राजस्थान के बारे कहा जाता है यहाँ इतने तीज-त्योंहार होते हैं कि यहाँ की महिलाओं के हाथों की मेहंदी का रंग कभी फीका नहीं पड़ता । इनमें तीज और गणगौर तो दो ऐसे विशेष पर्व हैं जो महिलाएं ही मनाती हैं । गणगौर का त्योंहार होली के दूसरे दिन से प्रारंभ होकर पूरे सलाह दिन तक चलता है ।
शिव गौरी के दाम्पत्य की पूजा का पर्व गणगौर मानो प्रकृति का उत्सव है । माटी की गणगौर बनती हैं और खेतों से दूब और जल भरे कलश लाकर उनकी पूजा की जाती है । मुझे यह एक अकेला ऐसा त्यौहार लगता है जब सब सखिया रळ-मिल हर्षित उल्लासित हो माँ गौरी से सुखी और समृद्ध जीवन के लिए प्रार्थना की जाती हैं ।
आज भले ही समय बहुत बदल गया है पर मैंने स्वयं इस त्योंहार को अपने गाँव में कुछ इस तरह मनाया है कि बहू -बेटियां पूरे हक़ से चाहे जिस खेत में जाकर दूब ला सकतीं थीं । कोई रोक-टोक नहीं होती थी । गीत गातीं , नाचती और देर रात तक बिना किसी भय के गाँव भर में घूमती थीं ।
पीहर से मिली मेरी चुनरी ...जहाँ भी रहूँ साथ रहती है |
महिलाएं सज-संवर कर सुहाग चिन्हों को धारण किये हंसी ठिठोली करती हुईं पूजा के लिए एकत्रित होती हैं । पूजा के समय स्त्रियाँ एक खास तरह की चुनरी भी पहनती है ।
सोलह दिन तक उल्लास और उमंग के साथ चलने वाला यह पारंपरिक पर्व सही मायने में स्त्रीत्व का उत्सव लगता है मुझे तो । एक महिला के ह्रदय के हर भाव को खुलकर कहने, खुलकर जीने का उत्सव । विवाह के बाद पहली गणगौर मनाने के लिए ब्याही बेटियों का पीहर आना और सब कुछ भूलकर फिर से अपनी सखियों संग उल्लास में खो जाना रिश्तों को नया जीवन दे जाता है ।
55 comments:
सुन्दर जानकारी, आभार!
बहुत प्यारा त्यौहार है गणगौर, बेटी दो दिन के लिए आई हुई थी। उस ने बड़े शौक से परसों मेहंदी लगवाई और कल दोनों माँ बैटी गणगौर पूजने गईं। कल सुबह सूर्योदय से लेकर देर रात तक नगर में सब तरफ महिलाओं के चहकने की आवाजें सुनने को मिलीं।
हम तो बस इस मौके पर बनने वाले गुणों को खाने के शौकीन हैं। सो कल पूजा के बाद से उपलब्ध हो गए हैं। उन के स्वाद के सामने कोटा की कचौड़ियाँ और सब भांति का नमकीन फीका पड़ गया।
Monica ji...
Etni sundar jaankari ke liye abhaar...kabhi Rajasthan gaya nahi par ab mera sthantaran shayad Rajasthan hi hone wala hai...wahan ke rang agar Eshwar chahega to jald hi hum bhi dekhenge...
Saadar...
Deepak Shukla...
लोक-पारंपरिक तीज-त्योहारों की बातें पढ़कर मन थोड़ा थोड़ा nostalgic हो गया.. अच्छा लगा पढ़ना :)
लोकजीवन में बसा त्योहारों का रंग।
गणगौर एक ऐसा विशिष्ट त्योहार जिसमें नारी शक्ति को समाज से भरपूर आदर सम्मान व स्नेह प्राप्त होता है। जैसे गौरी के रूप में समस्त पृथ्वी पर नारीशक्ति के महात्मय को स्थापित किया जा रहा है।
गणगौर पर बेहद सुन्दर जानकारी!!
आज भले ही समय बहुत बदल गया है पर मैंने स्वयं इस त्योंहार को अपने गाँव में कुछ इस तरह मनाया है कि बहू -बेटियां पूरे हक़ से चाहे जिस खेत में जाकर दूब ला सकतीं थीं । कोई रोक-टोक नहीं होती थी । गीत गातीं , नाचती और देर रात तक बिना किसी भय के गाँव भर में घूमती थीं ।.............गणगौर मेले की जानकारी साझा करने हेतु आभार........
बहुत बढ़िया,बेहतरीन करारी अच्छी प्रस्तुति,..
नवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
मेरी एक नई मेरा बचपन
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
दिनेश पारीक
अच्छा लगा पढकर !
मेरा नया पोस्ट
प्रेम और भक्ति में हिसाब !
अच्छी जानकारी दी आपने..शुक्रिया
बहुत ही विस्तृत रूप से आपने इस उत्सव की जानकारी दी है ...आभार ।
गणगौर पर बेहद सुन्दर जानकारी और आपकी सुन्दर चुनरी बहुत अच्छी लगी... thanx :)
:)
DIL SE LIKHA HAI ...BAHUT PYARI YADON KO SAJHA KIYA HAI .....BAHUT SARTHAK POST HAI JO YE BATATI HAI KI HAMARI SANSKRITI ME STRI-PRADHAN UTSAVON KI BHARMAR HAI .GANGAUR KI HARDIK SHUBHKAMNAYEN .
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मोनिका जी त्यौहार हमें खुशियाँ देते हैं और हमारे जीवन को एक दिशा भी .....!!
बहुत सुंदर और सार्थक आलेख ...!!
गणगौर की बधाई ...!!
गणगौर के त्यौहार पर बधाई स्वीकारें !
इस त्यौहार के बारे में जानकारी अच्छी लगी !
आभार!
"यहाँ इतने तीज-त्योंहार होते हैं कि यहाँ की महिलाओं के हाथों की मेहंदी का रंग कभी फीका नहीं पड़ता । "
सुन्दर!!!
हमारी एक सखी की बेटी की पहली गणगौर थी....
रौनक देखने लायक थी...
प्यारी पोस्ट..
शुभकामनाएँ.
आपने गणगौर पर बेहद सुन्दर जानकारी दी है |वैसे मुझे इस त्योहार के बारे में नहीं पता था |जानकारी के लिए धन्यवाद् |
यही तो है अपनी भारतीय संस्कृति की पहचान जहां लगभग हर रोज़ किसी न किसी प्रांत मे कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है। लाख गम और परेशानियों का सामना करने के बावजूद भी त्यौहारों में कोई कमी नज़र नहीं आती.... त्योहार का रंग लिए खूबसूरत एवं जानकारी पूर्ण आलेख आभार...
मोनिका जी - राजस्थान वास्तव में अनेक रूपों का संगम और यहाँ की संस्कृति अनमोल है , जो विश्व के किसी क्षोर पर नहीं मिलती ! गडगौर के बारे में जानकारी मिली ! बहुत सुन्दर !
यही तो हमारे भारतवर्ष की अमूल्य धरोहरें हैं
अच्छी जानकारी .
इसीलिए तो राजस्थान को रगीला राजस्थान कहा जाता हैं.गणगौर पर पुरूषों को करने के लिए कुछ नहीं होता और पहले सोचता भी था कि महिलाएँ इस त्योहार को लेकर इतनी उत्साहित क्यों रहती हैं लेकिन आपकी पोस्ट पढकर पता चला कि क्यों ये त्योहार महिलाओं के लिए इतना खास हैं.बढिया जानकारी.
के लिए एकत्रित होती हैं । पूजा के समय स्त्रियाँ एक खास तरह की चुनरी भी पहनती है ।
सोलह दिन तक उल्लास और उमंग के साथ चलने वाला यह पारंपरिक पर्व सही मायने में स्त्रीत्व का उत्सव लगता है मुझे तो । एक महिला के ह्रदय के हर भाव को खुलकर कहने, खुलकर जीने का उत्सव । विवाह के बाद पहली गणगौर मनाने के लिए ब्याही बेटियों का पीहर आना और सब कुछ भूलकर फिर से अपनी सखियों संग उल्लास में खो जाना रिश्तों को नया जीवन दे जाता है ।
सही कहा आपने .अतीत की सरसता वर्तमान का श्रृंगार करती है .
ये त्यौहार लोक जीवन में स्फूर्ती भार देते हैं..बहुत सुंदर प्रस्तुति...
http://aadhyatmikyatra.blogspot.in/
गणगौर की छटा ही निराली है राजस्थान में ...
पूर्णतः महिलाओं का ही यह त्यौहार उनके लिए अनमोल है ...
बहुत ही सुन्दर जानकारी सहित गणगौर का आनंदमय लेख .
धन्यवाद् . बस ऐसे ही भारत की विविधता है .
छत्तीसगढ़ भी अपने लोक संस्कृति भाषा बोली त्यौहार तीज पहनावा मिठास मेला मड़ाई नदी मंदिर के लिए प्रसिद्द है और समृद्ध .
आपका स्वागत हमारी धरती पर .............
लेखों की जानकारी अकलतरा.ब्लॉग स्पोट.कॉम पर
लोकजीवन में रचा बसा है त्योहारों का रंग ..सुन्दर जानकारी के लिए आभार...
हालाँकि मैं जोधपुर रही हूँ ढाई साल ... मगर इस त्यौहार के बारे मैं जानकारी नहीं है ... आपसे जानकार अच्छा लगा ... धन्यवाद ... !!
बहुत अच्छी जानकारी ...
जब तक गाँव में रहे,इस त्यौहार को सुनते और देखते रहे.अब तो आपने याद दिलाया !
बहुत ही अच्छी जानकारी मिली --------धन्यवाद
bahut achchhi jankari aabhar. .हे!माँ मेरे जिले के नेता को सी .एम् .बना दो. aur padhen.498-a I.P.C
शिव गौरी के दाम्पत्य की पूजा का पर्व गणगौर के बारे में आपने मेरी जानकारी में वृद्धि की -आभार!
इस उत्सव के बारे में विस्तार से आज जानकारी मिली।
अनूठी जानकारी दी आपने ...
आभार आपका !
उत्तर भारत के ग्रामीण अंचलों में अभी भी मनाई जाती है, शहरों में इसका चलन खत्म सा हो रहा है.
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्टस पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
संस्कृति और त्यौहार यूँ ही दिलों में अपना स्थान बनाए रहें ....बढ़िया प्रस्तुतिकरण
गणगौर पर्व के बारे में मुझे पहले नहीं पता था.
आभार.
उजियारा सुख शांति का, जगमग करे समीप।
भारत भूमि सदा रहे, त्यौहारों का द्वीप॥
बढ़िया जानकारी देती पोस्ट।
सादर।
त्यौहार हमें अपनी सस्कृति के साथ जोडकर रखते और खुशिया देते है ..बहुत सुन्दर जानकारी!
'नारी' और 'उत्सव' तो पर्यायवाची ही होते हैं ...
शुक्रिया मोनिका जी इस जानकारी को साझा करने का.....जयपुर गया था तब इस उत्सव के बारे में सुना था और संग्राहलय में पूरी पोशाक पहने एक गुडिया देखी थी ।
mummyji ne btaya tha ke wo barmer me thi tb kis tarah se is tyohar ko mnaya karti thi...par aapko padh kr aur bhi achha lga monika ji..
मोनिका जी... बहुत ही सुन्दर पोस्ट ... अपने देश के ये त्यौहार हर किसी के अंदर जोश और उल्लास भरे रहते है ... सुन्दर त्यौहार
बहुत ही अच्छी जानकारी दी है..
अच्छा लगा पढ़कर...
धन्यवाद :-)
बहुत ही अच्छी जानकारी दी है..
अच्छा लगा पढ़कर...
धन्यवाद :-)
ढेर सारे राजस्थानी मित्रों की वजह से यह उत्सव मेरे लिए अनजाना नहीं. निश्चित ही यह स्त्रीत्व का उत्सव है.
बहुत सजीव वर्णन...लगा जैसे आँखों से ही देख रहे हों...चुनरी और इस पर्व से जुड़ी यादें आपकी धरोहर हैं...साझा करने के लिए आभार!
वाह !!!!! बहुत सुंदर आलेख ,अच्छा लगा
MY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
समाचारों में बहुत छोटी सी खबर छपती है यहां। पहली बार इतने विस्तार से जाना।
हमारे देश में सारे त्यौहार बहुत ही सुंदर तरीके से मनाये जाते हैं ...सह कहूँ तो मुझे लगता हैं यह त्यौहार ही हैं जो आज भी हमारे जीवन में कुछ नए रंग नया उत्साह भर देते हैं ..अच्छी लगी आपकी पोस्ट ..गनगौर हम मराठी लोगो के यहाँ भी बिठाई जाती हैं ..लगभग महीने भर उसकी पूजा और हल्दी कुमकुम होता हैं
सुखद लेख, आपकी चुनरी (ओढ़ना पीला )देखकर अपनी परम्पराओं पे अभिमान हो आया ....रंग भरे है हमारी संस्कृति में ....बहुत बहुत धन्यवाद
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