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27 July 2012

एक नन्हा जंगली फूल

नन्हा फूल जो चुन लाया चैतन्य 


बच्चों के मन की संवेदनशीलता और सोच को आँक पाना हम बड़ों के लिए असंभव ही है ।  आमतौर पर बड़े  बच्चों के विषय में सोचते रहते हैं कि  उनके लिए क्या लायें....? उन्हें क्या दिलवाएं...? ये बात और है कि ये  नन्हें- मुन्हें जो करना चाहते हैं उसके लिए शायद हमारे  जितना सोचते नहीं पर हम भी हरदम उनके मन में तो ज़रूर बसते हैं । 

चैतन्य आज एक नन्हा सा जंगली फूल ले आया । उसे लगता है कि उसकी पसंदीदा एक प्यारी सी कार्टून करेक्टर की तरह माँ भी अपने बालों में फूल लगाये । उसको यह सूझा मुझे इस बात ने चौंकाया तो ज़रूर पर ख़ुशी भी बहुत मिली । आज दो क्षणिकाएँ मेरे आँगन के नन्हे फूल की इस सूझबूझ पर :)


एक नन्हा जंगली फूल 
बन गया विशेष 
पाकर उसके हाथों का स्पर्श 
और मेरे हृदय ने मानो
छू लिया अर्श 


चुन लाया वो नन्हा सा उपहार 
मन में लिए कई  विचार 
मानो पूछ रहा हो , माँ 
तुम सजती क्यूँ नहीं ?
बस , मुझे ही संवारती हो हरदम 

73 comments:

Anupama Tripathi said...

बहुत सुंदर ...बच्चों का बचपन याद आ गया .....इसे पढ़ कर ...
आपके भाव भी बहुत सुंदर ....!!
शुभकामनायें....

Suman said...

एक नन्हा जंगली फूल
बन गया विशेष
पाकर उसके हाथों का स्पर्श
और मेरे हृदय ने मानो
छू लिया अर्श
sundar post ....

virendra sharma said...

एक नन्हा जंगली फूल
बन गया विशेष
पाकर उसके हाथों का स्पर्श
और मेरे हृदय ने मानो
छू लिया अर्श


चुन लाया वो नन्हा सा उपहार
मन में लिए कई विचार
मानो पूछ रहा हो , माँ
तुम सजती क्यूँ नहीं ?
बस , मुझे ही संवारती हो हरदम
माँ की ममता और शिशु के माँ के प्रति सम्मोहन से संसिक्त बेहद बेश कीमती रचना .कृपया यहाँ भी पधारें -

कविता :पूडल ही पूडल
कविता :पूडल ही पूडल
डॉ .वागीश मेहता ,१२ १८ ,शब्दालोक ,गुडगाँव -१२२ ००१

जिधर देखिएगा ,है पूडल ही पूडल ,
इधर भी है पूडल ,उधर भी है पूडल .

(१)नहीं खेल आसाँ ,बनाया कंप्यूटर ,

यह सी .डी .में देखो ,नहीं कोई कमतर

फिर चाहे हो देसी ,या परदेसी पूडल

यह सोनी का पूडल ,वह गूगल का डूडल .

Arvind Mishra said...

माँ बेटे के सहज निश्छल प्रेम की उभयपक्षी कोमलतम अभिव्यक्ति!
हम भी तरंगित हुए -शाश्वत बने यह नेह !

vijai Rajbali Mathur said...

यह तो 'चैतन्य'की आपके प्रति श्रद्धा है जो अच्छी बात है।

ANULATA RAJ NAIR said...

कोमल सी अभिव्यक्ति.....
आप उस फूल को बालों में ज़रूर खोंसे.....यकीनन मिस इंडिया लगेंगी..
अगर नहीं, तो चैतन्य की नज़र से देखिएगा...
:-)
ढेर सारा स्नेह..माँ बेटे को.

अनु

समय चक्र said...

चुन लाया वो नन्हा सा उपहार
मन में लिए कई विचार
मानो पूछ रहा हो, माँ
तुम सजती क्यूँ नहीं ?
बस,मुझे ही संवारती हो हरदम


सुन्दर भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति ...

Maheshwari kaneri said...

सच है बच्चों की मन की बात और उनकी अपनो के प्रति निश्छल भावनाएं हम बड़ो की बस की बात नही......बहुत सुन्दर मोनिका जी..

अरुण चन्द्र रॉय said...

मर्मस्पर्शी

Minoo Bhagia said...

god bless him

सदा said...

अनुपम स्‍नेह लिए मनभावन प्रस्‍तुति ...

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बहुत ही प्यारी दिल को छू लेने वाली कविताएं...
सचमुच आयु बढ़ने के साथ बहुत कुछ छूटता जाता है जिसमें प्रकृति की सुन्दरता से दूरी भी शामिल है.

mark rai said...

चुन लाया वो नन्हा सा उपहार
मन में लिए कई विचार
मानो पूछ रहा हो, माँ
तुम सजती क्यूँ नहीं ?
बस,मुझे ही संवारती हो हरदम ...

बच्चों का मन बड़ा ही भावुक होता है ...बड़े होने पर वो भावुकता गायब हो जाती है....

मेरा मन पंछी सा said...

प्यारे से बेटे का प्यारा सा तोहफा
इस पीले फुल और चैतन्य के भाव पर आपने
जो क्षणिकाएँ बनायीं है वह बहुत ही प्यारी...
और मनभावन है...
आप दोनों को शुभकामनाए:-)

रश्मि प्रभा... said...

एक नन्हा जंगली फूल
बन गया विशेष
पाकर उसके हाथों का स्पर्श
और मेरे हृदय ने मानो
छू लिया अर्श ... नन्हें हाथों का स्पर्श माँ को क्या से क्या बना देता है

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

नन्हा सा जंगली फूल .... अनमोल तोहफा .... और आपकी संवेदनशीलता ने बेहतरीन भावों का प्रस्फुटन किया ... दोनों क्षणिकाएं मन के कोमल भावों को उजागर करती हुई ....

Shikha Kaushik said...

ममता v वात्सल्यपूर्ण ह्रदय में उठे भावों को बहुत सहज रूप में प्रस्तुत किया है आपने .चैतन्य को ढेर सारा प्यार .

नीरज गोस्वामी said...

मोनिका जी , आपके ब्लॉग पर देरी से आने के लिए पहले तो क्षमा चाहता हूँ. कुछ ऐसी व्यस्तताएं रहीं के मुझे ब्लॉग जगत से दूर रहना पड़ा...अब इस हर्जाने की भरपाई आपकी सभी पुरानी रचनाएँ पढ़ कर करूँगा....कमेन्ट भले सब पर न कर पाऊं लेकिन पढूंगा जरूर

एक नन्हा जंगली फूल
बन गया विशेष
पाकर उसके हाथों का स्पर्श
और मेरे हृदय ने मानो
छू लिया अर्श

वाह...वात्सल्य भाव में लिपटी सुन्दर रचना...

नीरज

मनीष said...

फूल भी 'जंगली' होते है, ये पहली बार सुना है...

Amrita Tanmay said...

बहुत ही प्यारी अभिव्यक्ति ...

Rajput said...

पाकर उसके हाथों का स्पर्श
और मेरे हृदय ने मानो
छू लिया अर्श....

बहुत सुन्दर मोनिका जी

rashmi ravija said...

woww...चैतन्य के प्यारे से उपहार पर बड़ी प्यारी कविता..

Anonymous said...

बहुत ही खुबसूरत कविता और फूल दोनों ही.....चैतन्य को ढेर सारा प्यार :-)

शिवनाथ कुमार said...

चुन लाया वो नन्हा सा उपहार
मन में लिए कई विचार
मानो पूछ रहा हो , माँ
तुम सजती क्यूँ नहीं ?
बस , मुझे ही संवारती हो हरदम

सच में अनमोल उपहार ...

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

jahan nilschalta hai..bahan sab kuch hai..bacchon ke tohfe se kahin badi hai unki bhavna..shayad isiliye jangli phool bhee aapke liye itna anmol ho gaya ..man ko choone wali bachpan kee yaad dilane wali ek shasakt rachna..sadar badhayee ke sath

Shalini kaushik said...

chaitnya ke uphar ka hamesha samman kijiye aakhir vah hai bhi to bahut samjhdar.bahut sundar prastuti.

Shalini kaushik said...

nice presentation.pranav desh ke 14 ven rashtrpati:kripya sahi aakalan karen
mohpash ko chhod sahi rah apnayen

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 29/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

virendra sharma said...

बाल मन के मानसिक कुहासे को आपने कोमल शब्दों में ढाला है ,हाँ बच्चे सब कुछ निहारतें हैं देख के खुश होतें हैं हमारा करीने के पैरहन अकसर एप्रिशिएट भी करतें हैं कहते हुए मम्मी बहुत अच्छी लग रही हो दादू लुकिंग गुड नानू लुकिंग स्मार्ट एंड ब्यूटीफुल .बढ़िया रचना चड्डी पहन के फूल खिला है याद आया ...

अशोक सलूजा said...

एक कोमल मन का ,कोमल मन को ...कोमल तोहफा ....
शुभकामनयें और आशीर्वाद !

अशोक सलूजा said...

एक कोमल मन का ,कोमल मन को ...कोमल तोहफा ....
शुभकामनयें और आशीर्वाद !

Satish Saxena said...

बधाई आपको ...

Ramakant Singh said...

आपने इस पोस्ट द्वारा ईदगाह कहानी कि याद दिला दी

amit kumar srivastava said...

नाम सार्थक कर दिया चैतन्य ने |

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

एक नन्हा जंगली फूल
बन गया विशेष
पाकर उसके हाथों का स्पर्श
और मेरे हृदय ने मानो
छू लिया अर्श,,,,

वात्सल्य प्रेम का अनमोल उपहार ..

RECENT POST,,,इन्तजार,,,

प्रवीण पाण्डेय said...

बच्चा तो जो छू दे वह घरेलू हो जाता है।

kshama said...

Badee hee pyaree rachana!

संध्या शर्मा said...

दुनिया का सबसे अनमोल उपहार पा लिया आपने... वात्सल्य से भरी सुन्दर रचना

हरकीरत ' हीर' said...

मोनिका जी चैतन्य के साथ उसी फूल को दिखलाती तो हम मान भी लेते ....:))

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

खुबसूरत एहसास...
सादर.

महेन्‍द्र वर्मा said...

बच्चों की सोच नितांत मौलिक और निष्कलुष होती है।
महत्व की बात यह है कि आपने चैतन्य की सोच को सही अर्थों में समझा।

रचना दीक्षित said...

तुम सजती क्यूँ नहीं ?
बस, मुझे ही संवारती हो हरदम.

सुंदर भावनाएँ.

nayee dunia said...

bahut badhiya man ki bhavna....

डॉ. जेन्नी शबनम said...

जंगली फूल नन्हे हाथों में पहुँच खूबसूरत तोहफा बन जाता है. आपकी रचना मन को छू गई. बेटे को बहुत आशीष!

Suresh kumar said...

Bacche man ke sacche...

Asha Joglekar said...

चैतन्य की संवेदनशीलता मन को छू गई । माँ जो हर दम देती ही रहती है उसके लिये कुछ करने की बच्चे की ललक सराहनीय है ।

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत बढिया,
लग रहा है जैसे सब कल की बात है

Kunwar Kusumesh said...

सहज निश्छल अभिव्यक्ति.

स्वयम्बरा said...

बहुत-बहुत सुंदर ...
शुभकामनायें!!

जयकृष्ण राय तुषार said...

सुन्दर और सराहनीय पोस्ट |

lori said...

खूबसूरत !
आप भी बहुत ही प्यारा क्षण पकड़ लेती हैं.
मुझे महादेवी वर्मा की एक कविता "बचपन"
की याद हो आयी, जिसमे माँ मिट्टी खाकर आयी नन्ही को डांटती है
तो मिट्टी के स्वाद को सर्वश्रेष्ठ जानते हुए बच्ची मिट्टी सने हाथ माँ की तरफ बढ़ाते हुए कहती है:
" मित्ती का कल आयी हूँ
लो तुम बी थोली काओ माँ! "
वैसे, मुबारकबाद!
नन्हे की फूल देने की शुरुआत हो गयी है
भले ही अम्मीजान से हो!!! ;)

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

बहुत सुंदर!:-)
५/६ साल पहले मेरा बेटा भी कुछ ऐसी ही बातें करता था! किसी भी दुकान में सुंदर सी कोई Dress देखकर ज़िद करता था...माँ तुम ये वाली ले लो! मैनें पसंद की है...
~ बचपन कितना मासूम होता है... :))

Sniel Shekhar said...

:) sweet lines.. Loved the feel.

virendra sharma said...

बच्चे बहुत अच्छे प्रेक्षक होतें हैं सब देखते और विश्लेषण करतें ,कौन उन्हें कितनी तवज्जो देता है ,किसकी घर में क्या औकात है सब कुछ से वाकिफ रहतें हैं .कुछ बच्चे कुछ न कहें यह और बात है लेकिन वस्तु स्थिति का जायज़ा उनका ठीक होता है दो टूक भी .
ताज़ा प्रसंग मेरे फिलवक्त के कैंटन (अमरीका )प्रवास से जुड़ा हुआ है .इत्तेफाकन इस बार मेरे प्रवास के दौरान पहली बार अमरीका मेरे समधी साहब भी अपने बेटे के घर आये यहाँ कैंटन .अभी कल ही लौटें हैं ठीक चार सप्ताह बिताने के बाद लौट गए .मेरी उम्र ६५ और उनकी ६० वर्ष है .मेरी बेटी दामाद जब भी काम पर निकलते दोनों बच्चों (एक बेटा सात +और दूसरा ५+की देखभाल मैं ही करता उनको खाने पीने की चीज़ें वक्त पर देता समधी साहब को उनका मनमाफिक ब्रेकफास्ट तैयार करके देता कभी ओट्स मील कभी ओम्लेट आदि .एक दिन बड़ा बेटा अकस्मात बोला -दादू ,नानू आपसे पांच साल बड़े हैं लेकिन सारा काम वह करतें हैं आप बैठे बैठे सारा दिन टी वी देखतें हैं .दिस इज नाट फेयर .
जहां तक वेशभूषा का सवाल है वह तो बच्चे खासतौर पर नोटिस में लेते हैं .किसको किस चीज़ की ज्यादा जानकारी है यह भी बाखूबी समझते हैं .मम्मी को कौन सी चीज़ ज्यादा फब्ती है यह तो उन्हें बहुत सही पता है .
आज अचनाक बड़ा वाला बोला मम्मी नानू को आपसे ज्यादा हिंदी आती है .

virendra sharma said...

बच्चे बहुत अच्छे प्रेक्षक होतें हैं सब देखते और विश्लेषण करतें ,कौन उन्हें कितनी तवज्जो देता है ,किसकी घर में क्या औकात है सब कुछ से वाकिफ रहतें हैं .कुछ बच्चे कुछ न कहें यह और बात है लेकिन वस्तु स्थिति का जायज़ा उनका ठीक होता है दो टूक भी .
ताज़ा प्रसंग मेरे फिलवक्त के कैंटन (अमरीका )प्रवास से जुड़ा हुआ है .इत्तेफाकन इस बार मेरे प्रवास के दौरान पहली बार अमरीका मेरे समधी साहब भी अपने बेटे के घर आये यहाँ कैंटन .अभी कल ही लौटें हैं ठीक चार सप्ताह बिताने के बाद लौट गए .मेरी उम्र ६५ और उनकी ६० वर्ष है .मेरी बेटी दामाद जब भी काम पर निकलते दोनों बच्चों (एक बेटा सात +और दूसरा ५+की देखभाल मैं ही करता उनको खाने पीने की चीज़ें वक्त पर देता समधी साहब को उनका मनमाफिक ब्रेकफास्ट तैयार करके देता कभी ओट्स मील कभी ओम्लेट आदि .एक दिन बड़ा बेटा अकस्मात बोला -दादू ,नानू आपसे पांच साल बड़े हैं लेकिन सारा काम वह करतें हैं आप बैठे बैठे सारा दिन टी वी देखतें हैं .दिस इज नाट फेयर .
जहां तक वेशभूषा का सवाल है वह तो बच्चे खासतौर पर नोटिस में लेते हैं .किसको किस चीज़ की ज्यादा जानकारी है यह भी बाखूबी समझते हैं .मम्मी को कौन सी चीज़ ज्यादा फब्ती है यह तो उन्हें बहुत सही पता है .
आज अचनाक बड़ा वाला बोला मम्मी नानू को आपसे ज्यादा हिंदी आती है .
कृपया यहाँ भी पधारें -
सोमवार, 30 जुलाई 2012
काईराप्रेक्टिक संक्षिप्त इतिहास और वर्तमान स्वरूप
काईराप्रेक्टिक संक्षिप्त इतिहास और वर्तमान स्वरूप

Arvind kumar said...

bahut badhiya....

G.N.SHAW said...

यही तो निर्मल प्रेम है | जिसकी गहराई मंपना मुश्किल है
http://gorakhnathbalaji.blogspot.com/2012/08/blog-post.html

Unknown said...

your poem reminded me of some rhymes written by my favourite author, Ruskin Bond.
very nice sentiments and emotions..
Liked it very much..

Unknown said...

your poem reminded me of some rhymes written by my favourite author, Ruskin Bond, who is a nature loving author.
very nice sentiments and emotions..
Liked it very much..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वात्सल्य प्रेम का अनमोल उपहार ..

रक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

उपहार से भी कीमती निहित भावनायें होती हैं. यही साधारण को असाधारण बना देती हैं.सुंदर क्षणिकायें.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

उपहार से भी कीमती निहित भावनायें होती हैं. यही साधारण को असाधारण बना देती हैं.सुंदर क्षणिकायें.

Mahi S said...

Very Beautiful...

virendra sharma said...

वैसे भी यह जुड़ाव जैविक भी है आत्मिक भी आखिर बच्चा माँ की गर्भ नाल से नौ मॉस तक जुदा पोषण पल्लवन प्राप्त करता .जन्मोत्तर स्तन पान ही उसका प्राथमिक आहार होता है .माँ सजती संवरती है तो वह खुश होता है उसका बस चले तो वह भी मेक अप मेन बन जाए वह भी माँ को सजाये संवारे .बच्चे का यह फूल लाना माँ को देना इसी कोमल भावना का प्रतीक है .

दिगम्बर नासवा said...

कभी कभी बच्चे अचानक ऐसा कर देते हैं की सोचने की दिशा बदल देते हैं ...
नके एक भाव को शब्दों में उतारा है आपने बाखूबी ...

रुनझुन said...

आंटी चैतन्य का ब्लॉग पढते-पढते यहाँ पहुँच गई... सचमुच बहुत ही प्यारा सा गिफ़्ट था चैतन्य का और आपकी ये प्यारी सी कविता भी उतना ही प्यारा गिफ़्ट है चैतन्य के लिए...

Anonymous said...

Beautiful :)

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

.


मोनिका जी ,
बहुत मासूम-सी हैं आपकी दोनों क्षणिकाएं …
बहुत सुंदर !

सृजन के पुष्प खिलने के लिए कहां से बीज , कहां से हवा-पानी की व्यवस्था होगी … यह तय नहीं होता …

चैतन्य को बहुत बहुत आशीर्वाद के साथ सुंदर क्षणिकाओं के लिए मम्मी का प्रेरणा-स्रोत बनने के लिए धन्यवाद भी कहें … :)

आपकी सुंदर बगिया सदैव फलती-फूलती-मुस्कुराती रहे …हृदय से शुभकामनाएं !

Kshubham mobile said...

kukurmutta hamare goun ka jangali pusp hai,pani na hone par isi se kaam chalate hai.
khotej.blogspot.com

कुमार राधारमण said...

मां को बच्चा
बच्चे को मां
दें प्यार फिर
कुछ चाहिए कहां!

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

मानो पूछ रहा हो , माँ
तुम सजती क्यूँ नहीं ?
बस , मुझे ही संवारती हो हरदम

प्यारे भाव और खूबसूरत अहसास ये माँ बेटे का प्यार सदा सदा के लिए जगमगाता रहे ..माँ को बच्चे के आगे अपनी फ़िक्र कहाँ ....जय श्री राधे
भ्रमर ५

virendra sharma said...

शुक्रिया !आपकी टिपण्णी के लिए काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली पर एक पूरी श्रृंखला दी जा रही है कृपया पधारें -
http://veerubhai1947.blogspot.com/
बृहस्पतिवार, 9 अगस्त 2012
औरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली
औरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली

Pallavi saxena said...

इसे अच्छा और प्यार तोहफा एक माँ के लिए ओर कोई हो ही नहीं सकता संभाल कर रखिएगा उस फूल को जब वो बड़ा हो जाये तब दिखाइएगा उसे,उस वक्त उस अनमोल क्षण का महत्व ही कुछ और होगा... :)

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