अपने ही घर में असुरक्षित होने और अपने ही लोगों से मिलने वाली प्रताड़ना यानि की घरेलू हिंसा पूरी दुनिया की महिलाओं के जीवन के लिए एक दंश है | महिलाएं चाहे कामकाजी हों या गृहणी, शिक्षित हों या अशिक्षित यह एक ऐसा विषय जिस के बारे में जब भी देखने सुनने को मिलता है महिलाओं के आगे बढ़ने के सारे दावे अर्थहीन लगते हैं|
विकसित देशों में महिलाओं की स्थिति भारत जैसे देशों से अलग मानी जाती है या यूँ कहा जाय की बस अलग प्रतीत होती है | हकीकत तो यह है की वहां भी महिलाओं का बड़ा प्रतिशत घरेलू हिंसा का शिकार है | कामकाजी और आत्मनिर्भर होने के बावजूद भी शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना सहना इन देशों की महिलाओं के भी हिस्से है आखिर क्यों...?
यह दुखद है की जिस समाज में महिलाओं को सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्राप्त है, हर तरह की शक्तियाँ उनके हाथ हैं ....हमारे यहाँ से बेहतर कानून व्यवस्था है ....... घरेलू हिंसा को लेकर उनकी स्थिति भी सामाजिक बन्धनों में जकड़े अर्धविकसित और विकासशील देशों से बेहतर नहीं है | यूनीफेम की एक रिपोर्ट कहती है की पूरी दुनिया में हर तीन में से एक महिला किसी न किसी तरह की घरेलू प्रताड़ना की शिकार होती है और उनके साथ ऐसा व्यवहार घर-परिवार के ही किसी सदस्य के द्वारा किया जाता है | अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों में भी घरेलू हिंसा के कई सारे मामलों की पुलिस में रिपोर्ट तक नहीं की जाती |
एक बड़ा प्रश्न यह है कि जिन देशों की महिलाओं की आत्मनिर्भरता और शैक्षणिक स्तर से हम प्रभावित हैं वहां तक पहुच भी गए तो भी क्या हमारे यहाँ की औरतों को अपनों से मिलने वाले इस दर्द से छुटकारा मिल पायेगा | कुछ समय पहले बेंगलुरु में हुए एक सर्वेक्षण में तो यह भी सामने आया है की कामकाजी और आत्म निर्भर महिलाएं भी घरेलू हिंसा की उतनी शिकार हैं जितनी की गृहणियां | अगर हम यह मानें की विकसित देशों में हमरे सामाजिक ढांचें की तरह बंधन नहीं हैं, इसलिए वहां महिलाएं रिश्ते से आसानी से आज़ाद तो सकती हैं ..... तो फिर हमारे यहाँ क्यों लिव इन रिलेशन में भी महिलाओं के साथ हाथापाई के मामले आये दिन अख़बारों की सुर्खियाँ बनते हैं ....?
कहने को अब दुनियाभर में महिलाओं की स्थिति पूरी तरह बदल गयी है | यह बताने के लिए बतौर उदहारण अमीर और विकसित देशों का नाम भी लिया जाता है | ऐसे में संसार के कोने-कोने में अपने ही घर में हिंसा का दर्द झेलने वाली महिलाओं का जीवन यह बताता है कि बदलाव आंशिक तौर पर आया है | महिलाओं के प्रति दूषित मानसिकता रखने वालों का मनोविज्ञान आज भी वैसा ही है | हर देश में, हर समाज में .....!
हर तरह कि मुश्किलों से लड़कर आगे बढ़ने वाली महिलाओं की उपलब्धियों के बीच मानवीय व्यवहार का यह स्याह सच मन में कड़वाहट भर जाता है | और यही सवाल मन में बार बार दस्तक देता है कि महिलाएं अगर अपने परिवार के लोगों के बीच......अपने जीवन साथी के साथ ही सुरक्षित नहीं हैं तो घर के बाहर उनकी सुरक्षा और सम्मान को बनाये रखने की मुहीम का क्या अर्थ रह जाता है ?
कहने को अब दुनियाभर में महिलाओं की स्थिति पूरी तरह बदल गयी है | यह बताने के लिए बतौर उदहारण अमीर और विकसित देशों का नाम भी लिया जाता है | ऐसे में संसार के कोने-कोने में अपने ही घर में हिंसा का दर्द झेलने वाली महिलाओं का जीवन यह बताता है कि बदलाव आंशिक तौर पर आया है | महिलाओं के प्रति दूषित मानसिकता रखने वालों का मनोविज्ञान आज भी वैसा ही है | हर देश में, हर समाज में .....!
हर तरह कि मुश्किलों से लड़कर आगे बढ़ने वाली महिलाओं की उपलब्धियों के बीच मानवीय व्यवहार का यह स्याह सच मन में कड़वाहट भर जाता है | और यही सवाल मन में बार बार दस्तक देता है कि महिलाएं अगर अपने परिवार के लोगों के बीच......अपने जीवन साथी के साथ ही सुरक्षित नहीं हैं तो घर के बाहर उनकी सुरक्षा और सम्मान को बनाये रखने की मुहीम का क्या अर्थ रह जाता है ?
93 comments:
एक बार फिर एक ज्वलंत समस्या पर आपकी लेखनी चली है.निश्चित ही बदलाव आंशिक तौर पर आया है. आपका सवाल वाजिब है और चिंतन की मांग करता है. दीपोत्सव की शुभकामना स्वीकार करें.
बहुत बढ़िया मुद्दा उठाया है .सार्थक पोस्ट.. आपको सपरिवार दीपावली की शुभकामनाएं .
ये समस्या भले ही बीस-तीस प्रतिशत घरों में हो लेकिन है तो जब रहेगी तब तक समाज का सुधार मत मानो।
आज की गार्गी,मेत्री,सीता,सावित्री का पूरा सम्मान HO ........... दीपावली पर ऐसी प्राथना करेंगे ,,
दीपोत्सव की शुभकामना स्वीकार करें.
डॉ० मोनिका जी सच लिखा है आपने |दीपावली की शुभकामनाएं |
डॉ० मोनिका जी सच लिखा है आपने |दीपावली की शुभकामनाएं |
कहने को अब दुनियाभर में महिलाओं की स्थिति पूरी तरह बदल गयी है |
सही है .....लेकिन साथ - साथ हिंसा और प्रताड़ना रूप भी बदला है . और वह यदा - कदा नहीं बल्कि सदा महिलाओं की स्थिति पर सोचने को मजबूर करता है !
संग्रहणीय पोस्ट है ....
आभार !
Ghalat hai.Magar aaj aurton ke kaaran lakhon purushon ka jeevan bhi nark bana hua hai,kintu unpar koi nahin likhta-mano sab ektarfa hi ho raha hai.
क्या यूनीफेम रिपोर्ट में इस अपराध के इतनी अधिक संख्या (तीन में से एक) में होने के कारणों की पड़ताल की गयी है, यदि हाँ तो क्या और उससे निबटने के क्या तरीके हैं?
You have raised a very contemporary and evergrowing problem which is very much prevalent in developed and educated nations like Japan and UK as well . It is no longer confined one country or society.
मनोविज्ञान रातों रात नहीं बदलता है, हिंसा मन की कमजोरी ही कही जायेगी।
मोनिका जी स्त्री भले ही चाँद पर पहुँच गई हो पर आम स्त्री की अभी भी वाली स्तिथि है ....
हर स्त्री तो घर नहीं तोड़ना चाहती न ...विरोध कर जाये तो कहां जाये ....?
अभी बहुत वक़्त लगेगा बदलाव में ....
@ Smart Indian हर रिपोर्ट के कारण घूम फिर कर वही सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक बिन्दुओं पर आकर रुकते हैं ......शिक्षा की भूमिका के महत्त्व पर खूब जोर दिया है पर जिस तरह से महिलाओं के साथ घर के भीतर दुर्व्यवहार होता है ये सारी बातें बेकार लगती हैं | क्योंकि पढ़े लिखे और संभ्रांत परिवारों में भी ऐसा होता है ..... पर मुझे तो यह समस्या मनोवैज्ञानिक ज्यादा लगती है..... निजात पाने के लिए भी सोच में बदलाव आना ही कारगर होगा ......
@ Kumar Radharamanji
हाँ ऐसे मामले भी हैं जहाँ पुरुष भी शिकार होते हैं प्रताड़ना के ...पर निश्चित रूप से यह संख्या महिलाओं से कम ......बहुत कम है ....
घरेलू हिंसा वह मानसिक प्रवृत्ति है जो परिवारों में संस्कारों के अभावों में पनपती है
द्वेष तनाव आवेश क्रोध और स्वार्थ इस घरेलू हिंसा का कारण बनते है।
एक सार्थक चिंतनयुक्त प्रस्तुति!!
विचारणीय पोस्ट ...शिक्षा से ज्यादा मानसिकता कारण है ...
सटीक मुद्दा उठाया है ..
आपकी प्रस्तुति समस्या की गंभीरता से अवगत कराती है.विचारोत्तेजक प्रस्तुति के लिए आभार.
धनतेरस व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
नारी तेरी यही कहानी ,आँचल में दूध
आँखों में पानी ...एक कढवा सच ..यही सुन-सुन आज यहाँ पहुँच गए !
कुछ देर को भूल कर खुशी मनाएं ....
सपरिवार दिवाली मुबारक हो !
भारत की तो सिर्फ विदेशों में बदनामी की जाती है विकसित देशों में तो और भी बुरी हालत है देखने, और सुनने में अंतर होता है
सार्थक व सटीक लेखन ...दीपोत्सव पर्व की शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ ………
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
satik vivechan...prakash parv ki badhai swikar karen....
डॉ० मोनिका जी सच लिखा है आपने!
सार्थक पोस्ट.. आपको सपरिवार दीपावली की शुभकामनाएं ...
समाज का एक ज्वलंत प्रश्न उठाती ये पोस्ट लाजवाब है......दूसरों का नहीं जानता पर मैं व्यक्तिगत तौर से घरेलू हिंसा के सख्त खिलाफ हूँ.......
मेरा मानना है मोनिका जी जब तक महिलाएं स्वयं साहस नहीं करेंगी तब तक कानून भी उनकी कोई मदद नहीं कर सकेगा.......एक शेर अर्ज़ है.....
"चुप रहने से भी छीन जाता है एजाज़-ए-सुखन
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है"
बहुत अच्छा और सटीक लिखा हुआ आलेख .....
आपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें|
हिंसा का कोई सेक्स नहीं होता:) हिंसा तो कोई भी किसी भी रूप में कर सकता है। हां, महिला पर हिंसा करना इसलिए सरल है कि उसे उस हिंसा को ढोना पड़ता है, इसलिए नहीं कि वह कमज़ोर है॥
हिंसा का कोई सेक्स नहीं होता:) हिंसा तो कोई भी किसी भी रूप में कर सकता है। हां, महिला पर हिंसा करना इसलिए सरल है कि उसे उस हिंसा को ढोना पड़ता है, इसलिए नहीं कि वह कमज़ोर है॥
दीये की लौ की भाँति
करें हर मुसीबत का सामना
खुश रहकर खुशी बिखेरें
यही है मेरी शुभकामना।
महत्वपूर्ण मुद्दे पर सार्थक चिंतन....
आपको दीप पर्व की सपरिवार सादर बधाईयां....
सदियों से परिवार व समाज में स्त्री का जो स्थान रहा है वह केवल पढलिख लेने या स्त्री द्वारा धन कमा लेने से बदल नहीं जाता. उसके विपरीत पुरुष शायद 'कमाने लगी हो तो क्या तुम्हारा स्थान जो था वही रहेगा' मानते हुए उसे उसका स्थान याद दिलाने में लगा रहता है.
घुघूतीबासूती
एक ज्वलंत समस्या पर बहुत सारगर्भित आलेख...दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
बहुत हद तक आपका लेख सही है
किन्तु महिलाओं के फेवर में कानून अधिकार है
इसलिए पुरुष भी इन महिलाओं द्वारा कम प्रताड़ित नहीं है
हमारे पास इस प्रकारके बहुत सारे केसेस आते है !
अच्छा लेख !
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
संसार के कोने-कोने में अपने ही घर में हिंसा का दर्द झेलने वाली महिलाओं का जीवन यह बताता है कि बदलाव आंशिक तौर पर आया है | महिलाओं के प्रति दूषित मानसिकता रखने वालों का मनोविज्ञान आज भी वैसा ही है | हर देश में, हर समाज में .....! ..एकदम सच्ची बात है..जब तक मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक जल्दी बदलाव की उम्मीद करना बेमानी है.....
यह बहुत दुखद स्थिति है की आखिर अपने ही घर में लड़कर एक स्त्री जाएं भी तो कहाँ जाएँ ..
..धीरे-धीरे बदलाव तो आया है लेकिन वह बहुत कम है..
बहुत अच्छी चिंतन मननशील प्रस्तुति हेतु आभार...
दीपावली की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
हर अस्तर पर प्रयास जरुरी है ! अन्यथा कोई फायदा नहीं !
सार्थक व सटीक लेखन .आपको सपरिवार दीपावली की शुभकामनाएं .
इमरान अंसारी जी और कविता रावत जी की बात से सहमत हूँ।
आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
बहुत ज्वलंत मुद्दा है यह ..मुझे लगता है दो परिवारों के बीच सम्बन्धों को स्थायित्व देने में बड़ी समझ बूझ का साहारा लेना होगा -पारिवारिक पृष्ठभूमि और संस्कारों तथा अहम् और स्वार्थों के टकराव के कारण ऐसी दुखद स्थितियां उभरती हैं और असाध्य बन जाती हैं !
हकीकत कहता लेख है।
ज्वलंत मुद्दा उठाती सार्थक पोस्ट.
आप और आपके परिवार को दिवाली की ढेरों शुभकामनायें.
सुन्दर प्रस्तुति की बहुत बहुत बधाई.
आपको व आपके परिवार को दीपावली कि ढेरों शुभकामनायें
yahi samsya mai bhi apne blog me uthai hu ek sacchi ghatna ki khabar hai.
बहुत दिनों बाद आपकी लेखनी पढ़ने को मिली.विषय-वस्तु एकदम ज्वलंत.बधाई.
उम्मीद है कि आने वाला समय सकारात्मक होगा।
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
चाहे कितना भी पढ़ लिख ले या आर्थिक रूप से समाज संम्पन हो जाये जब तक वो महिलाओ के प्रति अपना नजरिया नहीं बदलेगा उसे भी अपने जैसा ही इन्सान नहीं समझेगा उसे अपने बराबर का नहीं समझेगा तब तक महिलाओ के साथ लोगो का व्यवहार ऐसा ही रहेगा |
डा.मोनिका जी,
नमस्कार,
आप के लिए "दिवाली मुबारक" का एक सन्देश अलग तरीके से "टिप्स हिंदी में" ब्लॉग पर तिथि 26 अक्टूबर 2011 को सुबह के ठीक 8.00 बजे प्रकट होगा | इस पेज का टाइटल "आप सब को "टिप्स हिंदी में ब्लॉग की तरफ दीवाली के पावन अवसर पर शुभकामनाएं" होगा पर अपना सन्देश पाने के लिए आप के लिए एक बटन दिखाई देगा | आप उस बटन पर कलिक करेंगे तो आपके लिए सन्देश उभरेगा | आपसे गुजारिश है कि आप इस बधाई सन्देश को प्राप्त करने के लिए मेरे ब्लॉग पर जरूर दर्शन दें |
धन्यवाद |
विनीत नागपाल
मनीष जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ ....मनोविज्ञान पल में नहीं बदलता ,हिंसा बर्दाश्त करना भी खुद को सजा देना है !
आपको भी दीपावली की हार्दिक मंगलकामनाएं !
चिंतन योग्य पोस्ट।
जिस देश में महिलाओं को कभी दुर्गा, कभी लक्ष्मी, कभी सरस्वती, कभी काली के रूप में पूजा जाता है उस देश में महिलाओं की प्रताडना की घटनाएं भी आम हैं।
इस पर रोक लगनी चाहिए।
आपका आभार इस सुंदर चिंतन परक पोस्ट के लिए।
आपको और आपके परिवार को दीप पर्व की शुभकामनाएं.......
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं
मोनिका जी,
विचारणीय पोस्ट है.मुझे लगता है जो पुरुष अभी ऐसा कर रहे है,उनकी मानसिकता तो अब सुधरने से रही.उन्हें हम अब नहीं सुधार सकते.लेकिन इतना तो कर सकते है जिससे कि आने वाली पीढी इस बुराई से दूर रहे.घरेलू हिंसा समेत महिलाओं के खिलाफ होने वाले तमाम अपराधों के प्रति उनके मन में घृणा भर देनी चाहिए.ये काम केवल परिवार नहीं कर सकता क्योंकि ज्यादातर परिवारों में तो माहौल ही ऐसा है कि बच्चे और युवा खासकर लडके इसमें नकारात्मक रूप से प्रभावित होते है.इसलिए ये काम किसी बाहरी ऐजेंसी को ही करना होगा फिर वो चाहें शिक्षक हो या समाजसेवक.लेकिन हमारे यहाँ अभी तक इस दिशा में कुछ नहीं किया गया है.एक उम्र निकल जाने के बाद ये सब सिखाने का भी कोई फायदा नहीं होगा.
महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर लगाम लगाने के लिए जरूरी उपाय जल्दी शुरू किये जाने चाहिये क्योंकि इनका परिणाम भी दूरगामी ही निकलेगा.
आपको दीपावली की शुभकामनाएँ.
महत्वपूर्ण आलेख ..
.. आपको दीपावली की शुभकामनाएं !!
You are Right.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
Mahilayon ki sitithi par aapne achha prakash dala hai. Aapko evm aapke pariwar ko diwali ki hardi subhkamna.
ेक एक बात से सहमत। बहुत अच्छा मुद्द उठाया लेकिन इसका हल शायद अभी दूर है।आपको सपरिवार दिवाली की हार्दिक बधाई।
बहुत ही गंभीर और मौलिक मुद्दा उठाया है आपने,सार्थक लेखन के लिए बधाई। मेरे विचार से घरेलू हिँसा और सामाजिक हिँसा दोनो एक ही सिक्के के दो पहलू हैँ और दोनो जगह औरतोँ को कष्ट मिलता है तकलीफ के रुप और प्रकार अलग हो सकते है लेकिन कारण भिन्न नहीँ। कारण बहुत से हो सकते है जिनमेँ प्रमुख रूप से नैतिक मूल्योँ मेँ गिरावट,असमानता की सोच की गहरी पैठ,समाज का इसे मिटाने मेँ संकल्प का अभाव,शासन द्वारा इसके प्रति गैरजिम्मेदाराना रुख व स्वयं औरतोँ का पूरी तरह एकजुट ना होना इत्यादि। मुझे लगता है एसी कुत्सित और संकीर्ण विचारधारा को सामाजिक स्तर के साथ-साथ व्यक्तिगत स्तर पर कम करने की कवायद करनी चाहिये।हमेँ स्वयं भी महिलाओँ का घर मेँ तथा बाहर आदर करना चाहिये और उनमेँ पुरुषोँ के प्रति असुरक्षा की भावना कम करने की कोशिश करनी चाहिए,अपने से छोटो मेँ भी ये भावना भरनी चाहिए,औरत को अपमानित करने वाले किसी भी कृत्य को प्रोत्साहन नहीँ देना चाहिए,औरतोँ को भी चाहिए कि वे पुरुष को हमेशा प्रतिद्वंदि की भावना से ना देखें,विद्यालय स्तर भी पाठयक्रम मेँ एसे सामाजिक व नैतिक मूल्योँ का समावेश होना चाहिए,सामाजिक संस्थाओँ द्वारा निस्वार्थ भाव से ऐसी मुहिम को निरंतर चलाए रखना इत्यादि ।
पञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
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"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"
आपको व आपके परिवार को दीपोत्सव की मंगलमय ढेरोँ शुभकामनाएँ ।
Very meaningful post. I agree!
I wish you a very Happy, safe, peaceful and Prosperous Dewali.
हर तरह कि मुश्किलों से लड़कर आगे बढ़ने वाली महिलाओं की उपलब्धियों के बीच मानवीय व्यवहार का यह स्याह सच मन में कड़वाहट भर जाता है |
sahi likha hai aapne|
Deepawali ki hardik shubhkamnaen!
अनुज वधु, भगिनी, सुतदारा; कन्या सम एहि चारि !
इनहिं बिलोकि कुदृष्टि; तेहिं सम नीच न अधम अपारा !!
अनुज वधु, भगिनी, सुतदारा; कन्या सम एहि चारि !
इनहिं बिलोकि कुदृष्टि; तेहिं सम नीच न अधम अपारा !!
डॉ० मोनिका जी सच लिखा है आपने !!
आपको सपरिवार दीपावली की शुभकामनाएं !!
सच लिखा है आपने
आपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें….!
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
दीपो का ये महापर्व आप के जीवन में अपार खुशियाँ एवं संवृद्धि ले कर आये ...
इश्वर आप के अभीष्ट में आप को सफल बनाये एवं माता लक्ष्मी की कृपादृष्टि आप पर सर्वदा बनी रहे.
सच्चाई को शब्द देता आलेख . दीपपर्व की शुभकामनाये
दीपावली के पावन पर्व पर आपको मित्रों, परिजनों सहित हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ!
way4host
RajputsParinay
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये.....
मेरी और से भी बधाहिया स्वीकार कीजिये
दीपावली के पावन पर्व पर आपको मित्रों, परिजनों सहित हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ!
way4host
RajputsParinay
बढ़िया पोस्ट
शुभ दीपावली
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
घरेलू हिंसा हर स्वरुप में निंदनीय है
दिवाली-भाई दूज और नववर्ष की शुभकामनाएं
यह बहुत ही दुखद और ज्वलंत समस्या है, जिस देश में माँ लक्ष्मी, देवी दुर्गा और विद्या कि देवी सरस्वती माँ की पूजा हो, वाहन ऐसे कृत्य सुनने को मिले , बहुत दुःख और शर्म की बात है.
आपको दीपोत्सव की शुभकामनायें.
my new links of blogs--
बालाजी के लिए --www.gorakhnathbalaji.blogspot.com
OMSAI के लिए-- www.gorakhnathomsai.blogspot.com
रामजी के लिए --- www.gorakhnathramji.blogspot.com
गंभीर .. समय का खाका खिंचा है आपने .. दिवाली की हार्दिक शुभकामना !
u r right in midst of development n globalisation... instances like this leaves a black spot.
Fantastically written !!
अकसर ज्वलंत समस्या ले कर आप सब को सचेत करती हैं मोनिका जी.. बहुत अच्छा और सच्चा लिखा है..
सर्व कालिक एवं प्रासंगिक पोस्ट .शुक्रिया .सोच का स्तर आज भी आदिम है बाहरी टीम टाम बदल से कुछ नहीं होता .सोच के स्तर पर एक धक्का चाहिए ज़ोरदार .
bilkul satik .......... ye sthiti puri tarah nahi badli hai . kahane ke liye mahilaye ab swatantra hai ..parantu kitana sach hai yah to sirf 20% hi hai . badlab aana chahiye ........ badhai ....sunder prastuti ke liye .
http/sapne-shashi.blogspot.com
एक ज्वलंत समस्या...
आज हिंसा और प्रताड़ना रूप बदल गया है . लेकिन आम स्त्री की अभी भी पहले की तरह ही स्तिथि है ....
कोई भी स्त्री घर नहीं तोड़ना चाहती...
और विरोध करके जाये तो कहां जाये ....?
अभी समाज परिवर्तन में बहुत
वक़्त लगेगा....
सार्थक लेख...
यह चिंता का विषय है और चिंतन का भी।
महिलाओं की हर क्षेत्र में उन्नति के बावजूद घरेलू हिंसा का बदस्तूर जारी रहना मानव सभ्यता पर एक कलंक है।
यह चिंता का विषय है और चिंतन का भी।
महिलाओं की हर क्षेत्र में उन्नति के बावजूद घरेलू हिंसा का बदस्तूर जारी रहना मानव सभ्यता पर एक कलंक है।
Its occur belongs to Psychological Phenomena...Break the male doimancy
महिलाओं पर हो रहा ...........कहते अत्याचार.....
महिलाओं के मौन पर...........कर लो सभी विचार...
कर लो सभी विचार...............बसी हिंसा हर घर में...
स्त्री का जीवन उलझा.............जैसे हो अधर में...
कह मनोज निज भवन ...........में हमने देखा झाँक.
झाड़ू पड़ी औ पड़ा सुनाई .........मुए रहा क्या ताँक...
मनोज
महिलाओं पर हो रहा ...........कहते अत्याचार.....
महिलाओं के मौन पर...........कर लो सभी विचार...
कर लो सभी विचार...............बसी हिंसा हर घर में...
स्त्री का जीवन उलझा.............जैसे हो अधर में...
कह मनोज निज भवन ...........में हमने देखा झाँक.
झाड़ू पड़ी औ पड़ा सुनाई .........मुए रहा क्या ताँक...
मनोज
बहुत सुन्दर एवं सटीक लिखा है आपने! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
औरत मर्द गैर -बराबरी .मर्द का दंभ इसके मूल में है .जब की पुरुष में पेशीय बल के अलावा और कुछ नहीं है .सृष्टि का संचालन कायनात को बनाए रखने में औरत ही एहम भूमिका में है .संतति वही पैदा करती है .उसका पल्लवन भी उसी के हाथ में है .
हम काहे के विकसित हो रहे देश हैं ?
सार्थक और ज्वलंत प्रश्न को उठाता बढ़िया लेख..
पता नहीं इंसान कैसी तरक्की कर रहा है ... घरेलू प्रतारणा सच में एक ज्वलंत समस्या है और महिलाओं को सक्षम बनाने से ही इस समस्या से निजात मिलेगी ...
AACHA LIKHA AAPNE IS VISAY PAR,
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