आजकल हमारे देश में ही नहीं दुनियाभर में महिलाओं के साथ होने वाली छेङछाङ और यौन हिंसा के खिलाफ़ लगभग एक सी दलीलें दी जाने लगी हैं। किसी महिला के साथ कोई अनहोनी होते ही हमारे आसपास एक अजीब सी फुसफुसाहट शुरू हो जाती है कि उसने क्या पहना था ? कितना पहना था ? उस वक्त वो फलां जगह क्या कर रही थी? वगैरह वगैरह । ऐसे वाहियात सवालों के ज़रिये पूरा समाज और सिस्टम उस महिला कि पोशाक को अमर्यादित बताकर अपनी जिम्मेदारी से हाथ धोने लगता है। जबकि हकीकत यह है कि पारंपरिक परिधानों में भी महिलाओं के साथ ईव टीजिंग और बलात्कार की घटनाएँ होती हैं। ऐसे हालात में सबसे ज्यादा अफ़सोस तो तब होता है जब इस दर्दनाक स्थिति से गुजरने वाली महिला को ही कटघरे में खड़ा कर देने वाले लोगों के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं होता कि अगर किसी औरत के कपड़े ही उसके साथ हुए अश्लील व्यव्हार के लिए जिम्मेदार हैं तो साल भर कि भी उम्र पार न करने वाली मासूम बच्चियों के साथ आये दिन ऐसी घटनाएँ क्यों होती हैं? इतना ही नहीं क्यों वे उम्र दराज़ औरतें ऐसी वीभत्स घटना का शिकार होती हैं जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में सिर्फ और सिर्फ पारंपरिक लिबास ही पहने हैं। यह शर्मनाक है कि इस तरह के स्त्री विरोधी स्वर नारी कि अस्मिता पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं।
बचपन से एक कहावत हम सब सुनते आये हैं कि ''खूबसूरती देखने वाले कि आँखों में होती है" मेरा सवाल पूरे समाज और सिस्टम से कि अगर खूबसूरती देखने वाले कि आँखों में होती है तो उन्हीं आँखों में अश्लीलता क्यों नहीं हो सकती? बात जब अश्लीलता कि आती है तो उसे औरतों के पहनावे पर क्यों थोप दिया जाता है ?
12 comments:
मोनिका अच्छा लगा आपका ब्लॉग देखकर। आपने अच्छे मुद्दे उठाए हैं अपने ब्लॉग पर।
मेरा मानना है महिला उत्पीडऩ के मामले में महिलाओं को पूरी तरह पुरुषों को और पुरुषों द्वारा पूरी तरह महिलाओं को दोषी मानने की प्रवृत्ति से ऊपर उठना चाहिए। ऐसे मामले में पुरुष भी गुनहगार हो सकता है,महिला भी और हो सकता है दोनों भी इसके लिए दोषी हो।
बहरहाल आप अपनी कलम की स्याही ना सूखने दें। लिखती रहें।
मोनिका जी बेहतर सवाल उठाया आपने लेकिन मर्यादित आचरण पुरुष और स्त्री दोनो पर समान रुप से लागू होना चाहिए..
डा.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com
www.monkvibes.blogspot.com
मोनिका जी बात ये है कि समाज तो मेरी समझ से कुछ होता है नहीं, हम आप से ही मिलकर बनता है. या तो पुरुष या स्त्री. अब अगर पुरुष अपनी जिम्मेदारी नहीं समझता तो उन्हें किसी भी तरह हमें ही समझाना होगा. फिर चाहे उसके लिए उंगली टेड़ी ही क्यों ना करनी पड़े. हम महिलाओं को रक्षात्मक नहीं आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की शिक्षा की बेहद जरूरत है. समाज सिर्फ मजबूत का ही साथ देता है
जब तक शादी जैसी अव्यवहारिकता इस शिद्धत के साथ व्यवहारिक बनी रहेगी तब तक पुरुष-वर्चस्व-वादी मानसकिता को पोषण मिलता रहेगा जिसके चलते इस समस्या का कभी कोई समाधान नहीं मिलने वाला ..केवल एक उपाय है यदि स्त्रीवर्ग शादी जैसी व्यवस्था की अव्यवहारिकता के प्रति सचेत होकर अपने मातृत्व के नैसर्गिक अधिकार की रक्षा और सम्मान के लिए एक जुट हो कर आवाज उठा पाए तब जाकर पुरुष-दंभ को नियंत्रित किया जा सकेगा.... मैं बोलूंगी खुलकर ने बिलकुल सही कहा है --- "समाज सिर्फ मजबूत का ही साथ देता है"
बात जब अश्लीलता कि आती है तो उसे औरतों के पहनावे पर क्यों थोप दिया जाता है ?
सटीक प्रश्न किया है ...
तार्किक सवाल, जिसका जवाब साफ है, लेकिन ज्यादातर मामलों में ताली दोनों हाथों से बजती है.
मोनिका जी आपने अच्छे मुद्दे उठाए हैं । नारी उत्पीडऩ की जब बात आती है तो पुरुष को ही दोषी करार दिया जाता है। लेकिन आज के दौर में स्त्रियाँ इतनी आगे बढ़ चुकी है किअपने को सम्भाल सकती है। मेरे विचार में पुरुष को तो दोषी है ही ,कही स्त्रियाँ भी इन सब के लिए जिम्मेदार है । कही हालात और मजबूरी भी जिम्मेदार है….
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 23-02-2012 को यहाँ भी है
..भावनाओं के पंख लगा ... तोड़ लाना चाँद नयी पुरानी हलचल में .
एक दम सटीक बात कही आपने...
दोष नज़र का होता है....
नज़ारे तो हसीं होते हैं...
बलात्कार एक मानसी सृष्टि है पहले मन में घटित होता है उत्प्रेरक कलुषित मन है न कि लिबास .
हा यह बात तो आपने सही कहा है जब भी महिलाओ के
साथ गलत व्यवहार होता है तो सब
उनके कपडो कि हि बात करते है,,
पर आज तो बच्ची ओर वृद्ध स्त्रिया भी सुरक्षित नही है..
अब इसका क्या जवाब देंगे लोग...
बहूत हि सही मुद्दा है
सार्थक व सटीक लेखन....
सटीक प्रश्न सार्थक चिंता ...
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