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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

12 October 2010

क्यूँकि मैं एक पिता हूँ......!



मेरे हिस्से ना आया...... !
तुम्हारा गीला बिछौना, रातों का रोना
ना ही आईं थपकियाँ, न लोरी, न पालने की डोरी
न आंसू बहाना, ना तुम्हें गोदी में छुपाना.....
न साज-संभाल करने वाले हाथ, न ही कोई उनींदी रात
क्यूँकी मैं एक पिता हूँ..............!


मेरे हिस्से आया.........
अल-सुबह घर से निकलना
कुछ तिनकों की तलाश में
एक नीड़ सहेजने की आस में
ताकि सांझ ढले जब लौटूं
तो गुड़िया, मुनिया और छोटू
सबके चहरे पर हो खिलखिलाहट
सुनकर मेरे कदमों की आहट
तब मेरा तन भले ही मैला हो
बस...! हाथ में खिलौनों भरा थैला हो
इन पलों में मैं भी बचपन को जीता हूँ...
क्यूँकी मैं एक पिता हूँ........!

मुझे तो समझनी है.......
तुम्हारी हर इच्छा, हर बात
लाकर देनी है तुम्हें हर सौगात
खिलौने, गुब्बारे और मिठाई
कपड़े , किताबें, रोशनाई
तुम्हारा हर स्वप्न करूँ पूरा
नहीं तो मैं रहूँगा अधूरा
बस ! इसी सोच के साथ जीता हूँ...
क्यूँकी मैं एक पिता हूँ.......!


मुझे बनना है घर का हिमालय
बलवान, अडिग और अटल
मज़बूत कंधे मौन संबल
तुम्हारा आदर्श, जीवन का मान
तुम्हारी जीत पर गर्वित
और हार पर धैर्यवान.....!

मेरे कम शब्द और गहरी आवाज़
अनुशासन , अभिव्यक्ति का राज़
वक़्त की धूप में पककर तुम समझ पाओगे
फिर मेरे मन के करीब आओगे.... और जान जाओगे
इतना सब होकर भी मैं भीतर से रीता हूँ........
क्यूँकी मैं एक पिता हूँ .....!

72 comments:

उपेन्द्र नाथ said...

पिता की भूमिका को अच्छे से उकेरा है आपने...

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

अच्छी लगी.... पिता का अहम योगदान परिलक्षित करती हुई कविता!
आशीष
--
प्रायश्चित

Apanatva said...

ati sunder...........
man by narure sentimental nahee hote ye bhranti hee hai.............
bahut sahee aur badiya lekhan.....
Aabhar

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

पिता पर आपकी ये रचना .. माँ के साथ साथ पिता का भी जो योगदान है एक बच्चे के विकास में, जिसको आपने बहुत सुन्दर ढंग से उकेरा है .. शुभकामना

प्रवीण पाण्डेय said...

पिता का दर्द भीतर भीतर ही बहता है, दिखता नहीं।

Akshitaa (Pakhi) said...

वाह, पापा लोगों के लिए अच्छी कविता...
____________________
'पाखी की दुनिया' के 100 पोस्ट पूरे ..ये मारा शतक !!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वक़्त की धूप में
पककर तुम समझ पाओगे
फिर मेरे मन के करीब आओगे....
और जान जाओगे
इतना सब होकर भी मैं
भीतर से रीता हूँ........
क्यूँकी मैं एक पिता हूँ ...

पिता के मन के भावों को बहुत सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है ...बहुत अच्छी रचना ..

Parul kanani said...

monika....bahut bahut sundar likha hai..so touchy!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

एक अंतरसलील को आपने सतह पर ला दिया है ... बेहतरीन !

शोभना चौरे said...

मन को छू गई आपकी यह सुन्दर कविता |
पिता की अनुशासन की धूप न हो तो ममता की छाँवका अहसास कैसा हो ?
बहुत अच्छा लगा एक पिता को समझना |

अरुण चन्द्र रॉय said...

पिता के मन की गहराई तक पहुँच कर लिखी गई कविता.. बहुत सुंदर! अब तक बस केवल माँ को ही समझने की कोशिश की गई है..

जयकृष्ण राय तुषार said...

adbhut post badhai dr.monikaji

vandana gupta said...

पिता के दर्द को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है……………यही तो पिता की दुविधा होती है जिसे वो कभी कह नही पाता अपना दर्द दर्शा नही पाता वरना दिल तो उसमे भी वैसे ही धडकता है जैसे माँ मे…………ऐसी ही एक रचना मैने भी लिखी थी।

पूनम श्रीवास्तव said...

wakai monika ji, aapne ek pita ke man me chalte antar-dvand v unke kartavyo ka ehsaas tath pita ki naitik jimmedariyan jo vo bakhubi nibhane ka prayas karte hai kewal bachon ke chehare par hansi lane ke liye,chahe uske liye unhe kitni hi mushkilo ka samna karna pada ho,ko bahut bahut hi sndar shabdo me paribhashit kiya hai.
behatreen prastuti.
poonam

राज भाटिय़ा said...

मोनिका जी आज आप की कविता ने मन जीत लिया, बहुत सुंदर ढंग से आप ने एक पिता के मन की स्थित व्यान की हे, बहुत ही सुंदर रचना, धन्यवाद

निर्मला कपिला said...

पिता की भूमिका और आखिरी पहरे मे पिता के दिल के दर्द को बखूबी उकेरा है। बहुत भावमय सुन्दर रचना है। बधाई।

अनामिका की सदायें ...... said...

कोई शब्द कोई एहसास शायद ही छूटा हो जो आपने ना उकेरा हो. बहुत बहुत सुंदर अभिव्यक्ति जो हमेशा याद रहेगी.

ZEAL said...

.

बहुत अच्छी लगी ये रचना...पिताजी की याद आ गयी...बहुत दूर हैं...मिल भी नहीं सकती...

.

Manoj K said...

पिता का प्यार क्या खूब उकेरा है आपने.

इतना सब होकर भी रीता हूँ,
क्योंकि मैं एक पिता हूँ...

इन दो पंक्तियों में एक पिता के सारे संघर्ष और जीवन के दिन-रात छुपे हैं.

खूब... ऐसे ही लिखते रहिये...

मनोज

atul shrivastava said...

बहुत अच्‍छी रचना। एक पिता के दिल की बातों को आपने जिस सुजीदगी से रखा है वह तारीफ के लायक है। बधाई हो, इतनी अच्‍छी रचना के लिए।
अतुल श्रीवास्‍तव
atulshrivastavaa.blogspot.com

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ उपेन्द्रजी
बहुत बहुत आभार

@ आशीष
शुक्रिया आशीष
@ apanatva सच कहा आपने यह एक भ्रान्ति ही है की पुरुष भावुक नहीं होते ।

@डॉ नूतन नीति धन्यवाद
मैं यही मानती हूँ माँ के साथ साथ पिता का पूरा योगदान होता है बच्चे को बड़ा करने में.....

@ प्रवीण पाण्डेय सच में पिता का दर्द दिखता नहीं है.... पर होता है ना....!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ पाखी
धन्यवाद

@ संगीता जी
बहुत बहुत आभार आपका

@ Parul thanks parul

@ indranil ji ji हाँ पिता की बातें अंतरसलिल ही रहती हैं..... सतह बिल्कुल शांत और गंभीर

@ शोभना चौरे ... धन्यवाद बड़ा मुस्किल पिता के मन को समझना मेरी बस एक कोशिश ....

@ Arun c roy ji धन्यवाद आपका....

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

अत्यंत भावपूर्ण.
आशा है किसी को नाराज़गी नहीं होगी.

Satish Saxena said...

इस योगदान पर कम ही लिखा गया है अब तक ..हार्दिक शुभकामनायें !

SAKET SHARMA said...

बहुत ही सुन्दर रचना..प्रसंशा के लिए शब्दों की कमी महसूस हो रही है..

Priyanka Soni said...

बहुत ही भावपूर्ण रचना... एक बहुत सुन्दर कविता !

सदा said...

पिता पर लिखी यह रचना, इसके भाव मन को छू गये, बहुत ही सुन्‍दर अनुपम प्रस्‍तुति ।

Unknown said...

..... शून्‍य....
सब शून्‍य सा कर दिया इन पंक्तियों ने..
बहुत भावपूर्ण रचना...
इस आशय की एक कविता हमने भी अपने ब्‍लॉग पर लिखी है।
http://punarjanmm.blogspot.com

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ जयकृष्ण जी
आपका आभार
@ वंदनाजी
सच पिता का प्यार अप्रदर्शित रहता है...तभी समझने में देरी होती है....

@झरोखा
जी पूनमजी पिता का पूरा जीवन परिवार की खुशियाँ जुटाने में चला जाता है.....

@ राज भाटिया जी
आपका बहुत बहुत धन्यवाद ... इस प्रोत्साहन के लिए आभार

@ निर्मला कपिला जी
बहुत बहुत शुक्रिया...

Brrijesh said...

पिता का भाव एक माँ ने बहुत अच्छा उकेरा है
धन्यवाद्, मैं भी एक पिता हूँ

Dr Om Prakash Pandey said...

kisi stree ke liye purush maanasikata ko samajhana man ka ek paroksha vyapaar hai ,atah yah kavita ek sashakta abhivyakti hai .

महेन्‍द्र वर्मा said...

मातृत्व के सुख की समझ को सुंदरता से अभ्व्यिक्त करती और पितृत्व के कर्तव्यों की व्याख्या करती एक बेहतरीन कविता...बहुत ही सशक्त रचना बधाई।

संजय भास्‍कर said...

पिता के दर्द को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है
हर पंक्ति लाजवाब---और गहन अनुभूतियों को प्रतिबिम्बित करने वाली।

Anonymous said...

सर्वप्रथम मुँशी पेमचंद पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया.....ऐसे ही हौसला बढ़ाते रहें.....धन्यवाद...बहुत ही सुन्दर रचना.......ऐसे में कई बार अल्फाज़ नहीं मिलते कुछ कहने को.....एक पिता के जज्बातों को इस खूबसूरती से बयां किया है आपने....वाह ...बहुत ही सुन्दर........अपनी पिछली गलती को सुधारते हुए आज ही आपके ब्लॉग को फॉलो कर रहा हूँ....शुभकामनाये|

उस्ताद जी said...

6/10


ह्रदय-स्पर्शीय रचना
ताजगी भरी पोस्ट

Anonymous said...

Monikaji
Pita ke manobhavon ka yatharth aur marmik chitran hai aapki kavita .yah sakaratmak aur prernadayee bhi hai .

हरकीरत ' हीर' said...

मोनिका जी एक पिता की भावनाओं को बखूबी उतरा है आपने .....
बहुत सुंदर ....!!

Dorothy said...

"वक़्त की धूप में
पककर तुम समझ पाओगे
फिर मेरे मन के करीब आओगे....
और जान जाओगे
इतना सब होकर भी मैं
भीतर से रीता हूँ........
क्यूँकी मैं एक पिता हूँ ..."

एक पिता के अंतर्मन के जटिल एव संश्लिष्ट संसार का ऐसा सूक्ष्मतम और बहुआयामी चित्रण. दिल को छू लेने वाली खूबसूरत रचना. आभार.
सादर
डोरोथी.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ अनामिका की सदायें
उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया .....
@ Zeal
आपकी टिप्पणी ने तो आँखें नाम कर दीं..... दिव्या जी

@ मनोज
शुक्रिया मनोज ...

@ अतुल श्रीवास्तव
धन्यवाद अतुलजी

@ काजल कुमार
धन्यवाद ..... मुझे भी ऐसा ही लगता है............

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ सतीश जी
लिखा भले ही कम गया है..... पर योगदान तो है ही.....

@साकेत शर्मा
धन्यवाद साकेत ......

@ प्रियंका सोनी
शुक्रिया प्रियंका .....

@ sada
बहुत बहुत धन्यवाद सदाजी .......

@अमित तिवारी
पिता की मन की गहराई ऐसी ही होती है.... अमित
धन्यवाद आपका

deepti sharma said...

bahut achhi rachna

deepti sharma said...

aapki kavitaye mujhe achhi lagti hai
isliye mai aapke blog ka anusaran kar rahi hu

सुधीर राघव said...

मां पर तो बहुत सी कविताएं पढ़ीं एक स्त्री होकर पिता की भावनाओं को इतनी सुंदर अभिव्यक्ति दी, सराहनीय है। आपको बहुत-बहुत बधाई। बहुत ही सुंदर कविता।

BrijmohanShrivastava said...

सत्य है गीला बिछौना तो मां के हिस्से में ही आता है।दूसरे पद मंे पिता के अरमान उसकी इच्छायें। तीसरे पद में एक अभाव ग्रस्त पिता चौथा पद पिता एक दृढ निश्चय और अन्तिम पद में अन्दर से उठती एक ठंडी किन्तु गहरी श्वास

Smart Indian said...

बहुत सुन्दर चित्रण - विशेषकर एक पिता की दृष्टि से.

महेन्‍द्र वर्मा said...

सुंदर प्रस्तुति...दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं।

महेन्‍द्र वर्मा said...

सुंदर प्रस्तुति...दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

खुशी हुई कविता पढ़कर। हम पिताओं की व्यथा तो किसी ने जाना।

सुंदर रचना।

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

मोनिका जी,
माँ की अनुपम ममता के सम्मुख पिता का पितृत्व (वस्तुतः ‘स्नेह’)प्रायः उपेक्षित ही रहा है; इस पर बहुत कम लिखा गया। आपकी दृष्टि इस अनछुए बिन्दु पर गयी,यह अपने आपमें ख़ास बात है।

सबसे ख़ास बात तो यह कि एक माँ ने ‘पिता’ पर कविता लिखी है।...सुन्दर कविता पर बधाई!

केवल राम said...

पिता के भाव पूरी शिदत से अभिव्यक्त हुए है ....
सुंदर रचना
मोनिका जी
और इसी के साथ मैं आपका साठवां समर्थक

Neelesh K. Jain said...

sabke papa kya ek se hotein hain...maine apne pita ki barsi par aaj apne blog par kuch likha hai...shayad wo aapka bhi sach ho...

yoursaarathi.blogspot.com

neelesh jain
Mumbai
neelesh.nkj@gmail.com

Coral said...

बहुत ही सुन्दर रचना ! पिता के जज़्बात आपने इतनी अच्छी तरह उकेरा है ...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ ब्रिजेश जी
आपका शुक्रिया

@ ओम प्रकाश पाण्डेय जी
बहुत बहुत शुक्रिया इस उत्साहवर्धन करने वाली टिप्पणी केलिए......

@ महेन्द्रजी
धन्यवाद आपका

@ शुक्रिया संजय ... आपको रचना अच्छी लगी आभार

@ इमरान
बहुत बहुत शुक्रिया

@ उस्तादजी
अबकी बार ६ नंबर ... चलिए आगे और बेहतर करने की कोशिश रहेगी
धन्यवाद

@ हरकीरत जी
बहुत बहुत शुक्रिया

@ डोरोथी जी
मेरे ब्लॉग पर आने और इस सुंदर टिप्पणी का लिए धन्यवाद

संजय कुमार चौरसिया said...

bahut sundar rachna

samay ho to yah link jaroor padiyega

http://sanjaykuamr.blogspot.com/2010/04/blog-post_26.html

Puja Upadhyay said...

WOW!
पिता पर इतनी अच्छी कविता बहुत कम पढ़ने को मिली है. बेहद खूबसूरती और सादगी से कही गयी कविता. शुक्रिया.

Udan Tashtari said...

देर से आया किन्तु इस भावपूर्ण रचना को डूब कर पढ़ा..बहुत सुन्दरता से उतारा है...बधाई.

abhi said...

अधिकतर माँ पे कवितायेँ पढ़ने को मिलती है, पिता पे कम ही पढ़ने को मिलती है..
अच्छा लगा..

Anand Rathore said...

asardar kavita... dil ko choo lene wali... aapki pahli kavita padhi bahut achcha laga... ab to blog padhna padega...

Unknown said...

bahut hi khoob . shekhawati ri khas jhalak

Rajeysha said...

पि‍ता जी की तकलीफों को समझने के लि‍ये आभार।

रश्मि प्रभा... said...

pita ke antarman ko kaafi samjha hai, aankhen nam ho aayin
is rachna ko vatvriksh ke liye bhejen rasprabha@gmail.com per

कडुवासच said...

... bahut sundar ... behatreen !!!

Sunil Kumar said...

pita ki yeh rachna ek nayi khoj hai log pita ko keval paise kamane ki masin samajhte hai achhi marmik rachna

रंजना said...

पांच बात पढ़ चुकी हूँ इस कविता को और अबतक अपने सभी परिचितों को भी लिंक फॉरवर्ड कर चुकी हूँ...लेकिन इस रचना पर टिपण्णी क्या करूँ,समझ नहीं पा रही...

बस इतना ही कह सकती हूँ....आपके कलम को नमन !!!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ दीप्ति
@ सुधीर जी
बहुत बहुत धन्यवाद आपका

@ बृजमोहन जी
@ स्मार्ट इंडियन
@ महेंद्र वर्माजी
मेरे मनोभावों का समझने और अर्थपूर्ण टिप्पणी देने के लिए आभार

@ सिद्धार्थ जी
@ जितेंद्रजी
सब समझते हैं पिताओं की व्यथा को भी। पिता का स्नेह भी किसी तरह से काम नहीं आँका जा सकता .....

@ केवल राम
@नीलेश जी
@ कोरल
@ संजय जी
@ पूजा
आप सबका शुक्रिया ... मेरी रचना को सराहने के लिए......

@उड़न तश्तरी
@ अभी
@आनंद राठौर
@ skmeel
@ राजे शा
मेरे ब्लॉग पर आने और इस रचना पर अपनी टिप्पणी देने के लिए आभार

@ रश्मि प्रभजी
जी आपका बहुत बहुत आभर .....मैं रचना ज़रूर भेजूंगी
@ उदय
@ सुनील कुमार
@ रंजना
बहुत बहुत आभार प्रोत्साहन देने और अपने विचार साझा करने का

vijai Rajbali Mathur said...

NIRBHEEKTAPOORVAK SACHCHAYEE KI ABHIVYAKTI KARNE VALI MARMIK KAVITA KE LIYE DHANYVAAD .

प्रज्ञा पांडेय said...

aapki yah kavita bahut sundar lagi.

Anupama Tripathi said...

अमूल्य कृति है ...
बहुत ही अच्छी रचना ...!
स्त्री होकर जो पुरुष की सोच को महत्त्व दे पाए ....पुरुष होकर जो स्त्री की व्यथा समझ पाए ...नकात्मकता उसका कुछ नहीं बिगड़ सकती ...!
सकारात्मक सोच आपका गहना है ...आपके उत्कृष्ट लेखन से समझ में आ रहा है ...!!बधाई ..!!

Maheshwari kaneri said...

पिता पर आपकी येसुन्दर रचना .. एक बच्चे के विकास में माँ के साथ साथ पिता का भी जो योगदान है, इसे आपने बहुत सुन्दर ढंग से और बहुत सुन्दर शब्दों से बाँधा है ..धन्यवाद

निवेदिता श्रीवास्तव said...

मोनिका ,बहुत प्रभावी अन्दाज़ में एक पिता की भावनाओं को चित्रित किया है ...... शुभकामनायें !

Dev said...

पिता के अंतर्भावों पर खूबसरत प्रस्तुति

Dev said...

पिता के भावों पर यथार्थपरक प्रस्तुति,
बहुत खूब

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