मोची के बेटे का आईआईटी की परीक्षा में सफलता हासिल करना। तमाम अभावों के बावजूद अपने लक्ष्य को पाने का वाले अभिषेक के घर बिजली नहीं है, पूरा परिवार छोटे से कमरे में रहता है और जरूरत पङने पर अभिषेक खुद भी मजदूरी करने जाता था............... !
झुग्गी में अभावों के बीच परवरिश, पिता मजदूर, मां का काम घर-घर चौका बर्तन करना। स्कॉलरशिप से पढाई की और हरीश ने आईएएस में पहले प्रयास में सफलता अर्जित की.... !
हालांकि ये दोनों खबरें कुछ पुरानी हैं पर हमारे देश में तो हर दिन कोई न कोई कर्मठ युवा ऐसी ही कहानी गढ रहा है। अभावों के बीच जीने वाले ऐसे नौजवानों की परेशानियां भले ही सुर्खियां न बनें पर इनकी उपलब्धि यकीनन अखबारों और समाचार चैनलों के लिए हेडलाइन्स बनती हैं। पता नहीं क्यूं..........जब भी ऐसी कोई खबर जानने सुनने को मिलती है इन अनदेखे अनजाने चेहरों के लिए मन गौरान्वित हो उठता है और खुशी होती है यह सोचकर की न जाने कितने ही युवा इनसे प्ररेणा लेकर नया इतिहास रचने की राह पर चल पङेंगें। बस अफसोस होता है उन नौजवानों को लेकर जो सारी सुख-सुविधाएं पाकर भी कुछ ऐसे कृत्य करते हैं जो समाज और परिवार दोनों को शर्मिंदा करें। ऐसे में यह यकीन भी पुख्ता होता है कि जीवन की सही समझ के लिए अभाव यानि की कमियों के बीच जीना भी जरूरी है।
अभिषेक और हरीश जैसे कई युवा हर साल यह साबित करते हैं कि लालटेन की रौशनी में पढाई और उधार की किताबों वाली बातें सिर्फ फिल्मी कहानियों और किताबों के पन्नों तक सिमटी नहीं हैं। इतना ही नहीं आए साल देश के कई छोटे गांवों और कस्बों के होनहार कामयाबी की दौङ में नामी स्कूलों के बच्चें को पीछे छोङकर हमें याद दिलाते हैं कि प्रतिभा सुविधा और संसाधनों की मोहताज नहीं होती।
बुनियादी सुविधाओं के अभाव के बीच भी अपनी इच्छाशक्ति को बनाये रखना आसान नहीं हैं। जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया और लक्ष्य को पाने की ललक बहुत आवश्यक है। सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। शायद यही वजह है कि जमाना चाहे कितना ही बदल गया हो एक चीज कभी नहीं बदल सकती। वो यह कि कङी मेहनत और लगन से सफलता पाने की प्रतिबद्धता हो तो चमत्कार आज भी होते हैं और अभावों के अंधेरों से सफलता की रौशन राहें भी निकलती हैं।
झुग्गी में अभावों के बीच परवरिश, पिता मजदूर, मां का काम घर-घर चौका बर्तन करना। स्कॉलरशिप से पढाई की और हरीश ने आईएएस में पहले प्रयास में सफलता अर्जित की.... !
हालांकि ये दोनों खबरें कुछ पुरानी हैं पर हमारे देश में तो हर दिन कोई न कोई कर्मठ युवा ऐसी ही कहानी गढ रहा है। अभावों के बीच जीने वाले ऐसे नौजवानों की परेशानियां भले ही सुर्खियां न बनें पर इनकी उपलब्धि यकीनन अखबारों और समाचार चैनलों के लिए हेडलाइन्स बनती हैं। पता नहीं क्यूं..........जब भी ऐसी कोई खबर जानने सुनने को मिलती है इन अनदेखे अनजाने चेहरों के लिए मन गौरान्वित हो उठता है और खुशी होती है यह सोचकर की न जाने कितने ही युवा इनसे प्ररेणा लेकर नया इतिहास रचने की राह पर चल पङेंगें। बस अफसोस होता है उन नौजवानों को लेकर जो सारी सुख-सुविधाएं पाकर भी कुछ ऐसे कृत्य करते हैं जो समाज और परिवार दोनों को शर्मिंदा करें। ऐसे में यह यकीन भी पुख्ता होता है कि जीवन की सही समझ के लिए अभाव यानि की कमियों के बीच जीना भी जरूरी है।
अभिषेक और हरीश जैसे कई युवा हर साल यह साबित करते हैं कि लालटेन की रौशनी में पढाई और उधार की किताबों वाली बातें सिर्फ फिल्मी कहानियों और किताबों के पन्नों तक सिमटी नहीं हैं। इतना ही नहीं आए साल देश के कई छोटे गांवों और कस्बों के होनहार कामयाबी की दौङ में नामी स्कूलों के बच्चें को पीछे छोङकर हमें याद दिलाते हैं कि प्रतिभा सुविधा और संसाधनों की मोहताज नहीं होती।
बुनियादी सुविधाओं के अभाव के बीच भी अपनी इच्छाशक्ति को बनाये रखना आसान नहीं हैं। जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया और लक्ष्य को पाने की ललक बहुत आवश्यक है। सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। शायद यही वजह है कि जमाना चाहे कितना ही बदल गया हो एक चीज कभी नहीं बदल सकती। वो यह कि कङी मेहनत और लगन से सफलता पाने की प्रतिबद्धता हो तो चमत्कार आज भी होते हैं और अभावों के अंधेरों से सफलता की रौशन राहें भी निकलती हैं।