सचमुच में बावला होने के जितने दुःख हैं सोच समझकर बावला बनने के उतने ही सुख । मूर्ख बने रहना हर परिस्थिति में कमजोरी नहीं होता । कई बार तो ऐसा भी देखने में आता है बावलेपन से बड़ी कोई युक्ति नहीं होती । ऐसी युक्ति जो अपनाने वालों को बड़ी से बड़ी समस्या का हल खोजने में सहायता करती है । इतना ही नहीं बावलेपन की युक्ति लगाकर जो बच निकलते हैं उन्हें सहानुभूति की सौगात भी मिलती है ।
स्वयं को बावला मान लेने के अनगिनत लाभ हैं । कई सारे दूरदर्शी और जीवन की गहरी समझ रखने वाले तो स्वयं ही ये घोषित कर देते हैं कि वो बावले-भोले हैं । कई औरों से यह उपाधि पाने पर कोई आपत्ति नहीं उठाते । धीरे धीरे इस उपाधि को सबकी स्वीकार्यता मिल जाती है । बस, समझिये कि इसी भोलेपन की योग्यता के आधार पर वो व्यक्ति अपनी अधिकतर समस्याओं से पार पा लेता है । यूँ भी समझदारी दिखाने में रखा ही क्या है ? जिम्मेदारियों के सिवा हाथ ही क्या आता है ? इसीलिए बवाले बन जाने और मूर्खता के माध्यम से अपनी होशियारी दिखाते रहने से अधिक अच्छा और कुछ नहीं ।
यदि स्वयं को मूर्ख मान लिया और औरों को भी अपनी इस योगता का विश्वास दिला दिया जाय तो न कभी आपको कोई उपदेश मिलेंगें न ही सीख दी जाएगी । ना आपसे कुछ कर दिखाने की आशा रखी जाएगी और न ही कुछ ऐसा कर दिखाने को कहा जायेगा जो आपको चिंता में डाल दे । हर गुण अवगुण को भोलेपन के आवरण में शरण मिल जाती है । होता तो ये भी मूर्ख व्यक्तियों को योजनागत ढंग से न केवल आश्रय दिया जाता बल्कि वे तरक्की और प्रशंसा भी खूब पाते हैं । ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसी सफलता वे अधिक पाते हैं जो जान बूझकर स्वयं को मूर्ख सिद्ध करते हैं । संभवतः इसका कारण यह कि उनका भोलापन अन्य लोगों को और कुशल एवं जिम्मेदार बनने का अवसर जो देता है ।
ऐसे कितने ही बिंदु हैं जिनके आधार पर बावला बनने वाला व्यक्ति बुद्धिमत्तापूर्ण बातें करने वालों को पराजित कर सकता है । यूँ भी समझदार लोगों की समझ आसपास वालों को सदैव खतरे का ही आभास करवाती है । तभी तो अधिक बुद्धिमान लोगों का साथ देने के लिए भी लोगों के मन में हिचक होती हैं । जबकि यही साथ और सहयोग बावले लोगों की झोली में स्वयं आ गिरता है । हो भी क्यों नहीं, जो कुछ जानता समझता ही नहीं उससे खतरा कैसा ? तभी तो कई बार मूर्खता का मान और मूल्य बुद्धिमत्ता से कहीं बढ़कर होता है । कुछ लोगों को तो अपनी होशियारी दिखाने के लिए भी बावलियों की आवश्यकता होती है । कम से कम हमारे देश में तो ऐसे उदाहरणों की कोई कमी नहीं ।
मूर्ख बने रहने का एक लाभ यह भी है कि किसी व्यक्ति की मूर्खता से परेशान या दुखी होने पर भी कोई उसे समझाने का जोखिम नहीं उठाएगा । किसी का जीवन बावलेपन की इस काबिलियत से कष्टमय बना है तो बना रहे, कोई उलहना देने भी नहीं आएगा । 'मुझे क्या पता' का सूत्र हर परिस्थिति में काम कर ही जाता है । स्वयं के बिना कुछ किये ही यह योग्यता कमाल कर जाती है । विशेषकर उन लोगों के लिए जो होशियारी से मूर्ख बनते हैं और हमेशा बावला बने रहने को ही होशियारी समझते हैं :)