वो घर की रीढ है। सबके दुख-सुख की भागीदार । उसका जीवन भले ही एक परीधि में सिमटा हो, वो पूरा संसार संभालती है। वो ही है जो माँ, पत्नी या बहू, बेटी हर रूप में वो घर-परिवार के सदस्यों के जीवन की रफ्तार को कायम रखने वाली ऊर्जा बनती है ।
श्रमिक दिवस पर संगठित हो या असंगठित सभी वर्गों के श्रमिक अपनी मांगें पूरी करने को आवाज उठाते हैं। इस दिन काम के मोल की बात की जाती है। मोल यानि की किसी भी काम एवज में मिलाने वाला मेहनताना। ऐसे में आज के दिन बात उन महिलाओं की जो लक्ष्मी कमाने घर के बाहर भले ही न जाती हों, महीने के आखिर में निश्चित तनख्वाह नहीं लाती हों पर समाज और परिवार में उनका योगदान किसी भी रूप में कम नहीं आँका जा सकता। गृहिणियां परिवार की उस पृष्ठभूमि की तरह हैं जो खुद भले ही पीछे छुप जाती हैं पर इनके बिना घर के किसी भी सदस्य की तस्वीर साफ तौर पर उभर कर सामने नहीं आ सकती।
चाहे गाँव हो या शहर सबसे पहले बिस्तर छोड़ने और सबसे बाद अपने आराम की सोचने वाली घरेलू महिलाएं पति, बच्चों और घर के अन्य सदस्यों की देखभाल में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि स्वयं को हमेशा दोयम दर्जे पर ही रखती हैं। सबका स्वास्थ्य संभाल लेती हैं पर स्वयं की सेहत को लेकर गंभीर नहीं हो पातीं । गृहिणियां सिर्फ देना ही जानती हैं । उनकी कोई मांग होती भी है तो परिवार के बड़ों या बच्चों की ख़ुशी से ही जुड़ी होती है । उनकी अपेक्षा तो बस इतनी ही होती है कि उन्हें भी सभी से वो स्नेह और सम्मान मिले जिसकी वे अधिकारी हैं ।
गृहिणियां ही होती हैं जिनके लिए न काम के घंटे निश्चित होते हैं और न ही पारिश्रमिक । वे हफ्ते के सातों दिन काम करके भी सुनती हैं कि दिन भर घर में करती क्या हो ? पर कभी उनके समर्पण में कोई कमी नहीं आती । वे सब शिरोधार्य करती हैं बड़ों की आज्ञा हो या बच्चों की मनुहार ।
अक्सर सोचती हूं कि क्या एक बच्चे को दिनरात एक कर बड़ा करने का मोल चुकाया जा सकता है या फिर तय की जा सकती है उस महिला के काम की कीमत जब कोई महिला अपने साज-श्रृंगार से अधिक समय उस मकान को संवारने में लगाती है ,जो उसके बिना घर नहीं कहा जा सकता।
कौन आँक सकता है कीमत उस भागदौड़ की जिसमें सामाजिक दायित्वों का निर्वहन सबसे ऊपर है ? उन गृहिणियों के हिस्से आने वाली जिम्मेदारी का मूल्य तय करना कैसे संभव है जो एक परिवार को बांध कर रखने , उसका मान ऊंचा रखने के लिए खुद न जाने कितनी बार झुकती हैं , भीतर से टूटती-बिखरती हैं ।
कौन आँक सकता है कीमत उस भागदौड़ की जिसमें सामाजिक दायित्वों का निर्वहन सबसे ऊपर है ? उन गृहिणियों के हिस्से आने वाली जिम्मेदारी का मूल्य तय करना कैसे संभव है जो एक परिवार को बांध कर रखने , उसका मान ऊंचा रखने के लिए खुद न जाने कितनी बार झुकती हैं , भीतर से टूटती-बिखरती हैं ।
हमारी अर्थव्यस्था में गृहिणियों के काम की आर्थिक भागीदारी को नहीं आँका गया है । शायद इसीलिए उनके काम का मान भी नहीं होता । परिवार और समाज के लिए यह बात कभी विचारणीय रही ही नहीं कि उसकी भागीदारी के बिना घर के अन्य लोगों के जीवन की गति भी थम जाएगी । हालाँकि अनगिनत शोध यह साबित कर चुके हैं कि घर की धुरी बनकर रहने वाली घरेलू महिलाओं के काम की आर्थिक वैल्यू भी कुछ कम नहीं है । पर सच तो यह है कि उनकी भागीदारी को सिर्फ आर्थिक रूप में आँका भी नहीं जा सकता जा सकता ।
तभी तो गृहिणियां अपने काम के बदले पारिश्रमिक मांगती ही कब हैं ? क्योंकि इस देश की हर गृहिणी यह जानती है कि उसके काम की कीमत लगाना किसी के बूते की बात नहीं । वो जो कुछ भी अपने परिवार और समाज के लिए करती है वो अनमोल है ।
तभी तो गृहिणियां अपने काम के बदले पारिश्रमिक मांगती ही कब हैं ? क्योंकि इस देश की हर गृहिणी यह जानती है कि उसके काम की कीमत लगाना किसी के बूते की बात नहीं । वो जो कुछ भी अपने परिवार और समाज के लिए करती है वो अनमोल है ।
72 comments:
एक अहम और संवेदनशील मुद्दा -मुझे तो लगता है गृहणी का अपने परिवार और प्रकारांतर से समाज के प्रति यह त्याग /योगदान इतना बड़ा है कि इसकी भरपाई किसी भी तरह से नहीं हो सकती ...
सही कहा है आपने, हम इस पहलू की ओर ध्यान नहीं देते.
वाकई गृहणियों का काम अनमोल है
जी हाँ , वो अनमोल है.
सार्थक प्रस्तुति.
आभार.
इसमें संदेह ही नहीं.
आखिरी लाइन पढ़ने के बाद कुछ कहने को रह ही नहीं जाता।
बेहतरीन आलेख।
सादर
गृहिणी के कार्य तो अनमोल है जो परिवार नामक संस्था के प्रति संपन्न होते है . सुन्दर विवेचन .
घर संभाले और बाँधे रखने का कार्य श्रमिक दिवस में नहीं धन्यवाद ज्ञापन दिवस में याद किया जाना चाहिये।
जीवन में जब कुछ देने का भाव आने लगे,समझिए, आप प्रेम में हैं। इन्हीं अर्थों में गृहिणी "प्रेम" है। सामान्य पुरुष न तो उससे तुलना किए जाने योग्य है,न ही वह गृहिणी के मूल्यांकन का पात्र है।
बिल्कुल! अन्य बातों के साथ आत्म-गौरव और स्वास्थ्य-चेतना की भी महती आवश्यकता है।
बिना घरवाली घर भूत का डेरा। यह कहावत है। आर्थिक सोच वाले लोगों की ही महिलाओं के प्रति सोच नकारात्मक है, नहीं तो उनकी उपादेयता को सभी स्वीकार करते हैं।
श्रम का हिसाब लगा भी लें , आपकी बीमारी /परेशानी में जागकर सेवा टहल करने , स्वयम से पहले परिवार के लिए हर सुविधा का धयन रखने ,प्यार , स्नेह और दुआओं की कीमत क्या लगायेंगे !!
मैं तो नत-मस्तक रहता हूँ अपनी पत्नी के श्रम को देखकर !बिलकुल नाकारा हूँ,उनकी तुलना में !
घरेलू-श्रम का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है !
Totally Agree!!
निसंदेह महिलाओं की भागीदारी अनमोल है ।
सत्य कहा आपने गृहणी का कार्य अनमोल होता है
आभार ||
वो जो कुछ भी अपने परिवार और समाज के लिए करती है वो अनमोल है,आपसे सहमत हूँ
सार्थक सटीक ,सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई,...
कौन आँक सकता है कीमत उस भागदौड़ की जिसमें सामाजिक दायित्वों का निर्वहन सबसे ऊपर है ? उन गृहणियों के हिस्से आने वाली जिम्मेदारी का मूल्य तय करना कैसे संभव है जो एक परिवार को बांध कर रखने , उसका मान ऊंचा रखने के लिए खुद न जाने कितनी बार झुकती हैं , भीतर से टूटती-बिखरती हैं । ... असंभव है आकलन , हो भी नहीं सका है आज तक
the superb creation of ALL MIGHTY GOD is MADA and god created YOU .THE NARI extreme creation made ful of fragerences and qualities known as mother ,sister, wife,servent ,as you have shown in YOUR post are gift of GOD to the world.so we should not under estimate them .we are always proud of you.
क्योंकि इस देश की हर गृहणी यह जानती है कि उसके काम की कीमत लगाना किसी के बूते की बात नहीं । वो जो कुछ भी अपने परिवार और समाज के लिए करती है वो अनमोल है ।
बिलकुल सही कहा ... बहुत अच्छी पोस्ट ...
गहन चिन्तनयुक्त प्रासंगिक लेख....
बहुत शशक्त लेख लिखा आपने......मजदूर दिवस पर लिख कर आपने इसकी सार्थकता बढ़ा दी..........
सच में बिना पगार की मजदूर है गृहिणियां...
ज़्यादातर को उनकी मेहनत का सिला नहीं मिलता.....भौतिक रूप से नहीं बल्कि मानसिक संबल और स्नेह नहीं पातीं वे......
सादर.
कह तो बहुत लोग देते हैं पर मन से मानता कौन है. गृहणी के काम का कोई मोल नहीं.
bilkul satya hai sahmat hoon....inka koi mol nahi.
grihni ke mahatwa ko prabhavshali roop se rekhankit karta aalekh... bahut badhiya...
"गृहणी की भागीदारी के बिना घर के अन्य लोगों के जीवन की गति भी थम जाएगी" सहमत हूँ ... हमारे देश में महिलाओं की भागीदारी और उनके अमूल्य अमूल्य योगदान को कम करके आंका जाता है इसमें कोई संदेह नहीं है ...
बहुत sahi कहा aapne...
आज जो स्त्री, घर से बहार निकल अर्थोपार्जन के लिए कमर कास चुकी है, भले इसके मार्ग में उन्हें हर पग पर घरेलू कर्तब्यों की उपेक्षा करनी पड़ती है, इसके आधार में यही महत्त्व पाने और अपनी सत्ता स्थापित करने की चाह काम करती है...
यदि गृहणियों को पर्याप्त महत्त्व मिले, सम्मान मिले तो कदाचित वे बहार निकल अर्थोपार्जन के स्थान पर भली प्रकार घर को सहेजने में ही अपना योगदान देना चाहे...
श्रम का मूल्य लगाया जा सकता है किन्तु सेवा सहानुभूति का क्या मूल्य हो?
बहुत सार्थक आलेख
मुझे अपने गृहिणी होने पर गर्व है भलेही कोई गृहिणी के निस्वार्थ काम का
मूल्यांकन न करे ! सार्थक पोस्ट मोनिका जी, आभार ........
गृहिणी की सेवा निस्वार्थ होती है ...ये अनमोल है !
शुभकामनाएँ!
निस्वार्थ सेवा की अभिवयक्ति....
विचारोत्तेजक आलेख। सार्थक प्रश्न।
एक गृहणी का त्याग कम कर के नहीं आंका जा सकता...वर्किंग वुमन का रोल तो और भी ज्यादा है...वो घर और बाहर दोनों सम्हालती है...
बहुत अच्छा विषय चुना है आपने, उनकी अपनी समस्याओं पर वाकई ध्यान नहीं दिया जाता है , केयर टेकर वही हैं पूरे जीवन !
बेहद अच्छी पोस्ट के लिए बधाई !
बहुत सही कहा मोनिका जी....सार्थक प्रस्तुति.
तभी तो गृहणियां अपने काम के बदले पारिश्रमिक मांगती ही कब हैं ? क्योंकि इस देश की हर गृहणी यह जानती है कि उसके काम की कीमत लगाना किसी के बूते की बात नहीं । वो जो कुछ भी अपने परिवार और समाज के लिए करती है वो अनमोल है ।
(.कृपया यहाँ भी पधारें - )तभी तो वह महा लक्ष्मी कहाती है.घर की मालकिन कहाती है .घर के प्रति पूर्ण समर्पण ही उसका सुख है हासिल है .बढ़िया पोस्ट सर्वकालिक .
कैंसर रोगसमूह से हिफाज़त करता है स्तन पान .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_01.html
गृहणियों के काम सचमुच अनमोल हैं पर इसे वह महत्तव कभी नहीं दिया गया हद तो तब हैं जबकि सरकार भी गृहणियों को अनुत्पादक की ही श्रेणी में रखती हैं.कुछ समय पहले तो अदालतें भी पति की सम्पत्ति में किसी महिला को अधिकार देने से यह कहते हुए मना कर देती थी कि वह 'सिर्फ' एक गृहणी हैं और संपत्ति को बनाने में उसका कोई योगदान नहीं हैं.वैसे मेरा मानना हैं कि चाहे गृहणी हो या कामकाजी महिला या पुरुष ही क्यों न हो सबको ही समाज से कोई न कोई अपनी अपनी शिकायत हैं और सभी जायज हैं.
श्रमिक दिवस पर एक विचारणीय आलेख.बधाई!
भले ही अर्थव्यवस्था में गृहिणियों को भागिदार माना गया हो या नहीं, उनके योगदान का मोल लगा पाना वैसे भी संभव नहीं है. बच्चों की परवरिश का ही मुद्दा ले लें, तो किसी maid की देखभाल को परवरिश नहीं कह सकते... cognitive development के लिए जो योगदान मां देती है, उसे कैसे मापा जा सकता है!
गृहिणियों के हिस्से यक्ष प्रश्न भी...
गृहणी का अपने परिवार और समाज के प्रति यह त्याग / योगदान इतना बड़ा है कि इसकी भरपाई किसी भी तरह से नहीं हो सकती ...
सार्थक प्रस्तुति. आभार. .
गृहणी नि:संदेह परिवार की रीढ़ की हड्डी है, इसके अलावा घर की आन बान और शान सब कुछ उसके ही दम पर है.किसी परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा भी उसी के हाथ होती है, इसीलिये गृह-लक्ष्मी भी कहा गया है. सुंदर आलेख.
क्योंकि इस देश की हर गृहणी यह जानती है कि उसके काम की कीमत लगाना किसी के बूते की बात नहीं । वो जो कुछ भी अपने परिवार और समाज के लिए करती है वो अनमोल है
बस सौ बात की यही एक बात है...
अक्षरश: सही कहा है आपने इस पोस्ट में ... आभार ।
निः संदेह |
बिन घरनी घर भूत का डेरा |
गृहणी को इसीलिये गृह-लक्ष्मी भी कहा जाता हैं|
सार्थक और सुंदर आलेख ,बधाई
गृहणियां अपने काम के बदले पारिश्रमिक मिलना ही चाहिए
सुन्दर उम्दा पोस्ट मेरे भी ब्लॉग पर आये
गृहणी के काम की कीमत लगाना असंभव है. अपने परिवार और समाज के लिए उसका त्याग अनमोल है... सार्थक आलेख के लिए आभार
१०१% सत्य वचन ! गृहिणियो के काम तो अनमोल है ,दुनिया की दौलत भी कम है उनके श्रम के आगे. गृहिणियो को तो बस एक ही पारिश्रमिक चाहिए ,परिवार की ख़ुशी.अपनों की ख़ुशी से बड़ा कोई जज्बा नहीं.....लेकिन अपनों से मिलने वाले मान-सम्मान की वे हकदार है इसमें कोई संदेह नहीं.
वो ही है जो माँ, पत्नी या बहू, बेटी हर रूप में वो घर-परिवार के सदस्यों के जीवन की रफ्तार को कायम रखने वाली ऊर्जा बनती है .....
सही कहा है आपने ... आभार .
बहुत सही कहा आपने मोनिका जी बस यही बात हमारे इस पुरुष प्रधान के अहंकारी पुरुषों को भी समझ आजाए तो कुछ बात बने बहुत ही बढ़िया सार्थक एव सारगर्भित आलेख....
सशक्त आलेख ...सही कह रही हैं आप गृहणियों के श्रम का
कोई मोल नहीं होता..
क्योंकि इस देश की हर गृहणी यह जानती है कि उसके काम की कीमत लगाना किसी के बूते की बात नहीं ।......ekdam sahi bola.....
बेहतरीन आलेख ....
सार्थक और सशक्त बात कहती रचना...
इस देश की हर गृहणी यह जानती है कि उसके काम की कीमत लगाना किसी के बूते की बात नहीं । वो जो कुछ भी अपने परिवार और समाज के लिए करती है वो अनमोल है।
.....निश्चित ही. शत-प्रतिशत सहमत.
संवेदनशील मुद्दा ... नारी का परिश्रम आंका नहीं जाता जबकि ये अनमोल है ... राष्ट्र का चलना भी मुश्किल है सही मायने में अगर नारी परिश्रम न करे परिवार के लिए ...
बिलकुल सही कहा .....बहुत बढ़िया प्रस्तुति.
सार्थक और सशक्त रचना !!!
बेशक उसके काम के घंटों की तो तुलना की भी जा सकती है काल सेंटर्स पर जहां पढ़े लिखे कुली काम करतें हैं लेकिन उसके समर्पण और प्रेम की कीमत .फिर उसकी सोच यह घर मेरा है ,मालकिन तो मैं ही हूँ .मालिक का यही आदर्श होना चाहिए वह अन्य कर्मियों के लिए आदर्श प्रस्तुत करे लेकिन यह मात्र अन्नपूर्णा पर ही क्यों और उसी तक सीमित भी क्यों बना हुआ है ....कृपया यहाँ भी पधारें -http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_7883.html./http://veerubhai1947.blogspot.in/
शनिवार, 5 मई 2012
चिकित्सा में विकल्प की आधारभूत आवश्यकता : भाग - १
बहुत अच्छा आलेख है मोनिका जी | कुछ चीज़ों का मोल कभी कोई नहीं चुका सकता - ईश्वर भी नहीं | श्री राम और श्री कृष्ण दोनों ही ने कहा है कि अपनी चमड़ी के जूते भी बना कर माता पिता के चरणों में पहना दें - तो भी यह ऋण नहीं चुक सकता | अनमोल चीजों का हम मोल नहीं चुका सकते- और वे अक्सर बिना मोल के ही मिल जाती हैं | दुखद यह है कि, बिना मोल के मिल गयी चीज़ को हम, अनमोल के बजाय मूल्य हीन समझने लगते हैं |
गृहणी के कामों का घर, समाज और परिवार में जो योगदान है वही घर को घर बनाने के लिये चाहिये.
गृहणियां सिर्फ देना ही जानती हैं ।
बहुत सही बात कही आपने।
अब तक अलिखित को सुंदर अभिव्यक्ति मिली है ।
achha laga shramik diwas par sansar ke sabse bade shramik ka marm bataya...........
achha laga shramik diwas par sansar ke sabse shramik ka marm bataya........
निश्चय ही गृहणी का योग्दाद अमूल्य है .....!!इस सारगर्भित आलेख पर मुझे याद आता है मैंने पहले भी टिप्पणी दी है ,दिख नहीं रही |कृपया स्पैम में देखिये .....!!
शुभकामनायें मोनिका जी ...!!
Badhiya aalekh hai... Achha mudda uthaya hai aapne...
saaragarbhit aalekh
बहुत सुन्दर रचना, बहुत खूबसूरत प्रस्तुति.
बहुत सुन्दर रचना, बहुत खूबसूरत प्रस्तुति.
मोनिका जी यह आलेख देर से पढने पर क्षमा प्रार्थी हूँ पर कहते हैं न देर से आया दुरस्त आया ब्लॉग पर आकर इतना सशक्त आलेख पढ़ा सही कहा है हर क्षेत्र में विशेषकर घर परिवार में स्त्रियों का यागदान सराहनिए है एक और बात स्त्री निःस्वार्थ भाव से सब कुछ करती है बदले में एक सम्मान ही तो चाहती है ख़ुशी होती है आज देख कर की स्त्रियाँ अपना वह सम्मान पाने के लिए संघर्ष रत हैं |
बहुत ही सुन्दर वैचारिक पोस्ट |
क्योंकि इस देश की हर गृहणी यह जानती है कि उसके काम की कीमत लगाना किसी के बूते की बात नहीं । वो जो कुछ भी अपने परिवार और समाज के लिए करती है वो अनमोल है ।
1oo% agree...
gahan vishleshan ke sath prabhavshali post ....abhar.
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