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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

Book Introduction- Dehari Ke Akshansh Par



अपने समय और समाज को लेकर कितना कुछ विलक्षण और विचारणीय कहने की समझ और सलीका है उनके पास। एक ओर जहां स्‍त्री को लेकर हमारी समाज-व्‍यवस्‍था की जकड़बंदी को लेकर उनके भीतर गहरी अन्तर्वेदना और छटपटाहट है, घर-परिवार और सामाजिक नियम-कायदों में एक मानवी के रूप में स्‍त्री के विकास की सारी संभावनाओं को अवरुद्ध कर देने की पीड़ा है, वहीं दूसरी ओर इस बात का अहसास भी कि उसे घर-परिवार और जीवन को सहेजने संवारने की अपनी वृहत्तर भूमिका भी निभानी है। हमारे ही परिवेश और परिवार के विन्यास को रेखांकित करती इन कविताओं में सृजित आम से भाव भी विशेष प्रभाव रखते हैं, जो मर्मस्पर्शी भावबोध लिए हैं । 



मेरी किताब ' देहरी के अक्षांश पर' की भूमिका से... हौसला देने वाले ये शब्द आदरणीय नन्द भारद्वाज सर ने लिखे हैं । यह काव्य संग्रह स्त्रीमन और जीवन की भावभूमि से जुड़ी कवितायेँ लिए है । 


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