जिस समाज में लैंगिक असमानता और भ्रूणहत्या जैसी कुरीतियाँ आज भी मौजूद हैं, वहां संवेदनशील और सहयोगी सामाजिक व्यवस्था ही बालिकाओं के जीवन की दशा बदल सकती है | विचारणीय है कि बेटियों के लिए संवेदनशील और सम्मानजनक परिवेश बनाने का अहम् पहलू जन- जागरूकता से जुड़ा है | राष्ट्रीय बालिका दिवस का उद्देश्य समाज में बेटियों को समानता का अधिकार दिलाने की जागरूकता लाना ही है | इस खास दिवस का मकसद देश की बेटियों के लिए सहयोगी, सुविधापूर्ण और सम्मानजनक वातावरण बनना है, जिसमें उनके व्यक्तित्व का सर्वांगींण विकास हो | बालिकाएं शिक्षा से लेकर सुरक्षा तक, हर मोर्चे पर भेदभाव से परे संविधान द्वारा दिए गए उन अधिकारों को जी सकें, जो भारत की नागरिक होने के नाते उनके हिस्से आये हैं | सुखद है कि हालिया बरसों में आये बदलावों के चलते बेटियां आगे भी बढ़ रही हैं और अपना स्वतंत्र अस्तित्व भी गढ़ रही हैं | ऐसे में अगर सुरक्षा और समानता का माहौल मिले तो बेटियों का आज ही नहीं संवरेगा बल्कि आने वाले कल में वे सशक्त और चेतनासंपन्न नागरिक भी बन पाएगीं | ( नईदुनिया में प्रकाशित लेख का अंश )
जी नमस्ते, आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-01-2020) को "बेटियों एक प्रति संवेदनशील बने समाज" (चर्चा अंक - 3591) पर भी होगी चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है। जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित है …. अनीता सैनी
6 comments:
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-01-2020) को "बेटियों एक प्रति संवेदनशील बने समाज" (चर्चा अंक - 3591) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
भावनात्मक संवेदनशीलता लड़कियों के प्रति समाज का नजरिया बदलने में सकारात्मक और सहयोगी साबित होगी।
सार्थक चिंतन देता सुंदर लेख।
बहुत ही प्रभावशाली
प्रभावशाली विचार।
Very nice
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