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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

19 October 2012

शब्दों का ही खेल है सारा


शब्दों का ही खेल है सारा
भावनाओं से साक्षात्कार होता ही कब है
जो विचार शब्दों में ढल मुखरित हों
वो भावों की प्रबलता को
सहेजे हैं भी या नहीं
यह सोचने का अवकाश नहीं किसी के पास
शब्द जो कहे गये, शब्द जो सुने गये
वे उच्चारित होते ही जीवंत हो जाते हैं
और बन जाते हैं हमारी
अमर, अमिट पहचान
अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे  ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं
भले ही उनकी पृष्ठभूमि  में गूँजती
अंतर्मन की अभिव्यक्ति
पृथक ही क्यों न हो