- डॉ. मोनिका शर्मा
- पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'
27 comments:
sateek !
इस प्रश्न के चक्रवात में मैं हमेशा होती हूँ
शायद तभी
निःसंदेह तभी प्रलाप करती हूँ
विक्षिप्तता तो हम इंसानों में है। परिणाम अक्सर दिखता है, पूरे इंसानों को मानसिक चिकित्सा की नितांत आवश्यकता है।
बहुत ख़ूब !!!
विक्षिप्त सामाजिक व्यवस्था पर कड़ा
प्रहार करती अस्तित्ववादी कविता!
मुझे मुक्तिबोध याद आ रहे हैं
सारगर्भित कविता कुछ सोचने के लिए मन को विवश करती है |आभार
विक्षिप्त हो चुकी मानवता, मानसिकता कहाँ दे सकेगी इस सवाल का जवाब ....
सटीक प्रश्न उठाती बहुत ही सार्थक रचना,..सुंदर तस्वीर...
जवाब सभी को मालूम है... मगर सवाल है, कि हमेशा सिर उठाये रहता है ....
जिन घटनाओं को अखबार से जानना तक दुखद है, उन से होकर गुज़रना। ऐसी त्रासदी बरपाने वाले भी मौजूद हैं इस दुनिया में। :(
सही बात प्रस्तुत की, कि कौन है।
मानसिकता होती है विक्षिप्त
बेहोश अंधे गूंगे बहरे और अतृप्त
आत्माएं जिनकी हर वक्त सुप्त
विक्षिप्त सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार करती रचना.
विक्षिप्त होना तो एक मानसिक अवस्था है, एक रोग! लेकिन जिनकी बात आपने इस संवेदनशील रचंना में की है, वे आत्मा के स्तर पर सड़ चुके हैं! उन्हें इसी पृथ्वी पर किये की सज़ा मिलती है, क्योंकि रोग का निदान संभव है. आत्मा की सड़न लाइलाज है!
एक यक्ष प्रश्न जिसका उत्तर जानते हुए भी सब मौन हैं...
विक्षिप्त होना तो एक मानसिक अवस्था है, एक रोग! लेकिन जिनकी बात आपने इस संवेदनशील रचंना में की है, वे आत्मा के स्तर पर सड़ चुके हैं! उन्हें इसी पृथ्वी पर किये की सज़ा मिलती है, क्योंकि रोग का निदान संभव है. आत्मा की सड़न लाइलाज है!
कहीं न कहीं हम सभी थोड़े बहुत विक्षिप्त तो हैं ही। कुछ इस स्िथति को कुशलता पूर्वक छिपा जाते हैं। जो नहीं छिपा पाते वो जग जाहिर हो जाते हैं।
सत्य
मन में जो आया वह कागज पर उतरा। चंद पक्तियां पर सबके सवाल को वाणी दे रही है। सरलता तो मनुष्य में है नहीं! टेढापन ही उसकी विशेषता है, उसी टेढे में विक्षिप्तता उसका कभी अवगुण तो कभी गुण बन जाती है। असल में विक्षिप्त हम सब मानव है। बस फर्क यह है कि कौन ज्यादा और कौन कम है? किसकी विक्षप्तता गुणों को उजागर करती है और किसकी विक्षिप्तता अवगुणों को?
विक्षिप्त शब्द का प्रयोग हम अक्सर मानसिक या शारीरिक अपाहिज को सहानुभूति के साथ कहने के लिए करते हैं!
इन लोगो के लिए विक्षिप्त शब्द बहुत छोटा होगा
गहरी और कडवी बात लिख दी है आपने ... पर समझ कर भी कहाँ समझना चाहता है आज कोई ...
पर गवाही भी विक्षिप्तों की ही होगी जो उसे ही विक्षिप्त घोषित कर देते हैं .
गहरे दुःख से मन भर जाता है ऐसे दानवी कृत्यों को जानकार. बार बार यही प्रश्न आता है .... इस दानव का निर्मूल अंत कैसे होगा. जवाब कुछ नहीं मिलता.
जायज प्रश्न जिसका उत्तर हम सबके पास है!!!
ऐसे अमानुष कृत्य करने वाले विक्षिप्त ही नही विकृत भी हैं।
मन को उद्वेलित करता प्रश्न ! ऐसे लोग ही विक्षिप्त हैं।
Behad gahan wa vicharniya prashn liye sashakt abhivykti
मार्मिक ,
बहुत खूब मंगलकामनाएं आपको !
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