। पहले ही कदम पर परिवार वाले साथ दें  तो ऐसे दलदल में फंसने से बचा जा सकता है। 

हमारे परिवारों का माहौल कुछ ऐसा होता है कि या तो हम अपनी बेटियों को पूरी तरह से निर्दोष मानते हैं या फिर बिना सोचे समझे और सच्चाई जाने सारा दोष उन्हीं के सिर मंढ देते हैं। इसीलिए लड़कियाँ घर पर भी अपने साथ होने वाले दुर्व्यवहार  की बातें नहीं करतीं । 

ऐसी अनगिनत बातें हैं जिनपर अब हर परिवार में विचार होना ही चाहिए | बेटियां ही नहीं बेटों के लिए भी यही सारी बातें लागू होती हैं | पद , पवार और पैसे के खेल में हमारे घरों के बच्चे दूषित मानसिकता वाले इन लोगों के लिए मोहरा भर बन कर रह जाएँ इससे ज्यादा दुखद क्या हो सकता है ? कम से कम सचेत रहने की सीख  देकर  बच्चों को सुरक्षित रखने जिम्मेदारी उठाने का प्रयास तो हम कर ही सकते हैं | 

73 comments:

virendra sharma said...

ऐसी अनगिनत बातें हैं जिनपर अब हर परिवार में विचार होना ही चाहिए | बेटियां ही नहीं बेटों के लिए भी यही सारी बातें लागू होती हैं | पद , "पवार" और पैसे के खेल में हमारे घरों के बच्चे दूषित मानसिकता वाले इन लोगों के लिए मोहरा भर बन कर रह जाएँ इससे ज्यादा दुखद क्या हो सकता है ? कम से कम सचेत रहने की सीख देकर बच्चों को सुरक्षित रखने जिम्मेदारी उठाने का प्रयास तो हम कर ही सकते हैं | वैसे तो पवार और पावर पर्याय -वाची ही हैं महाराष्ट्र में फिर भी पावर कर लें.ये अति महत्व -कांक्षी युवतियां कोई दूध पीती बच्चियां नहीं हैं इन्हें कोई क्या समझाइश देगा .कौन बतला सकता है स्पीड किल्स ,स्लो विन्स दा रेस .ब्यूटी पेजेंट्स को मोडल्स को आप क्या समझायेंगे ये ग्लेमर कि दुनिया का स्वेच्छिक चयन है .यहाँ फिसलन तो हो ही सकती है जो भी आता है सोच समझ के ही आता है .राजनेता तो खुद परजीवी हैं ये अमर बेल की लतिका सी उसका आश्रय कैसे लें .बहर सूरत समझाइश सभी अपने बच्चों को देतें ही हैं बच्चे भी तो सुने तब न .शुक्रिया आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए .
बृहस्पतिवार, 9 अगस्त 2012
औरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली
औरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली

Smart Indian said...

ऐसी घटनायें बढती जा रही हैं। आपकी चिंता से पूर्ण सहमति है। लेकिन किसी को भी बाहर से समझा पाना शायद उतना आसान न हो।

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कहा ऐपने, संवाद इतना खुला रहे कि कोई बात छिपायी न जाये।

ANULATA RAJ NAIR said...

वाकई परेशान करती हैं ऐसी घटनाएं...और आपसे पूर्णतया सहमत हूँ....माँ-बाप और बच्चों के बीच कम्यूनिकेशन हो तो समस्याएं काफी हद तक कम हो सकती हैं...अपराध अकसर कुंठाओं से ही तो जन्मते हैं...

अनु

vijai Rajbali Mathur said...

अनुकरणीय एवं विचारणीय।

Rajesh Kumari said...

मोनिका जी आपने बहुत अच्छे एक ज्वलंत मुद्दे पर विचार रखे जिन पर मैं सौ प्रतिशत आपकी बातों का समर्थन करती हूँ ------लड़की के लिए ही नहीं अपितु लड़कों के लिए भी माँ बाप का कर्तव्य बनता है की बच्चा किस दिशा में जा रहा है उसे अच्छे बुरे की समझ जरूर देनी चाहिए वक़्त आने पर ही नहीं पहले से ही बच्चों को अच्छी समझ देनी चाहिए -------ये बात आपने सही कही की जब आपकी लाडली अचानक नौकरी में उन्नति पा जाती है उस पर बॉस की विशेष मेहरबानी होती है तो उसके पीछे कोई कारण तो होगा माता पिता को सतर्क रहने की जरूरत है बच्चों को हमेशा विशवास में लेकर चलने की जरूरत ताकि वो सब तरह की बात आपसे कर सके |

Dr.NISHA MAHARANA said...

aapki baton se puri tarah sahmat hoon ....par .......umra ke is daur pe aakar bacche kisi ki bat nahi maanten aur kuchakra men ulajh jaaten hain...parinaam hmesha khatarnaak hoten hain ....maximum mahilaayen padhi likhi aur samajhdar hoti hain ...par lobh vivek ko har leta hai...agar choti umra se hi maayen apne bacchon ko in sari baton ke bare men btaaye to kuch ho sakta hai...

संतोष त्रिवेदी said...

विचारणीय और चिंतित करने वाला विषय है.हमारे अभिभावक और बच्चे भी,जो पढ़-लिख कर 'समझदार' हो जाते हैं,उन्हं वास्तविक धरातल पर आकर सोचना होगा.

मनोज कुमार said...

ये घटनाएं हमें विचलित करती हैं।
आपका लेख सचेत।

Arvind Mishra said...

आश्चर्य होता है कैसे लोग सामान्य विवेक को भी ताक पर रख देते हैं- परिवार का हस्तक्षेप एक उचित और अपरिहार्य कदम है -सहमत हूँ!

जयकृष्ण राय तुषार said...

एक सार्थक सोच के साथ लिखा गंभीर आलेख |

anshumala said...

मोनिका जी मुझे लगता है की गीतिका फिजा और भंवरी तीनो ही केस अलग अलग तरह के है हा तीनो में एक समनाता ये है की तीनो में ही राजनिती से जुड़े लोग है | गीतिका के केस में शारीरिक और मानसिक शोषण का प्रयास है जिससे वो खुद बच कर भाग रही है किन्तु उसे कई तरह से फंसाया जा रहा था अपने जाल में, जबकि फिंजा केस में प्रेम और विवाह दोनों था वो अलग बात है की उसका अंत भी ख़राब हुआ और विवाह के बाद भी धोखा दिया गया जबकि भंवरी का केस वैसा है जिसकी सिखा आप दे रही है किन्तु ये बात उन पर भी लागु नहीं होगी क्योकि वहा तो पति और पत्नी दोनों मिल कर अपने लिए अवसर बना रहे थे सभव है की इसकी शुरुआत भी शोषण से हुआ हो किन्तु बाद में दोनों पक्ष एक दूसरे का प्रयोग कर रहे थे और जब ताकतवर को दूसरा अपने लिए खतरा लगने लगा तो कमजोर का अंत का दिया गया |
गीतिका का परिवार तो उसका साथ दे ही रहा था फिजा का परिवार तो विवाह से खुश था क्योकि ये एक सुखद रास्ता था जबकि भंवरी का परिवार ( पति ) खुद उसके फायदे ले रहा था |

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बचने की कोशिश गीतिका ने तब की है है अन्शुमलाजी जब पानी सर के ऊपर से निकल गया .......... परिवार अब साथ दे रहा है पर उन्होंने तब तक क्यूँ नहीं सोचा जब मात्र बारहवीं पास एक लड़की को किसी कंपनी में डायरेक्टर का पद दे दिया जाता है | फिजा का अंत ख़राब हुआ इसी बाबत तो परवर वालों एक बेटी को समझाना आवश्यक है कि ऊंचे रसूख वाले बिगडैल नेताओं से जो अपने ही परिवार और बच्चों के प्रति वफादार नहीं हैं फिजा को इससे ज्यादा क्या मिल सकता था | ठीक इसी तरह भंवरी ने रास्ता बनाने कि कोशिश इसीलिए की क्योंकि वो भी इस दलदल में कहीं गहरे उतर गयी थी | हाँ यह बात आपकी सही है उसका पति भी अपने फायदे निकल रहा था .... जी हाँ यही मेरा भी कहाँ है की जो कुछ भी हो रहा होता है वो परिवार जनों से छुपा नहीं होता ....या तो वो स्वार्थो हो जाते हैं या फिर लड़की से मुंह फेर लेते हैं

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 10/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@Anshumalaji

बचने की कोशिश गीतिका ने तब की है है अन्शुमलाजी जब पानी सर के ऊपर से निकल गया .......... परिवार अब साथ दे रहा है पर उन्होंने तब तक क्यूँ नहीं सोचा जब मात्र बारहवीं पास एक लड़की को किसी कंपनी में डायरेक्टर का पद दे दिया जाता है | फिजा का अंत ख़राब हुआ इसी बाबत तो परवर वालों एक बेटी को समझाना आवश्यक है कि ऊंचे रसूख वाले बिगडैल नेताओं से जो अपने ही परिवार और बच्चों के प्रति वफादार नहीं हैं फिजा को इससे ज्यादा क्या मिल सकता था | ठीक इसी तरह भंवरी ने रास्ता बनाने कि कोशिश इसीलिए की क्योंकि वो भी इस दलदल में कहीं गहरे उतर गयी थी | हाँ यह बात आपकी सही है उसका पति भी अपने फायदे निकल रहा था .... जी हाँ यही मेरा भी कहाँ है की जो कुछ भी हो रहा होता है वो परिवार जनों से छुपा नहीं होता ....या तो वो स्वार्थो हो जाते हैं या फिर लड़की से मुंह फेर लेते हैं

सदा said...

बिल्‍कुल सही कहा है आपने ... सार्थकता लिए सटीक अभिव्‍यक्ति ...आभार

kshama said...

Aapke khayalat mujhe sahee lagte hain..ye khudpe nirbhar hai ki ham apne jeewan se kya chahte hain. Ek baar kee gayee galatee sudharee bhee ja saktee thee. Pata nahee aisa kaunsa changul tha ki ye aurten itna dhans gayeen...

अजित गुप्ता का कोना said...

इसीलिए लोग परिवार संस्‍था और संयुक्‍त परिवार को समाप्‍त करने पर तुले हैं जिससे सभी युवा परिवार के अनुशासन से परे हो जाएं और उनकी उपलब्‍धता सार्वजनिक हो जाए।

Dr (Miss) Sharad Singh said...

अगर समय रहते परिवारजन इन पर गौर करते तो शायद इनमें से किसी की भी जान जाने के हालात पैदा नहीं होते।


आपने बहुत सही आकलन किया है मोनिका जी....आपसे पूर्णतया सहमत हूं....

रश्मि प्रभा... said...

sahi kaha ...

Anonymous said...

सही कहा है आपने.....पर एक बात गौरतलब है की जब महत्वकांक्षाएं बढ़ने लगती है तब परिवार कहीं बहुत पीछे छूट जाता है.....पैसे और रुतबे का मोह भी कई बार इस दलदल में खींच लेता है ।

Bhawna Kukreti said...

baat sahi likhi hai ...communication ki kami nahin honi chahiye

दिगम्बर नासवा said...

सच है की कुछ हद तक परिवार वाले अगर चाहें तो स्थिति बदल सकती है .. पर कुछ हद तक ही ... खुद को भी चेतना होगा ... परिपक्व होना पड़ेगा ... अपनी महत्वकांक्षा पे अन्कुश लगाना होगा ...

Vinay said...

Very nice article

--- शायद आपको पसंद आये ---
1. Twitter Follower Button के साथ Followers की संख्या दिखाना
2. दिल है हीरे की कनी, जिस्म गुलाबों वाला
3. तख़लीक़-ए-नज़र

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

माता पिता का दाइत्व होता है की बच्चों के प्रति सतर्क रहे, जरूरत है बच्चों को हमेशा विशवास में लेकर चलने की ताकि वो सब तरह की बात आपसे कर सके |
सार्थक लिए सटीक अभिव्‍यक्ति,,,,
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.
RECENT POST...: जिन्दगी,,,,..

कुमार राधारमण said...

अमूमन इन मुद्दों पर विमर्श स्त्री के भोलेपन का यौन-उच्छृंखल लोगों द्वारा शोषण किए जाने तक सिमटा रहता है। नारी-मुक्ति के समर्थक कहेंगे कि माता-पिता अगर बेटियों पर नज़र रखने लगें,तो फिर आज़ादी रही ही कहां! इन्हीं कारणों से हम जब-तब धारावाहिकों और फिल्मों तक की अभिनेत्रियों के सेक्स-रैकेट का खुलासा होते देखते हैं।

अरुन अनन्त said...

बिलकुल सच कहा है आपने, वाकई आज कल ऐसा कुछ देखने को मिलता है

Maheshwari kaneri said...

मोनिका जी आपने एक ज्वलंत मुद्दे पर विचार रखे . मैं आपसे पूर्णतया सहमत हूं....माँ बाप और बच्चों के बीच खुल कर बात चीत होनी चाहिए..

रविकर said...

बहुत अच्छी पोस्ट |
मैंने भी रिएक्ट किया था ऐसे-

(1)
शठ शोषक सुख-शांत से, पर पोषक गमगीन |
आखिर तुझको क्या मिला, स्वयं जिन्दगी छीन |

स्वयं जिन्दगी छीन, खून के आंसू रोते |
देखो घर की सीन, हितैषी धीरज खोते |


दोषी रहे दहाड़, दहाड़े माता मारे |
ले कानूनी आड़, बचें अपराधी सारे ||

(2)
दो दो हरिणी हारती, हरियाणा में दांव |
हरे शिकारी चतुरता, महत्वकांक्षा चाव |

महत्वकांक्षा चाव, प्रेम खुब मात-पिता से |
किन्तु डुबाती नाव, कहूँ मैं दुखवा कासे |

करे फिजा बन व्याह, कब्र रविकर इक खोदो |
दो जलाय दफ़नाय, तड़पती चाहें दो-दो ||

प्रतुल वशिष्ठ said...

ऎसी नसीहत कोई परिवार का बड़ा ही दे सकता है.... बहुत समझपूर्ण बातें.

प्रतुल वशिष्ठ said...

अजित गुप्ता जी अपनी टिप्पणी में ---
परिवार होते हुए भी 'एकाकी' जीवन जीने वालों को
संदेह के घेरे में खींच ले रही हैं...
जो सही है 'अलग रहने का कारण बड़ों की टोकाटाकी से बचना ही तो है.'

प्रतुल वशिष्ठ said...

नेताओं के जीवन से नदारद होते मानवीय मूल्यों का नतीजा।
@ ऐसा नहीं है कि मानवीय मूल्यों का क्षरण कुछ समय से अधिक हो रहा है... भारतीय राजनीति में ऐसा चलन शुरू से है.... मीडिया कुछ मुखर हुआ है इसलिये ये खबरें दब नहीं पातीं.... अन्यथा आजादी के बाद से ही भारत के 'तीसरे नागरिक' ने ये काम बहुतायत में किया. जिसके किस्से मीडिया नहीं सुनाता लेकिन उन तथ्यों को 'कथित दुष्प्रचार' रूप में आज भी समाज जीवित रखे है.

नारायण जी की तो 'ना रायण ना रायण' हो गयी, लेकिन कई लाल गुलाब वाले ऎसी शर्मिंदगी से बचे रह गये...

Ramakant Singh said...

कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं ..उच्च महत्वाकांक्षा इस बीमारी का कारन होना चाहिए

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही अच्छी और सार्थक पोस्ट है...
जन्माष्टमी की शुभकामनाये...
:-)

Dr. sandhya tiwari said...

मोनिका जी....आपसे पूर्णतया सहमत हूं, विचारणीय आलेख |

G.N.SHAW said...

जो भी हो मोनिका जी , पर इतना तो जरुर है जड़ के अनुसार ही फल लगते है | इसमे तने का क्या दोष | जड़ ठीक होने चाहिए |

सतीश पंचम said...

पोस्ट से शब्दश: सहमति है.

Coral said...

सच मे ये घटनाये पढकर बेटियों के लिए मन चिंतित हो उठता है ... पर बहुत सी जिम्मेदारी घर से ही सुरु होती है ..बहुत सुन्दर आलेख !

प्रेम सरोवर said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति! मेरे नए पोस्ट "छाते का सफरनामा" पर आपका हार्दिक अभिनंदन है। धन्यवाद।

kanu..... said...

accha lekh. bhaskar bhoomi me padha. :) aapke aur mere blog ka naam aur yaha tak ki link bhi itni milti julti hai ki kisi ne mere timeline par paste kar diya tha ye....:)

ashish said...

.आपसे पूर्णतया सहमत हूं, विचारणीय आलेख |

nayee dunia said...

बिलकुल सही बात है आपकी और विचारणीय भी

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

कहीं कुछ कमी रह ही जाती है....जो ऐसी घटनाएँ घटती हैं...~सार्थक लेख!
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ...आपको व प्रिय चैतन्य को भी ! :)

Hari Shanker Rarhi said...

bhautikta ki andhi daud mein in baaton par sochne ki fursat kise hai. sabko rutbe aur rupaye ki padi hai, kisi bhi tarah ho, chahe kitna hi short cut kyon na lena pade! Kabhi fanse to doosron par arop lagakar khud ko paak saaf sabit kar lenge!

bkaskar bhumi said...

मोनिका जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'परवाज...शब्दों के पंख' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 10 अगस्त को 'कुचक्रों मे फंसती बेटियां व परिजनों का दायित्व' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

लगता है कि‍ या तो परि‍वारों के मूल्‍य बदल रहे हैं या परि‍वारों को अपना दायि‍त्‍व नि‍भना नहीं है

वीरेंद्र सिंह said...

जी... बिल्कुल सही बात है। मधुमिता शुक्ला को भी एक नेता के चक्कर में अपनी जान गवानी पड़ी थी।
रोहित शेखर का मामला भी इसी तरह का है। ये बात अलग है कि रोहित शेखर की मां ने मरने के बजाय संघर्ष किया और कम से कम अपने बेटे को उसका हक दिलाया।

virendra sharma said...

बच्चे खुद भी आजकल गोपन में रहना पसंद करतें हैं ,सुनते किसकी हैं ,उनका बहुत कुछ वैयक्तिक हो गया है अब .लडकियां कहतीं हैं ये शरीर मेरा है मैं जैसे इसका इस्तेमाल करूँ ,किसी को आप क्या समझाइएगा अलबत्ता घर का माहौल ठीक रखिये बस .काइरो -प्रेक्टिक श्रृंखला ज़ारी रहेगी अगला आलेख होगा -Shoulder ,Arm Hand Problems -The Chiropractic Approach.शुक्रिया .

ram ram bhai
शुक्रवार, 10 अगस्त 2012
काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा में है ब्लड प्रेशर का समाधान
काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा में है ब्लड प्रेशर का समाधान
ram ram bhai

Saras said...

मैं समझती हूँ की अगर माता पिता और बच्चों के बीच communication gap न रहे और माँ बाप बच्चों को इतना अभय दान और विश्वास दें की वे उनके मित्र हैं..और बच्चे उनमें confide कर सकते है..तो इन समस्याओं का समाधान समय रहते ही हो सकता है ....लेकिन सबसे पहले ज़रूरी है एक दूसरे पर विश्वास ....!!!

Rakesh Kumar said...

बहुत सही कहा है आपने मोनिका जी.
हमें बेटी हों या बेटा उनसे अच्छा
communicationबनाये रखना चाहिये.

श्रीमद्भगवद्गीता के 'विषाद योग'
के सूत्रों को समझने की परम आवश्यकता है.

श्रीकृष्णजन्माष्टमी की बधाई और शुभकामनाएँ.

समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बार अपने स्वार्थ के कारण भी बेटियों को दांव पर लगा दिया जाता है .... वैसे तो हर माता - पिता बेटी का खयाल अपने हिसाब से रखने का प्रयास करते हैं , लेकिन बहुत बार आज कल बच्चे ही सब व्यक्तिगत बात कह कर कुछ बताना पसंद नहीं करते और माता पिता को कुछ भान ही नहीं हो पाता । पता जब चलता है जब कोई दुर्घटना घट जाती है .... वैसे अचानक से मिले प्रमोशन या ज्यादा मिले वेतन पर ज़रूर ध्यान देना चाहिए कि यह सब किस कारण से मिल रहा है ॥

सार्थक लेख

Vaanbhatt said...

अत्यधिक लालसा...और योग्यता से अधिक ख्वाहिशें...इंसान को ऐसी जगह ला खड़ा करतीं हैं...जहाँ से लौटना मुश्किल होता है...शैलेन्द्र जी के गीत के कुछ बोल याद आ रहे हैं...

सहज है सीधी राह पे चलना...
देख के उलझन बच के निकलना...
चाहे ये कोई माने ना माने ...
बहुत है मुश्किल गिर के सम्हलना..

Anonymous said...

Yeh wastav main ek bahut gambhir mudda hai. Samaj ko ek nayee rah chahiye.

Unknown said...

अति महत्वाकांक्षा और उसकी पूर्ति के लिए राजनेताओं का आश्रय ....इसकी परिणिति है शाथ ही समाज के खोखले स्वरुप को भी उजागर करती हैं ये घटनाएँ ..........

Asha Joglekar said...

आपसे सहमत परिवार खास कर माँ और पिता को बेटी को िस असुरक्षित माहौल में अपनी सुरक्षा करना सिखाना होगा ।
मुझे याद आती है अपनी माँ की सीख कि
अपने पिता और अपना सगाभाई छोड कर किसी भी अन्य पुरुष के साथ अकेले कमरे में लिफ्ट में जाना नही चाहे वह रिश्तेदार ही क्यूं न हो ।

Asha Joglekar said...

आपसे सहमत परिवार खास कर माँ और पिता को बेटी को इस असुरक्षित माहौल में अपनी सुरक्षा करना सिखाना होगा ।
मुझे याद आती है अपनी माँ की सीख कि
अपने पिता और अपना सगाभाई छोड कर किसी भी अन्य पुरुष के साथ अकेले कमरे में लिफ्ट में जाना नही चाहे वह रिश्तेदार ही क्यूं न हो ।

virendra sharma said...

द्रुत टिपण्णी के लिए आपका शुक्रिया .अगला आलेख Fibromyalgia-The Chiropractic Approach.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

पता नहीं क्‍यों विकृत होती जा रही है सारे जमाने की सोच।
............
महान गणितज्ञ रामानुजन!
चालू है सुपरबग और एंटिबायोटिक्‍स का खेल।

Arshia Ali said...

बेहद शर्मनाक है ये सब।

............
कितनी बदल रही है हिन्‍दी !

palash said...

वाकई चिंता जनक विषय है....

Kshubham mobile said...

aourato ki durdasha to sadio se chali aa rahi hai, par aadhunik yug ki aourate jane - anjaane apne aaspaas hi in durdasha ko janm dete hai,our khud bhi jimmedar hote hai.

khotej.blogspot.com

आशा बिष्ट said...

पूर्णतया सहमत

Shikha Kaushik said...

poori tarah sahmat hun aapse .sarthak aalekh .aabhar .

JOIN THIS-WORLD WOMEN BLOGGERS ASSOCIATION [REAL EMPOWERMENT OF WOMAN

वाणी गीत said...

महत्वाकांक्षी होने की राह में बच्चे परिवार की बात नहीं सुनते , तो कहीं आने वाला पैसा और रुतबा अभिभावकों की आँख पर पट्टी बाँध देता है !
यह चिंता हम सभी अभिभावकों की है कि मृगतृष्णा कि दौड़ में फंसे से अपने बच्चों को बचा सके !

महेन्‍द्र वर्मा said...

ज्वलंत समस्या है यह।
आपके सुझावों पर हर माता-पिता को चिंतन करना होगा।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सुन्दर आलेख के लिए बधाई...

Sawai Singh Rajpurohit said...

आपके आलेख में कही हुई बात से मै पूर्णतया सहमत हूँ विचारणीय विषय...

virendra sharma said...

मुबारक यौमे आज़ादी का दिन अगस्त १५.

virendra sharma said...

मुबारक यौमे आज़ादी का दिन अगस्त १५.

मदन शर्मा said...

सर्वप्रथम कई महीनो बाद नेट पर आने के लिए क्षमा चाहता हूँ ..कार्यों में अधिक व्यस्त होने के कारण मै समय नहीं दे पा रहा हूँ .....बहुत सही लिखा है आपने ......बच्चों कि इस स्थिति के लिए माँ बाप कम जिम्मेद्वार नहीं हैं ...ऐसी स्थिति का मुझे यही कारण लगता है कि हम बच्चों को शिक्षा तो देते है किन्तु उचित संस्कार नहीं देते..हम कार्यों में इतने व्यस्त होते हैं कि बच्चों कि ओर ध्यान नहीं देते .....

Dr Varsha Singh said...

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..

अज़ीज़ जौनपुरी said...

vastav me hamare parivar ka tana -bana hchapta -hi kuch esa buna gya hai ki hm ek anavashyak roop me adhyaropit"scial web of mysticism"ke bhitar" ulajh kar rah gye hai.parivar agr chahe to esi tamam samasyao se kafi had tak nijat mil sakti hai," koshishe gar jari rahe halat badle ge jarur,ek kiran ummid ki rang layegi jarur......" ek gambhir vishay par vehad gambhir chintan"

Pallavi saxena said...

सच कहा आपने हमारे समाज की एक कड़वी सच्चाई यही है, कि माता-पिता खुद अपनी बेटियों पर इतना विश्वास नहीं कर पाते की उनकी बात को गंभीरता से लेकर उसका कोई हल निकाल सकें। नतीजा उल्टा लड़कियों पर ही दोषारोपण कर पाबन्दियाँ लगा दी जाती है। जो किसी भी तरीके से ठीक नहीं, जबकि होना यह चाहिए की सवाद इतना खुआ रहे की कोई बात छुपाने की कभी नौबत ही न आए।

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