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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

20 July 2013

जीवन का कोई मोल नहीं




सड़क, स्कूल या घर का आँगन हमारे यहाँ सबसे सस्ती चीज़ अगर कोई है तो वो है जीवन । कोई घटना या दुर्घटना हो जाय उसे भूलने और फिर दोहराने में कोई हमारी बराबरी नहीं कर सकता  । इतना ही नहीं किसी बड़ी से बड़ी त्रासदी पर राजनीति कर जिम्मेदार लोग न केवल बच  निकलते हैं बल्कि ऐसे दुखद हादसों से भी अपना स्वार्थ सिद्ध करने का ही मार्ग तलाशते हैं । 

बच्चे पढाई जारी रखें, स्कूल आना न छोड़े इसके लिए दोपहर का भोजन यानि  की मिड डे मील देने की योजना शुरू की गयी थी । हाल ही में में विषाक्त भोजन के चलते कई घरों के चिराग बुझ गए । मासूम बच्चे अपने जीवन से ही हाथ धो बैठे । क्या यह केवल एक दुर्घटना है ? या फिर कुप्रबंधन और अव्यवस्था का परिणाम । अव्यवस्था जो मात्र इसी एक स्कूल में नहीं है ।  दुर्घटनाएं तो मानवीय चूक के चलते होती हैं । पर उनका दोहराव तो लापरवाही के चलते ही हो सकता है  । मिड डे मील के विषय में भी यही बात लागू होती है । तभी तो आये दिन यह भोजन खाकर बच्चों के बीमार पड़ने या उनके जान पर बन आने की ख़बरें  आती ही रहती हैं । 

यूँ भी बात केवल स्कूलों में दिए जाने वाले भोजन की ही नहीं है । अगर गुणवत्ता की बात करें तो इन शिक्षण संस्थाओं में पीने के पानी की गुणवत्ता को जांचने वाला भी कोई नहीं । हाल ही में हुयी इस घटना के अलावा भी यह योजना तो  शुरू से ही सवालों के घेरे में रही है । ऐसे हादसे तकरीबन हर प्रदेश में हुए हैं । लेकिन न स्कूल प्रशासन सचेत हुआ और न ही सरकारी स्तर पर निगरानी रखने के लिए कोई ठोस कदम उठाये गए । परिणाम हम सबके सामने हैं और चिंता इस बात की है कि यह जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं कि भविष्य में ऐसी घटनाएँ नहीं होंगीं । 

भोजन पौष्टिक और साफ सुथरा ही न हो तो सिर्फ पेट भरने के लिए ऐसी योजनाओं को प्रारम्भ करना कहाँ तक सही है ?  यदि लापरवाही और गैर जिम्मेदारी के चलते इन योजनाओं का भावी परिणाम ऐसा होना होता है तो यही अच्छा है कि इन्हें शुरू ही न किया जाय । क्योंकि इस तरह आये दिन होने वाले हादसे स्कूलों के नामांकन बढ़ायेंगें  नहीं बल्कि कम ही करेंगें । कोई भी अभिभावक अपने बच्चों के जीवन से खेलकर  शिक्षित होने के लिए स्कूल नहीं भेजेगा । तो फिर जिस उद्देश्य से ये योजना शुरू की गयी है उसका अर्थ ही क्या रह जायेगा ?

जिन बच्चों का जीवन इस अव्यवस्था के चलते छिन गया है उनके परिवार का  दुःख समझने और आगे से ऐसे हादसे न हों इसके लिए उचित दिशा निर्देश देने बजाय यूँ राजनीति का खेल खेलना मन को व्यथित करता है । जो बच्चे इस देश के भावी नागरिक हैं उनके स्वास्थ्य, उनके जीवन से बढ़कर कुछ नहीं । जाने कब यहाँ जीवन का मोल समझा जायेगा । लगता है मानो सब कुछ राजनीतिक दावपेच और स्वार्थ सिद्धि तक ही सिमट कर रह गया है ।