दिल्ली में हूए वीभत्स सामूहिक दुष्कर्म के एक आरोपी को नाबालिग मान लिया गया है। जिसका सीधा सा अर्थ है कि हिंदुस्तान के कानून को इस कुकृत्य में सबसे ज्यादा बर्बरता दिखाने वाले अमानुष के चेहरे पर मासूमयित नजर आ रही है।
आमतौर पर नकारात्मक भावों के साथ अपने विचारों को साझा नहीं करती हूं। कोशिश भी यही रहती है कि विषय कोई हो, कुछ सकारात्मक और अर्थपूर्ण सोचा और लिखा जाय । पर आज तो यह कानूनी निर्णय मन-मस्तिष्क की समझ से ही परे लग रहा है ।
निर्ममता की सारी सीमाएं पार करने वाले को किसी का मन बच्चा समझे भी तो कैसे? मर्यादा के मायने भी ना समझने वाले को मासूम कहा भी जाए तो कैसे? ऐसे में अगर हमारी कानून व्यवस्था उसे मासूम मान रही है तो निश्चित रूप से मासूमयित के मायने भी नए सिरे से तय करने होंगे। कम से कम मेरा मन तो किसी लडक़ी को शारीरिक और मानसिक प्रताडऩा देने में कू्ररता की हर हद पार करने वाले को ना मासूम मान सकता है और ना ही बच्चा।
हमारे देश के कोने-कोने में तीन महीने की दुधमुंही बच्ची से लेकर वृद्ध महिला तक, आए दिन औरतें ऐसे दुराचार का दंश झेलती हैं। बात अगर उम्र की ही है तो ऐसे मामलों में आज तक इतनी गहराई से विचार क्यों नहीं किया गया?
दामिनी केस के मामले में बात सिर्फ कानूनी निर्णय दोषियों को दण्ड देने भर की नहीं है। क्योंकि इस का निर्णय पूरे समाज के मनोविज्ञान को प्रभावित करने वाला निर्णय होगा। ऐसा पहली बार हुआ है जब हमारे देश में इस जघन्य घटना के कारण महिलाओं की सुरक्षा और अस्मिता के मुद्दे ने आम नागरिक को झकझोर कर रख दिया। जनाक्रोश जनआंदोलन बना। लोगों ने कई दिनों तक सडक़ों पर उतर कर इस बर्बर काण्ड का विरोध किया। ऐसी जन सहभागिता के बावजूद अगर यूँ अपराधी बच निकलता है तो यह दुखद ही है |
हमारी कानून व्यवस्था की नाकामी पर तो यूं भी सवाल उठते ही रहे हैं। दामिनी केस में आमजन ने भी खुलकर विरोध जताया | ऐसे में जनआंदोलन का रूप लेने के वाबजूद भी लचर व्यवस्था के चलते आरोपी बच निकलते हैं तो यह कानून व्यवस्था की हर तरह से विफलता ही कही जाएगी। विचारणीय यह भी है कि ऐसे निर्णय से देश के लाखों युवाओं में भी गलत संदेश जाएगा। ऐसा निर्णय समाज के हर माता-पिता की आशाओं पर कुठाराघात करने वाला होगा जो अपनी बेटियों को आगे बढने का हौसला दे रहे हैं। इस निर्दयी आरोपी को नाबालिग बताकर छोड़ देने से यह प्रश्न भी अनुत्तरित ही रह जायेगा कि दामिनी के संघर्ष से क्या बदला?
मासूमयित के मापदण्ड क्या हों ? इस मुद्दे पर विचार किया जाना जरूरी है । यह रेखांकन कानून और समाज दोनों को ही करना होगा,| नहीं तो आगे आने वाली पीढियां ऐसा पाठ बिना सिखाये ही सीख लेंगीं | सरल जो है .....गलती करो और बच भी निकलो