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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

22 January 2011

एकांत की सुखद अनुभूति.....!



जब भी कभी अकेलेपन या एकांत की बात होती है उसे किसी जाने अनजाने भय से जोड़  दिया जाता है। ऐसा क्यों ? क्या सचमुच अकेलापन भयभीत करने वाला होता है? क्या कभी कभी ऐसा नहीं लगता कि अकेलेपन से बढकर कोई आनंद नहीं हो सकता? अपने भीतर झांकने की सुखद अनुभूति के आगे कोई और भाव ठहरता ही कहां है?

न शब्द न शोर....... एकांत का सुख वही समझ सकता है जो अपने आप के साथ समय बिताता है। यह वो समय होता है जब स्वयं को साधने का मार्ग तलाशा जा
ता है और कोशिश की जाती है मुझ को मैं से मिलवाने की। यही वो अनमोल पल होते हैं जिनसे हमारे विचारों को र्इंधन मिलता है। अपना मूल्यांकन करने की सोच जाग्रत और पोषित होती है। सच कहूं तो मुझे जीवन को समायोजित करने की ऊर्जा का स्रोत भी लगता है एकांत।

एकांत के बारे में एक आम धारणा यह भी है कि आप अकेले हैं क्योंकि कोई आपके साथ नहीं है या किसी को भी आपका साथ नहीं चाहिए। मुझे यह बात सही नहीं लगती क्योंकि अकेलापन समृद्ध, सृजनात्मक और स्वयं का चुना हुआ भी तो सकता है। ऐसा अकेलापन सदैव अपने होने की चेतना को जाग्रत करता है। अकेलेपन को अक्सर अवसाद से भी  जोड़कर देखा जाता है, पर हद से ज्यादा संवाद भी तो हमें मानसिक  पीड़ा  के सिवा कुछ नहीं देता।

आज की तेज रफतार जिंदगी में हम चाहकर भी अकेले नहीं रह पाते। भले ही इंसानों की भीङ हमारे आसपास न हो पर कुछ न कुछ हमें घेरे रहता है जो अपने भीतर झांकने का मौका ही नहीं देता। हरदम लोगों से घिरे रहना या हर समय दूसरों से सम्पर्क में बने रहने के चलते सोचने-विचारने का समय ही नहीं मिलता। हालांकि इस अजब-गजब सी व्यस्तता में भी हर इंसान कहीं न कहीं खुद को नितांत अकेला ही महसूस करता है, पर ऐसा अकेलापन आत्मचिंतन की राह नहीं सुझाता। क्योंकि आत्मचिंतन के लिए आत्मकेंद्रित होना जरूरी है। मनुष्यों की ही नहीं बेवजह के विचारों की  भीड़  भी इसमें बाधक बनती है।

कुछ अनसुलझे प्रश्नों का उत्तर खोजने और नये प्रश्नों के जन्म की वैचारिक प्रक्रिया को निरंतर बनाये रखने के लिए भी एकांत आवश्यक है। प्रकृति के करीब जाने और जीवन के प्रति आस्था बनाये रखने में भी एकांत की अहम भूमिका है। अपने आप को जानने , पहचानने और समझने का अहसास करवाने वाला सार्थक एकांत मुझे जीवन की जरूरत लगता है ।

92 comments:

जयकृष्ण राय तुषार said...

monikaji bahut hi sundar aur saarthak aalekh aapko bahut bahut badhai

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

और जिसने एकांत में खुश रहना सीख लिया समझो उसको जीना आ गया. अगर ख़ुशी किसी और पे निर्भर है तो वो permanent नहीं हो सकती. एकांत जरूरी है...

Arvind Jangid said...

वस्तुतः एकांत से व्यक्ति घबराता है क्योंकि

१. एकांत होने पर व्यक्ति का ध्यान साँसों की तरफ जाने लगता है जो की "ध्यान" की प्रथम अवस्था है. व्यक्ति की रूह इस समय शायद कुछ बोलना चाहती है.

२. रूह में सत्य का वास होता है, इसलिए उसके द्वारा उठाये गए विचार व्यक्ति के निर्णयों को दोषपूर्ण भी ठहरा सकते हैं, जो व्यक्ति को मंजूर नहीं.

३. एकांत होने पर व्यक्ति को कहीं न कहीं शायद ये सोचने को विवश हो जाता है की उसके जीवन का उद्देश्य क्या है?

४. जब व्यक्ति द्वारा किये जा रहे कार्य रूह से मेल नहीं खाते, वो बेचैन हो उठता है और फिर बाहर की दुनिया मैं लौट जाना चाहता है.

प्रत्येक व्यक्ति यदि दिन में कुछ समय एकांत में बैठकर साँसों की तरफ ध्यान दे तो उसे जीवन की क्षणभंगुरता का आभाष होने लगेगा. व्यक्ति हर हाल में स्वंय को सही ठहराता है, इसलये वो एकांत से घबराता है.


सुन्दर रचना के लिए आपका आभार.

Arvind Jangid said...

एक कमरा अंदर भी बनाना, जहां कुछ पल अकेले बिताना,
बाहर वालों को आखिकार अंदर आते देखा है मैंने.

रंग बदलते हैं चेहरे यहाँ पल पल हरपल जरा संभल,
जाने पहचाने चेहरों को अजनबी बनते देखा है मैंने.

साधुवाद.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मोनिका जी ,

मुझे लगता है की आप केवल एकांत की बात पर अपने विचार रखना चाह रही हैं ....

एकांत और अकेलेपन में थोड़ा स अन्तर है ...अकेलापन ...जहाँ आपका कोई नहीं होता ...और एकांत ...आपके होते तो हैं सब पर थोड़ी देर के लिए आप सबसे अलग होते हैं ..

एकांत में वक्त मिलता है स्वयं को स्वयं से जोडने का खुद की खोज का कुछ नया सृजन करने का अपने विचों पर सोचने का ...

आपका यह लेख बहुत अच्छा लगा ...आभार

Yashwant R. B. Mathur said...

एकांत सोचने समझने का पूरा मौका देता है.

एकांत के बारे में आपने बहुत अच्छा लेख प्रस्तुत किया है.

सादर

anshumala said...

आज आप से बिल्कुल सहमत हु | कभी कभी एकांत खुद के साथ बात करने और अपने बारे में सोचने का सुख देता है |

Ankur Jain said...

सही कहा मोनिकाजी जब अकेलापन दूसरों से मिले तो वह अभिशाप बन जाता है और यदि उसे खुद चुना जाये तो वह वरदान है....एकांत का सुख सच में अद्भुत होता है..बस उसकी अद्भुतता का ahsas करना आना चाहिए...सुन्दर प्रस्तुति!!!!!!!

Anonymous said...

मोनिका जी,

हर बार की तरह इस बार भी आपसे बिलकुल सहमत हूँ....मेरे ब्लॉग जज़्बात पर एरी एक पोस्ट 'अकेलापन' पर मैंने भी एकांत के बारे में लिखा था......आदमी दूसरे को खोज रहा है....क्योंकि वो अपने आप से बचना चाहता है........बहुत बेहतरीन पोस्ट......शुभकामनायें आपको|

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर लेखन इस प्रस्‍तुति के लिये बधाई ।

सहज समाधि आश्रम said...

Fantastic.
Congratulations.
I really enjoyed reading the posts on your blog.

Shikha Kaushik said...

एकांत के सकारात्मक रूप को प्रस्तुत करती आपकी पोस्ट bahut अच्छी व् सार्थक लगी .बधाई .

शारदा अरोरा said...

बहुत सही लिखा है , एकांत का सुख तभी लिया जा सकता है जब मन की पट्टी साफ़ हो ....वर्ना आदमी अंतरात्मा की आवाज से भी परेशान हो उठता है ...

रचना दीक्षित said...

अच्छा लगा ये प्रस्तुती पढ़कर. मैं भी चाहती हूँ हर दिन चुरा लूँ कुछ पल केवल अपने लिए. जहाँ मैं और मन और कुछ भी नहीं.

दिगम्बर नासवा said...

एकांत और अकेलेपन के भेद को स्पष्ट करते हुवे बहुत ही सारगर्भीत लेख है ... बधाई इस लेखन पर ...

Dr (Miss) Sharad Singh said...

आपने सही लिखा कि ‘एकांत का सुख वही समझ सकता है’....एकान्त हमें आत्मावलोकन का पर्याप्त अवसर देता है। एक अच्छे चिन्तन के लिए बधाई।

कुमार राधारमण said...

सारे मौलिक प्रयास एकांत का ही नतीज़ा हैं। इसी की ताक में तो संन्यासी संसार छोड़कर पहाड़ों पर जाते रहे। आज जब कोई बच्चा अकेला दिखता है,तो हम पूछते हैं कि क्या हुआ,अकेले क्यों हो। ज़ाहिर है,हम नहीं चाहते कि बच्चा हमसे भिन्न प्रकृति का हो। इसी का नतीज़ा है-हमारी मौलिकता का लगातार छीजते जाना।

ManPreet Kaur said...

Very nice blog dear friend... bouth he aacha lagaa mujhe aapka post read kar ke;

Pleace visit My Blog Dear Friends...
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ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

मोनिका जी,
बहुत ही सुन्दर, सारगर्भित और विचारणीय लेख है !
एकांत आत्म चिंतन के लिए आवश्यक है .....
कभी कभी हम अकेले होते हुए भी तरह तरह के विचारों से घिरे होते हैं ऐसे में स्वयं को पहचानना मुश्किल है ....

वास्तव में...एकांत की जीवन में अहम् भूमिका है !
सुन्दर आलेख के लिए बधाई!

सुधीर राघव said...

सुन्दर रचना

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

दुनिया के मेले में भ्रमण के बाद एकांत ही सुहाता है। गालिबन-

" रहिए अब ऐसी जगह,चल कर जहाँ कोई न हो।
हम सुखन कोई न हो और हमजबां कोई न हो"।

शकील समर said...

रचना तो अच्छी है ही, साथ ही आपके ब्लाग की साज सज्जा बहुत अच्छी लगी। मेहरबानी होगी यदि आप इस दिशा में मेरा मार्गदर्शन करें।

शकील समर said...

रचना तो अच्छी लगी ही, साथ ही आपके ब्लाग की साज-सज्जा भी बेहद आकर्षक है। मेहरबानी होगी यदि आप इस दिशा में मेरा मार्गदर्शन करें।

Kunwar Kusumesh said...

You will love loneliness if you are creative otherwise you may go in depression.
Your post is very unique and lovely.

प्रवीण पाण्डेय said...

कभी तो बहुत सुहाता है एकांत पर कभी कभी मन भड़भड़ाने लगता है।

Roshi said...

monika ji bahut sunder likha hai ekant mein hum atm visleshan ker sakte hai

Roshi said...

atam visleshan ke liye ekant bahut jaroori hai

Satish Chandra Satyarthi said...

संगीता स्वरुप जी की बात से सहमत हूँ... एकांत और अकेलेपन में फर्क है...
यह आपकी सोच पर निर्भर है कि आप किसे किस रूप में लेटे हैं.. सकारात्मक या नकारात्मक...

संजय भास्‍कर said...

बहुत सही लिखा है , एकांत का सुख तभी लिया जा सकता है जब मन साफ़ हो

संजय भास्‍कर said...

मोनिका जी,
बहुत ही........ विचारणीय लेख है !

डॉ० डंडा लखनवी said...

ध्यान, चिंतन, मनन में उत्तम पुरुष और मध्यम पुरुष खुद को ही बनना पड़ता है। ऐसी स्थिति एकांत में सहज होती है।
-डॉ० डंडा लखनवी
=============
निज व्यथा को मौन में अनुवाद करके देखिए।
कभी अपने आप से संवाद करके देखिए।।
जब कभी सारे सहारे आपको देदें दग़ा-
मन ही मन माता-पिता को याद करके देखिए।।
दूसरों के काम पर आलोचना के पेशतर-
आप वे दायित्व खु़द पर लाद करके देखिए।।
क्षेत्र-भाषा-जाति-मजहब सब सियासी बेडि़याँ-
इनसे अपने आप को आजाद करके देखिए।।
हो चुके लाखों तबाही के जहाँ में अविष्कार-
इनसे बचने का हुनर ईज़ाद करके देखिए।।

राकेश खंडेलवाल said...

कक्ष में आकर भरे जब ढेर खामोशी
हवा चुप जैसे किसी अपराध की दोषी
शब्द सूखें लग रहें जैसे किये अनशन
बोलता है उस घड़ी मेरा अकेलापन

Amit Chandra said...

विरह को बहुत ही खुबसुरत अंदाज में दिखाया है आपने।

Minakshi Pant said...

बहुत सुन्दर बात कही आपने एकांत सच मै बहुत अच्छा लगता है मुझे भी इससे बहुत प्यार है क्युकी वो पल सिर्फ हमारा अपना होता है उसमे किसी और का किसी तरह का कोई दखल नहीं होता पर कभी २ मै सोचती हु की अगर हम सच मै दुनिया से कट जाएँ तो क्या हम जी पाएंगे मेरे ख्याल से नहीं क्युकी यहीं से तो हमे सुख दुःख का अनुभव मिलता है जिन्हें अकेले मै हम संजोतें हैं !

अगर आप को मेरी बात बुरी लगी हो तो क्षमा चाहती हु पर जो दिल महसूस किया वो कह दिया !

बहुत सुन्दर रचना बधाई !

vijai Rajbali Mathur said...

.लेख का आखिरी वाक्य 'सही है',मैं भी इसका समर्थन करता हूँ.समस्त विश्लेषण सटीक किया है आपने.

mark rai said...

bilkul sahi kaha aapne ki ekant ka sukh wahi paa sakta hai jo akela rahta hai aur us akelepan ko jaanne ki koshish karta hai...

Rajkumar said...

अकेलेपन का डर और अकेलेपन की प्रेरणा दोनों अलग-अलग शोध के विषय हो सकते हैं लेजिन यहाँ दोनों कों एक साथ जुड़ते देखकर अच्छा लगा - संतुलन पर थोडा और ध्यान दिया गया होता तो ऐसा नहीं लगता कि यहाँ अकेलेपन की स्तुति जी जा रही है.

Sunil Kumar said...

सुन्दर रचना के लिए आपका आभार.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मोनिका जी, जीवन की अनुभूतियों को बडे सलीके से गूंथा है आपने। बधाई।


और हां, क्‍या आपको मालूम है कि हिन्‍दी के सर्वाधिक चर्चित ब्‍लॉग कौन से हैं?

Patali-The-Village said...

बहुत ही सुन्‍दर लेखन इस प्रस्‍तुति के लिये बधाई ।

महेन्‍द्र वर्मा said...

एकांत तो आत्मचिंतन का सुअवसर उपलब्ध कराता है।
इस सुअवसर का लाभ हमें उठाना चाहिए।

प्रेरक और सार्थक प्रस्तुति।

Arvind Mishra said...

जी हाँ कभी कभी तो मन बिलकुल एकांत में राम जाना चाहता है -
और कभी कभी तो नाते रिश्ते से बेहतर अपने घर का सूनापन है !

Dr Varsha Singh said...

सकारात्मक , अच्छी प्रस्तुति।

वीना श्रीवास्तव said...

संगीता जी की बात से सहमत हूं.....
बहुत अच्छा आलेख....बधाई

उपेन्द्र नाथ said...

मोनिका जी बहुत ही अच्छा आपका कहना है......... सच मेरा भी मानना है की अकेलापन आदमी को बहुत कुछ सोंचने और मनन चिंतन का समय देता है. बहुत ही सुंदर पोस्ट.....

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीया डॉ.मोनिका जी
सस्नेहाभिवादन !

एकांत की सुखद अनुभूति.....! बहुत रोचक और सार्थक आलेख है ।
… लेकिन हम कवि-शायर कई बार सचमुच सबके साथ होते हुए भी एकांत का सुखद् अनुभव कर लेते हैं ।
… और भीड़ में अकेलेपन का दुखद पहलू भी है , इससे इंकार नहीं … देखिए -
ज़िंदगी की राहों में रंज़ो-ग़म के मेले हैं
भीड़ है क़यामत की, फिर भी हम अकेले हैं


गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !

- राजेन्द्र स्वर्णकार

Asha Lata Saxena said...

खुश रहने के लिए जो मन हो बही किया जाता है आपके विचार भुत अच्छे लगे बधाई |
आशा

vijai Rajbali Mathur said...

आप सब को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं.

समय चक्र said...

गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ...

निर्मला कपिला said...

अमावस के चाँद स
धुँधला जाता है मन
सब के होते भी
किसी के न होने का
एहसास् तब फिर
अच्छा लगता है
खुद का खुद के पास
लौट आना । बिलकुल एकाँत हमे सकून भी देता है। अच्छी रचना के लिये बधाई। आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।

Sawai Singh Rajpurohit said...

मेरी और से गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

Coral said...

बहुत सुन्दर लेखन ....

गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर आप को ढेरों शुभकामनाये

Anonymous said...

मोनिका जी, बहुत सुन्दर लेख. बिल्कुल सही कहा आपने "एकांत का सुख वही समझ सकता है जो अपने आप के साथ समय बिताता है। यह वो समय होता है जब स्वयं को साधने का मार्ग तलाशा जाता है अपने भीतर झांकने की सुखद अनुभूति के आगे कोई और भाव ठहरता ही कहां है? न शब्द न शोर".. खुद का खुद से संवाद एक अनिवर्चनीय सुख की अनुभूति है, जिसे स्वयं महसूस किये बिना कहाँ जाना जा सकता है.

केवल राम said...

आदरणीया डॉ.मोनिका जी
सादर प्रणाम
एकांत हमें अपना आत्मविश्लेषण करने के लिए प्रेरित करता है ...बहुत प्रेरक और सार्थक पोस्ट .....वक़्त मिला तो दुवारा आऊंगा टिप्पणी के लिए .....अभी नेट का बजह से काफी दिन से दूर हूँ ब्लॉग से ....शुक्रिया आपका

ManPreet Kaur said...

Happy Republic Day..गणतंत्र िदवस की हार्दिक बधाई..

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शोभना चौरे said...

हर चीज की अति बुरी होती है फिर वो एकांत हो ,अकेलापन हो या भीड़ हो |एकांत में साधना करने के बाद उस साधना को बाँटने या देखने वाले या सुनने वाले भी तो होना चाहिए |कुछ पलका कुछ समय का एकांत वरदान होता है स्रज करने के लिए |
एकांत की महत्ता पर बहुत अच्छा आलेख |

G.N.SHAW said...

yekant me hi har nirnay ki samiksha hoti hai.bahut sundar yekant.monikaji ......wish you a happy republic day.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

नहीं मोनिका....एकांत कभी भय का कारण नहीं हो सकता......एकांत ही एकमात्र वह जगह है,जहां जाकर आप वास्तविक रूप में समृद्द होते हैं....एकांत कभी खालीपन नहीं....वह सबसे बड़ा भव्यता है हमारी.....जो हमारी गहराई के रूप में हममे प्रस्फुटित होता है.....!!आपका यह आकलन भी एक तरह से आपके भीतर के एकांत की उपज ही तो है...!!

अजय कुमार said...

कुछ रचनात्मक करें तो वाकई सुखद है

Amrita Tanmay said...

ह्रदय ग्राही ...विचारणीय ....सुन्दर पोस्ट ..शुभकामना

Meenu Khare said...

अकेलेपन के सचमुच बहुत कई फायदे भी है.कुछ लिखना हो तो जब तक अकेलापन न मिले मूड ही नही बनता.अच्छे आलेख की बधाई.

रंजना said...

आपके एक एक शब्द जैसे मेरे ही मन के भाव है,तो अब अलग से और क्या कहूँ...

पूर्ण सहमत हूँ आपसे...बहुत सही कहा आपने...

मुझे तो एकांत न मिले तो जीवन बोझिल लगने लगता है..

विशाल said...

एकांत पर बहुत ही सुन्दर रचना है. सच में एकांत बहुत सुखद अनुभूति है .आप को शुभ कामनाएं.

संध्या शर्मा said...

Monicaji very nice I really enjoyed reading this post. I also love loneliness......

संध्या शर्मा said...

Monicaji very nice I really enjoyed reading this post. I also love loneliness......

Anonymous said...

bahut sundar...n thanks for visiting my blog...

हरकीरत ' हीर' said...

मोनिका जी ,

अक्सर अकेलेपन की बात वो करते हैं जो दूसरों पर निर्भर होते हैं ....
बुजुर्ग माता-पिता ...
जो हर बात के लिए बेटे या बहु पर निर्भर हैं ....
दवा चाहिए तो भी खुल कर नहीं कह पाते...
कुछ खाने की इच्छा हो तो भी ...
या नवविवाहिता स्त्री ....
जो अभी तक माता-पिता की याद से जुडी है ....
या अभी तक ससुराल में रम नहीं पाई...
इस अकेलेपन के पीछे असहायता होती है ...
स्वस्थ या संपन्न व्यक्ति तो अपने जीने के बहाने ढूंढ ही लेता है ....

Deepak Saini said...

एकांत के बारे में आपने बहुत अच्छा लेख प्रस्तुत किया है.

स्वप्निल तिवारी said...

monika ji

ekaant ko main akelepan se alag dekhta hun....

aapkee sari baaten ekaant ke taur par sahi hain...han akelepan ko ekant men badal kar us akelepan ko khushnuma kiya ja sakta hai ...darasal akelapan ek ehsaas hota hai jo akele hone se aata hai...ekaant kee hume aawashykta hoti hai...humen use paanaa hota hai....yadi hum apne akelepan ko ekaant men badal len to yah bahut acchaa hoga

धीरेन्द्र सिंह said...

एकांत की प्राप्ति वर्तमान में सहज नहीं है इसके बावज़ूद भी एकांत आकर्षित करता है, भयभीत भी करता है। स्वंय के तथ्यों को समझने से अक्सर लोग कतराते हैं। दूसरों को समझना और बेबाक समीक्षा करने का सुख ही अलग है। भागमभाग भरी ज़िंदगी में एकांत के सुख की ओर ध्यानाकर्षण के लिए धन्यवाद। एक सार्थक चर्चा।

सुधीर राघव said...

आपका यह लेख बहुत अच्छा लगा ...

Creative Manch said...

बहुत बार हमारा मन एकाकी होना चाहता है और यह जरूरी भी है
दिन भर की भाग-दौड़, माथा-पच्ची के उपरान्त थोड़ी देर एकांत में रहना बहुत सुखद लगता है, यही वो पल होते हैं जब हम स्वयं से बातें करते हैं.

बहुत सुन्दर पोस्ट
बहुत अच्छा लगा
आभार

Unknown said...

बहुत ही सुन्दर लेख...एकांत में यदि मन ध्यान केंद्रित हुआ तो वह ब्यक्ति युग परिवर्तक बन जाता है ....नहीं तो इस युग में कभी कभी ब्यक्ति(मन) भीड़ में रहते भी कितना अकेला होता है ...
सादर अभिनन्दन !!!

वीरेंद्र सिंह said...

आपकी बात ग़ौर करने लायक है। सार्थक लेख!
'एंकात' का भी अपना महत्व है।

pragya said...

एकांत को समझना ज़रा मुश्किल है...हर किसी का एकांत से अपना-अपना रिश्ता है..और अपने अपने रिश्ते के आधार पर हर कोई एकांत या अकेलेपन को परिभाषित करता है...आपकी पोस्ट से सहमत हूँ...एकांत आपको आपके लिए सार्थक बनाता है यदि आप उसके महत्व को समझ लें......अच्छी पोस्ट..धन्यवाद...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत बढ़िया बात कही है आपने ... मै तो तभी कुछ लिख पाता हूँ जब एकांत में बैठकर सोचता हूँ !

मुकेश पाण्डेय चन्दन said...

jindgi me tanhai
hokar bhi kha bhai
jindgi bhi tanha
fir mout bhi tanhai

Shabad shabad said...

इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद !

smshindi By Sonu said...

मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है !

भाग कर शादी करनी हो तो सबसे अच्छा महूरत फरबरी माह मे

Sushil Bakliwal said...

मोनिकाजी,
आपके इस ब्लाग पर देरी से आया हूँ लेकिन एकांत- आत्मचिंतन के लिये आवश्यक वाली आपकी विचारधारा से पूरी तरह सहमति रखता हूँ । आभार...

प्रेम सरोवर said...

एकांतवास किसी को खलता है।पोस्ट अच्छा लगा।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

मोनिका जी,
सहमत हूँ आपसे.... आत्म-साक्षात्कार ज़रूरी है... और यह एकांत में ही संभव है.
आशीष

डॉ. मोनिका शर्मा said...

इस विषय पर आप सबके अर्थपूर्ण विचारों का हार्दिक आभार ....

Sunita Sharma Khatri said...

मोनिका जी मेरे ब्लाग Emotion's पर आने का धन्यवाद, आपने यह पोस्ट बहुत अच्छी लिखी है इससे सम्बन्धित जीवनधारा पर एक नजर डाले।
Jeevendhara
http://chittachurcha.blogspot.com

ज्योति सिंह said...

bahut sundar lekh ,baate dil ko bha gayi .

Aditya Tikku said...

Atiutam

Suman said...

bahut khubsurat vivechan hai. mujhe bhi yekant bahut priy lagta hai......

abhi said...

मुझे अकेला रहना अब पसंद आने लगा है...:)
वैसे इस पे भी मैंने एक पोस्ट लिखी थी...आपने तो पढ़ी भी है :)
खैर,
फिर से बहुत अच्छा लिखा है आपने :)

Awakened Soul said...

bat to sahi kahi apney... ekant ka apna hi mahatv hai...!!!

***Punam*** said...

सच कहा आपने...

एकांत को एकांत में ही महसूस किया जा सकता है...

अकेलापन उबाऊ होता है,लेकिन एकांत आपको आपसे मिलाता है...

सुन्दर रचना..!!

अनिल साहू said...

सुंदर रचना।

subhashni said...

बहुत सुंदर🙏

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