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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

14 February 2015

असल में विक्षिप्त कौन हैं ?

कैसा अँधेरा घिरता जा रहा 
मन से,  मस्तिष्क से विमंदित
वो पगली
मनुष्य तो ज़रूर रही होगी
अख़बारों की सुर्खियां बताती हैं
एक विक्षिप्त
कुछ दुष्टों की
अमानवीयता को
झेलते हुए संसार छोड़ गई
और छोड़ गई हम सब के लिए
एक मानुषिक प्रश्न भी.…कि
असल में विक्षिप्त कौन हैं ?  

                                                                                              चित्र और कविता - डॉ मोनिका शर्मा 

27 comments:

Vinod Singhi said...

sateek !

रश्मि प्रभा... said...

इस प्रश्न के चक्रवात में मैं हमेशा होती हूँ
शायद तभी
निःसंदेह तभी प्रलाप करती हूँ

अभिषेक शुक्ल said...

विक्षिप्तता तो हम इंसानों में है। परिणाम अक्सर दिखता है, पूरे इंसानों को मानसिक चिकित्सा की नितांत आवश्यकता है।

lori said...

बहुत ख़ूब !!!
विक्षिप्त सामाजिक व्यवस्था पर कड़ा
प्रहार करती अस्तित्ववादी कविता!
मुझे मुक्तिबोध याद आ रहे हैं

जयकृष्ण राय तुषार said...

सारगर्भित कविता कुछ सोचने के लिए मन को विवश करती है |आभार

संध्या शर्मा said...

विक्षिप्त हो चुकी मानवता, मानसिकता कहाँ दे सकेगी इस सवाल का जवाब ....

Himkar Shyam said...

सटीक प्रश्न उठाती बहुत ही सार्थक रचना,..सुंदर तस्वीर...

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

जवाब सभी को मालूम है... मगर सवाल है, कि हमेशा सिर उठाये रहता है ....

Smart Indian said...

जिन घटनाओं को अखबार से जानना तक दुखद है, उन से होकर गुज़रना। ऐसी त्रासदी बरपाने वाले भी मौजूद हैं इस दुनिया में। :(

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

सही बात प्रस्‍तुत की, कि कौन है।

राज 'बेमिसाल' said...

मानसिकता होती है विक्षिप्त
बेहोश अंधे गूंगे बहरे और अतृप्त
आत्माएं जिनकी हर वक्त सुप्त

राजीव कुमार झा said...

विक्षिप्त सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार करती रचना.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

विक्षिप्त होना तो एक मानसिक अवस्था है, एक रोग! लेकिन जिनकी बात आपने इस संवेदनशील रचंना में की है, वे आत्मा के स्तर पर सड़ चुके हैं! उन्हें इसी पृथ्वी पर किये की सज़ा मिलती है, क्योंकि रोग का निदान संभव है. आत्मा की सड़न लाइलाज है!

Kailash Sharma said...

एक यक्ष प्रश्न जिसका उत्तर जानते हुए भी सब मौन हैं...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

विक्षिप्त होना तो एक मानसिक अवस्था है, एक रोग! लेकिन जिनकी बात आपने इस संवेदनशील रचंना में की है, वे आत्मा के स्तर पर सड़ चुके हैं! उन्हें इसी पृथ्वी पर किये की सज़ा मिलती है, क्योंकि रोग का निदान संभव है. आत्मा की सड़न लाइलाज है!

कहकशां खान said...

कहीं न कहीं हम सभी थोड़े बहुत विक्षिप्‍त तो हैं ही। कुछ इस स्‍ि‍थति को कुशलता पूर्वक छिपा जाते हैं। जो नहीं छिपा पाते वो जग जाहिर हो जाते हैं।

राज 'बेमिसाल' said...

सत्य

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे said...

मन में जो आया वह कागज पर उतरा। चंद पक्तियां पर सबके सवाल को वाणी दे रही है। सरलता तो मनुष्य में है नहीं! टेढापन ही उसकी विशेषता है, उसी टेढे में विक्षिप्तता उसका कभी अवगुण तो कभी गुण बन जाती है। असल में विक्षिप्त हम सब मानव है। बस फर्क यह है कि कौन ज्यादा और कौन कम है? किसकी विक्षप्तता गुणों को उजागर करती है और किसकी विक्षिप्तता अवगुणों को?

Sumit Tomar said...

विक्षिप्त शब्द का प्रयोग हम अक्सर मानसिक या शारीरिक अपाहिज को सहानुभूति के साथ कहने के लिए करते हैं!
इन लोगो के लिए विक्षिप्त शब्द बहुत छोटा होगा

दिगम्बर नासवा said...

गहरी और कडवी बात लिख दी है आपने ... पर समझ कर भी कहाँ समझना चाहता है आज कोई ...

Amrita Tanmay said...

पर गवाही भी विक्षिप्तों की ही होगी जो उसे ही विक्षिप्त घोषित कर देते हैं .

ओंकारनाथ मिश्र said...

गहरे दुःख से मन भर जाता है ऐसे दानवी कृत्यों को जानकार. बार बार यही प्रश्न आता है .... इस दानव का निर्मूल अंत कैसे होगा. जवाब कुछ नहीं मिलता.

प्रभात said...

जायज प्रश्न जिसका उत्तर हम सबके पास है!!!

Asha Joglekar said...

ऐसे अमानुष कृत्य करने वाले विक्षिप्त ही नही विकृत भी हैं।

महेन्‍द्र वर्मा said...

मन को उद्वेलित करता प्रश्न ! ऐसे लोग ही विक्षिप्त हैं।

सदा said...

Behad gahan wa vicharniya prashn liye sashakt abhivykti

Satish Saxena said...

मार्मिक ,
बहुत खूब मंगलकामनाएं आपको !

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