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06 March 2018

कोलाहल





विचार साझा करने के हर माध्यम ने
संवेदनाओं की ओट में हमें
बना दिया बेहद असंवेदनशील
भुला दिया अंतर घटना और दुर्घटना का
मिटा दी लकीर सूचित करने  शोर मचाने के मध्य
कहना  कोलाहल बन गया
आवाज़ उठाने  के माध्यम
बन गए ऊँचे मचान
जिनपर चढ़कर
स्वयं को हर क्षेत्र का विशेषज्ञ समझ
सार्थक कहने  नाम पर
हम अपने ही शब्दों को अर्थहीन बना रहे  |






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