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- डॉ. मोनिका शर्मा
- पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'
24 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (01-02-2016) को "छद्म आधुनिकता" (चर्चा अंक-2239) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आपका
छद्म आधुनिकता के जाल से बचना ही चाहियें,आधुनिकता वही जो हमारे उत्कर्ष में सहायक हों |
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " प्रेम से बचा ना कोई " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत उम्दा बात कही है आपने। देह केन्द्रित सशक्तिकरण का समर्थन करनेवालों पर तमाचा हैं ये पंक्तियां।
बेहतरीन सोच ... शुभकामनाएं
बढ़ते रहो।
bahot badhiya................!!!!
स्पष्ट और सटीक कहा है ... आज की आधुनिकता अपने रीति और रिवाज़ को जबरन ख़त्म करना चाहती है ... अच्छी बातों को भी इसलिए नहीं मानते की ये ये पुराने समय से जो चली आ रही है ... इसको तोडना ही आधुनिक होना है ...
बहुत गहरी और विचारणीय तथ्य। नीर क्षीर विवेक हो।
bahut gahri baat kahi hai aapne..
यही विवेक बचाए रखता है हमारी गरिमा को .
स्त्री की यही सोच समाज के, घर परिवार के जीवन मूल्यों को बचाकर जिन्दा रखे है
गहरी अभिव्यक्ति
सादर
आपने लिखा...
कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 12/02/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 210 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
लड़कियों की आँखों में आंसू अच्छे नहीं लगते
ये जब रोती हैं तो हमारे घर, घर नहीं लगते |
Hindi Shayari
achhi rachana hai
बहुत सुन्दर और सारगर्भित प्रस्तुति।
सुंदर और सार्थक
छद्म आधुनिकता हेय है, सभी के लिए ।
स्पष्टोक्ति के लिए बधाई ।
सत्य वचन, विवेक हमारी आत्मरक्षा के लिए जरुरी है !
सार्थक रचना !
सत्य और सोंचने को मजबूर करती चन्द ही लाईनों में बहुत सारे सवाल और जवाब छिपे हुए है...
आत्मविश्वास परिपूर्ण सन्देश देती रचना ....सुन्दर प्रस्तुति ..:)
सारगर्भित रचना. सशक्तिकरण के नाम पर हो रही नारेबाजी से सावधान रहने की जरूरत है.
सत्य और सार्थक प्रस्तुति । बहुत सुंदर ।
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