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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

21 November 2013

बाल मन की तटस्थता


चैतन्य


चैतन्य
चीज़ों से, बातों से
ऊब जाने का
तुम्हारा स्वभाव
नित नया पाने का भाव
बड़ा प्रबल है
तुम से जुड़ा कुछ भी
तुम्हारी निर्बलता नहीं बनता
ना ही उपजती है आसक्ति
तुम्हारे मन में
कुछ नहीं बांधता तुम्हें
मन से, विचार से, पूर्णतः स्वतंत्र
कितने ही आसुरी भावों से दूर
संतुष्टि भरी सोच और
भीतर का ठहराव लिए
तुम्हारे ऊर्जामयी मन में
न नकारात्मक वृत्ति है
न ही कोई भय
स्वयं को लेकर पूर्णता है
तुम्हारा अपना एक मार्ग है
जिस पर ना परम्पराएं हैं
ना विवशताएँ
तुम्हारे पास है
मन की कहने और करने
का असीम सामर्थ्य
बाल मन की ये तटस्थता
हर दिन एक नया पाठ पढ़ाती है
एक माँ के मन को
जीवन का सही अर्थ बताती है
नई  चेतना जगाती है

18 November 2013

ना मनुष्यता का मान, ना श्रम का सम्मान




राजधानी दिल्ली में फिर एक बार फिर अमानवीय व्यवहार की शिकार एक घरेलू नौकरानी की जान चली गई। इस घर में लगे कैमरों में जो पाश्विक व्यवहार रिकार्ड हुआ है वो मानवता को शर्मसार करने वाला है । घरेलू कामगारों के साथ मालिकों द्वारा किया गया वीभत्स व्यवहार आए दिन अखबारों की सुर्खियां बनता है। जो मामले दबे रह जाते हैं उनमें ये कामगार लंबे समय तक शोषण का शिकार बनते रहते हैं। कुछ समय पहले एक डॉक्टर दंपत्ति के घर पर भी एक नाबालिग बच्ची के साथ बरसों तक जुल्म किए जाने की खबरें सामने आईं थी। उससे पहले भी ऐसी घटनाएं प्रकाश  में आती रही हैं। इन घटनाओं का सबसे अधिक दुर्भागयपूर्ण पक्ष ये है कि शिक्षित और सम्पन्न घरों में नौकरों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार ज्यादा किया जाता है। यह विडम्बना ही है कि ऊँचे ओहदे और सम्पन्न घरों में ऐसी असंवेदनशी व्यवहार वाली घटनाएं अधिक होती हैं। दिन-प्रतिदिन होने वाल ऐसी घिनौनी घटनाएं सभ्य समाज की चेतना पर ही सवालिया निशान लगाती हैं।  जहां इंसानों के साथ पशुओं जैसा बर्ताव किया जाता है। घरेलू कामगारों के उत्पीडऩ के मामलों में दिन-प्रतिदिन इज़ाफा ही हो रहा हैं। साथ ही ऐसी घटनाएं समाज के संवेदनहीन चेहरे को भी सामने ला रही हैं। जिसमें मानवीय मूल्यों के प्रति कोई संवेदना नहीं बची है। 
घरेलू कामगारों के शोषण की शुरूआत उसी मोड़ से शुरू हो जाती है जब कई सारे प्रलोभन देकर इन्हें महानगरों में काम दिलवाया जाता है। आमतौर पर बड़े शहरों में घरेलू कामकाज करने वाले नौकर-नौकरानियां अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए देश के दूर दराज के क्षेत्रों बड़े शहरों में आते हैं। इनका गरीब और अशिक्षित होना इन्हें काम दिलाने वालों के लिए मुफीद हथियार बन जाता है। गौरतलब है कि एक अकेले राजधानी दिल्ली में ही घरेलू नौकरों को काम दिलवाने वाली प्लेसमेंट एजेंसीज़ की संख्या 2300 से अधिक है। इनमें ज्यादातर  एजेंसीज़ ना तो कानूनी रूप से रजिस्टर्ड हैं और ना ही किसी सरकारी गाइडलाइन या नियम कायदे के अनुसार चलती हैं। इनसे जुड़े एंजेट्स दूर दराज के इलाकों से कम उम्र के कामगारों और महिलाओं को पकडक़र लाते हैं जिन्हें योजनागत रूप से ऐसे दलदल में फंसाया जाता कि वे  शोषण झेलने को मजबूर हो जाते हैं। ना तो उन्हें अपने काम से जुड़े किसी कानून की जानकारी होती हैं और ना ही उनकी मिलने वाली जिम्मेदाररियों और अधिकारों का कोई लिखित प्रारूप होता है । गरीबी  के फंदे में पहले से उलझी कम उम्र की बच्चियां आसानी से दलालों  के जाल में फंस जाती हैं। हमारे देश में आज लाखों की संख्या में घरेलू कामगार हैं पर सरकार की ओर से ना तो कोई सहायता मिलती है और ना ही इनके संरक्षण के लिए कोई राष्ट्रीय कानून है। । 

अमानवीयता की सीमा पार करने वाले व्यवहार का शिकार अधिकतर नाबालिग बच्चे और महिलाएं बनती हैं।हर तरह की शारीरिक, मानसिक प्रताडऩा इनके हिस्से आती है । संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट के अनुसार अकेले मुंबई शहर में ही घरेलू नौकर के तौर पर काम करने वाले कामगारों में 40 फीसदी की उम्र 15 साल से कम है। इस मानव विकास रिपोर्ट के मुताबिक इनमें अधिकतर लड़कियां है जो मारपीट और यौन हिंसा का दंश आए दिन झेलती हैं। ये संख्या घरेलू नौकरों की स्थिति ही नहीं हमारे देश में बढ़ते बाल श्रम के आँकड़ों को भी बताते हैं। बावजूद इसके प्रशासनिक स्तर पर इनकी स्थिति में सुधार के कार्यान्वन में सुस्ती बरती जाती है। कुछ समय पहले इंटरनेश्नल डामेस्टिक वर्कर्स नेटवर्क आईडीडब्लूएन और ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में यह सामने आया था कि भारत श्रम सुधारों के कार्यान्वन में काफी पीछे है । जबकि एशिया महाद्वीप के कुछ देशों का छोड़ दुनिया भर में इस दिशा में प्रगति हुई है। ह्यूमन राइट्स वॉच की एक शोध के मुताबिक भारत में घरेलू नौकरों को भयंकर उत्पीडऩ का सामना करना पड़ता है। सरकारी स्तर पर घरेलू कामगारों के हालात सुधारने के लिए कुछ कानून बने भी है तो वे इतने जटिल हैं कि उनका कोई लाभ इन्हें नहीं मिल पाता । कुछ समय पहले केंद्रीय मंत्रीमंडल ने घरेलू नौकरों का राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के दायरे में पंजीकृत घरेलू कामगारों को लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। ताकि उन्हें समय पर इलाज मुहैया हो सके पर असंगठित क्षेत्र के श्रमिक होने के चलते अधिकतर को इसकी जानकारी ही नहीं है। इतना ही नहीं इस योजना का लाभ पाने के अधिकारी वे नौकर-नौकरानियां हैं जिनकी आयु18-59 साल की है। गौरतलब है कि घरेलू कागारों में बड़ी संख्या नाबालिग बच्चों की है जो कानूनी तौर पंजीकृत भी नहीं होते।  राष्ट्रीय  महिला आयोग ने भी 2010 में घरेलू नौकरों के कल्याण और सामाजिक सुरक्षा का एक मसौदा तैयार किया था पर उसे भी प्रभावी ढंग से क्रियान्वित नहीं किया गया। 

जिनके सहयोग के बिना भले ही कुछ लोग अपने घर आँगन नहीं सम्भाल सकते, बच्चों की परवरिश नहीं कर सकते, उनके साथ किया गया ऐसा वीभत्स व्यवहार हमारे समाज के संवेदनहीन पक्ष को उजागर करता है। हमारी मानवीय सोच पर प्रश्नचिन्ह लगाता है । दुखद है कि देश के कार्यबल में बड़ी भागीदारी रखने वाले घरेलू कामगारों  के साथ ऐसी अमानवीय घटनाएं होती हैं ।  हम मनुष्यता और श्रम का मान करना कब सीखेंगें?