कच्ची उम्र में विवाह के बंधन में बांध दिए जाने वाले बच्चों का जीवन कितना तकलीफों भरा हो सकता है यह समझना किसी के लिए मुश्किल नहीं। यहां तक कि उन अभिभावकों के लिए भी नहीं जो खुद मासूमों को नव दंपत्ति के रूप में आशीर्वाद देते है। ऐसा इसलिए कह रही हूं क्योंकि राजस्थान के गांव से जुङे होने के कारण ऐसे बाल विवाह काफी करीब से देखे हैं। उन अभिभावकों के साथ बैठकर बात भी की है जिनमें हम जागरूकता की कमी मानते हैं। आमतौर पर बाल विवाह जैसी कुरीति के विषय में समाचार पत्र भी इन खबरों से अटे रहते हैं कि गांवों में लोग अशिक्षित हैं और यह नहीं समझते कि बाल विवाह यानि कि बचपन में बनने वाले इस रिश्ते का उनके मासूम बच्चों के जीवन पर क्या प्रभाव होगा ?
आप स्वयं ही सोचिये खुद सात साल कि उम्र में ब्याही गई मां से ज्यादा इस बात को कौन समझ सकता है कि कम उम्र में गृहस्थी संभालने की तकलीफें क्या होती हैं.....? फिर भी वो खुश होती है कि उसकी बेटी परण (शादी) जायेगी। उनकी जिम्मेदारी का बोझ कम हो जायेगा। आखिर क्यों.....?
कारण कोई एक नहीं है | मासूम बच्चों से उनका बचपन छीन लेने वाली इस कुरीति के पीछे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारणों की एक लंबी फेहरिस्त है। किसी के पास देने के लिए दहेज नहीं....... तो किसी की सामाजिक हैसियत इतनी कम है कि बेटी को कम उम्र में ब्याह देना ही उन्हें एकमात्र तरीका लगता है उसे दबंगों की बुरी नजर से बचाने का....... कहीं माता पिता गरीबी और क़र्ज़ में इतना डूबे हैं की दस साल की बच्ची का बेमेल ब्याह चालीस साल के दूल्हे से रचा कर घर के बाकी बच्चों का पेट पालने की सोच रहे हैं...........कोई बेटे का ब्याह कम उम्र में इसलिए करना चाहता है क्योंकि कुछ साल बाद तो दुल्हन ही नहीं मिलेगी............. वैसे भी बेटियों को दुनिया में आने ही नहीं देगें तो बेटों दुल्हनें मिलेंगीं कैसे ......?
ग्रामीण जीवन से करीब होने के चलते जो मैंने महसूस किया है उसके बूते यह तो निश्चित तौर पर कह सकती हूं कि जागरूकता की कमी एक कारण हो सकता है पर इससे बङे कई दूसरे कारण हैं जिसके चलते कानून आते जाते रहते हैं पर यह कुप्रथा जस की तस अपनी जङें जमाये हुए है। इससे उल्ट हकीकत तो यह है कि आज बाल विवाह के साथ चाइल्ड ट्रैफिकिंग और बेमेल शादियों जैसी कुरीतियां और जुङ गईं हैं नतीजतन यह कुप्रथा और भी ज्यादा विकृत हो चली है।
आज के समय में मुझे बाल विवाह के लिए जागरूकता की कमी से ज्यादा बङे कारण दहेज ,गरीबी और सामाजिक असुरक्षा लगते हैं क्योंकि शिक्षित और जागरूक परिवार तो दहेज की मांग करने और कन्या भ्रूणहत्या में गांव के लोगों से भी आगे हैं। शायद इसका कारण यह भी है की शिक्षा का अर्थ सिर्फ किताबें पढ़ लेना भर नहीं है | यही वजह है की समाज में व्याप्त इन कुप्रथाओं के उन्मूलन के लिए सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर समय के साथ आये बदलावों को स्वीकार करने की सोच को बल मिले यह बहुत आवश्यक है | क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता है तो बाल विवाह की जगह बच्चों की आनर किलिंग होगी | इसीलिए समग्र रूप से बाल विवाह जैसी कुरीति को मिटाने के लिए कई सारे कारणों पर विचार करना जरूरी है ।
मैं यह भी मानती हूं कि सामाजिक मान्यता और स्वीकार्यता के बिना कोई कानून काम नहीं कर सकता। जब तक सामाजिक सुरक्षा और सम्मान की परिस्थितियां समाज के हर व्यक्ति के हिस्से नहीं आयेंगीं ऐसी कुरीतियां फलती फूलती रहेंगीं।
65 comments:
जनचेतना से भरी पोस्ट डॉ० मोनिका जी इसका प्रणाम सबसे अधिक कन्या को भुगतना पड़ता है |समाज को जागरूक करना कानून से भी अधिक कारगर है |सुंदर विचार हमें देने के लिए आभार
ऐसी सामाजिक समस्याओं के उन्मूलन की कुंजी आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक विकास में छिपी है। जब तक समाज का कमज़ोर वर्ग अपने को सुरक्षित महसूस नहीं करेगा, इन कुरीतियों को मिटाना कठिन है। क्या आपको मालूम है कि सैकडों वर्षों से यूरोप में विचर रहे घुमंतू रोमा कबीलों में भी बाल विवाह वैसे ही प्रचलित है जैसे कि उनकी मूलभूमि राजस्थान में? वैसे यदि विवाह बचपन में हो भी जाये मगर गौना युवावस्था में हो तो ऐसे विवाह में क्या बुराई है?
aapse poori tarah sahmat hun .aisee kuprathayen rokne ke liye samajik v paravarik star par soch me vyapak badlav ki jaroorat hai .sarthak aalekh .aabhar
कानून तो हमारे देश में क्या क्या नहीं बने हुए हैं....समाज सुधार सिर्फ कानून के बल पर नहीं बल्कि आम आदमी सहित समाजों के भागीदारी से ही संभव है ...शिक्षा भी इसमें अहम् भूमिका निभाती है , मगर शिक्षितों में दहेज़ और झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा का लोभ कुरीतियों को कम नहीं कर पा रहा ...
अच्छा आकलन किया है आपने !
सामाजिक मान्यताओं को समयानुकूल बदलने में कानून सहायक होता है.
गाँवों में अभी भी बाल-विवाह प्रचलित हैं....पंद्रह-सोलह साल की छोटी सी उम्र में माँ बनना उनके स्वास्थ्य के लिए घातक है...बहुत जरूरी है, लड़कियों को शिक्षित कर...जागरूकता फैलाना...
namaskar ji
hum aapse pori taraha sahamat hein
bal vivah samajik burai hone ke sath
aprad bhi hein
kanon to humare desh me savidhan ki sobha bada rahe he
ye to aisi buraiya he jinko kanon se
nahi sakun se sampt kiya jana chahiye
जागरूकता की कमी से ज्यादा बङे कारण दहेज , गरीबी और सामाजिक असुरक्षा लगते हैं ..
दहेज सबसे बड़ा कारण है.... गरीबी इसका पूरक!
bahut hi sundar Monika Ji
Yogesh Amana
plz visit ma blog ..hope u like ..
वर्तमान सामाजिक परिदृश्य देखें तो पाएंगे कि 10 वर्ष की आयु के बाद ही बच्चे यौन सम्बन्ध बनाने लगते हैं और इसी कारण इसे जायज बनाने के लिए कानून भी बनाया जा रहा है। इन सब से बचने के लिए यदि गाँवों में बाल-विवाह का प्रचलन है तो क्या गलत है? लड़की के व्यस्क होने पर ही गौणे का रिवाज है। आज वेलेन्टाइन-डे को प्रचारित किया जा रहा है, जिसमें नन्हें बच्चों को चुम्बन करते दिखाया जाता है। तो क्या यौन सम्बन्ध बनाना जायज है और विवाह करके उसे कानूनी जामा पहनाना नाजायज है? समाज में बाल-विवाह के कारण इतनी विकृति नहीं आयी है जितनी वेलेन्टाइन-डे मनाने से आयी है तो क्या हम इसका विरोध भी करेंगे? मैं बाल-विवाह के पक्ष में नहीं हूँ लेकिन केवल मात्र एक प्रथा को बुराई बताना और अन्य परम्पराओं को आधुनिकता बताने को मैं गलत मानती हूँ। शायद हमारे माता-पिता या दादा-दादी का विवाह भी 18 और 21 के कानून से नहीं हुआ होगा तो क्या हम सारी संताने बौद्धिक रूप से कमजोर हैं?
कारण कुछ भी हो पर निवारण हो। आधुनिक समाज में धब्बा जैसा लगता है यह।
आजकल इस प्रकार की प्रथा बहुत कम हो गयी है मेरे आस पास का वातावरण ग्रामीण हे है लेकिन मैंने नहीं सूना कि कंही बाल विवाह हो रहा है बाल विवाह के नाम पर सरकारी तंत्र केवल लकीर पीट रहा है | इस विषय को लेकर सरकारी पैसे का दुरूपयोग हो रहा है | सरकारे सस्थाए और एनजीओ वगैरा इस बारे में बैठक आयोजित करते है जिसमे समय और पैसा खर्च हो रहा है | कई बार तो पोलिस वाले बालविवाह की खबर पाकर घटना स्थल पर जाकर देखते है तो पाया जाता कि किसी रंजिस के चलते गलत फोन कर दिया गया है | और वर वधु के माता पिता से दक्षिणा लेकर लौट आते है |मै इस प्रथा का हिमायती कतई नहीं हूँ | लेकिन वास्तविकता अलग है |
सार्थक लेख ....बालविवाह के साथ जुड़े अन्य कारण पर विचार करना ज़रूरी है ... अजीत गुप्ता जी की बातों पर भी गौर करने की ज़रूरत है ...
@अजित गुप्ता जी- आपकी बातो से पूर्णतः सहमत!
@लेख हालांकि समाज के सुधार के उद्देश्य से लिखा गया एक सार्थक लेख है,पर जो कमी इसमें रह गयी थी वो आदरणीय अजित जी ने पूरी कर दी,मेरे हिसाब से!
बस अब इस पर भी एक चर्चा चलनी ही चाहिए..यहाँ भी और हर कहीं!
कुंवर जी,
सच में आज हम तकनिकी उन्नति कर रहे है लेकिन भारत के जादातर से गाव अभी भी अनछुए है प्रथामिक जरूरतों के .... शिक्षा से ...जागरूकता से....जैसे उन्हें इनसे कुछ लेना ही नहीं है....
बहुत सुन्दर लेख
बहुत ही सही एवं विचारणीय प्रस्तुति ।
मोनिका जी,
बहुत सार्थक विषय पर बहुत गहन चिंतन है आपका..........' शिक्षा का अर्थ सिर्फ किताबें पढ़ लेना भर नहीं है' बहुत अच्छी बात कही है आपने........मुझे तो ये लगता है की पढ़ -लिख कर आदमी और ज्यादा पतन के गर्त में गिर गया है......हाँ समाज की बहुत सी कुप्रथाओं में एक बहुत बड़ी कुप्रथा है ये और इसका हल सिर्फ जागरूकता ही हो सकती है........बहुत सार्थक और सटीक लेख.....
मूल कारण शिक्षा का अभाव । इससे अधिक कुत्सित और कोई कुरीति नही । इसका पुरजोर विरोध किया जाना नितान्त आवश्यक है ।
कच्ची उम्र में विवाह के बंधन में बांध दिए जाने वाले बच्चों का जीवन कितना तकलीफों भरा हो सकता है यह समझना किसी के लिए मुश्किल नहीं। यहां तक कि उन अभिभावकों के लिए भी नहीं जो खुद मासूमों को नव दंपत्ति के रूप में आशीर्वाद देते है...
बिलकुल सही कहा है आपने शारीरिक और मानसिक तकलीफें तो उन्हें झेलना ही होता है, पर इसके दूरगामी दुष्प्रभाव उन्हें और साथ में उनके बच्चों तक को भुगतना पड़ता है, क्योकि माता-पिता भी उतनी ही जल्दी बन जाते हैं, और शायद उतनी समझदारी से बच्चो का पालन पोषण नहीं कर पाते जितना एक परिपक्व पालक करते हैं...
"मैं भी मानती हूं कि सामाजिक मान्यता और स्वीकार्यता के बिना कोई कानून काम नहीं कर सकता। जब तक सामाजिक सुरक्षा और सम्मान की परिस्थितियां समाज के हर व्यक्ति के हिस्से नहीं आयेंगीं ऐसी कुरीतियां फलती फूलती रहेंगीं। "
बाल विवाह किसी लिहाज़ से ठीक नहीं है.आप बहुत अच्छे विषयों पर लिखती हैं,मोनिका जी.आपको पढ़ना अच्छा लगता है.
बाल विवाह जैसी समस्या का कारण सिर्फ जागरूकता की कमी नहीं है ...सहमत .
इसके पीछे बेहद बड़ी आर्थिक और सामाजिक वजह छुपी हैं.जब तक उन्हें नहीं हल किया जाता कोई कानून और शिक्षा काम नहीं करेगी.
सार्थक आलेख.
@ अजीत गुप्ता जी ! विवाह सिर्फ योन सम्बन्धों का नाम नहीं,इसके अलावा भी बहुत सी जिम्मेदारियां और कर्तव्यों से बंधा होता है विवाह.यदि दस साल का बच्चा योन सम्बन्ध बनाता है तो उसका विवाह कर देना चहिये ये बात मेरे गले तो नहीं उतरती.हालाँकि इतने छोटे बच्चों में योन संबंधों की ललक भी सामाजिक समस्या ही जान पड़ती है मुझे.और इसे क़ानूनी जायज़ बनाना एक मूर्खता पूर्ण विचार.
विचारणीय और चिन्तनीय आलेख्…………कदम सभी को उठाने होंगे तभी स्थिति सुधर सकती है।
आख़िरी पैराग्राफ में दिया आपका निष्कर्ष ही इस समस्या का भी निदान कर सकता है. कुरीतियों पर व्यापक एवं प्रभावकारी आक्रमण सभी को करना चाहिए जो की समय की मांग है.
इन कुरितियोंका सबसे बड़ा कारण है
इनका अशिक्षित होना !
बहुत अच्छी सार्थक पोस्ट !
मैं आपकी बात से सहमत हूँ. बाल विवाह के दुष्परिणाम ही ज़्यादा सामने आते हैं.
"सामाजिक मान्यता और स्वीकार्यता के बिना कोई कानून काम नहीं कर सकता"
आपके इस कथन से पूर्णतः सहमत.
सादर
आप सभी की वैचारिक टिप्पणियों का आभार .....
मेरा जो अनुभव है उससे मुझे यही लगता है की सिर्फ जागरूकता की कमी की वजह से ही बाल विवाह नहीं होते ......आज गाँव में केबल टीवी है बच्चे पढ़ लिख रहे हैं इसके बावजूद ऐसा होता क्योंकि आर्थिक और सामाजिक कारण भी जिम्मेदार हैं ऐसी कुरीतियों के लिए .......
अब यह प्रथा भारत के कुछ हिस्सों में ही बरकरार है , जिसका मुख्य कारण आर्थिक बिषमता और सामाजिक अन्याय ही है ! चिंता का विषय !
इस सामाजिक कुरीति का कोई इलाज नही --पर इस बदलते समाज में कई बार सोचती हूँ की यह ठीक भी है --
बहुत दूर गाँव की बात दूर यही शहर में गरीब बस्तियों में बाल विवाह होते देखना आश्चर्य की बात नहीं .... ..जब तक ऐसी कुरीतियों की जड़ में बैठे उनकी सामाजिक, शैक्षिक और सबसे बड़ी आर्थिक स्थिति को नहीं सुधारा जाएगा तब तक सिर्फ बातों से काम नहीं चलने वाला ... लाख समझा लो लेकिन कल तो फिर उनका वही रोना रहेगा, फिर कौन देखता है .....
आपकी यह बात बिलकुल सही है कि सामाजिक मान्यता और स्वीकार्यता के बिना कोई कानून काम नहीं कर सकता। जब तक सामाजिक सुरक्षा और सम्मान की परिस्थितियां समाज के हर व्यक्ति के हिस्से नहीं आयेंगीं ऐसी कुरीतियां फलती फूलती रहेंगीं। ..,
सार्थक जागरूकता भरी प्रस्तुति के लिए आभार
aap ki baat se sehmat bhi hun aur gaanvo ki is kuriti ko janti bhi hun aur jan kar dukhi bhi hoti hun. Lekin aaj ke is pragatisheel samay me media ek bahut bada role ada karti hai aur ganvo tak bhi iski painth koi kam nahi hai. Jab TV par vulger cheeze dikhayi jati hain to unhe koi nahi rokta jo ki baccho par bura asar dalti hain jaisa ki Dr. Ajit gupta ne kaha. lekin media aisi kuritiyon ke nindneey parinaamo ke bare me kuchh khas karykram nahi dikhati hai.
aaj ke samay me media ek jabardast aur asardar zariya hai jiske dwara samaj me parivartan laa sakte hain.
सामाजिक मान्यता और स्वीकार्यता के बिना कोई कानून काम नहीं कर सकता.
very true.
thanks for sharing a social issue.
इतने लोगों ने राय दे ही दी..मैं इतना ही कहूँगा की शिक्षा जरुरी है हर वर्ग में तभी ये कुरीति दूर होगी ..
कलंक है हमारे समाज पर यह ! शायद अशिक्षा एक बहुत बड़ा कारण है ! शुभकामनायें !
सार्थक लेख ....
अच्छा आकलन किया है आपने !
बाल विवाह को एक सामाजिक अपराध भी मानना चाहिए कानून तो अपना काम तब करेगा जब समाज उसको अपराध मानेगा | एक जरुरी पोस्ट , आभार
जिस बाल विवाह की बात सोचकर ही मन दुखी हो जाता हो,उसके भुक्तभोगी को भला क्या सुख मिल सकता है!
आपने समस्या के जमीनी वास्तविकता से परिचय करवाया, और सत्य परक आंकलन किया।
अजित गुप्ता जी नें और भी स्पष्ठ कर दिया। आप दोनो की दृष्टि जमीनी सच्चाई है।
माता पिता भी नहीं चाहते उनकी सन्तान के जीवन में कठिनाईयां भरी जाय, लोग और व्यवस्था, कुरिति कुरिति कह पल्ला झाड़ लेंगे, उनके लिये सार्थक आर्थिक और सुरक्षा रूपी अनुकूलता बनाकर कौन देगा?
आपने समस्या के जमीनी वास्तविकता से परिचय करवाया, और सत्य परक आंकलन किया।
अजित गुप्ता जी नें और भी स्पष्ठ कर दिया। आप दोनो की दृष्टि जमीनी सच्चाई है।
माता पिता भी नहीं चाहते उनकी सन्तान के जीवन में कठिनाईयां भरी जाय, लोग और व्यवस्था, कुरिति कुरिति कह पल्ला झाड़ लेंगे, उनके लिये सार्थक आर्थिक और सुरक्षा रूपी अनुकूलता बनाकर कौन देगा?
जमाना कुछ भी कहे लेकिन मैं बाल विवाह का प्रबल पक्षधर हूँ। बशर्ते वह बाल विवाह वास्तव में बाल विवाह हो। ये नहीं कि बच्चे को पैसों के लालच में बुड्ढों को ब्याह दो। पुराने व्यवहारिक ज्ञान को आँखें खोल के देखो दोस्तों। ओ बड़ी बड़ी बातें करने वाले लड़को, मर्दों, लड़कियों औरतों। क्या तुम्हें १० ११ साल की उम्र में यौन संबंध बनाने की अकुलाहट महसूस नहीं हुई ? हुई है ना तो फिर जबरदस्ती फ़ैशन में वास्तविकता से मुकरने का क्या मतलब है ? ऑल ऑफ़ यू बनावटी सज्जन्स।
नारी के प्रति अत्याचार और बलात्कार रोक देगा एक सुसंकृत, सभ्य और संतुलित बाल विवाह।
दिक्कत यही है कि हमारे समाज अभी भी हजारों वर्ष पूर्व की मानसिकता लिए चल रहे हैं -क्योंकि उनकी सामाजिक आर्थिक स्थितियां बदली नहीं!
हम लोग अधिकार के प्रति तो जागरूक हैं पर समाज ये देश के प्रति अपने कर्तव्यों के लिए नहीं...वर्ना नियम-कानून को मानने वालों की संख्या ज्यादा होती...बच्चों को बड़े-बड़े स्कूलों में १०-१० विषय पढाये जा रहे हैं...पर क्या कहीं कुछ देश का नियम या कानून बताया जा रहा है...पब्लिक स्कूलों में कर और मोटर सायकिल से आते बच्चों को देख कर ये लगता है कि हम अभी सुधरने के मूड में नहीं हैं...बाल-विवाह के प्रति लोगों को जागरूक करके ही बच्चों का बचपन छिनने से बचाया जा सकता है...
कल अक्षय तृतीया थी और हर साल राजेस्थान सहित देश के कई इलाको में बड़ी संख्या में सार्वजनिक रूप से बाल विवाह होते है किन्तु वही सत्ता का समीकरण के कारण इन पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है ये केवल लड़कियों का ही नहीं बल्कि लड़को का भी बचपन छीन लेता है |
बाल विवाह के सन्दर्भ में सही कारणों की वास्तविक जानकारी आपकी इस पोस्ट द्वारा देखने में आ रही है । आभार सहित...
aapse poori tarah sahmat hoon par ab ladkiyan khas taur se grameen ladkiyon me virodh kee aawazen uthne lagi hain.
सुन्दर विचार... बहुत बहुत बधाई ।।।।
बाल विवाह पर आपकी राय उचित है.दरअसल इस विषय को केवल क़ानूनी नज़रिये से देखना भर ठीक नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक समस्या है.इसे रोकने के लिये समाज को जागरूक बनाना सबसे ज़रुरी है वरना हम कानून पर कानून बनाते जायेंगे और बाल विवाह होते रहेंगे.
बाल विवाह की समस्या महज क़ानूनी नहीं है बल्कि इसके लिये समाज और खासकर इस कुरीति के शिकार क्षेत्रों के प्रभावशाली तबके को जागरूक बनाने की आवश्यकता है.वरना हम कानून पर कानून बनाते रहेंगे और बाल विवाह होते रहेंगे.
बहरहाल सार्थक संवाद शुरू करने की लिये आभार
सामाजिक कुरीतियों के निवारण के लिए जागरूकता और शिक्षा का प्रसार आवश्यक है.
बहुत ही सही एवं विचारणीय प्रस्तुति| धन्यवाद|
डॉ॰ मोनिका जी,
सही विवेचना की है आपने ....
सिर्फ जागरूकता की कमी की वजह से ही बाल विवाह नहीं होते ......आज गाँव में केबल टीवी है बच्चे पढ़ लिख रहे हैं इसके बावजूद ऐसा होता क्योंकि आर्थिक और सामाजिक कारण भी जिम्मेदार हैं ऐसी कुरीतियों के लिए .......
अच्छे और गंभीर विषयों पर ध्यान आकर्षित करने और मनन करने का अवसर देने के लिए आपका आभार।
क्या खूब लिखा है
अगर सब इस तरफ ध्यान दे तो इस दिशा में सुधार हो सकता है
main ise bahut kareeb se dekh chuki aur virodh bhi kiya magar kaun sunta hai jise karna wo kar hi leta hai .thali me baithakar bachcho ko shadi karvate dekha bada dukh hua tha mano kisi bejan putla-putli ko byaah rahe ho .bahut baate yaad aa gayi yahan aakar ,ek aham bishya hai .sundar likha hai
भारत में बाल-विवाह की प्रथा उन राज्यों में अधिक है जिन राज्यों में शिक्षा का प्रतिशत कम है। साथ ही इस प्रथा का प्रचलन उन जातीय-समूहों में अधिक है जिनमें शिक्षा की कमी है। इस प्रथा की लपेट में दलित एवं पिछड़े वर्गों का प्रतिशत अधिक है। बाल-विवाह के कारण व्यक्ति का विकास रुक जाता है। अवयस्क व्यक्ति जीवन की भावी योजनाओं के लिए तैयारी भी नहीं कर पाया कि सिर पर संतान-पालन का बोझ आ पड़ता है। और वह टूट जाता है। इस कुप्रथा को दूर करने में सरकारी-तंत्र उत्साहित कम उदासीन अधिक है। उद्योग जगत जितना धन क्रिकेट-मैचों को कराने में व्यय करता है उसका दसवां भाग भी इस प्रथा को दूर करने में व्यय करदे तो सामाजिक-कल्प हो सकता है। पूंजीवादी व्यवस्था में सब कुछ संभव है। बाल-विवाह की प्रथा कहीं सस्ते-मज़दूर (Man-Power) सुलभ कराने में सहायक तो नहीं है? इस तथ्य पर विचार किए जाना चाहिए।
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
समाज अपना है नाज़ कैसे करे ,
मुसल्सल पेट में होती है फना औरत .सही कहा है आपने :मदर्स वोम्ब चाइल्ड्स टोम्ब!गहरे उतर कर पड़ताल की है आपने इस सामाजिक कुरीति की .बधाई !
फिर से एक बेहद संजीदा विषय को खूबसूरती से लिखा है आपने..मेरे हिसाब से, सामाजिक कुरीतियों को समूल रूप से नष्ट करने के लिए कानून या किसी संवैधानिक सहायता का होना ज़रूरी है.. लेकिन आवाज़ उठाने से पहले अनपढ़ और अविकिसित इलाकों में जागरूकता फ़ैलाने की ज़रुरत है..इससे किसी भी कानून को उद्देश्य प्राप्ति में आसानी और कम समय लगता है. इसलिए हमें ऐसे NGOs को मजबूत करना चाहिए जो इस विषय में कार्यशील हैं..
"मुझे बाल विवाह के लिए जागरूकता की कमी से ज्यादा बङे कारण दहेज ,गरीबी और सामाजिक असुरक्षा लगते हैं"
सही कहा आपने -मैं भी यही सोचता रहा हूँ !
सबसे पहले तो मैं अजीत गुप्ताजी के तर्क का समर्थन करता हूँ।
भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ पढे लिखे बेबकूफों कि कमी नहीं है।
Balpan jindagi mai ek bar hi milta hai aur agar kisi choti bachi jiski age 7-8 years hai agar uski sadi kar dete hai to uska jivan naraj ban jata hai.
मै भी आप की बात से सेहमत हु पर आप ये बताईये के अगर कोइ गरीबी की हालत मे हो और उस के पास अपनी बेटी को पालने के पैसे ना हो तो वो क्या करें
child marriage is very denser social problem in Mahadev koli tribal. (beed district Maharashtra)but public doesn't understand and government doesn't give action.
Problem of child marriage in koli Mahadev tribal (Dist.Beed in Maharashtra)
problem of child marriage in Koli Mahadev (Dist. Beed in Maharashtra)
गुड्डे और गुड़ियों का
व्याह जो रचाती है |
अगले ही पल वह ,
ख़ुद दुल्हन बन जाती हैं |
जो पिता नहीं कह पाती,
वह पत्नी क्या कहलाएगी |
जो दूध अभी पीती है,
वह दूध क्या पिलाएगी |
नाम तो दिया हैं तुमने,
इसको कन्यादान का|
और दान दे दिया ,
एक कन्या की जान का |
Sabhi is kuritiyon se waakif hain siva unke jinka baal vivah hota hai.hame unhe samjhane ki zarurat hai.aap sabhi se mera anurodh hai ki apne star par baal vivah rokne ki koshish kare kyuki chaar diwaari pe baith ke baat to har insaan kar leta hai asal me is gambhir vishay pe kaam kon karta hai is baat par nirbar karta hai baal vivah ko rokna.
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