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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

02 August 2011

शगुन और संस्कृति के रंग लिए लहरिया....!


         
राजस्थान या राजस्थानी संस्कृति से जुङे लोगों के लिए लहरिया सिर्फ कपङे पर उकेरा गया डिजाइन या स्टाइल भर नहीं है। ये रंग बिरंगी धारियां शगुन और संस्कृति के वो सारे रंग समेटे हैं जो वहां के जन जीवन का अटूट हिस्सा हैं। यहां सावन में लहरिया पहनना शुभ माना जाता है। आज भी गांव ही नहीं शहरी संस्कृति में भी लहरिया के रंग बिरंगे परिधान अपनी जगह बनाये हुए है। लहरिया की ओढनी या साङी आज भी महिलाओं के मन को खूब भाती है। 

राजस्थान के उल्लासमय लोक सांस्कृतिक पर्व तीज के अवसर पर धारण किया जाने वाला सतरंगी परिधान लहरिया खुशनुमा जीवन का प्रतीक है। सावन में पहने जाने वाले लहरिये में हरा रंग होना शुभ माना जाता है । जो कि प्रेरित  है प्रकृति के उल्लास और सावन में हरियाली की चादर ओढे धरती  माँ  के हरित श्रृंगार से । 


लहरिया राजस्थान का पारंपरिक पहनावा है । सावन के महीने में महिलाएं इसे जरूर पहनती हैं। शादी के बाद पहले सावन में तो  बहू-बेटियों को बहुत मान-मनुहार के साथ लहरिया लाकर दिया जाता है। आज भी राजसी घरानों से लेकर आम परिवारों तक लोक संस्कृति की पहचान लहरिया के रंग बिखरे हुए है। 

कहते हैं कि प्रकृति ने मरूप्रदेश को कुछ कम रंग दिए तो यहां लोगों ने अपने पहनावे में ही सात रंग भर लिए, लहरिया उसी का प्रतीक है। रेगिस्तान में बसे लोगों के सृजनशील मन ने तीज के त्योंहार और लहरिया के सतरंगी परिधान को जीवन का हिस्सा बना प्रकृति और रंगों से नाता जोड़ लिया | तभी तो राजस्थान के अनूठे लोक जीवन की रंग बिरंगी संस्कृति के द्योतक लहरिया पर कई लोकगीत भी बने है। 

हमारी संस्कृति के परिचायक कई रीति रिवाज हैं जो यह बताते है कि हमारे परिवारों में बहू-बेटियों की मान मनुहार के अर्थ कितने गहरे हैं ? सावन के महीने में तीज के मौके पर मायके या ससुराल में बहू-बेटियों को लहरिया ला देने की परंपरा भी इसी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा रही है और आज भी है । यह त्योंहार यह बताने का अवसर  है कि बहू-बेटियों के जीवन का सतरंगी उल्लास ही हमारे घर आंगन का इंद्रधनुष है। 

80 comments:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर आलेख...बधाई

जयकृष्ण राय तुषार said...

लोकरंग में डूबकर लिखे इस लेख को बारबार पढ़ने का मन करेगा |डॉ० मोनिका जी दिल से आपको बधाई और शुभकामनायें |

Arvind Mishra said...

मैंने भी देखी है रंग बिरंगी इन्द्रधनुषी लहरिया -मन को भा जाती है!
मनुष्य के उल्लासपूर्ण संस्कृति का हिस्सा है लहरिया

Saru Singhal said...

I wanted to wear Indian dress today as it's Teej. Your post is coming on a day of celebration...Lovely...Lehariya is a beautiful pattern which brings color and joy. Nice post!

Anupama Tripathi said...

lahariya par laharaati hui sunder post..

दिनेशराय द्विवेदी said...

सावन में जब चारों तरफ हरियाली ही हरियाली छाई होती है या फिर बरसात में घुल कर सभी रंग धूसर हो चुके होते हैं तो लहरिया आँखों को सुख देता है।

सुज्ञ said...

लोक-लुभावन लहरिया ओढनी का साक्षात संस्कृति दर्शन।

याद दिला दिया आपने वह लोकगीत………

मने ल्याय दो नी ल्याय दो जी ढोला लहरियो सा………

वाणी गीत said...

जयपुर में शायद ही कोई महिला तीज पर बिना लहरिये के नजर आये , वो सामान्य गृहिणी हो या बड़ी अफसर ...
लोक परंपरा और आधुनिकता एक साथ समेटे यह शहर , मुझे प्यार हो गया है इस शहर से ...सच्ची !

कमलेश खान सिंह डिसूजा said...

बहुत सुन्दर लेख :
सच सावन का अपना अलग ही मज़ा है, हर चीज़ नई नई नजर आती है सावन में |

प्रवीण पाण्डेय said...

परिवेश की रंगन्यूनता को कपड़ों से भर लिया राजस्थान ने, वाह।

डॉ. मनोज मिश्र said...

परिचित करने के लिए आपको धन्यवाद,बढ़िया पोस्ट.

केवल राम said...

हमारी लोक संस्कृति का हमारे जीवन के साथ गहरा सम्बन्ध है लोक संस्कृति की हरेक चीज हमारी जिन्दगी में रंग भरने वाली है .....!

Rakesh Kumar said...

वाह! लहरिया के बारे में जानकर अच्छा लगा.
आपका यह कहना सार्थक लगा कि

यह त्योंहार यह बताने का अवसर है कि बहू-बेटियों के जीवन का सतरंगी उल्लास ही हमारे घर आंगन का इंद्रधनुष है।

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

S.N SHUKLA said...

राजस्थान यूँ भी साल भर त्यौहारों से ओत-प्रोत रहता है. कठोर जिंदगी, रेतीली और रेगिस्तानी ज़मीन. यह त्यौहारों की मस्ती और लहरिया ही उनकी जिंदगी की कठिनाइयों में खुशियाँ भरते हैं.

ashish said...

राजस्थान की रंग बिरंगी लोक संस्कृति मन को लुभाती है. .लहरिया जनमानस में रची बसी है संस्कृति का हिस्सा बनकर . सुँदर आलेख .

अरुण चन्द्र रॉय said...

उल्लास का प्रतीक लहरिया.. बहुत सुन्दर आलेख..

vijai Rajbali Mathur said...

संस्कृति से सुरुचिपूर्ण परिचय ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

यह त्योंहार यह बताने का अवसर है कि बहू-बेटियों के जीवन का सतरंगी उल्लास ही हमारे घर आंगन का इंद्रधनुष है।

बहुत खूबसूरत बात कही है .. राजस्थान में रंगों के महत्त्व पर अच्छी पोस्ट

anshumala said...

मुझे भी राजेस्थानी लहरिया और वहा की चुनरी साड़ी काफी पसंद है |

DR. ANWER JAMAL said...

आपकी Post अच्छी है। कुछ और लेखकों के लिंक भी हमें अच्छे लगे तो उन्हें भी हम यहां ले आए ताकि अगर आपकी चर्चा सोना लगे तो यह सहायक चर्चा ‘सुहागा‘ साबित हो।
हमारा यह प्रयास कैसा लगा ?
आप भी बताइयेगा।
देखिए अलग-अलग लेखकों के कुछ लिंक्स
1- अच्छी टिप्पणियाँ ही ला सकती हैं प्यार की बहार Hindi Blogging Guide (22)- Kunwar Kusumesh
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/hindi-blogging-guide-22.html

2- औरत हया है और हया ही सिखाती है , ‘स्लट वॉक‘ के संदर्भ में
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/blog-post_5673.html

3- हाइकु गीत ----- दिलबाग विर्क
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/blog-post_97.html


4- मुस्कुरा दिया करना
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/blog-post_1517.html

5- ये हैं क्रिकेट के बद्तमीज़
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/blog-post_1989.html

6- राष्ट्र गान--किसकी जय गाथा- Sadhana Vaid
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/blog-post_02.html

7- ख़ुशख़बरी और मुबारकबाद Good news
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/08/good-news.html

--
*हिंदी ब्लॉगिंग http://hbfint.blogspot.com* को बढ़ावा देने के मक़सद से ही
आपको यह लिंक प्रेषित किए जाते हैं जिन्हें आप अपने मित्रों को फ़ॉरवर्ड कर दिया
करें ताकि नए लोग हिंदी ब्लॉगिंग से जु़ड़ें। अगर आपको इन लिंक्स के आने से
परेशानी होती है तो कृप्या सूचित करें ताकि आपका नाम सूची से हटाया जा सके।
हमारा मक़सद आपको परेशान करना नहीं है। अगर आप भी अपना ब्लॉग संचालित करते हैं
या आप सामान्य नेट यूज़र हैं और हिंदी ब्लॉगर्स से कोई विचार साझा करना चाहते
हैं तो आप भी अपनी पोस्ट का लिंक या कंटेंट भेज सकते हैं। उसे ज़्यादा से
ज़्यादा हिंदी ब्लॉगर्स तक पहुंचा दिया जाएगा। शर्त यह है कि यह कंटेंट
देशप्रेम की भावना को बढ़ाने वाला और समाज के व्यापक हित में होना चाहिए। हिंदी
ब्लॉगिंग को सार्थक दिशा देना ही ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ का मक़सद है।

धन्यवाद !

Kunwar Kusumesh said...

राजस्थान से सम्बंधित मुझे नई जानकारी मिली.आभार.

Maheshwari kaneri said...

आपके लेख में साक्षात संस्कृति का दर्शन है..सुन्दर प्रस्तुति....

Dr. sandhya tiwari said...

hamari sanskriti ye rang bhut bhaya.

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर लेख। वैसे आपके विषय और उससे जुडी जानकारी का कोई जवाब नहीं।

Anonymous said...

काफी जानकारी मिले आपकी इस पोस्ट से......ये रंग ही तो हमारी देश की भिन्न संस्कृतियों की शान हैं|

vidhya said...

बहुत सुन्दर आलेख...बधाई

Unknown said...

thanx!!!!4 yur comment...
mujhe raj. culture bahut pasand hai..n sarees toooo...

रेखा said...

राजस्थानी परिधान वैसे हमेशा से मुझे लुभाते रहे हैं .लहरिया के बारे में बताने के लिए आभार

rashmi ravija said...

लहरिया तो राजस्थान की पहचान है.....रंग-बिरंगी लहरिया....बहुत ही मनमोहक लगती है.

संध्या शर्मा said...

रंग बिरंगी इन्द्रधनुषी लहरिया जीवन का सतरंगी उल्लास... बहुत सुन्दर आलेख...बधाई मोनिकाजी...

G.N.SHAW said...

यही तो सुदृढ़ संस्कृति के परिचायक है ! बहुत सुन्दर

SAJAN.AAWARA said...

rajasthan ka ek pahnava lahriya hai,
bhar ki orton ka man bhi ise pahnne ka karriya hai...
rajasthan ke baare me btati ek rachna

jai hind jai bharat

तरुण भारतीय said...

लोक रंग से रंगी बहुत अच्छी जानकारी ...

गिरधारी खंकरियाल said...

लोक संस्कृति और परम्पराएं जीवन में हमेशा ही उल्लास भर देने का काम करती है लहरिया के परिचय के लिए आभार.

naresh singh said...

तीज के त्यौहार की आपको बहुत बहुत शुभकामनाये |

अनामिका की सदायें ...... said...

ye sab pata nahi tha jo apki aaj ki post se rajasthan ki sanskriti ke bare me pata chala.

aabhar.

Vaanbhatt said...

इसे कहते हैं...जीवन में रंग भरना...पूरा का पूरा राजस्थान ही चटक और शोख रंगों में बयां होता है...

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

डॉ मोनिका शर्मा जी-अभिवादन तीज पर रंग बिखेर कर सुन्दर जानकारी दी मन खिलाया आप ने ..आप सब को शुभ कामनाएं इस पर्व पर ..
सार्थक लेख ...
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर की माधुरी

Jyoti Mishra said...

yeah these sarees looks wonderful... even my mom has a pair of it.
looks fab n traditional too :)

virendra sharma said...

लहरिया से जुडी लोक संस्कृति और जन मानस की झांकी जहां हरियाली का अभाव वहां हरियाली बना पैरहन ,जीवन में रंग की रस धार भरता है .उम्र बढ़ने के साथ जैसे जैसे जीवन में रंगीनी कम होती है आदमी रंगों की तरफ खिंचा चला आता है .रास्ते भी आने जाने के बदल जातें हैं .हर आदमी रंगीनी देखना जीना चाहता है .लहरिया जीवन के इन्द्रधनुषी उल्लास रंगों को लोक जीवन में उतारना ही तो है .अच्छी पोस्ट .

virendra sharma said...

लहरिया से जुडी लोक संस्कृति और जन मानस की झांकी जहां हरियाली का अभाव वहां हरियाली बना पैरहन ,जीवन में रंग की रस धार भरता है .उम्र बढ़ने के साथ जैसे जैसे जीवन में रंगीनी कम होती है आदमी रंगों की तरफ खिंचा चला आता है .रास्ते भी आने जाने के बदल जातें हैं .हर आदमी रंगीनी देखना जीना चाहता है .लहरिया जीवन के इन्द्रधनुषी उल्लास रंगों को लोक जीवन में उतारना ही तो है .अच्छी पोस्ट .कृपया यहाँ भी पधारें -
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_04.html
और यहाँ भी -http://veerubhai1947.blogspot.com/और यहाँ भी -http://sb.samwaad.com/

Dorothy said...

बहुत सुन्दर आलेख... आभार.
सादर,
डोरोथी.

Minoo Bhagia said...

laheriye ki saari ..waah

Urmi said...

लहरिया उत्सव के बारे में बहुत ही अच्छी जानकारी मिली! ये रंगबिरंगी फूलों जैसा और इन्द्रधनुष के सतरंगी जैसा उत्सव पूरे राजस्थान में महिलाओं के लिए बहुत ही ख़ुशी और उमंग से भरा उत्सव है! बहुत ख़ूबसूरत आलेख!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://www.seawave-babli.blogspot.com/

रश्मि प्रभा... said...

इस ढंग से इसे जानकर बहुत अच्छा लगा ...

अजित गुप्ता का कोना said...

राजस्‍थान रंगों का प्रदेश है, यहाँ की चूंदड़ और लहरियां सतरंगी रंगों से सरोबार रहते हैं। त्‍योहार मनाने का अंदाज कोई राजस्‍थान से सीखे और वो भी जयपुर से। सच जयपुर बहुत याद आता है, आपकी पोस्‍ट ने जयपुर की याद दिला दी।

रूप said...

sachmuch ,Rajasthan ki tahzeeb aur sanskriti atulniy hai !

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

'लहरिया'

बचपन में दादी-नानी के मुंह से सुना था

और आज कल बुटीक वाले भी इस शब्द को अक्सर बोलते हुए सुने जा सकते हैं|

ओल्ड इज गोल्ड भाई|

Amrita Tanmay said...

बहुत ही सुन्दर

कुमार राधारमण said...

इस पोस्ट से,राजस्थानी संस्कृति के साथ आपका भावनात्मक लगाव एकम ज़ाहिर होता है। मनुष्य और प्रकृति यदि एक दूसरे के पूरक बन सकें,तो जीवन वास्तव में इंद्रधनुषी हो जाए।

P.N. Subramanian said...

लहरिया यकीनन मन में उल्लास भर देती है. सुन्दर आलेख के लिए आभार.

सदा said...

बेहतरीन लेखन के लिये आभार ।

Rajiv said...

"सावन के महीने में तीज के मौके पर मायके या ससुराल में बहू-बेटियों को लहरिया ला देने की परंपरा भी इसी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा रही है और आज भी है । यह त्योंहार यह बताने का अवसर है कि बहू-बेटियों के जीवन का सतरंगी उल्लास"
मोनिका जी,
लोक संस्कृति का प्रतीक बन चुके रंग-बिरंगी इन्द्रधनुषी लहरिया की वर्तमान में उपस्थिति बहुत शुकून देनेवाली है.यह एक अदृश्य बंधन है जो अतीत को वर्तमान से आज भी जोड़े हुए है.अत्यंत ज्ञानवर्द्धक और सुन्दर लेख.

virendra sharma said...

http://veerubhai1947.blogspot.com/
मंगलवार, २ अगस्त २०११
यौन शोषण और मानसिक सेहत कल की औरत की ....इसीलिए
Sexual assault, domestic violence can damage long-term mental health

Chinmayee said...

सच अपनी सस्कृति के रंग बहुत प्यारे है .... सुन्दर प्रस्तुति...आपका कहना सच है इस मरू भूमि में रंगो की कोई कमी नहीं है !

सादर
तृप्ति

Suman said...

bahut sunder rangbirangi lahariya..........

दिवस said...

monika जी, राजस्थान की लहरिया तो वैसे hee विश्वविख्यात है, आपके ब्लॉग पर इसे देखना और भी सुखदाई रहा...

"कहते हैं कि प्रकृति ने मरूप्रदेश को कुछ कम रंग दिए तो यहां लोगों ने अपने पहनावे में ही सात रंग भर लिए, लहरिया उसी का प्रतीक है।"

बिलकुल सही कहा आपने...

संजय भास्‍कर said...

लोक संस्कृति का हमारे जीवन के साथ गहरा सम्बन्ध है
...बहुत सुन्दर आलेख

ज्योति सिंह said...

सावन में पहने जाने वाले लहरिये में हरा रंग होना शुभ माना जाता है । जो कि प्रेरित है प्रकृति के उल्लास और सावन में हरियाली की चादर ओढे धरती माँ के हरित श्रृंगार से
bahut sundar likha hai ,tabhi to hame bhartiya hone par garv hai ,aesi sanskriti aur kahan ,milegi .

virendra sharma said...

डॉ .मोनिका जी सेहत और मन से मनो -विज्ञान से जुड़े मामलों में आप भी दखल रखतीं हैं इसीलिए आपसे गुजारिश की यह पोस्ट बांचने की (यौन शोषण और बकाया ज़िन्दगी के रोग )आप आई दस्तक दी सार्थक ,आपका आभार .

Anonymous said...

thanks for sharing...


http://teri-galatfahmi.blogspot.com/

Anonymous said...

bahut sahi kaha aapne. aapke blogs hamesha kuch naya kahte ya sikhate hai. happy belated teej

vijay kumar sappatti said...

बहुत सुद्नर लेख... पढकर ही रंगों की और कला की प्रस्तुति हो गयी है .. बहुत बहुत बधाई

आभार

विजय

कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

Manav Mehta 'मन' said...

bahut sundar lga aapka lekh ..badhai

Manish said...

राजस्थान और वहाँ के परिधान के बारे में पढ़्कर याद आया कि एक बार हम भी खरीद लाये थे लेकिन यहाँ पहनकर बाहर जाने में लाज आती थी.. :)
चुनरी नहीं कुर्ता था.. :)

kayal said...

zindagi ke kagaz ko rango se bharne ka naam hi zindagi hain...
sundar rachna....

हरकीरत ' हीर' said...

सावन के महीने में तीज के मौके पर मायके या ससुराल में बहू-बेटियों को लहरिया ला देने की परंपरा भी इसी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा रही है

ये नई जानकारी है मेरे लिए ......
हमारे यहाँ तो ऐसा कुछ नहीं ....

abhi said...

अच्छा लगा जानना..
एक बार मैं अहमदाबाद जा रहा था ट्रेन में..अधिकतर लोग राजस्थान के थे मेरे बोगी में, क्यूंकि ट्रेन जयपुर जाती थी..सभी औरतें राजस्थानी पोशाक में थी...बड़ा अच्छा लगा मुझे..राजस्थान की परंपरा हमेशा से मुझे अच्छी लगी है..

सु-मन (Suman Kapoor) said...

sundar lekh...

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

परम्‍परा के रंगों से सराबोर एक सार्थक रचना।

------
कम्‍प्‍यूटर से तेज़!
इस दर्द की दवा क्‍या है....

महेन्‍द्र वर्मा said...

लहरिया के बारे में पढ़कर मन भी सप्तरंगी हो गया।
लघु लेख की भाषा-शैली मोहक लगी।

रचना दीक्षित said...

सावन का महीना, तीज का मौका, बहू-बेटियों को लहरिया देने की परंपरा और उसका सांस्कृतिक रहस्य विरासत बहुत सुंदर. तथ्यपूर्ण और नयी जानकारी के लिए बहुत आभार मोनिका जी.

S.N SHUKLA said...

मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
एस .एन. शुक्ल

smshindi By Sonu said...

बहुत सुंदर रचना ! लाजवाब प्रस्तुती!

आपके पास दोस्तो का ख़ज़ाना है,
पर ये दोस्त आपका पुराना है,
इस दोस्त को भुला ना देना कभी,
क्यू की ये दोस्त आपकी दोस्ती का दीवाना है

⁀‵⁀) ✫ ✫ ✫.
`⋎´✫¸.•°*”˜˜”*°•✫
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☻/ღ˚ •。* ˚ ˚✰˚ ˛★* 。 ღ˛° 。* °♥ ˚ • ★ *˚ .ღ 。.................
/▌*˛˚ღ •˚HAPPY FRIENDSHIP DAY MY FRENDS ˚ ✰* ★
/ .. ˚. ★ ˛ ˚ ✰。˚ ˚ღ。* ˛˚ 。✰˚* ˚ ★ღ

!!मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!!

फ्रेंडशिप डे स्पेशल पोस्ट पर आपका स्वागत है!
मित्रता एक वरदान

शुभकामनायें

palash said...

Wish you a very happy friendship day .........

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

म्हारै लहरियै रा नौ सौ रुपिया रोकड़ा साऽऽ…

बहुत सुंदर !

मोनिका जी
राजस्थान की संस्कृति और लोक रंग से सजी इस पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई !

मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ


-राजेन्द्र स्वर्णकार

पूनम श्रीवास्तव said...

monika ji
bahut hi badhiya lagi aapki yah prastuti
waqai me is lahariya rang ka itna sundar chitran aapne kiya hai ki jitni bhi tarrif karun ,kam hai.
shandaar post ke liye hardik
badhai-------
poonam

mark rai said...

बहुत सुन्दर लेख.....
धन्यवाद....

Vivek Jain said...

बहुत सुन्दर आलेख मोनिका जी...बधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

समयचक्र said...

श्री गणेश उत्सव पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं...

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