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19 October 2012

शब्दों का ही खेल है सारा


शब्दों का ही खेल है सारा
भावनाओं से साक्षात्कार होता ही कब है
जो विचार शब्दों में ढल मुखरित हों
वो भावों की प्रबलता को
सहेजे हैं भी या नहीं
यह सोचने का अवकाश नहीं किसी के पास
शब्द जो कहे गये, शब्द जो सुने गये
वे उच्चारित होते ही जीवंत हो जाते हैं
और बन जाते हैं हमारी
अमर, अमिट पहचान
अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे  ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं
भले ही उनकी पृष्ठभूमि  में गूँजती
अंतर्मन की अभिव्यक्ति
पृथक ही क्यों न हो 

70 comments:

Fani Raj Mani CHANDAN said...

Bahut sundar prastuti, sach ye shabd hi humaari pahchaan ban jaate hai. Badhiya!

Aabhaar
Fani Raj

virendra sharma said...

बहुत मौजू सवाल .बाहर सिर्फ शब्द होतें हैं अर्थ हमारे अन्दर होतें हैं .सुनने वाला जो मर्जी अर्थ निकाले .अक्सर आदमी जो कहना चाहता कह नहीं पाता और जो कह जाता है वह तो वह कहना ही नहीं चाहता है .

मानव मन है जुबां है .जाने कब फिसल जाए .

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जी हाँ, शब्दों का ही खेल है..

Madhuresh said...

भले ही उनकी पृष्ठभूमि में गूँजती
अंतर्मन की अभिव्यक्ति
पृथक ही क्यों न हो ..
In panktiyon mein bahut gehri baat keh di aapne!! :)

केवल राम said...

अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं


सटीक अभिव्यक्ति ....! साथक रचना ..!

वाणी गीत said...

वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं
भले ही उनकी पृष्ठभूमि में गूँजती
अंतर्मन की अभिव्यक्ति
पृथक ही क्यों न हो!

एक दम सच्ची बात ...मन क्या कहता है , शब्द भी कह दे , जरुरी नहीं :)

मनोज कुमार said...

शब्द विचारों के वाहक हैं। इसका खेल भी निराला है। लाठी व पत्‍थर से हड्डियॉं टूटती है परन्‍तु शब्‍दों से प्राय: सम्‍बन्‍ध टूट जाते हैं।

मनोज कुमार said...

शब्द विचारों के वाहक हैं। इसका खेल भी निराला है। लाठी व पत्‍थर से हड्डियॉं टूटती है परन्‍तु शब्‍दों से प्राय: सम्‍बन्‍ध टूट जाते हैं।

Bhawna Kukreti said...

in shabdon me bahut takat hoti hi jara galat prayog aur sansaar idhar se udhar.... tab kya kare jab shabd sahi ho magar samhane vaale ki soch me vo kuchh aur hi arth rakhta ho?! :(

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर..
और सच्ची बात...
प्यारी रचना.
अनु

पी.एस .भाकुनी said...

तभी तो कहा जाता है की " मेरे बयानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया.........सही कहा आपने ! शब्दों का ही खेल है सब,

जयकृष्ण राय तुषार said...

एक बेहतरीन कविता शब्दों की महत्ता और उनकी सार्थकता को परिभाषित करती हुई |आभार |

Arvind Mishra said...

आश्चर्य है इस पोस्ट से पृथक भी ऐसा ही कुछ विचार साम्य मैंने फेसबुक पर शेयर किया है -

जो लिखते हैं अच्छा, कोई जरुरी नहीं कि वे होते भी अच्छे हों और जो होते अच्छे हैं वो जरुरी नहीं कि लिखते भी अच्छे हों!
अच्छे होने और अच्छे लिखने में समानुपातिक सम्बन्ध हो यह कतई जरुरी नहीं -मैंने तो वीभत्स व्युत्क्रमानुपात देखे हैं!

अनामिका की सदायें ...... said...

shabd vicharon ke vaahak hote hain. lekin shabd hi vo takat bhi hain jo bhaawnaao ka saakshaatkaar karane ki kshamta rakhte hain.

bahut sunder rachna.

Ramakant Singh said...

अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं
भले ही उनकी पृष्ठभूमि में गूँजती
अंतर्मन की अभिव्यक्ति
पृथक ही क्यों न हो

शब्द और ह्रदय का अनोखा ताल मेल जहाँ भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं

Dr. sandhya tiwari said...

शब्दों में बहुत सारी भावनाएं छिपी होती है..........सही कहा आपने ! शब्दों का ही खेल है सब,

Kunwar Kusumesh said...

भावना प्रधान सुन्दर रचना है।

अशोक सलूजा said...

सच्चाई से रूबरू ..कराते आपके शब्द !
आभार!

ashish said...

शब्दशः सहमत . सुँदर अभिव्यक्ति .

रश्मि प्रभा... said...

भावहीन शब्द गले के नीचे नहीं उतरते , भावनाएं हों तो सन्नाटों में भी आकारहीन शब्द गूंजते हैं - अनकहे को सुनना इसे ही कहते हैं

shashi purwar said...

sach kaha aapne sab shabdo ka hi khel hai ..........acchi rachna shabdo ke madhyam se

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

शब्दों को कहती सुंदर रचना .... कभी कभी लिखने वाला कुछ और सोच कर लिखता है लेकिन हर पाठक अपने मनोभावों से उसको जोड़ लेता है ...

आशा बिष्ट said...

जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं ...sahi kaha..

मदन शर्मा said...

सुन्दर प्रस्तुति ...भावनाए कौन समझता है आज ...सब शब्दों का ही खेल है .......

लोकेन्द्र सिंह said...

सच है मोनिका जी शब्दों ही खेल है सारा

रश्मि प्रभा... said...

http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/10/blog-post_20.html

sangita said...

अभिवादन मोनिका जी,
वैसे तो आपने सदा ही शब्दों को नै चाहत भरी उमंगों भरी उड़ान दी है ,शब्दों से घायल मन कभी संभल नहीं पाता भावनाओं कि आदत अब ज़माने को न रही ,सार्थक पोस्ट ,बधाई|
मेरे ब्लॉग विविधा पर आपका स्वागत है |

kshama said...

Jo shabdon ke peechhe kee bhavnaon ko samajh ke likhte/bolte hain,wahee to achhe lekhak ya wakta kahlate hain!

***Punam*** said...

अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं
भले ही उनकी पृष्ठभूमि में गूँजती
अंतर्मन की अभिव्यक्ति
पृथक ही क्यों न हो !

सुन्दर...!
ज्यादा कहने में शब्द निरर्थक हो जायेंगे..!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

शब्‍दों को चाहि‍ए कि‍ भावनाओं के बंदी रहें वे

मेरा मन पंछी सा said...

शब्द ही अभिव्यक्ति का माध्यम है...
बहुत ही बेहतरीन और प्रभावी रचना....
:-)

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

मन का आइना होते है शब्द
शब्द कविता को आकार देते है,
आग लगा सकते है शब्द
शब्द आग बुझा सकते है;,,,,,,,

RECENT POST : ऐ माता तेरे बेटे हम

Asha Joglekar said...

झ्यादा तर हमारे भाव ही ढलते हैं शब्दों में और जब ऐसा नही होता कृति में भी वह बात नही होती ।
धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये ।

प्रवीण पाण्डेय said...

भाव तो शब्द ही से व्यक्त होते हैं, बहुत सुन्दर रचना।

virendra sharma said...


.इसीलिए ज़िन्दगी में थोड़ा सऊर सलीका भी जरूरी है ताकी शब्दों को बोध सकें बूझ सकें .जो जीवन का स्थूल रूप जी रहें हैं उन्हीं के लिए कहा गया है

:काला अक्षर भैंस बराबर .

ये तुमने क्या कहा ,

ये मैं ने क्या सुना ,

अरे !ये दिल गया ,

गया होगा .

नादिर खान said...

अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं
भले ही उनकी पृष्ठभूमि में गूँजती
अंतर्मन की अभिव्यक्ति
पृथक ही क्यों न हो

sahi baat hai.

kuldeep thakur said...

बहुत ही सुंदर व्याख्या... एक नजर इधर भी... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com

Maheshwari kaneri said...

बहुत सशक्त शब्दों के साथ एक बेहतरीन सुन्दर रचना ..आभार..

संध्या शर्मा said...

भावयुक्त शब्द ही ह्रदय तक पहुचते हैं, अंतर्मन की बात कहते हैं... सुन्दर अभिव्यक्ति

संध्या शर्मा said...

भावयुक्त शब्द ही ह्रदय तक पहुचते हैं, अंतर्मन की बात कहते हैं... सुन्दर अभिव्यक्ति

Rohitas Ghorela said...

सही फ़रमाया आपने
शब्दों के जंजाल को सब समझते है मगर साधारण सी भावनाएं किसी के पले ही नही पड़ती.
.. सुन्दर प्रस्तुती
बधाई स्वीकारें। आभार !!!


मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं
http://rohitasghorela.blogspot.com

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं

अद्भुत सुन्दर पंक्तियाँ !

Shalini kaushik said...

sundar v sarthak abhivyakti badhai
जैसे पिता मिले मुझे ऐसे सभी को मिलें ,

Dr Varsha Singh said...

डॉ. मोनिका शर्मा जी, हाँ, शब्दों का ही खेल है.यह सोचने का अवकाश नहीं किसी के पास.बहुत सुन्दर
रचना.

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

शब्दों का ही खेल है और आप माहिर खिलाड़ी!

--
ए फीलिंग कॉल्ड.....

Suman said...

सटीक कही है बात बहुत सुन्दर !

इमरान अंसारी said...

अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं

शत प्रतिशत सही कहा आपने दुनिया हमे हमारे शब्दों से ही जानती है.....सुन्दर पोस्ट।

Anand Rathore said...

shabdon ka khel lekin aapne samajh liya hai.. bahut khoob

Saras said...

सही कहा आपने .....वह मुट्ठी भर शब्द...जो किसी की पहचान बन जाते हैं......नहीं होते मोहताज ......की उनके सही मतलब पहचाने कोई .....वह तो धरोहर हो जाते हैं हर पाठक की ....जो उन्हें अपना जामा पहनाता है ...अपनी भावनाओं को उनमें ढूंढता है ....और अपनी तरह से विस्थापित कर ...अपने अर्थ निकालता है ...!

Madan Mohan Saxena said...

बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

Vinay said...

नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ

---
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हरकीरत ' हीर' said...

शब्दों का ही खेल है सारा
भावनाओं से साक्षात्कार होता ही कब है

बहुत सुन्दर भाव रचना .....!!

Satish Saxena said...

शब्द अमिट हैं ...

महेन्‍द्र वर्मा said...

शब्द मुख से बाहर आते ही सजीव जरूर हो जाते हैं किंतु उसकी आत्मा बोलने वाले के हृदय में ही रहती है। शब्द की उस आत्मा को आत्मसात करने वाले बिरले ही होते हैं।

शब्दों के संस्कार पर सृजित एक स्वागतेय अभिव्यक्ति।

vijai Rajbali Mathur said...

'चाभयदा'---लिखा मिलेगा दुर्गा सप्तशती के कुंजिका स्त्रोत मे और इसे यों ही पढ़ेंगे तो अर्थ होगा कि,'और भय दो' परंतु यदि इसे संधि-विच्छेद करके जैसा पढ़ा जाना चाहिए पढ़ेंगे ---च+अभय+दा तो अर्थ होहा कि,'और अभय दो'।
वास्तविकता को दर्शाती कविता ज्ञानवर्द्धक है।
http://krantiswar.blogspot.in/2012/10/blog-post_24.html

Kailash Sharma said...

अक्षरों के वो समूह
जो अर्थ-अनर्थ सब कुछ समेटे हैं
वे ही सुनने वालों के
ह्दय तक दस्तक देते हैं

...बहुत सच कहा है..बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति..

virendra sharma said...

हाँ शब्दों का ही खेल है सारा ,


शब्दों से ही हो जाते हैं ,पराये अपने ,

अपने पराए ,

शब्दों से ही हो जाते हैं अर्थ के अन-अर्थ .

व्यर्थ के कुतर्क ,

खड़े करते हैं आडम्बर कितने ही शब्द .शुक्रिया मोहतरमा .आप कौन देश हैं ?

मैं यहाँ कैंटन ,मिशिगन में हूँ फिलवक्त .जीवन संक्रमण में ही बीत रहा है .लिखते लिखाते .

रचना दीक्षित said...

शब्दों का ही खेल है सारा
भावनाओं से साक्षात्कार होता ही कब है

बेशक सच कुछ हद तक यही है. सुंदर प्रस्तुति.

mridula pradhan said...

sunderta ke saath likhi hai.....

Aditya Tikku said...

utam-***

Naveen Mani Tripathi said...

wah bahut sundar rachan lagi ....abhar monika ji

कुमार राधारमण said...

कई बार
नहीं पल्ले पड़ता कहा भी
और कभी
सुनाई देता है अनकहा भी!

कुमार राधारमण said...

कई बार
नहीं पल्ले पड़ता कहा भी
और कभी
सुनाई देता है अनकहा भी!

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

शब्द जो कहे गये, शब्द जो सुने गये
वे उच्चारित होते ही जीवंत हो जाते हैं
और बन जाते हैं हमारी
अमर, अमिट पहचान
बहुत सुन्दर ..तभी तो बहुत ही तोल मोल के जुबान खोलना है शब्द नष्ट तो होते नहीं
भ्रमर ५

Rajesh Kumari said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति मोनिका जी शब्द ही तो हैं जो हमारी अंतर्मन के भावों को मुखरित करते हैं बहुत सुन्दर विश्लेषण किया है शब्दों का

G.N.SHAW said...



शव्द तो दिल के आईने होते है | जो रूप न कहा सका , जो भाव न कह सके .. वह थोड़े से शव्द उजागर कर देते है | बेहद सुब्दर कविता |

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..

Asha Joglekar said...

सारा शब्दों का खेल है पर शब्द जो अंतर्मन से निकलते हैं जीवंत हो जाते हैं ।

अनुभूति said...

बहुत अहम सवाल शब्दों की मात्र औपचारिकता क निर्वाहन करते हैं हम या भावों का संबल भी होता है ...??? भौतिक युग में भावुक होने और भावनाएं समझने का वक्त ही नहीं रहा ...कहाँ तक औपचारिक होगा ये प्राण ??? बेहद गहन प्रस्तुति ..हार्दिक शुभ कामनाएं !!!!

आत्ममुग्धा said...

aapke blog par aana har baar sukhad hota h mere liye ...:)

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