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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

05 October 2013

चेतनासंपन्न बन अपनी शक्ति साधे स्त्री


शक्ति को साधने का उत्सव है दुर्गापूजा। अपनी समस्त ऊर्जा का सर्मपण कर माँ से यह आव्हान करने का कि वो नई शक्ति और सोच का संचार करे। यह एक ऐसा महापर्व है जो हमें आस्था और विश्वास के ज़रिए अपनी ही असीम शक्तियों से परिचय करवाने का माध्यम भी बन सकता है।  नारी की प्रखरता और शक्ति सार्मथ्य का नाम ही दुर्गा है | बस  जिम्मेदारियों और सामाजिक बंधनों में जकड़ी महिलाएं अपने ही सार्मथ्य से अपरिचित रहती हैं। ऐसे में महिलाएं माँ का आव्हान कर आज के दौर में हर परिस्थिति से जूझने का साहस और संबल जुटायें तो संभवतः शक्ति पूजा को सही अर्थ मिलें |

कभी कभी लगता है कि महिलाओं के सामने घर के भीतर और बाहर जितनी भी परेशानियां आती हैं उनकी एक बड़ी वजह है उनका अपने ही अस्तितव के प्रति जागरूक ना होना। हर अच्छे बुरे व्यवहार के प्रति स्वीकार्यता का भाव हमारे  चेतन अस्तित्व पर ही सवाल खड़े करता है। आज के दौर में ज़रूरी है कि हम महिलाएं इन जड़तावादी और रूढीवादी बंधनों से खुद को मुक्त करें और विवेक रूपी अस्त्र का प्रयेाग कर अपने जाग्रत अस्तित्व को समाज के सामने रखें। भगवती दुर्गा की उपासना का यह उत्सव वास्तव में ऐसी सोच को पुष्ट करने वाला पर्व है। सोच जो हर मनुष्य को यह आभास करवाती है कि उसमें जो शक्ति समाहित है उसे पहचाने और जागरूक बनने की चेष्टा करे तो हर मुश्किल से पार पा सकता है। महिलाओं का मन चेतनामयी हो तो जीवन में पग पग पर आने वाले अंर्तद्वदों पर उनकी जीत निश्चित है। यह चेतना स्त्री होने के नाते अपने अधिकारों की जानकारी रखने और नागरिक होने के नाते अपने कर्तव्यों से भी जुड़ी है। आज के  दौर में नारीशक्ति की जीत को सुनिश्चित करने के लिए आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनना भी आवश्यक है। शक्ति उपासना के इस पर्व पर महिलाएं भी अंर्तमन की शक्ति को साधें और जागरूक बनें। एक चेतनासंपन्न स्त्री ही सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक सरोकारों के प्रति जागरूक हो सकती है। समाज में फैली कुप्रथाओं के खिलाफ के खड़ी होने का संबल जुटा सकती है। जो कि महलाओं के सशक्तीकरण के दिशा में पहला कदम है। 

दुगापूर्जा पर्व नारी के सम्मान, सार्मथ्य और स्वाभिमान की सार्वजनिक स्वीकार्यता का पर्व है। इसमें नारी की मातृशक्ति की उपासना सबसे ऊपर है। एक स्त्री जो जीवन देती है। माँ के रूप में अपने बच्चों को मनुष्यता का पाठ पढाकर समाज को जिम्मेदार नागरिक देती है।  वो स्वयं को कम क्यों आँके ? यही इस पर्व का संदेश है।शक्तिस्वरूपा माँ दुर्गा की आराधना ममता, क्षमा और न्याय का भाव भी लिए है। ये सभी भाव एक आम स्त्री के व्यक्तित्व में भी समाहित होते हैं। बस, ज़रूरत है इनको पहचानने की। यह समझने की कि जब ममता और क्षमा को समझा नहीं जाए तो न्याय के लिए लड़ना ही पड़ता है। 

एक माँ, पत्नी, बेटी और बहन किसी भी रूप में स्त्री के बिना घर संसार की कल्पना ही अधूरी है। बावजूद इसके यह विडम्बना ही है कि अपनी देहरी के भीतर वो हर रूप में शोषण और छलावे का शिकार बनती है। दुर्गापूजा इसी शोषण का विरोध कर स्त्री के स्वाभिमान का गौरवगान करने का पर्व है। इसके लिए जरूरी है कि महिलाएं स्वयं भी गरिमा को कायम रखने के लिए लड़ें । माँ दुर्गा का रूप भारतीय स्त्री के असहाय नहीं बल्कि शक्ति और सजगता से दमकते चेहरे का प्रतीक है, जो अपने स्वाभिमान की रक्षा करने कर माद्दा रखती है।