इसे मासूम मन में उपजी जिज्ञासा कहें या सब कुछ जान लेने की जल्दबाजी , बच्चों के क्या ,क्यों और कैसे का सिलसिला कभी ख़त्म नहीं होता । कई बार तो प्रश्र ही ऐसे होते है कि अभिभावक उलझ कर रह जाते हैं। उनके प्रश्नों को टाल जाना ही बड़ों को बचने का एकमात्र मार्ग नज़र आता है | पर क्या यह सही है ? कभी कभी लगता है की बच्चों का भी अधिकार है की वे अपने प्रश्नों का सही और संतुलित उत्तर पा सकें |
हम बड़े खुद को मानसिक ज़द्दोज़हद से बचाने के लिए भी बच्चों के सवालों से बचने का भरसक प्रयत्न करते हैं | अक्सर यह भी कहते रहते हैं कि आजकल के बच्चे सवाल बहुत करते हैं। आप स्वयं ही सोचिये आज के दौर में बच्चों के पास घर बैठे ही कई जानकारियों का अंबार लगा है। टीवी, इंटरनेट के जरिए इंर्फोमेशन एक्सप्लोजन की स्थिति की आ गई। बच्चों को मिलने वाली यह चाही अनचाही जानकारी उनके मन में कई प्रश्रों को पैदा करती है।
विज्ञापनों और टीवी कार्यक्रमों के जरिए कई विषयों का ज्ञान तो उन्हें उम्र से पहले ही हो रहा है। जाहिर सी बात है सूचनाओं कि यह बाढ प्रश्नों की सौगात तो साथ लाएगी ही | यही सवाल अभिभावकों की भागदौड़ भरी ज़िन्दगी और बच्चों की मानसिक अपरिपक्वता पर भारी पड़ रहे हैं |
माता-पिता अक्सर बच्चों के सवालों को लेकर टालमटोल की मानसिकता रखते हैं। याद रखिए बच्चे के मन में उठ रहे सवालों को सही ढंग शांत करना हर अभिभावक की जिम्मेदारी है। हम सबके लिए ज़रूरी है कि अगर बच्चे के सवाल अटपटे और उलझाऊ हों तो आप उन्हें कुछ समय बाद बात करने को कहें और प्यार से समझाइश दें पर गुस्सा या टालमटोल ना करें। आप भी बच्चों की मानसिक जद्दोज़हद समझने की कोशिश करें। यह स्वीकार करें कि बच्चे की यह उम्र जिज्ञासा से भरी होती है और उनके मन में पल पल कई सवाल जन्म लेते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि तीन साल की उम्र में तो बच्चे सबसे ज्यादा प्रयोग ही क्यों.......? शब्द का करते हैं। इसलिए माता-पिता को चाहिए कि उनके इन सवालों को उनके शारीरिक और मानसिक विकास का हिस्सा समझें और टालने के बजाय सुलझाने की कोशिश करें। मुझे तो यह भी लगता है कि इन सवालों के माध्यम से हम अपने बच्चे को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं |
ना केवल बच्चों को समझाने के लिए बल्कि उन्हें समझने के लिए भी उनके सवालों पर गौर करना अति आवश्यक है। उम्र और परिस्थितियों के अनुसार बच्चों के सवाल बदलते रहते हैं। ऐसे में अभिभावक बच्चों के सवालों को धैर्य से सुनकर उनके व्यवहार में आ रहे बदलावों को भी समझ सकते हैं। आमतौर पर बच्चों के मन में शारीरिक बदलाव , रिश्तेदारी, जन्म-मृत्यु और धर्म कर्म से जुङे काफी सवाल रहते हैं। ऐसे में बच्चे के सवालों को गैर ज़रूरी बताकर नज़रंदाज़ करने के बजाय उनके मनोविज्ञान को समझने की कोशिश जरूरी है।
जहाँ तक हो सके बच्चों के प्रश्नों का गलत जवाब कभी न दें | कई बार बच्चों के सवालों को माथापच्ची समझ, उन्हें निपटाने की सोच के साथ अभिभावक गलत जवाब भी दे देते हैं। जबकि ऐसा कतई नहीं होना चाहिए। बच्चें की जिज्ञासा को सही तरीके से शांत करें । इस उम्र में बताई गई कई बातें हमेशा के लिए उनके मन-मस्तिष्क में घर कर जाती हैं, जिससे आगे चलकर उनका पूरा व्यक्तित्व प्रभावित होता है। कई बार गलत जवाब पाकर बच्चे के मन में संशय और बढ जाता है। ऐसे में उनकी उत्सुकता को कभी गलत जवाब देकर और ना उलझाएं। बच्चे यों भी गलत चीजों के प्रभाव में बहुत जल्दी आ जाते हैं | इसलिए उन्हें गलत जवाब देकर उनके मन में और भटकाव को जन्म न दें।
91 comments:
बचपन वास्तव में सवालों से घिरा हुआ है , सामयिक और बेहतर प्रस्तुति , बधाई
बचपन वास्तव में सवालों से घिरा हुआ है , सामयिक और बेहतर प्रस्तुति , बधाई
बच्चो के शारीरिक विकास के साथ ही उनके दिमाग में बहुत से प्रश्न पैदा होने लग जाते है जिनका दौर किशोर अवस्था से लेकर युवा अवस्था तक चलता है | अगर सी समय पर उंके प्रशनो का निदान कर दिया जाए तो उनका भविष्य उज्जवल बन जाता है
डॉ० मोनिका जी,
बहुत ही सुन्दर और सार्थक लेख !
सच में किसी बच्चे पूरा की बचपन क्या, क्यों, कैसे जैसे सवालों में गूंथा रहता है! बालमन जिज्ञासाओं की खान होता है कभी ना खत्म होने वाले असंख्य प्रश्न जिनका उत्तर तो शायद अच्छे-अच्छे परिजन भी नहीं दे पाते !
"बच्चे के सवालों को गैर ज़रूरी बताकर नज़रंदाज़ करने के बजाय उनके मनोविज्ञान को समझने की कोशिश जरूरी है ...
उन्हें गलत जवाब देकर उनके मन में और भटकाव को जन्म न दें"
नितांत जरुरी और आवश्यक है
सही सलाह है। जहाँ यह लगे कि कोई प्रश्न बालवय के अनुकूल नहीं है, वहाँ प्यार से बताया जा सकता है कि उस विषय पर विस्तार से बात अभी क्यों नहीं की जा सकती है। अन्य विषयों पर जिज्ञासा यथा सम्भव समुचित रूप से शांत की जानी चाहिये।
@ जहाँ तक हो सके बच्चों के प्रश्नों का गलत जवाब कभी न दें .
सही कहा आपने ..अगर हम आज ही उनकी जिज्ञासा को सही दिशा देंगे तो कल वह सही कार्य कर पायंगे ...वर्ना हालात आज हमारे सामने हैं ..आपका आभार
ये बात तो है, कि एक परटिक्युलर समय में बच्चे हमारी कही बातों को ही ब्रह्म वाक्य मानते हैं| कम से कम उस काल खण्ड में तो हमें केजुयल नहीं होना चाहिए| वैसे भी ऐसे मौके अब हम लोगों को कम ही मिलते हैं कि जब बच्चे अपनी गिज्ञासाओं को शांत करने के लिए हमारी ओर देखें| बाहर की दुनिया बहुत जल्द आज के दौर के माँ-बाप और बच्चों के बीच दूरियाँ स्थापित करने में सक्षम है|
आपके आलेख मुझे पेरेंटिंग में मदद करते हैं... बढ़िया आलेख
सही बात कही आपने इस आलेख में.
सादर
कभी कभी इन प्रश्नों से झुँझलाहट होती है और लगता है कि इनमें कोई सार या तत्व नहीं है, पर यही सोच कर व्यक्त नहीं करता हूँ कि कहीं प्रश्न पूछने का ही क्रम बाधित न हो जाये।
एक चिंतनीय विषय पर अच्छी विश्लेषणात्मक पोस्ट।
बिलकुल सही बात कही है आपने........कहते हैं इंसान अपनी सारी जिंदगी में जो सीखता है उसका आधा सिर्फ चार साल की उम्र में सिख लेता है उसके बाद तो सिर्फ पुनरावृत्ति मात्र रह जाती है और इस उम्र का सीखा तमाम उम्र नहीं मिटता..........बहुत सार्थक मुद्दे पर सार्थक लेख......आभार|
Monika ji bahut achcha lekh likha hai
aaj kal mere saath yahi ho raha hai mere gr.kids jo 3yrs aur 5yrs ki hain bahut savaal poochti hain.mera bhi yahi manna hai ki bachche ke har prashn ka uttar sahi aur spasht den.because this is the time when a child wants to explore the things.
halanki main bhi pravin pandey ji se sahamt hun fir bhi yahi kahunga ki baal mann ko adhik se adhik samajhne ki aawshyakta hai.
is disha main aapki uprokt saamyik post hetu abhaar vyakt karta hun.khed hai ki takniki kaarno ke chaltey roman lipi main pratikirya vyakt kr raha hun.
Abhaarrrrrrrrrrrrrrrrrr
Bachhe sponge kee tarah hote hain....achha bura sab sokh lete hain.....isiliye zarooree hai,ki,unke saamne saty hee pesh kiya jaye!
Bahut achha aalekh!
@ प्रवीण जी
सहमत हूँ आपसे प्रश्नों का यह बाधित नहीं होना चाहिए ...... बच्चों के प्रश्न ही उनसे संवाद बनाये रखने का माध्यम हैं.....
सटीक बात कही है ... बच्चों के मनोविज्ञान को समझना ज़रुरी है ...और उनकी जिज्ञासा को शांत करना भी ..
बिल्कुल सही कहा है ..आपने इस आलेख में ।
आपकी लेख पढ़ कर बच्चों का बचपन याद आ गया ......बहुत अच्छा लिखा है ..बच्चों के प्रश्नों का उत्तर तो देना ही चाहिए ...इसी से आप अपनी सोच उन तक पहुंचा सकते हैं ...!!
मेरा बेटा बचपन से हनुमान जी से बहुत प्रभावित है |बहुत बचपन का उसका प्रश्न .."माँ ,हनुमान जी और गणेश जी की लड़ाई होगी तो कौन जीतेगा ...?"..आज वही बचपन याद आ गया उसका ....!!
aapka post bahut achchha laga ...
बिल्कुल सहमत हूं पिछले एक साल से मै भी "क्यों " और "कैसे " जैसे प्रश्नों का जवाब दे रही हूं और कभी अभी तो ये इतनी लंबी हो जाती है की ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती है एक के बाद एक क्यों क्यों क्यों शुरू हो जाता है , कभी तो सवाल ही अटपटा होता है तो कभी उनके जवाब उनकी समझ के लायक नहीं होते है और कभी कभी तो जवाब हमारे पास ही नहीं होते है | फिर भी जितना बन पड़ता है दे देते है |
विचारणीय आलेख्।
बालमन की मासूम जिज्ञासा को गम्भीरता से लेते हुए उचित समाधान देना ही चाहिए। कभी प्रश्न तो मासूम सा होता है पर उत्तर विस्तृत और आयु के हिसाब से न समझ पाने योग्य। ऐसी दशा में भी शान्त चित्त से उपाय अपनाकर बच्चे को संतुष्ट करना जरूरी है।
मोनिका जी,
आप का लेख आज-कल के माँ-बाप के लिए एक दम सही ...
मेरे जैसे दादा-नाना को तो, इस उम्र में हमारे बच्चे ही शब्दों का सही उच्चारण समझाते हैं ...?
और में खुशी से समझता हूँ ..हा हा हा :-):-)
शुभकामनायें !
बच्चों की मानसिकता का सही
विश्लेषण किया है ! सार्थक लेख है
सहमत हूँ !
बच्चे यों भी गलत चीजों के प्रभाव में बहुत जल्दी आ जाते हैं | इसलिए उन्हें गलत जवाब देकर उनके मन में और भटकाव को जन्म न दें।.....
सही कहा है आपने,बच्चे की जिज्ञासाओं को सही जवाब देकर ही संतुष्ट किया जाना चाहिए.
bahut gambheer aalekh ...
आदरणीय डॉ॰ मोनिका शर्माजी,बिलकुल सही बात कही है आपने "हम बड़े खुद को मानसिक ज़द्दोज़हद से बचाने के लिए भी बच्चों के सवालों से बचने का भरसक प्रयत्न करते हैं | अक्सर यह भी कहते रहते हैं कि आजकल के बच्चे सवाल बहुत करते हैं। आप स्वयं ही सोचिये आज के दौर में बच्चों के पास घर बैठे ही कई जानकारियों का अंबार लगा है। टीवी, इंटरनेट के जरिए इंर्फोमेशन एक्सप्लोजन की स्थिति की आ गई। बच्चों को मिलने वाली यह चाही अनचाही जानकारी उनके मन में कई प्रश्रों को पैदा करती है।"
आज का बचपन वास्तव में सवालों से घिरा हुआ है और बहुत सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति.
बहुत सार्थक आलेख.तीन से पांच वर्ष की अवस्था में बच्चे सबसे ज्यादा जिज्ञासु होते हैं.और वव्ही उम्र होती है जब वे सब कुछ जान लेना चाहते हैं.इस उम्र में उनके सवालों का गलत जबाब औने सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर असर करता है.
बढिया बात कही। सच है, बच्चों को उनकी जिज्ञासा का समाधान दें ताकि उन्हें सच की जानकारी मिले और वे ज्ञान प्राप्त कर सके॥
मोनिका जी,
बिलकुल सही बात कही है आपने...बहुत ही सुन्दर और सार्थक लेख......
बचपन के प्रश्नों के संतुलित समाधान मिल जाये तो सम्भवत: भविष्य सहज हो जाये .......
विचारणीय मुद्दा है आप ठीक कह रहीं हैं जो लोग इस दौर से गुजर चुके हैं वही बेहतर बता सकते हैं
"मैया मोहे दाऊ बहुत खिजायो ,मोसे कहत मोल को लीनों तू जसुमति कब जायो ".हमारी माँ भी बहका देती थी -देख तू ज्यादा शैतानी करेगा तो मुंबई वाले वीरू को बुला लेंगें ,तुझे दो पन्ना दाई से खरीदा था .हमारा सारा सिस्टम ही सवाल को टालने पे खडा है .स्कूल में टीचर कहता है सवाल मत पूछो पढो विषय को रामचरित मानस की चौपाई की तरह ,घर में माँ -बाप यही काम करते रहें हैं .बेशक इधर थोड़ा सा बदलाव आया है .एक तरफ हम सेक्स एज्युकेशन की वकालत करतें हैं और दूसरी तरफ बाल सुलभ मन की जिज्ञासा की ह्त्या ,सवालों के सलीब पर टांग रहें हैं हम शिशु मन को .
यहाँ अमरीका में टालने का तरीका यह है -दिस इज १८ +स्टफ नोट फॉर यू .गुड स्टफ (अच्छी चीज़ )और बेड स्टफ(गन्दी बात ) और बस .गुड डॉग(कटखना कुत्ता नहीं है दोस्त है ) और मीन डॉग.दो तीन लफ़्ज़ों से ढेर सारे काम.गुड जॉब (यानी शाबाशी ,अच्छा काम किया बेटे आपने ).
सवाल बच्चे के व्यक्तित्व और परिपक्वता सीखने के माद्दे (क्षमता )का प्रोजेक्शन होतें हैं .सवाल उछालता है बच्चा .यही उम्र है सर्वाधिक सीखने समेटने की .जिज्ञासा का शमन ,व्यक्तित्व का सप्रेशन है .बतलाइए उसे ,आप नहीं बतलायेंगें तब क्या कोई एलियंस आके समझाइश -बुझाइश देंगे .सवालों की भूल -भुलैयां को और मत उलझाइए .अच्छे सार्थक सवाल उठाती पोस्ट डॉ शिखा जी की .आभार भी स्नेह भी . .
मोनिका जी, मैं देखता हूं कि आपके विषय विल्कुल अलग और व्यवहारिक होते हैं। सच है आफिस घर पहुचंते ही बच्चों के एक से बढकर एक सवाल से गुजरना होता है। ये बहुत ही स्वाभाविक भी है। लेकिन हां बच्चों के सवालों का बडे ही गंभीरता से जवाब दिया जाना चाहिए, वरना इस बाल मन पर इसका वाकई गलत प्रभाव पड़ता है
आपको बहुत बहुत बधाई। पूरे नंबर
bilkul sahi bat kahi hai aapne .bachchon se kbhi n to jhoothh bolna chahiye aur n hi unke prashnon ke galat jawab dene chahiye .sarthak aalekh .aabhar
bilkul sahi likha hai aapne monika ji baccho ko samjhana aab did pratidin muskil hota ja raha hai per? ??
सही जवाब ना आता हो तो क्या बच्चों के सामने नाक कटवाएं...माँ-बाप सब कुछ जानते हैं....आजकल के बच्चे...भगवान बचाए...इनको बहला-फुसला नहीं सकते...
सच कहा आपनें.अनुकरणीय.
एकदम सहमत
बचपन कितना भोला होता है ...सवालों से घिरा होता है....बाल मन की समस्याओं को स्पर्श करती अति प्रासंगिक प्रसूति....शुभकामनाएं !!!
बिलकुल सही है...सहमत हूँ...
बच्चा जीवन का पहला पाठ माँ-बाप से ही सीखता है| यदि वे ही उसे अनसुना कर देंगे तो कहाँ जाएगा वह?
आवश्यकता उसकी वेदना, उसकी उत्सुकता को समझने की है, न कि उसकी अनदेखी करने की...
सार्थक लेख..हर उम्र के पड़ाव पर बच्चों का जीवन अनेक सवालों में उलझा रहता है..बचपन से उनके सवालों के जवाब मिलने लगे तो आगे का जीवन और भी आसान हो जाता है ..
सार्थक लेख..हर उम्र के पड़ाव पर बच्चों का जीवन अनेक सवालों में उलझा रहता है..बचपन से उनके सवालों के जवाब मिलने लगे तो आगे का जीवन और भी आसान हो जाता है ..
sahi kaha aapane ,mera ek cousin brother hain vo bhi kafi sawal puchta hain and khaskr cricket ke bare main...kabhi lagta hain ke are yaar kya kar raha hain par fir main use pyaar se samjha deta hain
विचारोत्तेजक लेख....
एक अबोध बालक ने पूछा, क्या है भ्रष्टाचार ?
माँ बोली, पापा से पूछो ; वो पढ़ते अखबार!
पापा बोले टेबल नीचे होता 'यह' व्यवहार!!
अच्छा-अच्छा, आप आंटी को करते 'जो' हर बार!!!
http://aatm-manthan.com
बाल सुलभ मन का अच्छा विश्लेषण ।
बिल्कुल सच लिखा आपने ।
बाल मनोविज्ञान पर प्रभावोत्पादक आलेख.बच्चों के विकास हेतु उनकी जिज्ञासा अवश्य शांत करना चाहिये.पारिवारिक खुशी में शामिल होने के लिये हृदय से आभार.बहुत अच्छा लगा.
सही बात कहीं आपने ...अपरिपक्व मस्तिष्क जवाब खोजता है...
ऐसा न हो की गलत गाइड मिल जाए !
शुभकामनायें !
बचपन को अपने उत्सुकता का संतुलित और व्यावहारिक उत्तर मिलना ही चाहिए . भविष्य के उत्तरदायी नागरिक समाज को देने का गुरुतर भार है माता पिता के कंधे पर . सुँदर आलेख .
बच्चों के मनोविज्ञान को आपने बड़े ही सुन्दर और सुलझे रूप में प्रस्तुत किया है !
इस विचारणीय लेख के लिए आभार !
बहुत बढ़िया, विचारणीय और सार्थक लेख! शानदार प्रस्तुती!
बहुत ही बुनियादी विषय उठाया है आपने...बच्चे पूरा की बचपन क्या, क्यों, कैसे जैसे सवालों में उलझा रहता है और बचपन के क्या ,क्यों और कैसे ?...जीवन भर पीछा नहीं छोड़ते हैं.
apne achhe vishya ko uthaya hai. akshar bachche kahte hai ki meri teacher ne to ye bataya . arthat jo bataya vah brahm vakya. isliye sahi tarike se sahi jankari dena hi uttam hai.
कल शनिवार (०९-०७-११)को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी ..नयी -पुरानी हलचल पर ..आइये और अपने शुभ विचार दीजिये ..!!
Bachhon ke manovighyan ko samjhne ke liye prerak aalekh prasuti ke liye aabhar!
sach me bache baut swal karte hain..ye unki jigyasha ke karan hota hai.....good post
बहुत ही सुन्दर और सार्थक लेख
आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत अच्छा लिखती हैं आप। बचपन सवालों से उलझा होता है। और यही वह समय है जब माता-पिता को थोड़ा संयम से काम लेते हुए उनके सभी प्रश्नो के उत्तर देने की कोशिश करनी चाहिये।
poori tarh se sahmat hoon .sarthak aalekh.badhai.
बाल मनोविज्ञान के विकास और समझ पर एक सुलिखित पोस्ट !
बहुत ही सही और जरूरी बात, ये विकास की उम्र् है, अगर इस आयु में बच्चों की जिज्ञासाओं को शांत करने की बजाय डांट कर उन्हें भगा दिया जाएगा तो वो शायद कभी खुलकर अपने मन की बात कह ही नहीं पाएंगे।
कमेंट्स के ज़रिये हुई चर्चा भी काफी लाभदायक है.बहुत ज़रूरी बात उठाई है आपने.
बाल-सुलभ जिज्ञासा कई आविष्कारों की जननी रही है। इस खजाने को खोना अपूरणीय क्षति होगी।
बहुत ही उपयोगी एवं सार्थक लेख....
बाल मन की जिज्ञासा का.......... बढ़िया विश्लेषण
प्रेरक और अनुकरणीय
मुझे लगता है माँ बाप को अपने बच्चों पर खास ध्यान देना चाहिए जबकि आज के भागदौड़ मे यही नहीं हो पाता है|बच्चों के जिज्ञासाओं को शांत करना भी ज़रुरी है| 'डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट' मे भी पढ़ा था आपको|
बच्चों पर विशेष और उपयोगी आलेख.आभार.
ऐसे लेख हमारे अध्यापको को जरूर पढ़ना चाहिए. जो बच्चों का मनोविज्ञान बिगाड़ कर रख देते हैं, अपनी रोजमर्रा की टेंशन दूर करने के लिए..
बच्चों के सवालों का जवाब दिया जाना चाहिए।
बच्चे बहुत जिज्ञासु और तार्किक होते हैं। उनके सवालों का जवाब देने से उनकी बौद्धिक क्षमता ओर भाषा प्रयोग की क्षमता में वृद्धि होती है।
बहुत बढ़िया, सामयिक और उपयोगी आलेख।
विचारणीय मुद्दा , सधी लेखनी.
Visiting after a long time as I was disconnected from web.
Very true the day a kid start going school/ play school the never ending race begins :O
आप अगर बच्चों से प्यार करते हैं तो उनके मासूम प्रश्नों से भी प्यार करना होगा, और उन्हें सही उत्तर देना होगा..बहुत सार्थक और उपयोगी आलेख..
इस उम्र में बताई गई कई बातें हमेशा के लिए उनके मन-मस्तिष्क में घर कर जाती हैं, जिससे आगे चलकर उनका पूरा व्यक्तित्व प्रभावित होता है।मोनिका जी बहुत ही सुरुचिपूर्ण विवेचन ! अमल में लानी चाहिए १ बहुत - बहुत बधाई !
बेहतर आलेख सुन्दर प्रस्तुति..बच्चों के विकास में उनकी भावना का भी महत्त्व रखना जरूरी है..
सुव्यवस्था सूत्रधार मंच-सामाजिक धार्मिक एवं भारतीयता के विचारों का साझा मंच..
Sunder
sunder
sunder
SACH KAHA AAPNE BACCHO KE PRASHNO KA JAWAAB JAROOR AUR UCHIT JAWAB DENE KI KOSHISH KARNI CHAAHIYE. SUNDER LEKH.
Very very relevant. I do agree.
मोनिका जी, आजकल कहते हें कि बच्चों के प्रश्नों को गम्भीरता से लेना चाहिये, धेर्य से उनके उत्तर देना चाहिये, ताकि उनका विकास ठीक से हो, उनमें आत्मविश्वास बने. काश इस बात को हमारे बड़ों ने समझा होता, जो हमारे प्रश्नों को सुन कर अनसुना कर देते थे, तभी हमारा मानसिक विकास ठीक नहीं हुआ! :)
parents should talk with kids
हमें बचपन के इन सवालों से जूझना ही होगा।
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TOP HINDI BLOGS !
आदरणीय मोनिका जी
नमस्कार !
बच्चों के प्रश्नों का गलत जवाब कभी न दें
सही कहा आपने
बालमन की मासूम जिज्ञासा को गम्भीरता से समाधान देना ही चाहिए। बच्चे को संतुष्ट करना जरूरी है।
बहुत ही सुन्दर और सार्थक लेख !
अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
बहुत ही उत्कृष्ट पोस्ट बधाई डॉ० मोनिका जी |
monika ji
jahir hai ki is umra ke bachcho me harcheej ke baare me bahut hi jigyasayen hoti hain agar ham unke
sawalo ka jawab sahi dhang se na de payenge to bachhe bhi man hi man kunthit hote rahenge jisse unke mansik v sharirik vikas bhi aage chal kar byadhit honge.
iske liye jimmedar mata pita hi honge .
isliye behtar hai ki ham apne bachcho ki bhavnao v unke sawalo se bachne ki jagah thoda waqt dekar uski samsayaon ka samadhaan karen.
bachcho ke bhavishhy ke liye ye bahut hi jaroori hai.
bahut bahut hi badhiya laga aapka lekh.
bahut bahut badhaaaaai
poonam
सच है ... बच्चों के मन बहुत भोले होते हैं ... अगर उनको गलत जानकारी दी जाए तो कभी कभी उल्टा भी हो जाता है ... सही तरीके से बात समझाना बहुत जरूरी है बाल मन को ...
डॉ मोनिका शर्मा जी बहुत सुन्दर विषय आप का -और सुन्दर विचार -बच्चे हम सब से बहुत कुछ सीखते हैं आज के बच्चे तो बहुत ही विकसित मन मस्तिष्क वाले हैं -जो देखते हैं जल्द याद करते और सीखते हैं -
आप का निम्न कथन बिलकुल जायज है -बच्चे को प्यार से समझाएं उसको यहाँ वहां घुमाएँ नहीं न गलत सिखा दें -यदि उत्तर आप को नहीं भी आता हो तो बीच का कुछ रास्ता निकल बाद में संतुष्ट करें -
जहाँ तक हो सके बच्चों के प्रश्नों का गलत जवाब कभी न दें | कई बार बच्चों के सवालों को माथापच्ची समझ, उन्हें निपटाने की सोच के साथ अभिभावक गलत जवाब भी दे देते हैं। जबकि ऐसा कतई नहीं होना चाहिए।
शुक्ल भ्रमर ५
आप सभी का आभार मेरे ब्लॉग पर आकर अपने विचारों को साझा करने का
काफ़ी विचारोत्तेजक, गहन विश्लेषण युक्त सार्थक आलेख. आभार.
सादर,
डोरोथी.
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