हमारी सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था ही कुछ ऐसी है कि एक स्त्री का जीवन केवल उसके अपने नहीं बल्कि घर के पुरुषों के व्यवहार से भी प्रभावित होता है । निश्चित रूप से इन मामलों के कुछ अपवाद भी हमारे परिवेश में मिल ही जायेंगें पर एक सामान्य अवलोकन से कुछ ऐसा परिदृश्य ही सामने आता है । पुरुषों के स्वाभाव और प्रवृत्ति को घर की महिलाएं सबसे ज्यादा झेलती हैं ।
अगर शराब पीते हैं तो उन कमज़ोर आदमियों की इस लत के चलते सबसे ज्यादा दर्द घर की औरतों को ही उठाने पड़ते हैं । अनगिनत औरतें इस पीड़ा को जीती हैं । इस लत के चलते मिलने वाले दुःख और दर्द को एक माँ, पत्नी, बहन और बेटी भी झेलती है । जबकि उनका इसमें न कोई दोष होता है और ना ही कोई भागीदारी ।
हिंसात्मक व्यवहार है तो अपना शक्ति सामर्थ्य और क्रूरता दिखाने के लिए घर की महिलाएं ही सबसे सुरक्षित शिकार लगती हैं । हिंसात्मक व्यवहार में शाब्दिक और भावनात्मक उत्पीड़न तो अपने आप ही शामिल हो जाते हैं ।
अंतर्मुखी हैं तो संवाद बंद कर देंगें । देखने में आता है कि यह बातचीत ना तो दोस्तों की टोली के साथ बंद होती और ना ही दफ्तर के साथियों से । आमतौर पर इस गुण को भी घर की महिलाएं ही सबसे ज्यादा झेलती हैं । अपने ही परिवेश में ऐसे अनगिनत लोग मिल जायेंगें जो अपने काम के अलावा मिलने वाले समय को घर के बाहर ही बिताना पसंद करते हैं और घर में आते ही चुप्पी धारण कर लेते हैं ।
बहिर्मुखी हैं, तो अपना बड़बोलापन सबसे ज्यादा घर स्त्रीयों को कुछ न कुछ नकारात्मक और पीड़ादायक बोल-सुना कर ही व्यक्त किया जाता है । इस आदत के चलते कई सारी नकारात्मक टिप्पणियाँ और उपमाएं माँ , बहन, पत्नी और बेटी, चाहे जो सामने हो, शब्द बन मुखरित हो जाती है ।
इनमें से किसी आदत के चलते अगर आर्थिक हानि होती है तो उसका खामियाज़ा भी घर हर की स्त्रीयों को ही उठाना पड़ता है । उन्हें ही अपनी आवश्यकताओं में कटौती करनी पड़ती है । शराब जैसी लत में तो महिलाओं की स्वयं की कमाई गंवाने की स्थितियां भी बन जाती हैं । अपनी मेहनत की कमाई न देने पर शारीरिक हिंसा तक झेलने को विवश होती हैं ।
अंततः यदि इन बुरी आदतों के चलते कोई पिता,पति, भाई और बेटा शारीरिक या मानसिक व्याधि का शिकार बन जाता है तो उसकी देखभाल का जिम्मा भी घर की किसी न किसी महिला के हिस्से ही आता है । पुरुष की प्रत्येक नकारात्मक प्रवृत्ति का शिकार अंततः एक स्त्री ही बनती है । न केवल शारीरिक बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी घर की महिलाएं पुरुषों की गलतियों का अघोषित दंड भोगती हैं ।
आज जबकि हर ओर बदलाव लाने की बात हो रही है, अपने परिवेश में देखे जाने ये बिंदु मन में आये । इन्हें साझा करते हुए यही सोच रही हूँ कि महिलाओं की स्थिति में सुधार मोर्चे नहीं देहरी के भीतर का बदलाव ही ला सकता है । वो भी पुरुषों की सोच और व्यवहार का परिवर्तन । क्योंकि जिस बेटे के व्यवहार और आदतों में नकारात्मकता नहीं रहेगी वो अपनी पत्नी के साथ भी मानवीय व्यवहार ही करेगा । अपनी पत्नी को मान देने वाला व्यक्ति अपनी बिटिया और बहन को भी स्नेह और सुरक्षा ही देगा। अपनी सोच और व्यवहार में सकारात्मकता रखने वाला कोई भी पुरुष जब अपने घर में सधा और सम्माननीय व्यवहार करेगा तो घर के बाहर भी किसी स्त्री के मान को ठेस पहुँचाने का विचार उसके मन में नहीं आएगा ।
आज जबकि हर ओर बदलाव लाने की बात हो रही है, अपने परिवेश में देखे जाने ये बिंदु मन में आये । इन्हें साझा करते हुए यही सोच रही हूँ कि महिलाओं की स्थिति में सुधार मोर्चे नहीं देहरी के भीतर का बदलाव ही ला सकता है । वो भी पुरुषों की सोच और व्यवहार का परिवर्तन । क्योंकि जिस बेटे के व्यवहार और आदतों में नकारात्मकता नहीं रहेगी वो अपनी पत्नी के साथ भी मानवीय व्यवहार ही करेगा । अपनी पत्नी को मान देने वाला व्यक्ति अपनी बिटिया और बहन को भी स्नेह और सुरक्षा ही देगा। अपनी सोच और व्यवहार में सकारात्मकता रखने वाला कोई भी पुरुष जब अपने घर में सधा और सम्माननीय व्यवहार करेगा तो घर के बाहर भी किसी स्त्री के मान को ठेस पहुँचाने का विचार उसके मन में नहीं आएगा ।