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05 November 2018

ज़मीनी अनुभवों का दस्तावेज - मीडिया के दिग्गज


आज के समय में मीडिया यानी विवाद, विमर्श और निर्बाध आमजन तक पहुंचती सूचनाएं | लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ जिससे जनता को शिकायतें हैं अपर बदलाव की उम्मीदें भी इसी से जुड़ी  हैं |  मीडिया की इसी दुनिया से रूबरू करवाती है  हीरेन्द्र झा की किताब मीडिया के दिग्गज | लेकिन एक अलग अंदाज़ में | यह सफ़र उन चर्चित चेहरों की जुबानी किताब का हिस्सा बना है जो घर-घर में पहचान बना चुके हैं | दर्शकों और पाठकों के लिए किसी के बोलने का अंदाज़ दिलचस्प है तो किसी के लिए शब्द मन पर चस्पा हो जाते हैं | किसी की क्राइम रिपोर्टिंग बहुत प्रभावी होती है तो कोई मानवीय मुद्दों को भावनात्मक सामने रखने में बेहद सफल है | लेकिन इन चेहरों के मीडिया में अपनी पुख्ता जगह बनाने और जन सामान्य के दिल में बस जाने की यात्रा भी कम रोचक नहीं | मीडिया के दिग्गज ऐसे ही सोलह चर्चित चर्चित चेहरों के साक्षात्कार लिए है | पत्रकारिता के  विद्यार्थियों लेकर आम पाठक तक इस किताब के जरिये उन चेहरों के करीब जा पाते हैं जिन्हें वे नाम और चेहरे से पहचानते हैं | लेखक ने भूमिका में यह बात लिखी भी है कि मीडिया के इन दिग्गजों को जानने, उनकी यात्रा से  परिचित होने के साथ ही आप कुछ बुनियादी सवालों के जवाब भी जान सकेंगें | देश के जाने माने मीडियाकर्मियों के साक्षात्कार के इस संग्रह को पढ़ते हुए यह महसूस भी होता है | 

किताब में बहुत सहज और सरल भाषा में सवाल पूछे गए हैं |  हाँ, पूछे गए सभी सवाल जरूरी लगते हैं | इन जाने -माने चेहरों और इनके सफ़र को जानने-समझने की उत्सुकता लिए हैं | किताब में देश चर्चित मीडियाकर्मियों शम्स ताहिर खान- जुर्म अभी बाकि है जाइयेगा नहीं, वर्तिका नन्दा- रानियाँ सब जानती हैं, शशिशेखर- समय को तराशा है उन्होंनें, ओम थानवी- मेरे पास  अज्ञान का भण्डार है, खुरापाती नितिन- रेडियो मेरी इबादत है, मुकेश कुमार- नौकरी मैं चुटकियों में छोड़ता हूँ, डॉ. वेदप्रताप वैदिक-पत्रकारिता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं ठगी की स्वतंत्रता है, दारैन शाहिदी-दस्ताने दारैन, अजीत अंजुम- मेहनत, ईमानदारी, निष्ठा,वफ़ादारी और काम यही मेरी पहचान, ओ पी राठौर-उसकी योजना मेरी कल्पना से बेहतर है, राहुल देव-भाषा बचेगी तभी भारतीयता बचेगी , आलोक पुराणिक- व्यंग्य लेखन की वर्कशॉप हो, दीपक चौरसिया-काजल की कोठरी में मैं काला नहीं, अमीन सायानी- जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ा है फूहड़पन, पुण्य प्रसून वाजपेयी- लिटिल मास्टर ऑफ़  जर्नलिज़्म और  पराग  छापेकर- ग्लैमर दिखता है पर इसके पीछे मेहनत है | ये सभी साक्षात्कार मीडिया की दुनिया में इन शख्सियतों के अपने सफ़र को तो बताते ही हैं, पाठक को भी टीवी, अखबार और रेडियो की की दुनिया कई अनजाने पक्षों से रूबरू करवाते हैं |  

इस क्षेत्र में काम करने की मुश्किलों और काम के दबाव को लेकर किये गए कई सवाल यह स्पष्ट करते हैं कि  मीडिया की दुनिया में पहचान बनाना कितना मुश्किल काम है | किताब में शामिल सभी विस्तृत इंटरव्यूज़ में  मीडिया के मौजूदा हालातों की भी साफ़ झलक मिलती है | एक पुख्ता पहचान बना चुके इन दिग्गजों के संघर्ष को समझने का परिदृश्य इस क्षेत्र की कई और बातों को भी सामने ले आता है | लेखक के सवालों  ने  सभी  दिग्गजों की कामयाबी के पीछे के पूरे सफ़र को सामने लाने का काम बखूबी किया है | यही वजह है कि यह मीडिया  में आने वाले नवांकुरों के लिए यह किताब काफी उपयोगी है | लेखक हीरेन्द्र झा लिखते भी हैं  कि एक रिपोर्टर, एंकर, रेडियो जॉकी में क्या गुण होने चाहिए. आपकी भाषा कैसी हो, आपकी तैयारी कैसी हो ? इन बातों की जानकरी लेकर इस संसार में अपनी राह तलाशना  ज्यादा  बेहतर है | वाकई, इस संसार का हिस्सा बनने से पहले  विद्यार्थियों के अपने चहेते चेहरों की यात्रा का क्रम जनाना रोचक ही नहीं  कई पहलुओं पर चेताने वाला भी है |  उनकी मेहनत और समर्पण की उस बुनियाद से परिचय करवाने वाला है जिसके बूते इन दिग्गजों ने यह ख्याति हासिल की | 
मौजूदा समय में जब मीडिया से  आमजन का भरोसा भी कुछ डगमगा रहा है, कई सवाल इस दुनिया के भीतर झाँकने का सार्थक प्रयास हैं | असल स्थितियों पर रोशनी डालते हैं | दबाव और भागदौड़ से भरी इस दुनिया में इन चहेरों ने कैसे अपनी पहचान बनाई ? परिवार के लिए कैसे समय निकालते हैं ?  क्या ख़बरें गढ़ी जाती हैं ?   नए बच्चों को क्या मशवरा देंगें ?  आपकी जो शैली है, कैसी विकसित की आपने ? एक पत्रकार में क्या खूबी देखते हैं आप ? सफलता को कैसे देखते हैं ?आज कैसी पत्रकारिता हो रही है ? जैसे कितने ही सवाल  मीडिया के संसार को जानने समझने में मददगार हैं |  बात चाहे रेडियो जॉकी बनने की चुनौतियों की हो पत्रकारिता की दुनिया में भाषा और ख़बरों की समझ के  मायने समझने की | टीआरपी के खेल की बात हो या समाचारों को सनसनी बना देने की | किताब में लेखक के सवालों के जवाब में मीडिया के चर्चित चेहरों द्वारा दिए गए जवाब बहुत कुछ बताते- सिखाते और समझाते हैं | कई प्रश्नों के उत्तर  पढ़ने वाले के वैचारिक द्वंद्व को व्यावहारिक राह दिखाने वाले हैं |  सभी साक्षात्कार बेहतरीन हैं जो मीडिया जगत में इन दिग्गजों के ज़मीनी अनुभव  और संघर्ष से रूबरू करवाते हैं | 

4 comments:

radha tiwari( radhegopal) said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (07-11-2018) को "दीप खुशियों के जलाओ" (चर्चा अंक-3148) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी

शिवम् मिश्रा said...

ब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सब को छोटी दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं|


ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 06/11/2018 की बुलेटिन, " जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

संजय भास्‍कर said...

दीपोत्सव की अनंत मंगलकामनाएं

मन की वीणा said...

सामायिक विषयों पर सटीक चिंतन

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