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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

18 October 2014

ये कैसा प्रेम है

बड़ौदा शहर की घटना जिसमें एक गोद ली हुई  बेटी ने ही अपने प्रेमी के साथ मिलकर माता-पिता की हत्या कर दी, के विषय में देख-पढ़ कर मन उद्वेलित है । यह मामला इंसानियत से भरोसा उठाने वाला सा है । जो निसंतान दम्पत्ति बरसों पहले एक अनाथ बच्ची को बेटी बनाकर घर लाये थे उन्होंनें सपने में भी नहीं सोचा होगा कि भविष्य में उनके साथ ऐसा दर्दनाक खेल खेला जायेगा । लगता है जैसे भले बुरे की सीख और सही समझाइश देना ही उन बुजुर्गों की गलती थी । जिसका मोल उन्हें जान गवांकर चुकाना पड़ा ।  प्रेम प्रसंग में पड़ी बिटिया से उन बुजुर्गों ने रोक-टोक की तो प्रेमी के साथ मिलकर उनकी जान ही ले ली और कई दिनों तक दोनों शवों को घर में बंद कर उस पर तेजाब डालते रहे ।

सवाल ये है कि आखिर ये कैसा प्रेम है ? इतनी छोटी उम्र में इतने हिंसक इरादे और अमानवीय सोच । वो भी अपने ही माता पिता के प्रति । या यूँ कहें कि माता-पिता से भी बढ़कर इंसानों के प्रति । क्योंकि इस अनाथ बच्ची को घर लाकर जिन लोगों ने उसका जीवन संवारने की सोची वो तो जन्म देने वाले माता-पिता से भी बढ़कर थे । प्रश्न ये भी है कि आज के ज़माने में जब दो लोगों के विचार और व्यवहार सामान्यतः विरोधी ही होते है इन दोनों में इतना समन्वय और बेहूदा समझ रही कि इक्कीस साल का प्रेमी भी इस पीड़ादायी हादसे को अंजाम देने में साथ हो लिया । प्यार के जिस पावन भाव के लिए इन दोनों ने इस कुत्सित कर्म को अंजाम दिया, इन्हें उसकी समझ भी है ? ये प्रेम का अर्थ ही समझते तो संभवतः ऐसा कुछ  करने का विचार भी मन में ना आता । 

 न वर्तमान की समझ न भविष्य की सोच । इस पीढ़ी को बस आज़ादी चाहिए। अपने निर्णय आप करने की सनक लिए है आज की किशोर पीढ़ी । क्या ये सोचते भी हैं कि ऐसे ही तथाकथित प्रेम में पड़कर स्वतंत्रता नहीं पाई जा सकती है । आखिर जा किस ओर रही है ये नई  पौध ? प्रश्न ये भी है कि समाज में बेटियों अस्मिता और आत्मसम्मान वाली छवि भी किस रंग में रंगी जा रही है ? बीते कुछ बरसों में किशोरों की सोच एक नकारात्मक मार्ग पर जाती दिख रही है । दुष्कर्म और चोरी डकैती से लेकर हत्या और लूटपाट तक में कम उम्र के अपराधियों  की भागीदारी बढ़ी है । ऐसे में अब ये ज़रूरी हो चला है कि इन्हें इनके अपराध की कड़ी से कड़ी सजा मिले । बड़ौदा में हुई इस घटना में भी लड़की की उम्र नाबालिग है जिसके चलते  उसे सुधार गृह ही भेजा जायेगा । जो और भी दुखद है । ऐसा लगता है जैसे  भोलेपन और कम  उम्र की आड़ में हम अपराध को पोषित कर रहे हैं ।

जिस तरह हमारे समाज में कम उम्र के अपराधियों की संख्या बढ़ रही है निश्चित रूप से अब मासूमियत के मापदण्ड नए सिरे तय किये जाने जरूरी भी हैं। हर तरह के कुकृत्य और अपराधों में बर्बरता दिखाने वाले अमानुष और दरिंदों के चेहरे पर मासूमयित देखने वाले कानून में बदलाव अब समय की जरूरत है । आज नई पीढ़ी को यह पुख्ता संदेश देना भी जरूरी है कि सज़ा उम्र नहीं अपराध की गंभीरता तय करेगी ।इस विषय में सोचा जाना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि ऐसे नियम कानून पूरे समाज के मनोविज्ञान को प्रभावित करते हैं। घर के भीतर हो या बाहर ऐसी वीभत्स घटनाओं को अंजाम देकर लचर कानूनों के चलते बच निकलने वाले इन किशोर अपराधियों के बढ़ते आँकड़े आमजन को मनोबल तोड़ते हैं। उनके मन में असुरक्षा और आक्रोश भरते हैं। 
जिस समाज में किसी अच्छे काम को स्वीकार्यता दिलाने के लिए अनगिनत उदहारण भी कम पड़ते हैं उसी समाज का  मनोबल तोड़ने और नकारात्मकता लाने  के लिए एक हादसा ही काफी होता है । ऐसे में किसी अनाथ बच्चे को घर लाकर उसकी परवरिश करने और बेहतर ज़िन्दगी देने की सोच रखने वाले जाने कितने ही दंपत्ति  इस घटना के बारे में जानने के बाद शायद अपने निर्णय पर पुनर्विचार करें ।   

40 comments:

Arvind Mishra said...

आपका उद्वेलित हो उठना स्वाभाविक है।
मनुष्य होकर इस सीमा तक जा पहुचना इंसानियत को तो शर्मसार करता ही है
पशुता को भी नीचे कर जाता है।

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

अत्‍यंत विचारपरक आलेख। बहुत गहन विश्‍लेषण।

रश्मि प्रभा... said...

इसे कहते हैं जन्मगत संस्कार
और यह प्रेम नहीं, सम्पत्ति का लालच है
दो हिंसक व्यक्ति आपस में भी प्रेम नहीं कर सकता

Vandana Sharma said...

bahut hee dardnaak ghatna hai yeh aur aaj ka samaj na janey kis aur aj raha hai

Darshan jangra said...

आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार- 19/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 36
पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

Darshan jangra said...

आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार- 19/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 36
पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

amit kumar srivastava said...

दुखद |

विभा रानी श्रीवास्तव said...

सम्पति के लालच में हत्या का केस बहुत हो रहा है .....

Amit Kumar Nema said...

बहुत से सवालों के जवाब खोजता सटीक आलेख ! लेख में कही गई आपकी बातों से सहमत हूँ !! लेकिन यह तो आपको भी पता होगा कि यदि आपने संस्कार और अनुशासन की बात कर दी तो कहने वाले की पुरातनपंथी से लेकर क्या क्या नहीं कह कर भर्त्सना की जाती| समय-सिद्ध बातों को "नारी स्वतन्त्रता " के विरुद्ध करार दे दिया जाता है , " जेनरेशन गेप " के रटे-रटाये जुमले सुनाये जाते हैं | मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐंसे बहुत से मामले जानता हूँ बड़े उमंग-उत्साह से विवाह होने के बाद , वैवाहिक जीवन 1 वर्ष भी नहीं टिका और इसके पीछे वजह क्या ? कहीं दहेज प्रताड़ना का नाम दिया गया तो कहीं स्वतंत्रता पर आक्रमण , उन दो परिवारों में किस-किस का क्या छिना यह किस को दिखेगा ? आखिर यह विघटनकारी और आपराधिक प्रवृत्तियाँ हमें कहाँ ले जायेंगी !! इस आग में घी डालने का काम कर रहे हैं रोज प्रसारित होने वाले अनगिनत पारिवारिक-कलह-केन्द्रित धारावाहिक , सचमुच इन विषयों पर गम्भीरतापूर्वक मनन करने की आवश्यकता है |

Kailash Sharma said...

केवल शारीरिक आकर्षण के चक्कर में प्रेम का सही अर्थ कहाँ समझ पा रही है आज की पीढ़ी..बहुत ही दुखद स्तिथि..

Manisha Balotiya said...

किसी ने शायद सही ही कहा है कि खून का असर तो दिख ही जाता है,चाहे जल्दी ये थोड़े समय पश्चात्...ये एक दुखद घटना है लेकिन इसमें लड़की को नाबालिग मान कर सुधार ग्रह भेजना उचित सजा नही है,जो लड़की प्रेम संबंध जैसी बाते समझने लगे और इसे क्रूरता भरी घटना को अंजाम दे वो नासमझ नही हो सकती

संध्या शर्मा said...

दुखद... इस घटना के बाद ना जाने कितने अनाथ मासूमों के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। मानवीय संवेदनाओं के पतन की निशानी हैं समाज में होने वाली इस तरह की घटनाएँ ...

Dr.NISHA MAHARANA said...

bahut hi wichitra watawaran ho gaya hai ....santan chahe apni ho ya parai nirankush hoti ja rahi hai ...

अभिषेक शुक्ल said...

एक बार हैवानियत इंसान पर हावी हो जाए तो वह कुछ भी कर सकता है....दुर्भाग्य से इंसानों में यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (20-10-2014) को "तुम ठीक तो हो ना.... ?" (चर्चा मंच-1772) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Anil Dayama EklA said...

इससे भी शर्मनाक घटनाक्रम सामने आ जाते हैं बहुत बार।
पर जो भी है इसानियत को शर्मसार करने वाला है।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

हार्दिक आभार

राजीव कुमार झा said...

मानवीय संवेदनाओं के क्षरित होते जाने का नतीजा है,इस तरह की घटनाएं.

कालीपद "प्रसाद" said...

यह कृतघ्नता और संवेदन हीनता का चरमोत्कर्ष है !उनमे इंसानियत मर गयी है !
रहने दो मुझे समाधि में !

Onkar said...

बिल्कुल सही कहा आपने.

Unknown said...

Prem ye to shabd ki itna komal hai jo iss absaas se ho guzarta hai kabhi hinsa soch nhi sakta... Ye wo log hai jo apni gandi maansikta aakarshan ko prem kahte hain aur fir iske naam par katl jaisa sangeen jurm karte hain... Bahut dukhad ... Jo jurm panpa de wo mohobat nhi hoti ..use kisi mansik beemaari ka naam diya ja sakta hai ..

Asha Joglekar said...

नेकी कर दरिया में डाल, पर यहां तो दरिया में डालने के लिये कौन बचा ? अच्छे काम का ये फल...........

मन के - मनके said...

बहुत ही दुखद व अमानवीय.
सत्य इससे भी अधिक कठोर है जब अपने ही जाय----ऐसे कृत्य करते हैं तो क्या कहा जाय.
प्रेम अंधा होता है या कि दौलत दानव होती है???

अरुण चन्द्र रॉय said...

ye prem katai nahi hai . ham ek hinsak samaj ka nirman kar rahe hain .

अशोक सलूजा said...

आप को पढना हमेशा ही अच्छा लगता है ...इस में भी आपे ने एक बहुत ही गंभीर विषय को उठाया है ....
सज़ा उम्र नही अपराध की बर्बता को देख मिलनी चाहिए .....आज के युग में ५ बरस का बच्चा भी बहुत समझदार है .......शुभकामनाये आपके नेक विचारों को | स्वस्थ् रहें |

दिगम्बर नासवा said...

सच कहा है आपने नकारात्कामता लाने के लिए एक हादसा ही काफी है .... एक बुराई कई सच के होंसले पस्त करती है ... एक गुंडा कई शरीफ इंसानों के आगे हेकड़ी जमा जाता है ....
समय अनुसार नए मापदंड तय होना जरूरी है अब समाज में ...

प्रतिभा सक्सेना said...

यह प्रेम नहीं मनोविकृति है -संस्कारहीनता की पराकाष्ठा है .
क्या कहेूँ, समझ में नहीं आता स्तबध हूँ !

Himkar Shyam said...

बहुत ही विचारणीय मुद्दा ...यह घटना बहुत से प्रश्नचिन्ह खड़े करती हैं. नैतिक-सामाजिक पतन गंभीर मोड़ पर आ गया है. हमें रुक कर सोचना होगा कि आखिर हम कहाँ जा रहे हैं?

महेन्‍द्र वर्मा said...

जिसका प्रतिफल विनाश हो वह प्रेम हो ही नहीं सकता।
बेहद चिंताजनक घटना !

दीपावली की अशेष शुभकामनाएं !

Kunwar Kusumesh said...

नैतिकता रसातल में चली गई है। पर लोग मानने को तैयार नहीं हैं।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

विचारणीय प्रश्न.......
समस्त ब्लॉगर मित्रों को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ......
नयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं

प्रभात said...

ऐसा प्रेम कभी प्रेम हो ही नहीं सकता जहाँ एक तरफ जन्म से लेकर अब तक ये माता-पिता इस नादान पौधे को कभी सूखने तक नहीं दिये! ईश्वर इन जैसे तमाम अनैतिक कृत्यों को अंजाम देने वाले को सदबुद्धि दे!

Sanju said...

Very Nice Post...
Happy Diwali

Smart Indian said...

प्रेम तो नहीं स्वार्थ और आत्ममुग्धता की अति है शायद ...

Ankur Jain said...

उत्कृष्ट प्रस्तुति।

सदा said...

दुखद है इस तरह की घटनायें

शिवनाथ कुमार said...

ये प्रेम का अर्थ ही समझते तो संभवतः ऐसा कुछ करने का विचार भी मन में ना आता ।
बहुत सही कहा आपने
और यह भी सही कि सजा, उम्र नहीं अपराध की गंभीरता से तय होनी चाहिए
ऐसी घटनाएँ मनुष्य - मनुष्य के बीच विश्वास और प्रेम को तोड़ती हैं

गिरधारी खंकरियाल said...

प्रेम नहीं, पिपासा है।

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही विचारणीय मुद्दा

मेरा मन पंछी सा said...

गंभीर और विचारणीय बात..इस हादसे के बात क्या कोई ऐसे अनाथ बच्चो पर विश्वास कर पायेगा... नाबालिग की आड़ में ऐसे जुर्म और भी पनप रहे है.. कानून में शख्ती और नए बदलाव की आवश्यकता है...

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