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28 December 2017

न्याय व्यवस्था में भरोसा बढ़ाने वाला निर्णय



मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में करीब दो महीने पहले  नाबालिग लड़की से गैंगरेप की जिस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था, उसमें चारों दोषियों को आजीवन कारावास की सजा  हुई  है | गौरतलब है कि  भोपाल की एडिशनल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट जज की अदालत में इस केस  पर प्रतिदिन सुनवाई चली और  फास्ट ट्रैक कोर्ट में चले इस मामले में  36 दिन में फैसला आया | जिसमें चारों दोषियों को उम्रकैद की सजा दी गई है | इस  घटना में  दोषियों का दुस्साहस और अमानवीयता इतनी थी कि आरोपी गैंगरेप के बीच पीड़िता को बेहोश छोड़ पान-गुटखा भी खाने गए और लौटकर फिर  उसके साथ दुष्कर्म किया | साथ ही यह मामला  पुलिस के असंवेदनशील व्यवहार के लिए भी सुर्ख़ियों में रहा | पीड़िता ने अपने पिता के साथ तीन  थानों के चक्कर लगाए, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई |  यह आमजन का मनोबल तोड़ने वाली बात थी कि  पीड़िता के माता-पिता खुद पुलिसकर्मी हैं,  बावजूद इसके रिपोर्ट लिखवाने के लिए उसे ऐसे असंवेदनशील व्यवहार  को झेलना पड़ा | केस दर्ज करने से आनाकानी करने और पीड़िता की शिकायत को फिल्मी कहानी बताने वाले सात  पुलिसकर्मियों को बाद में सस्पेंड भी किया गया था |  इतना ही नहीं इस केस में मेडिकल विभाग की लापरवाही भी सामने आई थी | जिसके चलते रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉक्टर को सस्पेंड कर दिया गया था | ऐसी व्यवस्थागत विसंगतियों से लड़ते हुए भी यह त्वरित फैसला आना और दोषियों सजा मिलना वाकई एक नजीर बनने वाला निर्णय है | 

हमारी लचर न्यायिक व्यवस्था में ऐसे फैसले वाकई उम्मीद जगाने वाले उदाहरण हैं | आमतौर पर ऐसे मामलों में सालों कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने में निकल जाते हैं और दोषी सजा भी नहीं पाते | एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक़ बीते साल पोक्सो के तहत  पंद्रह हज़ार मामले दर्ज किये गए लेकिन मात्र  चार  प्रतिशत मामलों में अपराधी को सजा हुई | इनमें  नब्बे फीसदी मामले लंबित हैं और  छह  फीसदी मामलों में अपराधी बरी हो गए | कोई हैरानी नहीं ऐसी लचर व्यवस्था के चलते भी ऐसे बर्बर मामलों के आंकड़े बढ़ रहे हैं |  कितने ही मामलों में तो   ऐसी कुत्सित प्रवृत्ति के अपराधियों ने  सजा से बचकर फिर ऐसी ही किसी आपराधिक घटना को भी अंजाम दिया है  | यही वजह है कि कोर्ट के फैसले पर इस नाबालिग लड़की के अभिभावकों का कहना है कि  "वे दोषियों के लिए फांसी चाहते थे, लेकिन इस फैसले से भी संतुष्ट हैं,  कम से कम दोषी जिंदा रहने तक जेल में तो रहेंगें तो फिर ऐसा गुनाह कभी नहीं कर पाएंगे।" यकीनन यह सही भी है | इस घटना के दोषियों का जीवन पर्यंत जेल में रहने और  इस तरह के मामलों में जल्दी सुनवाई होने से ना केवल कुत्सित सोच वालेलोगों  के हौसले पस्त होते हैं बल्कि आमजन का न्यायिक व्यवस्था में भरोसा भी बढ़ता है । यह मामला वाकई एक उदाहरण है  क्योंकि व्यवस्था की लचरता और असंवेदनशीलता से लड़ते हुए पीड़िता के माता-पिता ने भी हौसला बनाये रखा  | आमतौर पर बेटी से ही सवाल किये जाने वाले हमारे समाज में यह बड़ी बात है कि पिता खुद पीड़िता के साथ  घटनास्थल पर गए और दो आरोपियों को पकड़ा | यह उनकी हिम्मत ही थी कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए जिस केस के घटनाक्रम को ट्रैजडी ऑफ एरर्स करार दिया, उन्होंने  हार नहीं मानी |  

 दरअसल, देश में न्यायिक लचरता और प्रशासनिक गैर जिम्मेदारी की बात किसी से छुपी नहीं है | मामला कैसा भी हो अगर अक्सर उसकी लीपापोती की कोशिश की जाती है | महिलाओं के साथ होने वाले दुष्कर्म जैसे हादसों में तो उलटा पीड़िता से ही अनगिनत सवाल किये जाते हैं | इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ | पुलिस जब थानों के सीमा विवाद में उलझी थी, तभी  पीड़िता और उसके परिजन आरोपियों को ढूंढने निकल गए।   उन्होंने दो बदमाशों को पकड़कर पुलिस के सामने पेश  किया तब जाकर मामला दर्ज हो पाया। लापरवाही की हद ही कही जायेगी कि मेडिकल रिपोर्ट में  डॉक्टरों ने इस बर्बरता को आपसी सहमति से बनाया गया शारीरिक संबंध करार दिया था। मामला सामने आने के बाद दोबारा संशोधित रिपोर्ट जारी कर उन्होंने गैंगरेप की पुष्टि की |ऐसे में हमारे देश में कानून लचरता, जाँच और पुलिस की कार्यवाही के नाम पर ख़ुद पीड़िता के परिवार का पीड़ित बन जाना वाकई आमजन को निराश करने वाला है | इतना ही नहीं समाज में भी ऐसे दुष्कर्म के दंश को झेलने वाली महिला के साथ अपमानजनक व्यवहार ही किया जाता है | ऐसी शर्मसार करने वाली घटनाओं के लिए भी कहीं ना कहीं  महिलाओं को ही जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की जाती है | ऐसी अमानवीयता का शिकार बनीं महिलाओं का जीवन बहुत मुश्किलों से भरा बन ही जाता है । जब भी किसी महिला के साथ यह जघन्य अपराध होता है, कभी सवाल उसके कपड़ों पर तो कभी देर रात घर से बाहर रहने पर उठाए जाते हैं | जिसके चलते विकृत हो रहे माहौल और प्रशासनिक लचरता के बारे में गंभीरता से  सोचा ही नहीं जाता | कुलमिलाकर देखें तो ऐसी पीड़ा झेलने वाली महिलाओं के लिए किसी भी स्तर पर सहयोग भरा माहौल देखने में नहीं आता | 

 असल में देखा जाये तो सामूहिक दुष्कर्म के ऐसे बर्बर मामले केवल शारीरिक शोषण की घटनायें भर नहीं हैं । यह अपराधियों के बढ़ते दुस्साहस और न्यायिक लचरता की बानगी हैं जो समाज के आम नागरिक के लिए भय का माहौल बना रही हैं | यही वजह है कि न्यायिक लचरता और कानून से मिल रही मायूसी के बीच आया यह निर्णय विश्वास जगाने वाला फैसला है । हालिया बरसों में जिस तरह हर उम्र की महिलाओं के लिए हमारा परिवेश असुरक्षित हो रहा है, ऐसे निर्णय जरूरी भी हैं |  हरिभूमि में प्रकाशित मेरे लेख से ) 

6 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-12-2017) को "काँच से रिश्ते" (चर्चा अंक-2833) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
क्रिसमस हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. मोनिका शर्मा said...

हार्दिक आभार आपका

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ख़ुशी की कविता या कुछ और?“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत शुक्रिया

संजय भास्‍कर said...

खूबसूरत प्रस्तुति नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ :(

Swaroop patel said...

Omg i just discovered this,u r an amazing writer..need to advertise this so that more can read your articles

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