परिवार पोषित करे समझ और संवेदनशीलता |
मॉल के एक मंहगे से आउटलेट के सामने पांच साल के एक बच्चे ने पानी की खाली बोतल ठोकर मार कर उछाल दी । बोतल उस क़ीमती सामान वाली दुकान के दरवाज़े पर खड़े गार्ड के मुंह पर जाकर लगी । देखकर लगा कि गार्ड के चेहरे पर मजबूरी मिश्रित गुस्सा था पर उसने कुछ कहा नहीं । ये सारा खेल वहीँ खड़े संभ्रांत परिवार के दिखने वाले पढ़े लिखे माता पिता ने भी देखा । मुझे हैरानी इस बात पर हुई कि सब कुछ देखने बाद भी उन्होंने बच्चे को कुछ नहीं कहा । फिर सोचा कि संभवतः यहाँ पब्लिक प्लेस में बच्चे को कुछ नहीं कहना चाहते होंगें । जब ध्यान से देखा तो पाया कि उन्होंने तो बच्चे की इस हरकत को उसका सामान्य खेल ही समझा है । तभी तो ख़ुशी ख़ुशी लाडले का हाथ पकड़ा और वहां से चले गए । ऐसे में मन में यह विचार आया कि कम से कम उन्हें उस गार्ड से जो कि पूरी जिम्मेदारी और मुस्तैदी से अपना काम कर रहा था, माफ़ी तो ज़रूर मांगनी चाहिए थी । मन में ये सवाल भी उठा कि उस गार्ड के मुंह पर जाकर लगी बोतल के बारे में जिन अभिभावकों ने सोचा तक नहीं वे अगर बच्चा घर का कोई छोटा सा सामान या गैजेट तोड़ दे तो क्या इसी तरह चुप रहेगें और अपने सभ्य व्यवहार को बनाये रखेंगें ?
सवाल ये है कि जब हम बच्चों को मनुष्यता का मान करना ही नहीं सीखा रहे हैं तो वे कैसे नागरिक बनेगें ? यह एक अकेला मामला नहीं है । ऐसी कई घटनाएँ इन दिनों में देखीं तो लगा कि आजकल बच्चे बेधड़क यही सीख रहे हैं कि उन्हें ना तो किसी के श्रम का मान करना है और ना ही उम्र का लिहाज । जबकि मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं बालमन पर छोटी छोटी बातों का गहरा असर पड़ता है । उनकी सोच और समझ की दिशा बचपन में मिली सीख से ही दृढ़ता पाती है । निःसंदेह ये समझाइश सकारात्मक होगी तो बच्चों की सोच और व्यवहार को भी सही दिशा मिलेगी । ठीक इसी तरह यदि उन्हें ऐसे समय पर टोका न जाय तो उनकी सोच और आचरण नकारात्मक मार्ग ही पायेंगें । हमारे आसपास होने वाले ऐसे वाकये इसी बात को पुख्ता करते हैं कि जाने अनजाने अभिभावक ही बच्चों को इंसानियत से ज़्यादा का चीज़ों का मान करना सीखा रहे हैं । ऊँच-नीच और छोटे-बड़े का भेद बता रहे हैं । अब यह समझना तो किसी के लिए भी मुश्किल नहीं कि वे किस आधार पर दूसरों को कमतर या बेहतर समझ रहे हैं या अपनी नई पीढ़ी को समझा रहे हैं ?
हमारे परिवेश में आये दिन होने वाली अमानवीय घटनाओं को लेकर हम चिंतित रहते हैं । सरकार को कोसते हैं । कानून की कमज़ोरियों की दुहाई देते हैं। पर इन सबके बीच भूल जाते हैं तो बस ये कि अभिभावक होने के नाते बच्चों की फीस और ज़रूरत का सामान जुटाने के अलावा भी हमारी कुछ जिम्मेदारियां है । जिम्मेदारियां, जो सही ढंग से न निभाई जाएँ तो बच्चों का व्यक्तित्व कुछ ऐसा बनेगा जो न केवल अभिभावकों को बल्कि परिवार और समाज को भी प्रभावित करेगा । मन में किसी के प्रति सम्मान और संवेदनशीलता न होना समाज में पनपने वाली अधिकांश समस्याओं की जड़ है । क्या हमें बच्चों में इस विचारशीलता और सही बर्ताव का आधार बनाने की आवश्यकता नहीं ? छोटी सी उम्र में ही व्यवहार की उग्रता और असंवेदनशीलता आगे चलकर उन्हें हर तरह जिम्मेदारी से उदासीन और भावशून्य ही बनाएगी । मैं जो कह रही हूँ वो कोई नया विचार नहीं है । बच्चों के पालन पोषण को लेकर यह बात शायद हज़ारों बार कही और सुनी गयी है । इस दौरान अभिभावक और सचेत और शिक्षित भी हुए हैं । पर हम सब कहीं गुम हैं । समझ और सहूलियत होने के बावजूद भी अपनी ही जिम्मेदारी के प्रति उदासीन । हाँ, चेतते ज़रूर हैं, पर अक्सर देरी हो जाने के बाद । जबकि ज़रुरत इस बात है कि हम समय रहते चेतें और बच्चों की परवरिश के सही मायने समझें ।