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10 July 2015

ड्योढ़ी


घर की ड्योढ़ी पर
भोर की पहली किरण की 
अंगड़ाई से पहले
माँ  के आँचल में
छुपी  दिव्य उजास  
कर देती है  
आँगन को आलोकित । 

14 comments:

Manoj Kumar said...

सत्य एवं सुन्दर !

ओंकारनाथ मिश्र said...

सत्य लिखा है. समय कोई भी हो, सानिध्य माँ का हो तो उजाला ही उजाला है मन में और बाहर में. सुन्दर रचना.

गिरधारी खंकरियाल said...

अत्यन्त सत्य।

Himkar Shyam said...

सच है माँ का एहसास ही आलोकित कर देता है घर-आँगन को, माँ होती ही है ऐसी...सुंदर अभिव्यक्ति

दिगम्बर नासवा said...

और ये उजास रहती है किसी ज्योति की तरह दिल में ... और सूरज की किरण हो न हो .... ये प्रकाश देती है जीवन भर ...
माँ का तो एहसास ही काफी है रौशनी के लिए ...

अभिषेक शुक्ल said...

सत्य।

Jeevan Pushp said...

सुन्दर अभिव्यक्ति !

आभार !

Jeevan Pushp said...

सुन्दर अभिव्यक्ति !

आभार !

रचना दीक्षित said...

सच है माँ का नाम ही पर्याप्त है माँ है तो उजाला ही होगा
आभार

महेन्‍द्र वर्मा said...

मां का आंचल सूरज से कम नहीं।
ममता की नितांत नई व्याख्या।

virendra sharma said...

ये प्रेम ही तो परमात्मा स्वरूप है माँ के आँचल सा।

abhi said...

आह...खूबसूरत !

Suman said...

बहुत सुन्दर क्षणिका !

संजय भास्‍कर said...

सत्य लिखा है....बहुत सटीक

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