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17 April 2012

बाल मनोविज्ञान के चितेरे ....दीनदयाल शर्मा जी


बच्चों के मन को समझना और उनके लिए लिखना आसान नहीं होता  । बच्चों के मासूम  मन की और उनकी रूचि की सामग्री को शब्द देना लेखन की दुनिया में शायद सबसे कठिनतम काम है । मुझे बच्चों के मन को समझने और बाल साहित्य पढने में बहुत रूचि है । अबकी बार जब जयपुर जाना हुआ तो दीनदयालजी से बात हुयी और उनकी कुछ पुस्तकें मिली । काफी समय से सोच रही थी कि उनके बाल साहित्य को लेकर मैं अपने विचार आप सबके साथ साझा करूं। उनके ब्लॉग पर काफी समय से उनकी बाल रचनाएँ नियमित पढ़ती रूप से पढ़ती आई हूँ । ऐसे में उनकी पुस्तकें पढना और बाल मन को समझना मेरे लिए एक सुखद एवं सुंदर अनुभव रहा । 

बाल साहित्यकार  के रूप में दीनदयाल जी की सोच बच्चों के मन को गहराई  से समझने वाली है । मनोरंजन और रोचकता के साथ-साथ जीवन से जुड़ी सीधी सरल सीख उनके बाल साहित्य में परिलक्षित होती है । उनकी बाल कवितायेँ और कहानियां बच्चों में चेतना जागने के साथ ही बाल मन की जिज्ञासाओं को भी समेटे है । 

पापा मुझे बताओ बात 
कैसे बनाते दिन और रात 

और ढेर सी बातें मुझको 
समझ क्यों नहीं आती हैं 
न घर में बतलाता कोई 
न मेडम बतलाती है 

बच्चों के मन में रहने वाले द्वंद्व और प्रश्नों को उकेरे उनकी कई रचनाएँ प्रभावित करती हैं। उनकी रची कविताओं में कहीं पर्यावरण को बचाने की सीख है तो कहीं राष्ट्रप्रेम की प्यारी बातें । गंभीर हो या हास्य बाल मनोविज्ञान पर दीनदयालजी की पकड़ चकित करती है । उनकी पुस्तक 'इक्यावन बाल पहेलियाँ'  ऐसी बाल सुलभ समझ को दर्शाती है । 

बातों बातों में बच्चों को बहुत कुछ समझा देने वाली बाल पहेलियाँ सरल भाषा शैली में हैं और जानकारी से भरपूर भी । यह पुस्तक रोचक, ज्ञानवर्धक  और सशक्त बाल पहेलियाँ समेटे है ।  जैसे पेड़ और पुस्तक को लेकर उनकी रची ये बाल पहेलियाँ  । 

खड़ा खड़ा जो सेवा करता 
सबका जीवन दाता 
बिन जिसके न बादल आयें 
बोलो क्या कहलाता ?

दिखने में छोटी सी लगती
गज़ब भरा है ज्ञान 
पढ़कर इसको बन सकते हम 
बहुत बड़े विद्वान  

बच्चों के मन को समझते हुए ही उन्होंने अपनी पुस्तक 'कर दो बस्ता हल्का' में बाल मन को कहीं गहरे छुआ है । इन्हें पढ़ते हुए बरबस ही बड़ों के चेहरों पर भी मुस्कान आ जाती है । बच्चों का मासूम मन क्या चाहता है,  यह उनकी रचनाओं में प्रमुखता से झलकता है । 

मेरी मैडम 
मेरे सरजी 
हमें पढ़ाते 
बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा  जी 
अपनी मरजी

बस्ता भारी 
मन है भारी  
कर दो बस्ता हल्का 
मन हो जाये फुलका

राजस्थानी बाल साहित्य की दुनिया में भी दीनदयालजी एक जाना-माना नाम हैं  । हिंदी और राजस्थानी  दोनों ही भाषाओँ में पूरे अधिकार से बाल साहित्य रचते हैं । उनकी पुस्तक ' बाळपणै री बातां ' की लेखन शैली इसी बात का प्रमाण है । बाल मन को समझने वाली उनकी सोच उनके लेखन में साफ़ झलकती है । तभी तो उनकी रचनाओं में बालमन की चंचलता भी है और सब कुछ जान लेने की उत्सुकता भी । 'बाळपणै री बातां' पुस्तक हिंदी साहित्य अकादमी के पुरस्कार हेतु नामांकित भी हुई है । इस पुस्तक में स्कूल ,घर और अपने परिवेश से जुड़ी बच्चों के मन की बातों का लेखा जोखा है । इस  पुस्तक  में उन्होंने एक संवेदनशील पिता और बाल साहित्यकार के रूप में अपने बच्चों से के साथ हुए अनुभव और संवाद को साझा किया है । 

बच्चों और बाल साहित्य के प्रति उनके समर्पण इतना है कि वे टाबरटोली नाम का एक अख़बार भी निकालते हैं जो बच्चों के लिए निकलने वाला देश पहला अख़बार है । उनका  ब्लॉग बचपन  भी बच्चों को ही समर्पित है । 

दीनदयालजी की पुस्तकें पढ़कर यही लगा कि उनकी रचनाएँ बच्चों की रूचि-अरुचि और बाल मन की भाषाई समझ को ध्यान में रखकर रची गयीं हैं । उनकी  बाल सुलभ अभिव्यक्ति इतनी सहज एवं सरल है कि हर शब्द बच्चों की कलात्मक अभिवृत्तियों, जिज्ञासाओं और संवेदनाओं को उकेरता सा लगता है । 

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