ये पांच शब्द साढ़े तीन साल के चैतन्य ने टीवी का एक दृश्य जिसमें बच्चे की पिटाई हो रही थी, को देखते हुए कुछ इस तरह से कहे कि लगा बच्चे हमसे कहीं ज्यादा समझते और महसूस करते हैं | बाल सुलभ सोच के भाव कितने गहरे होते हैं ...... इस सोच के साथ पूरा दिन बीत गया | न जाने क्यों..... उसकी कही बात को नज़रंदाज़ करने का भाव एक बार भी मन में नहीं आया | शायद इसकी वजह यह भी है कि इन मासूमों की कही बात में कोई किन्तु-परन्तु तो होता ही नहीं ....... उनका मन-मस्तिष्क तो बातें बनाकर बोलना जानता ही नहीं |
टीवी कार्यक्रम से खुद को अलग करते हुए सोचा कि हमारे परिवारों और स्कूलों में बच्चों पर हाथ उठाना एक आम बात है | आये दिन ऐसी घटनाएँ सुनने में आती हैं | ऐसे में किस हद तक बच्चों का अंतर्मन व्यथित होता होगा | किस सोच के साथ वे बड़े होते होंगें ....? जहाँ उन्हें सबसे ज्यादा सुरक्षा पाने कि आशा होती है वहां उनके साथ होने वाला हिंसात्मक व्यवहार उन्हें भीतर तक विचलित करता होगा |
कई बार देखने में आता है की परिवार के आर्थिक हालातों से लेकर अभिभावकों की दिनचर्या तक शाम ढले बच्चों के साथ होने वाले व्यवहार के लिए जिम्मेदार होती है | जबकि हम सब जानते हैं की इन सब सामाजिक , आर्थिक और पारिवारिक परिस्थितियों के लिए छोटे -छोटे बच्चे किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं होते |
कभी पढाई नहीं करने को लेकर तो कभी उनका व्यवहार सुधारने के नाम पर हमारे घरों में बच्चे पीटे जाते हैं | अच्छे खासे पढ़े लिखे अभिभावक भी जाने अनजाने बच्चों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार करते हैं | माता पिता के पास बच्चों को बैठकर उन्हें पढ़ाने या पढाई के विषय में बात करने का समय नहीं है पर बच्चा अव्वल आये यह चाहत पहले से कहीं ज्यादा बलवती हुई है | सच में कभी कभी तो लगता है कि बच्चों से जितनी अधिक उम्मीदें बढीं हैं अभिभावकों का उनके प्रति गुस्सा भी उतना ही ज्यादा हुआ है |
बच्चों को अनुशासित करने के लिए भी कई बार अभिभावक मारपीट का रास्ता अपनाते हैं | जो की अंततः बच्चे का व्यवहार बिगाड़ने का काम करता है | छोटी उम्र में घर के लोगों से मिला ऐसा व्यवहार उल्टा उन्हें आक्रामक बना देता है | उनके व्यक्तित्व में कई व्यवहारगत समस्याएं ले आता है | हमेशा के लिए उनके जीवन को गंभीर भावनात्मक संकट की अनचाही सौगात मिल जाती है |
पिटाई के विकल्प बहुत हैं पर उनके लिए अभिभावकों को भी बच्चों को समय देना होगा ....... उन्हें आराम से बैठकर समझाना होगा | उनके करीब जाकर उनकी गलतियों से उन्हें अवगत करवाना होगा ..... और जो कुछ भी माता-पिता बच्चे से चाहते हैं चाहे वो एकेडमिक परफोर्मेंस हो या व्यवहारगत बदलाव उससे उन्हें स्वयं भी जूझना होगा | हाथ उठाने के बजाये परिस्थितियों को समझकर बच्चे को संबल देना होगा |
ज़रा सोचिये एक छोटा बच्चा जो कई बार यह भी नहीं जानता कि वो मार क्यों खा रहा है .....? उसकी गलती क्या है और वो उसने कब कर दी ......? उस बच्चे से सार्थक संवाद करने के बजाय हाथ उठाना कितना सही है ...? बिना सोचे विचारे बड़े उनके शरीर पर चोट करते हैं .....पर वो लगती उनके कोमल ह्रदय पर है | शायद हम सबको समझने की आवश्यकता कि ..... हिटिंग हर्ट्स...........!
108 comments:
बिलकुल सही कहा है आपने सहमत हूँ !
बच्चोंको मारना,पीटना बहुत बुरा असर
डालते है उबके वेक्तित्व विकास पर !
बहुत बढ़िया लेख है !
एक विचारणीय बिषय और सार्थक पोस्ट मोनिका जी
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
डॉ० मोनिका जी बहुत उम्दा और शिक्षाप्रद आलेख बधाई और शुभकामनाएं |
डॉ० मोनिका जी बहुत उम्दा और शिक्षाप्रद आलेख बधाई और शुभकामनाएं |
सही कहा मोनिका जी.
कोमल मन पर कठोर छाप
ऐसा तो मत करो आप।
आभार।
BACHO KE SATH BACHO KI TARHA HI PES AANA CHAHIYE, UNKE UPAR JYADTI KARNA MARPITAYI KARNA GALAT HAI, UNKE MAN ME GALAT BATE BETH JATI HAIN JINKA USE JINDGI BHAR SAMNA KARNA PADTA HAI. . . . . . . . .
JAI HIND JAI BHARAT
कोमल मन को समझाने के और भी तरीके है पिटाई के सिवा, हिन्शात्मक व्यवहार बच्चों की growth रोक देता है और वे मनोविकार के शिकार हो सकते है अनुशासन कायम करने के लिए भय ही बहुत है. अच्छी पोस्ट
डॉ० मोनिका जी,
बहुत ही सुन्दर लेख,
बच्चे प्रेम के पात्र होते हैं हिंसा के नहीं ||
डॉ० मोनिका जी,
बहुत ही सुन्दर लेख,
बच्चे तो प्रेम के पात्र होते हैं हिंसा के नहीं ||
डॉ.मोनिका जी ,
बात तो आपकी संवेदना के स्तर पर ठीक है
मगर कुछ बच्चे तो हार्ड कोर ही होते हैं ..
उन्हें अनुशासित करने का कोई और विकल्प नहीं नही
है शायद!
कहा गया है कि-
लालनाद बहवो दोषा: ताड़नाद बहवो गुणा:।
इसमें ताड़न करने का अर्थ निगरानी करने के से है, बच्चे से मार पीट करने की बजाए उसका ध्यान रखना चाहिए, जिससे सम्पूर्ण विकास हो सके एवं एक अच्छा नागरिक बन सके।
आभार
bilkul sahi kaha.bakayi sochne wali hai.aaj k parents pahle k parents se kai guna jyada expectations rakhte hai.
बिलकुल सही. बच्चों को मारना उन्हें सुधरने या गलती महसूस कराने का उपाय नहीं है. यदि हम उनसे आदर्श व्यवहार की अपेक्षा करें तो हमें स्वयं आदर्श स्थापित करना होगा.
लेकिन एक बात यह भी कहना चाहूँगा कि अब बच्चे पहले जैसे सरलमना नहीं रहे. उनपर बहुत से उद्दीपनों का प्रभाव पड़ता रहता है.
बिलकुल सही संदेश है आपका।
मातापिता जब विचारशीलता में आलस्य करते है तभी बच्चों के साथ आवेशात्मक पेश आते है।
पीटाई तो बच्चों के सम्पूर्ण व्यवतित्व को ही गलत दिशा में प्रभावित कर देती है।
एक प्रभावी पोस्ट के लिए आपका आभार !
जब हम बच्चे थे तो माता पिता से पिटना सामान्य बात लगती थी, सोचते थे कि जब गलत काम किया है तो सज़ा तो मिलेगी ही. स्कूल में भी कितना पिटे, कभी कभी लगा कि नाइन्साफ़ी से पिटे. आज यूरोप में बच्चे पर हाथ उठाना बिल्कुल गलत माना जाता है, लेकिन कभी कभी लगता है कि हर बात को बच्चे पर अत्याचार मानना भी कुछ गलत है.
जब व्यक्ति माता या पिता बनते हैं तब उनके पास गुरुतर उत्तरदायित्व आता है। लेकिन माता-पिता बनने के लिए किस मानसिकता की आवश्यकता है यह शिक्षण नहीं होता है। इस कारण कई माता-पिता अपनी खीज बच्चों पर उतारते हैं और कुछ अत्यधिक लाड़-प्यार देकर बच्चे को बिगाड़ते हैं। इसलिए माता-पिता के लिए भी किसी न किसी शिक्षण की अनिवार्यता होनी चाहिए।
बिल्कुल सही। दर्द तो होता ही है, इससे हिंसा की शिक्षा भी मिलती है, इसलिये, "प्यार दो, प्यार लो!"
शनिवार (१८-०६-११)आपकी किसी पोस्ट की हलचल है ...नयी -पुरानी हलचल पर ..कृपया आईये और हमारी इस हलचल में शामिल हो जाइए ...
जैसा कि सभी ने कहा मैं यही कहूँगा कि मार के आलवा और भी रास्ते हैं बच्चों को समझाने के.
एक सम्पूर्ण और बहुत ही अच्छा लगा आपका आलेख.
सादर
सुश्री अजीत गुप्ताजी से सहमत.
बात आपकी भी सही है। बहुत छोटे बच्चों को इस तरह मारना सही नही लेकिन माँ बाप का कुछ डर अगर रहे तो बच्चे बुराईयों से बचे रहते हैं लेकिन बेरहमी से मारना कोई हल नही। हम अपने समय मे नज़र डालें तो लगता है कि पिता का डर और माँ का प्यार बच्चे के जीवन मे हमेशा काम आता है।
जहाँ उन्हें सबसे ज्यादा सुरक्षा पाने कि आशा होती है वहां उनके साथ होने वाला हिंसात्मक व्यवहार उन्हें भीतर तक विचलित करता होगा ? निसंदेह ........
आभार व्यक्त करता हूँ उपरोक्त पोस्ट हेतु,
बच्चे तो बच्चे हैं उनका व्यवहार चाहे जैसा हो लेकिन उनके प्रति किसी भी तरह की हिंसा से कतई सहमत नहीं हूँ - हमेशा की तरह सार्थक एवं सराहनीय आलेख
विचारणीय लेख ... पिटाई से बच्चे आक्रामक हो जाते हैं ...माता पिता के पास अपनी बात समझाने का समय नहीं होता ... जबकि उनको बच्चों के साथ अपना समय बिताना चाहिए ..
बिलकुल सही कहा है आपने सहमत हूँ !
मैं ऐसा नही मानता हूँ | थोड़ी सी पिटाई जरूरी है | ये बात अलग है की और भी रस्ते हैं | मैं ये नहीं बोल रहन हूँ की हर बात में बच्चों को मारा जाये लेकिन जहाँ लगता है वहां लगा ही देना चाहिए |
बच्चों को पीटने के तो मैं भी खिलाफ हूं।
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ब्लॉग समीक्षा की 20वीं कड़ी...
आई साइबोर्ग, नैतिकता की धज्जियाँ...
बिल्कुल सही कहा है आपने ...बेहद सटीक एवं सार्थक प्रस्तुति ।
सहमत हूँ ..... बच्चों को मारना निकॄष्टतम अपराध है ..... हमारे एक पड़ोसी का प्रिय काम है छुट्टी के दिन अपने सात साल के बच्चे की पिटाई और उसके बाद उसको घुमाने ले जाना ..... उन महानुभाव के इन दोनों कामों का औचित्य मुझे तो समझ नहीं आता ,पर उस बच्चे की चीखें सुनना कष्ट देता है .......
सहमत हूँ शिक्षाप्रद पोस्ट से
ज्ञानवर्धक लेख है |बच्चो के प्रती मै भी कभी मार पीट के पक्ष में नहीं रहा हूँ | |
Expectations have no end, if a kid scores 80, next time bar is increased to 85 :D along with frustration, which result in acts like this.
Well depicted and summed up !!
बिलकुल सही कहा है आपने सहमत हूँ !
बहुत ही उम्दा लेख ....
मोनिका जी बहुत अच्छा विषय चुना है आपने ... जैसा कि सभी ने कहा मैं यही कहूँगी कि बच्चों को समझाने के लिए प्यार का रास्ता सबसे अच्छा है वैसे भी वे बहुत मासूम होते हैं कई बार तो उन्हें ये भी पता नहीं होता कि उन्हें मारा क्यूँ जा रहा है... मैं आपकी बात से पुर्णतः सहमत हूँ... बहुत ही अच्छा लगा आपका आलेख...
aapke vicharon se poori tarah se sahmat.
बहुत अच्छा और सार्थक आलेख लिखा है आपने मोनिका जी !
माता पिता या अभिभावकों को भी शिक्षित किया जाना चाहिए.पिटाई किसी भी समस्या का सामाधान नहीं हो सकती. कई बार हम जब दूसरे को ऐसा करते देखते हैं तो क्षोभ होता है दुःख होता है. परन्तु जब खुद वही करते हैं तो यह नहीं सोचते.
अजीत गुप्ता जी की बात से भी सहमत.
aapse poorntaya sahmat hun .sarthak aalekh .aabhar .
आज कल के बच्चे पहले से कही ज्यादा संवेदनशील होते है और हर चीज को समझते है उनके साथ किसी भी तरह का व्यव्हार करने से पहले कई बार सोचना चाहिए |
आपके विचार न केवल सराहनीय वरन अनुकरणीय हैं.
बिलुल सही कहा है आपने...सहमत हूँ आपसे...बच्चों को इस प्रकार मारने पीटने से वे ढीट हो सकते हैं...यह भी हो सकता है कि डर के साए में बचपन बिता कर वे डरपोक बन जाएं व अपने मस्तिष्क का सम्पूर्ण विकास न कर पाएं...ऐसे बच्चे मानसिक रूप से विद्रोही हो जाते हैं...आवश्यकता मारने पीटने की नहीं अपितु प्यार देने की है...अपने बच्चों पर इस प्रकार हाथ उठाना गलत है...
सभी काम दायरे में रहकर करें...हाँ यह भी उचित है कि बच्चों के मन में बड़ों के लिए आदर भाव हो, मारने पीटने से बच्चा बड़ों का आदर नहीं करेगा केवल डर के मारे आज्ञा का पालन ही करेगा...
वो दिन सचमुच गए....जब कहा जाता था spare the rod and spoil the child ..आज के बच्चे बहुत ही संवेदनशील हैं....और हर व्यवहार की मीमांसा करने में सक्षम.Hurt तो पहले भी होते होंगे बच्चे पर उसे नियति मान...कभी उसपर सोचते नहीं थे.
पर अब स्थिति काफी बदल रही है..स्कूल में हाथ उठना बंद हो ही चुका है..माता-पिता भी इस से दूर रहने की कोशिश करते हैं.फिर भी कई बार अपना फ्रस्ट्रेशन,बच्चे पर निकाला देते अहिं..जो सर्वथा अनुचित है.
बच्चों पर हाथ उठाने के पहले और बाद में बस एक बार ही सोच लें लोग।
बहुत ही अच्छा लेख है. बच्चों को मारना ही हर समस्या का समाधान नहीं है.
पर मुझे नहीं लगता की बिना मार खाए कोई बच्चा सीधे रस्ते चलता है.
बच्चों के साथ सख्ती के तो मैं भी खिलाफ हूं।
लीक से हटकर बिल्कुल व्यवहारिक बातें की हैं आपने। बहुत बढिया
आज कल के बच्चे पहले से कही ज्यादा संवेदनशील होते है और हर चीज को समझते है उनके साथ किसी भी तरह का व्यव्हार करने से पहले कई बार सोचना चाहिए |
बच्चों को मारना उन्हें सुधरने या गलती महसूस कराने का उपाय नहीं है. |एक विचारणीय बिषय और सार्थक पोस्ट है !.....आभार।
उस बच्चे से सार्थक संवाद करने के बजाय हाथ उठाना कितना सही है
.
सही सवाल है और इस बात को बहुत से माता पिता नहीं समझ पाते
बहुत सही कहा है..बहुत सार्थक और विचारणीय पोस्ट..
कभी कहा जाता था -spare the rod and spoil the child और आज- हिटिंग हर्ट्स---
बहुत सार्थक सन्देश !
एकदम सही कहा आपने......अच्छे खासे पढ़े लिखे अभिभावक भी जाने अनजाने बच्चों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार कर बैठते हैं और ठेस लगती उनके कोमल ह्रदय पर.
इसे भी परवरिश का पार्ट कह सकते हैं...जिसको मार पड़ी है...वो दूसरे को भी मार से सुधारना चाहता है...सौभाग्य से मुझे बहुत कम मार पड़ी है...और मै आजतक अपने बच्चों को मार नहीं पाया...आफ्टर आल बच्चे ही तो हैं वो...
कम से कम मैंने तो ऐसा ...नही किया ,क्यों!
हो सकता है मेरे साथ ...जाने-अन्जाने ऐसा कुछ ज्यादा हुआ हो ...
अच्छे विचार,अच्छा लेख |
शुभकामनाएँ |
बहुत सही लिखा है आपने ... विचारात्मक प्रस्तुति ।
बच्चो को शारीरिक प्रताड़ना देना उनके समुचित मानसिक विकास में बाधा होता है . स्नेह और समझदारी , पालकों से अपेक्षित है . आप के आलेख हमेशा ही समाज हित वाली बातों पर केन्द्रित होते है
मेरे चार वर्षीय बेटे को डोरीमान चाहिये जिसके लिये वह अपने सभी खिलौनो को छोड़ने को भी तैयार है । ऐसे मे मन आनंदित भी होता है और जिद बढ़ जाने पर कभी क्रोधित भी पर आप सहीं है संयह मे काम लेना ही अच्छा रहता है ।
मन के घाव कोई नही देख पाता... और इसके इलाज में लगने वाला नाजुक भाव किसी भी मेडिकल स्टोर पर नही मिलते..
बहुत ही विचारणीय आलेख. अच्छा लगा पढ़ कर.
बिलकुल सही संदेश!!एक विचारणीय बिषय और सार्थक पोस्ट!!
बहुत बढ़िया, शानदार, सार्थक और विचारणीय लेख ! बिल्कुल सटीक कहा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
मोनिका जी बिलकुल सार्थक ! वैसे कोई भी अभिभावक /शिक्षक शारीरिक दंड नहीं देना चाहता ! बरवश कुछ हालात और बड़ो की मानसिक संतुलन में बदलाव इसके लिए कारण है !बड़ो को इस आदत से परहेज करनी चाहिए !
यह बिलकुल सही बात है कि बच्चों को बिना समझाए हाथ उठाना अपराध जैसा ही है ...
सुन्दर प्रस्तुति मोनिका जी...एक बड़ी सीधी सी बात को आकर्षक अंदाज में परोसा है आपने..वधाई.
मोनिका जी,
एक विचारणीय पोस्ट
सादर- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
डॉ .मोनिका जीवन के दो ध्रुव बने हुएँ हैं यहाँ पश्चिममे (मैं अमरीका के मिशगन राज्य में बैठा अमरीका की बात कर रहा हूँ ) आप बच्चों को नहीं मार सकते .पराये बच्चे को तो प्यार से छू भी नहीं सकते .गोरे पसंद नहीं करते .यह सब चोचले बाज़ी ,जिसे हम वात्सल्य कहतें हैं .माँ बाप भी बच्चे को मार नहीं सकते यहाँ ९११ पर झूंठ मूंठ को भी फोन करने से पुलिस आ जाती है .माँ -बाप बगलें झांकते रह जातें हैं ।
बच्चों में बला की क्षमता होती है ,अच्छे बुरे के पारखी वे हम से ज्यादा होतें हैं .वे केवल प्रिटेंड-प्ले में ही नहीं प्रिटेंड -वीपिंग में भी पारंगत होतें हैं .रोना उनकी डिफेन्स मिकेनिज्म है उचित -अनुचित को मनवाने का कामयाब अश्त्र है .
यहाँ गंगा उलटी बह रही है ।
बच्चे बादशाह है १८ के नीचे नीचे .१८ के पार वो जाने उनका काम जाने ।
स्कूल टीचर और बच्चे को हाथ लगादे यहाँ फेडरल क़ानून बहुत सख्त ही नहीं लागू भी होतें हैं ,सब के लिए यकसां भी हैं ,भारत के घरेलू हिंसा रोधी कानूनों की तरह लचर नहीं है ।
और बच्चा ५ साल के पार अपनी ये रचनात्मकता खोता चला जाता है .दूसरे दवाओं के नीचे आ जाता है निस लिए सोनू सही कहता है -मम्मा इट हर्ट्स .,हिटिंग हर्ट्स ,और एक्स हिट्स मी ....
आभार आपका समाज सापेक्ष लेखन के लिए .
बहुत विचारणीय सटीक आलेख....
ये बात पहले भी महत्वपूर्ण थी पर अब अधिक ज़रूरी हो गई है| बच्चों को सिर्फ हिंसा के द्वारा समझाना वैसे भी सही नहीं है|
बच्चों को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित करना अब अपराध है। ऐसा करने वाले अभिभावक और शिक्षकों को दण्ड दिए जाने का प्रावधान है।
इसके बावजूद बच्चों को प्रताड़ित करना जारी है, जो चिंताजनक है।
विचारणीय बिषय और सार्थक पोस्ट.....आभार
मुझे लगता है कभी कभी मारना आवश्यक हो जाता है पर हर मार के बाद बच्चों के साथ बैठ कर इन्हे मारने का कारण ज़रूर बताना चाहिए और रिश्तों में मिठास दुबारा ले आनी चाहिए ...
निश्चित ही हम सबको समझने की आवश्यकता कि हिटिंग हर्ट्स...!
बहुत अच्छा विषय लिया.
बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पे आगमन हुआ...मुझे अपने स्कूल के समय के आचार्यजी के खौफ को दिल में ताज़ा कर दिया..हाहाहा.. आगे, मेरे विचार से हमारी संस्कृति ही क्या लगभग सभी एशियाई संस्कृतियों में बच्चों पर हाथ उठाने में किसी को गरज नहीं लगती..लोग क्यूँ नहीं समझते की बच्चे गीली मिटटी से होते हैं..उन्हें तो शुद्ध विचारों का कोमल स्पर्श ही ढाल सकता है..हाथो का तीव्र वेग नहीं...
बेहद कोमल शीर्षक दिया आपने.. धन्यवाद.. :)
एक सार्थक सन्देश देती विचारणीय प्रस्तुति
बहुत अच्छी जानकारी है शुभकामना यहाँ भी आये इस ब्लॉग की लिंक यहाँ है
good post
बात तो आप की सही है. मैं तो इसे एक आवश्यक बुराई मानता हूँ क्योंकि कभी -२ कुछ ऐसी परिस्तिथियाँ होती हैं जहाँ 'पिटाई' भी एक उपाय है.
फ़िर भी मैं इसका समर्थन नहीं कर रहा हूँ.
मोनिका जी,
एक विचारणीय लेख....बहुत सार्थक लगी निम्न पंक्तियाँ :-
ज़रा सोचिये एक छोटा बच्चा जो कई बार यह भी नहीं जानता कि वो मार क्यों खा रहा है .....? उसकी गलती क्या है और वो उसने कब कर दी ......? उस बच्चे से सार्थक संवाद करने के बजाय हाथ उठाना कितना सही है ...? बिना सोचे विचारे बड़े उनके शरीर पर चोट करते हैं .....पर वो लगती उनके कोमल ह्रदय पर है | शायद हम सबको समझने की आवश्यकता कि ..... हिटिंग हर्ट्स...........!
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बिलकुल सही संदेश है आपका।
अब तो लोगों को समझ आ जाना चाहिये ।
bilkul sahi my blog link- "samrat bundelkhand"
बिना सोचे विचारे बड़े उनके शरीर पर चोट करते हैं .....पर वो लगती उनके कोमल ह्रदय पर है | ... शिक्षाप्रद पोस्ट
सच है मोनिका जी.....दुनिया में सबसे ज्यादा ज़ुल्म बच्चों पर ही होता है......सुन्दर पोस्ट|
हम तो पहली बार आपके ब्लॉग पर आये
बच्चों के कोमल मन को उजागर करती यह प्रस्तुति अच्छी लगी
आभार आपका डॉ .सोनिया !इस पोस्ट के लिए ,प्रोत्साहन के लिए .
बच्चे तो प्रेम के पात्र होते हैं हिंसा के नहीं|
Bilkul sahi likha hai aapne......bachchon ko maarna-peetna bilkul galat hai.
Taare Zameen Par jaisi filmein yehi sandesh deti hain.
very true,monika ji.
बहुत सार्थक आलेख .
डॉ मोनिका शर्मा जी सुन्दर सार्थक लेख बच्चे का दिल बड़ा नाजुक होता है कोमल मन को फूल सा ही रखना चाहिए निम्न कथन से मै भी सहमत हूँ लेकिन जब यही बच्चे बड़े हो जाएँ और संबाद हमारी बात न सुने गलत ही करें तब कडाई बहुत जरुरी है नहीं तो सारा जीवन वे फिर सुधर नहीं पाते
ज़रा सोचिये एक छोटा बच्चा जो कई बार यह भी नहीं जानता कि वो मार क्यों खा रहा है .....? उसकी गलती क्या है और वो उसने कब कर दी .
शुक्ल भ्रमर 5
"hiting heart" lekh sadhuwad dr. monika ji
वैसे तो पूरा ही लेख प्रशंशा का हकदार है मगर एक बात जो बहुत अच्छी लगी वो है " जब पता ही ना हो की पिटाई किस लिए हो रही हो " तो उस पिटाई का क्या ओचित्य है भला ?
मेरे स्वर्गीय पिताजी कहा करते थे जब व्यक्ति के पास तर्क समाप्त हो जाते हैं, कहें तो वो स्वंय ही अपनी बात समझाने में असफल होने लगता है, तब ही उसे गुस्सा आता है. बच्चों पर गुस्सा उतारना सही बिलकुल भी नहीं है.
बाल मनोविज्ञान पर गहन चिंतन.मोनिका जी खूब मेहनत की है आपने.
मोनिका जी !
आपने तो बच्चों का पूरा मनोविज्ञान ही समाहित कर दिया अपने लेख में ..
बहुत कुछ नए सिरे से सोचने की प्रेरणा देता है लेख..
१००% सहमत .....
सटीक ढंग से समस्या विवेचित की है आपने...
अतिविचारनीय विषय...
हाथ उठाने के बाद हमेशा अपराध बोध बना रहता है
Monika ji...bahut hi sahi...bhktbhogi hun..samajh sakta hun peer..aapne bahut hi sahi vishay par bahut hi sashakt lekh likha hai...badhayee.
सहमत हूँ आपसे..बच्चों को कोई अभिभावक या शिक्षक कैसे कभी बेरहमी से मार सकते हैं ये बात मैं समझ नहीं पाता.
एक बात यकसां है पूरब हो या पश्चिम बच्चों के साथ परिवार के नाम पर बचे पति -पत्नी सारे दिन खुद ही दौड़े भागे रहतें हैं .घर में ताला भी लगता है .कई मर्तबा बच्चे पहले पहुँच जातें हैं प्रतीक्षा करतें हैं .यहाँ आप बच्चों को अकेले घर में कानूनन नहीं छोड़ सकते .अपने यहाँ सब चलता है आप सभी न यह कभी न कभी देखा होगा .परिवार का सांझा समय कौन सा है ?
vastav men vichar yogya vishay.shikshaprad lekh.
S.N.Shukla
जी हाँ हम सबको समझने की जरुरत है
बच्चों की पिटाई एक आहार-श्रृंखला का हिस्सा है। अभिभावक कहीं और से चोट खाते हैं,गुस्सा कहीं और निकलता है।
'परिवार के आर्थिक हालातों से लेकर अभिभावकों की दिनचर्या तक शाम ढले बच्चों के साथ होने वाले व्यवहार के लिए जिम्मेदार होती है | जबकि हम सब जानते हैं की इन सब सामाजिक , आर्थिक और पारिवारिक परिस्थितियों के लिए छोटे -छोटे बच्चे किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं होते | '
-बच्चों की पिटाई उन्हें सुधारने के लिए कम . अपनी खीझ निकालने के लिए ज्यादा होती है |
किसी भी तंतु वाद्य के तंतुओं में न ढील अच्छी होती है न ही ज्यादा तनाव. ढीला हुआ तो बेसुरा हो जायेगा ,अधिक ताना तो टूट जायेगा. बस उसी तरह परवरिश में संतुलित तनाव का होना आवश्यक है ,तभी मधुर स्वर लहरी उत्पन्न हो पायेगी.
आपसे सहमत हूँ. मैं खुद बच्चों की पिटाई में कभी विश्वाश नहीं करता.मुझे याद नहीं आता की कभी मैंने अपने बेटे को पीटा हो. निश्चित ही प्यार से बच्चे ज्यादा समझते हैं.
बिलकुल सही कहा है बच्चोंको मारना,पीटना बहुत बुरा असर डालते है उबके व्यक्तित्व के विकास पर. बहुत उम्दा और गंभीर चर्चा के विषय को उठाया है.
बेहतरीन और बेहद उपयोगी लेख ...काश हम समझदार हो सकें ख़ास तौर पर इन मासूमों के साथ ! आभार !
विचारणीय प्रस्तुति....
आप सबका आभार इस विषय पर टिप्पणियों के रूप में अपने अर्थपूर्ण विचार रखने के लिए......
बहुत ही सार्थक लेख ..सही कहा आपने...
कोमल बाल मन पर बहुत ही विपरीत प्रभाव पड़ता है ...ब्यक्तित्व के विकास पर भी असर पड़ता है ....प्रतियोगिता में अब्बल आने कि ललक ..इस ब्यवहार के लिए जिम्मेदार है....
I'm fully agree wid u..I also never beat my 3yrs old son..I only..chide him.....Very good post..kudos to u..
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