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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य।प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति ---समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें-----कविता संग्रह- 'देहरी के अक्षांश पर' और 'दरवाज़ा खोलो बाबा', आलेख संग्रह-'खुले किवाड़ी बालमन की', लघुकथा संग्रह-'ड्योढ़ी से व्योम तक'

ब्लॉगर साथी

13 July 2010

सिर्फ कोर्स की किताबें काफी नहीं

आमतौर पर यह देखने में आता है की स्कूल के अलावा मिलने वाले समय को ज्यादातर बच्चे या तो कम्प्यूटर पर गेम्स खेलने में लगाते हैं या फिर टीवी देखने में। अभिभावकों को भी यह बच्चों को बिजी रखने का अच्छा विकल्प लगता है। ऐसे में बच्चों के लिए आने वाली रोचक और ज्ञानवर्धक सामग्री से भरपूर पत्र -पत्रिकाएं और बाल साहित्य इस समय के सदुपयोग का बेहतर विकल्प हो सकते हैं। कई पेरेंट्स यह मान लेते हैं की बच्चों को कोर्स की किताबों के इतर कुछ पढ़ने की जरूरत ही नहीं होती। जबकि एक्सपर्ट्स भी यही मानते हैं की बच्चों को कोर्स के अलावा वर्तमान संदर्भों से जुड़ी किताबें भी पढनी चाहियें। क्योंकि ये ' किताबें कोर्स ख़त्म करना है ' कि सोच के साथ नहीं पढ़ी जातीं। जिसके चलते बच्चों के बौद्धिक और मानसिक विकास में सहायक सिद्ध होती हैं। ऐसी किताबें पढने से बच्चों में ' रीडिंग हैबिट ' भी बढती है। इसलिए जिस तरह घर के बड़े सदस्यों कि रूचि और जरूरत को ध्यान में रखकर घरों में पत्र -पत्रिकाएं मंगवाई जाती हैं , बच्चों के लिए भी मंगवाएं। ऐसी किताबें न केवल बच्चों के सम्पूर्ण विकास में सहायक होती हैं उन्हें व्यस्त रखने का रचनात्मक जरिया हैं।
बच्चे को उसकी पसंद के विषय की किताबें लाकर दें। मारधाड़, राक्षसों , भूतों की किताबें उन्हें न पढने दें, इनका बच्चों के मन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। ऐसी बुक्स जो बच्चों को कल्पनाशील बनायें और उन्हें सोचने समझने को प्रेरित करें, बच्चों के लिए जरूर उपलब्ध कराएँ । ऐसी किताबें बच्चों में स्थायी संस्कार और विचार बनाती हैं। पेरेंट्स बच्चों को प्रेरणादायी व्यक्तित्वों की संक्षिप्त जीवनियाँ भी जरूर पढने को दें। इन्हें पढने से उनके विचारों में प्रौढ़ता आएगी जिसका फायदा उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में मिलेगा।

7 comments:

संजय भास्‍कर said...

100 % katu satya

अविनाश वाचस्पति said...

बालकों के लिए बेहद उपयोगी, पर वे उपयोग करें तब न

उन्मुक्त said...

बच्चों में पुस्तक प्रेम जगाना जरूरी है और इसमें धैर्य की भी जरूरत है।

vidya said...

एक दम सटीक बात कही आपने...
किताबी ज्ञान काफी नहीं होता..
अब तो तकरीबन हर परीक्षा में सामान्य ज्ञान और लोजिकल सवाल पूछे जा रहे हैं...
बचपन से इनका अभ्यास ज़रूरी है.

Jeevan Pushp said...

बेहद उपयोगी जानकारी ..!
आभार !

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

उपयोगी पोस्ट....
सादर...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

आपकी बात में दम है उपयोगी पोस्ट .....

मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....

सब कुछ जनता जान गई ,इनके कर्म उजागर है
चुल्लू भर जनता के हिस्से,इनके हिस्से सागर है,
छल का सूरज डूबेगा , नई रौशनी आयेगी
अंधियारे बाटें है तुमने, जनता सबक सिखायेगी,


पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

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