आज हमारे देश में ना तो महिलाओं को सशक्त बनाने वाली सरकारी योजनाओं की कमी है और ना ही स्त्री विमर्श करने वालों की । जो आये दिन यह निष्कर्ष निकालते हैं कि इस विषय में हम कितना आगे बढे हैं ? अब तक क्या पाया है और आगे क्या हासिल करना शेष है ? पर लगता है कि जो कुछ भी हो रहा है वो व्यावहारिक जीवन में , हमारे आसपास के परिवेश में नज़र नहीं आ रहा ।
कुछ योजनायें और लोगों जागरूक करने वाले विज्ञापन समाज में महिलाओं की स्थिति ना तो बदल पाए हैं और ना ही बदल पायेंगें । हाँ , अगर सामाजिक -पारिवारिक और वैचारिक बदलाव आये तो शायद औरतों की समस्याएं कुछ कम हों । साथ ही विचारों के इस परिवर्तन को व्यव्हार में भी लाया जाय । महिलाएं पंच- सरपंच बन भी जाये तो क्या ? अगर उन्हें निर्णय लेने अधिकार ही ना मिले। या फिर उनके इन अधिकारों पर घर के लोग ही अतिक्रमण कर लें। दुखद है कि हो भी यही रहा है । ऐसे में सरकारी नीतियां कहाँ तक सफल हो पाएंगीं ? सरकार महिलाओं को हक़ तो दे सकती हैं पर जब तक उनके अपनों की सोच में परिवर्तन नहीं आता उनका चौखट से चौपाल तक आने का सफर आसान नहीं है ।
आज हम एक पढ़ी-लिखी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिला को हर तरह से सशक्त और सफल मान लेते हैं । पर क्या महिलाओं के सशक्तीकरण का पक्ष मात्र आर्थिक रूप से सशक्त होना ही है ? धन उपार्जन तो यूँ भी महिलाएं हमेशा से ही करती आई हैं । आज भी गाँव में खेती-बाड़ी में महिलाएं पुरुषों से कहीं ज्यादा श्रम करती हैं । जिसके चलते प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अर्थोपार्जन में उनकी भागीदारी है और सदा से ही रही है ।
दरअसल, हमारे सामाजिक ढांचे में महिलाओं के मुश्किलें बड़ी व्यावहारिक सी हैं । जिनका समाधान सिर्फ आर्थिक आत्मनिर्भरता या प्रशासनिक कार्ययोजनाओं के माध्यम से नहीं ढूँढा जा सकता है । इसीलिए महिला सशक्तीकरण कुछ मिटाने या बनाने का नहीं बल्कि अस्मिता और सामाजिक सरोकार का संघर्ष है, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जीने की लड़ाई है ।
कभी कभी लगता है कि हमारे आस-पास बहुत कुछ बदल तो रहा है पर ये बदलाव सतही ज्यादा हैं । महिलाएं कामकाजी तो बन रही हैं पर सुरक्षित घर लौट आने की गारंटी नहीं है । एक पढ़ी-लिखी माँ भी बेटी को जन्म देने का निर्णय स्वयं नहीं कर सकती । आज हमारे परिवारों और समाज में दोगलापन ज्यादा दिखता है । थोड़ी सोच समझ बढ़ी तो हमने कथनी और करनी में अंतर करना सीख लिया । यही वजह है कि जो बदलाव आये हैं वे भी पूरी तरह से महिलाओं के पक्ष में ही हों ऐसा नहीं है । इसीलिए वैचारिक बदलाव जब तक हमारे व्यव्हार का हिस्सा नहीं बनेंगें, महिला सशक्तीकरण का नारा बस खेल ही बन कर रह जायेगा ।
101 comments:
सार्थक पोस्ट.
अच्छी बात है। केवल विचार-विमर्श काफ़ी नहीं हो सकता। कदम उठते भी हैं तो वे सही दिशा में होने ज़रूरी हैं। दिशा सही हो भी तो उनमें आवश्यक चढाई चढने की क्षमता भी चाहिये।
जिस समस्या से जुड़े लोग समस्या से ज़्यादा अपने बारे में सोचने लगते हैं उस समस्या का बंटाधार वहीं हो जाता है। ...
ज़रूरी यही है कि यह बात पुरुषों से ज़्यादा महिलाएं समझें और अपना भला-बुरा अपने नज़रिए से ही सोचें.समाज से अमल करने की ज़्यादा उम्मीद नहीं होनी चाहिए.जब स्वयं में दृढ़ता आएगी,समाज भी मानेगा !
हमारे सामाजिक ढांचे में महिलाओं के मुश्किलें बड़ी व्यावहारिक सी हैं । जिनका समाधान सिर्फ आर्थिक आत्मनिर्भरता या प्रशासनिक कार्ययोजनाओं के माध्यम से नहीं ढूँढा जा सकता है ।
सार्थक आलेख, आशा है नयी पीढ़ी इस सामाजिक ढाँचे को निश्चित ही transcend करेगी!
कभी कभी लगता है कि हमारे आस-पास बहुत कुछ बदल तो रहा है पर ये बदलाव सतही ज्यादा हैं ।
आपका आकलन सही है .....बदलने के नाम पर तो बहुत कुछ कहा जा रहा है लेकिन वास्तविकता इससे कोसों दूर है ...!
sarthak lekh,
होली की हार्दिक शुभकामनायें ....
sarthak post,
holi ki hardik shubhkamnayen ....
sarthak post,
holi ki hardik shubhkamnayen ....
महिलाओं को स्वयं आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनने की कोशिश करनी चाहिये. जैसे जैसे वह आर्थिक रूप से सक्षम होती जायेंगी, स्वयं सशक्त हो जायेंगी.
शायद आप सही हैं......
नारी खुद ज़िम्मेदार हैं.....वे ही सार्थक कदम उठा सकती हैं...
बहुत सशक्त और सार्थक पोस्ट...
होली शुभ हो...
बदलाव आए हैं, उतने नहीं जितने ज़रूरी थे।
उतनी रेज़ी से नहीं जितनी तेज़ी से समय बदला है।
एक वैचारिक बदलाव की ज़रूरत है।
ओह!
इतना गंभीर विषय पर विमर्श के चक्कर में “हैप्पी होली” कहना तो रह ही गया।
Sparkling colours of HOLI may paint your life in the way to make you prestigious,honourable and lovable all around.Happy Holi.
एकदम सटीक लिखा है आपने. विचारधारा में बदलाव नीतियों भर से ही नहीं हो सकता
थोड़ी सोच समझ बढ़ी तो हमने कथनी और करनी में अंतर करना सीख लिया ।
सार्थक और सटीक बात
बदलाव सिर्फ आर्थिक स्थिती में है....और वो तो पहले से था
इसमे नया क्या है..लोगो कि सोच तो वही है....जो बदलते परिवेश में भी बदल
नही रही है....अब महिला स्वयं हि इसे बदलने का बीडा उठाये .....और किसी से
कोई उम्मीद नही ... योजनाये पुरी तरह से महिलाओ के पक्ष में हो...ये शायद मुश्कील है ....
सार्थक पोस्ट...
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होली पर्व कि आपको एवं आपके परिवार जनो को हार्दिक शुभकामनाये
आपके जीवन खुशियो से भरा रहे...
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बहुत गंभीर विषय पर बात हो रही है …
"जब तक उनके अपनों की सोच में परिवर्तन नहीं आता उनका चौखट से चौपाल तक आने का सफर आसान नहीं है ।"
आपके हिसाब से समस्याओं की जड़ पुरुष और पुरुषवादी सामाजिक व्यवस्था है…
कहना चाहूंगा-
तेरे साथ मुमकिन गुज़ारा नहीं
मगर और भी कोई चारा नहीं
बहरहाल स्वीकार कीजिए
महिला दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं !
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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@राजेंद्र स्वर्णकार जी ,
मेरे आलेख में एक जगह भी यह बात नहीं कही गयी है कि समस्याओं कि जड़ पुरुष या पुरुषवादी व्यवस्था है ....यहाँ विषय यह है कि सिर्फ सरकारी नीतियां कुछ नहीं कर सकती जब तक वैचारिक बदलाव न आये और उसे व्यवहार में न अपनाया जाय ......परिवर्तन की यह बात महिला और पुरुष सभी की सोच को संबोधित करने हेतु है ........
व्यवहारिकता ही ज़रूरी है ... झूठे ढोल पीटने से क्या !
सार्थक पोस्ट है । महिलाओं को खुद ही मापदंड निर्धारित करने होंगे।
जी हाँ कथनी -करनी का अंतर ही समस्याओ की जड़ है। 'मनसा-वाचा-कर्मणा'एकरूपता द्वारा अपनी अर्वाचीन 'वेदिक' पद्धति को बहाल करने से सुधार हो सकेगा,जिसके लिए कोई भी आज तैयार नहीं।
सत्य बात कही आपने ...सरकार से उम्मीद ना रखते हुवे महिलाओं को इस दिशा में खुद ही कदम आगे बढ़ाना पडेगा ...अपना आत्मविश्वास जागृत करना पडेगा आशा हे वह आत्मसम्मान की सुबह कभी न कभी तो आएगी ही जब लोगों के सोचने का नजरिया बदलेगा ...इसी के साथ आपको होली की हार्दिक शुभ कामनाएं
कभी कभी लगता है कि हमारे आस-पास बहुत कुछ बदल तो रहा है पर ये बदलाव सतही ज्यादा हैं ।
आपकी बात सोलह आना सच है...जो दिख रहा हे वैसा है नहीं|
महिला दिवस और होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सार्थक और सटीक दृष्टि . महिला सशक्तता के लिए उनके दृष्टिकोण और सोच में बदलाव लाजिमी है . होली की हार्दिक बधाई .
आलेख से सहमत हूँ।
सादर
आपको महिला दिवस और होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
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कल 09/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
जैसे जैसे सबकी समझ बढ़ेगी, स्थितियाँ बेहतर होंगी..
सश्क्त नारी,मजबूत राष्ट्र्………नवस्येष्टि पर्व की हा्र्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई
बदलाव तो बहुत आये हैं ...पर''महिला सशक्तिकरण ''का अर्थ कुछ गलत लगाने से परिवार टूटने की स्थिति ज्यादा बन रही है ...!!
सार्थक चिंतन देती पोस्ट |होली की शुभकामनायें ...!!
होली की शुभकामनाएँ. स्त्री का यह संघर्ष लंबा चलने वाला है. महिला दिवस की शुभकामनाएँ.
घुघूतीबासूती
होली की हार्दिक शुभकामनाएं!
वैचारिक बदलाव जब तक हमारे व्यव्हार का हिस्सा नहीं बनेंगें, महिला सशक्तीकरण का नारा बस खेल ही बन कर रह जायेगा । सौफ़ी सदी सही और सच बात कहती सार्थक पोस्ट...महिला दिवस एवं होली की हार्दिक शुभकामनायें।
सरकार महिलाओं को हक़ तो दे सकती हैं पर जब तक उनके अपनों की सोच में परिवर्तन नहीं आता उनका चौखट से चौपाल तक आने का सफर आसान नहीं है ।
ekdam sahi ,holi ki dhero badhai
गम्भीर चिंतन!!
होली की अनन्त शुभकामनाएं!!
सही कहा है आपने वैचारिक बदलाव जब तक हमारे व्यव्हार का हिस्सा नहीं बनेगा सबकुछ सिर्फ मात्र ऊपरी दिखावा ही होगा... सार्थक लेख... आभार
महिलाएँ स्वयं यह तय करें कि उन्हें सम्मानजनक परिस्थितियाँ और सुरक्षा कैसे मिले। सरकार पर भरोसा करना कि वह ऐसी परिस्थितियाँ बनाएगी ,केवल हताशा ही देगा। अब समय आ गया है कि महिलाओं खासकर ग्रामीण महिलाओं को उनके अधिकार दिलाए जाएँ। वे आज भी भयंकर रूप से शोषित और दमित हैं। आपने उनकी व्यावहारिक कठिनाइयों पर बहुत सार्थक लिखा है।
महिलाएँ स्वयं यह तय करें कि उन्हें सम्मानजनक परिस्थितियाँ और सुरक्षा कैसे मिले। सरकार पर भरोसा करना कि वह ऐसी परिस्थितियाँ बनाएगी ,केवल हताशा ही देगा। अब समय आ गया है कि महिलाओं खासकर ग्रामीण महिलाओं को उनके अधिकार दिलाए जाएँ। वे आज भी भयंकर रूप से शोषित और दमित हैं। आपने उनकी व्यावहारिक कठिनाइयों पर बहुत सार्थक लिखा है।
हमारे सामाजिक ढांचे में महिलाओं के मुश्किलें बड़ी व्यावहारिक सी हैं । जिनका समाधान सिर्फ आर्थिक आत्मनिर्भरता या प्रशासनिक कार्ययोजनाओं के माध्यम से नहीं ढूँढा जा सकता है । कभी कभी लगता है कि हमारे आस-पास बहुत कुछ बदल तो रहा है पर ये बदलाव सतही ज्यादा हैं । आपका आकलन सही है .....की बदलने के नाम पर तो बहुत कुछ कहा जा रहा है लेकिन वास्तविकता इससे कोसों दूर है ...! बस महिलाओं को अब स्वयं आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनने की कोशिश करनी होगी . जैसे जैसे वह आर्थिक रूप से सक्षम होती जायेंगी, स्वयं सशक्त हो जायेंगी.
हकीकत तो ये है की भारत में दिखावे के तोर पे होता तो बहुत कुछ है लेकिन सार्थकता से कोसों दूर है ये कथनी....
AAPSE SAHMAT HUN .....HAPPY HOLI...KAR DE GOAL
BHALE LAGATE HAIN LIKHE PANNON PAR
NAARI KA ADHIKAR
PURUSHA KA AHANKAR
WE MUST TAKE FIRM AND POWERFUL DICISSION TO PROOVE THAT WE RESPECT
OUR MOTHER SISTER DAUGHTER WIFE AS WELL AS OUR ALL REALATIONS.
happy womens day
situation of women still need an improvement in our country
पुरुषों की मौजूदा स्थिति किसी चमत्कार का नतीज़ा नहीं है। महिलाओं को धीरज रखना चाहिए।
स्थायी परिवर्तन धीरे-धीरे होता है...शिक्षा ही एक ऐसा मन्त्र है जो समाज में व्याप्त कुरीतियों को ख़त्म करेगा...अफ़सोस कि हम उसके प्रति भी ज्यादा संवदनशील नहीं हैं...इसीलिए अभी तक नारी सशक्तिकरण की बात हो रही है...
इसीलिए वैचारिक बदलाव जब तक हमारे व्यव्हार का हिस्सा नहीं बनेंगें, महिला सशक्तीकरण का नारा बस खेल ही बन कर रह जायेगा । .....
सार्थक लेख
अच्छी पोस्ट!
होली मुबारक!!
दरअसल, हमारे सामाजिक ढांचे में महिलाओं के मुश्किलें बड़ी व्यावहारिक सी हैं । जिनका समाधान सिर्फ आर्थिक आत्मनिर्भरता या प्रशासनिक कार्ययोजनाओं के माध्यम से नहीं ढूँढा जा सकता है । इसीलिए महिला सशक्तीकरण कुछ मिटाने या बनाने का नहीं बल्कि अस्मिता और सामाजिक सरोकार का संघर्ष है, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जीने की लड़ाई है ।
अष्मिता सुरक्षा और सम्मान से जुदा है सशक्तिकरण का सवाल .
अगर सामाजिक -पारिवारिक और वैचारिक बदलाव आये तो शायद औरतों की समस्याएं कुछ कम हों........ ।सार्थक पोस्ट
Avocado is a pear green -fleshed edile fruit .It is a fruit with a leathery dark green or blackish skin ,soft smooth ,creamy tasting pale green flesh ,and a large stony seed ,eaten raw in salads .
राम राम भाई !
एवकादो नाशपाती जैसा एक फल है ,उष्ण कटिबंधी फल है ,ट्रोपिकल फ्रूट है जो एक सिरे पर दूसरे की बनिस्पत ज्यादा चौड़ा होता है .पकने पर मुलायम हो जाता है कच्छा एक दम कठोर बना रहता है .बीच में एक बड़ी पथरीली गुठली होती है .इसे फेट फ्रूट भी कह दिया जाता है इसके क्रीमी स्वाद की वजह से .हमने इसका स्वाद पहली मर्तबा २००६ में अपने देत्रोइत प्रवास (मिशगन राज्य )के दौरान लिया .तभी इसके बारे में विस्तार से जाना .दिल्ली अक्सर डेरा रहता है जहां खान मार्किट ,बंगाली मार्किट ,सरोजनी नगर सब्जी मार्किट से हम इसे खरीदते रहें हैं कभी कभार जब भी दिखलाई दिया है .आज माल का दौर है फ़ूड कोर्ट्स का सिलसिला चल पडा है .हर फल और तरकारी उपलब्ध है हर जगह बड़े नगरों में जहां भी माल हैं .
सेहत के लिए अच्छा है हमने इसका स्तेमाल सैन्विच में भी किया है मख्खन की जगह . सलाद में ड्रेसिंग के रूप में भी .
सतही बदलाव ही नज़र आता है ... सार्थक पोस्ट ... महिलाओं को खुद ही अपने को स्थापित करना होगा ...
स्वयं के सशक्त बनने से ही सशक्त बना जा सकता है, दूसरों के सहारे तो कमजोर ही बना जाता है।
बिल्कुल सच कहा है आपने.. पहले अंदरूनी सशक्तीकरण जरूरी है। लेकिन हम अपने आप को बहुत बदल नहीं सकतीं क्योंकि महिलाओं में कुछ गुण अंतर्जात होते हैं जैसे संवेदनशीलता, मृदुता, करुणा। ऐसा नहीं कि पुरुषों में इन गुणों का अभाव होता है। लेकिन महिलाएं स्वभावत: कोमल होती हैं। बस उन्हें यह प्रण करना होगा कि वे अपने निर्णय किसी से मजबूरी में नहीं, दिल से लेंगी। सबके साथ अपना भी सम्मान करेंगी.. तभी कुछ बदलाव आ पाएगा।
'अवेरनेस' ज़रूरी है ..विचारों की जागरूकता ....हर उस इंसान में ...जिनके अधीन वह स्त्री है ...जब तक उसे वह माहौल नहीं मिल सकेगा, उसके व्यक्तित्व, उसकी सोच..उसपर विश्वास को पनपने नहीं दिया जायेगा तब तक यह समस्या जस की तस बनी रहेगी ..एक बहुत जटिल समस्या उठाई है आपने और हर पहल को छुआ है ....
सार्थक पोस्ट
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..होली की शुभकामनायें..मेरे ब्लॉग filmihai.blogspot.com पर स्वागत है...
कितना कहा और सुना जाये.....
क़दमों/पैरों को जोर से पटकना होगा शायद!!!!!
जो मंज़ूर नहीं उसका विरोध करें....
सार्थक लेखन..
सादर.
behtatin post.........aaj mahila ka vikas dikh to raha hai par...logo ki soch me koi badlaaw nahi aa raha yahi ....ek baat mujhe bahut pareshaan karti hai.........
महिला सशक्तीकरण पर सार्थक लेख.
महिला दिवस एवं होली की हार्दिक शुभकामनायें !
कभी कभी लगता है कि हमारे आस-पास बहुत कुछ बदल तो रहा है पर ये बदलाव सतही ज्यादा हैं ।
ऐसा ही महसूस होता है...
सार्थक चिंतन...
सादर.
सशक्तिकरण का नारा जितना बुलंद हुआ , महिलाओं के प्रति अत्याचार भी इतने ही बढ़ने की खबर है , लगता यही है कि सब सतही है !
ये आज की नहीं ... सदियों से चली आ रही परिपाटी है ... नारियों को उचित स्थान समाज में नहीं मिला है .. हालांकि निर्णय लेने में वो ज्यादा सक्षम हैं ... पर आर्थिक दृष्टि से बिलुल सक्षम नहीं होने देता पुरुष समाज ...
कुछ हद तक महिलाओं को भी फुसलात रहता है पुरुष महिलाओं को दबा के रखने के लिए ...
agree with your point that there are various policies out there and enough people to talk about it... this gives illusion that a lot has changed but the "change" in real sense is yet to come. Change in mentality and outlook is yet to achieve... !!
Awesome read as ever.
visiting u after along time
hope u doing fine :)
एक वैचारिक बदलाव की ज़रूरत है।
सार्थक पोस्ट.होली मुबारक!!
आपका आकलन सही है ...! बस महिलाओं को अब स्वयं आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनने की कोशिश करनी होगी . जैसे जैसे वह आर्थिक रूप से सक्षम होती जायेंगी, स्वयं सशक्त हो जायेंगी.....
बेहतरीन प्रस्तुति.......
MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...
सचमुच सशक्तीकरण के लिए हमारे प्रयास सतही ही हैं। वैचारिक स्तर पर बदलाव आए बिना बदलाव की बातें महज विज्ञापन ही रहेंगी।
कभी कभी लगता है कि हमारे आस-पास बहुत कुछ बदल तो रहा है पर ये बदलाव सतही ज्यादा हैं । महिलाएं कामकाजी तो बन रही हैं पर सुरक्षित घर लौट आने की गारंटी नहीं है । एक पढ़ी-लिखी माँ भी बेटी को जन्म देने का निर्णय स्वयं नहीं कर सकती । आज हमारे परिवारों और समाज में दोगलापन ज्यादा दिखता है ।
एक सटीक और सार्थक लेख ......अधिकतर मामलो में महिला ही महिला को आगे बढ़ने से रोकती है ...होली की शुभकामनाएं
सही कहा आपने,
महिलाएं पंच-सरपंच तो बन जाती हैं किन्तु पंचायत का पूरा काम उनका पति ही करते है।
इसीलिए महीलाओं के लिए लागू की गई सरकारी योजनाएं निष्फल हो रही हैं।
महिलाओं को अपनी क्षमता पर विश्वास करना होगा।
महिला सशक्तीकरण कुछ मिटाने या बनाने का नहीं बल्कि अस्मिता और सामाजिक सरोकार का संघर्ष है, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जीने की लड़ाई है ।
sahi kha ....!!
सुन्दर, सामयिक और सार्थक पोस्ट, आभार.
yugon kee khayee barshon me nahi pati ja sakti...rasri awat jaat hee sil par parat nishan...patthar ghis sakta hai to vyasthayein kyon nahin badlengi..aapke lekh in prayason ko sakaratatmak urja pradaan karte hain..sadar badhayee aaur amantran ke sath
अपनी सोंच में बदलाव लाना और बाधाओं से लड़ते हुए समय के साथ आगे बढ़ना है महिला सशक्तिकरण |
सार्थकता लिए हुए उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
sarthak, vicharneey prastuti
bahut hi sundar aur shandar post.
सार्थक पोस्ट...
शब्दशः सहमति है आपसे...
विचारपरक सार्थक आलेख..
sarthak, samyik, sachchi post....
सही तो लिखा है आपने......अभी भी बहुत किया जाना बाकी है। शिक्षा से बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है।
कल 14/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सार्थक ब्लॉगिंग की ओर ...
mahilaye tabhi aage aa sakti hai jab wo khud chahe, they have cross the walls..
@कभी कभी लगता है कि हमारे आस-पास बहुत कुछ बदल तो रहा है पर ये बदलाव सतही ज्यादा हैं ।
बिल्कुल सही कहा.आज हम कुछ महिलाओं के उदाहरण देकर ये दिखाते हैं कि महिलाएँ अब सशक्त हो रही हैं.जबकि इतने उदाहरण तो हमेशा से रहे हैं.इससे आम महिलाओं को कोई वास्ता नहीं हैं.
वैसे मुझे लगता हैं कि पश्चिमी नारीवाद को ज्यों का त्यों भारत के संदर्भ में लागू करने की कोशिश करना भी समस्या पैदा कर रहा हैं.जरूरत तो ये थी कि हम बदलाव के लिए पुरूषों को भी प्रोत्साहित करते लेकिन पश्चिम की तर्ज पर अब यहाँ भी महिलाओं की तरक्की तक को इस तरह से पेश किया जा रहा हैं मानो महिलाएँ यदि आगे आ गई तो पुरुष कहीं के नहीं रह जाएँगे,उनकी कोई हैसियत ही नहीं रह जाएगी.कोशिश तो दोनों को साथ लाने की होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा लग रहा हैं कि जैसे महिलाएँ पुरुष,परिवार और संस्कृति आदि सबके खिलाफ हो जाएगी तो सशक्त हो जाएगी जबकि विरोध तो गलत मानसिकता का होना चाहिए.
कहीं विषयांतर तो नहीं कर गया हूँ?यदि ऐसा हैं तो माफी चाहूँगा.
आदरणीय डॉ॰ मोनिका जी
नमस्कार !
....महिला सशक्तीकरण कुछ मिटाने या बनाने का नहीं बल्कि जीवन जीने की लड़ाई है
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
ekdam sahi...
my new post..मन के जीते जीत है मन के हारे हार ..
एकदम सही बात
my new post..मन के जीते जीत है मन के हारे हार ..
महिला सशक्तीकरण का नारा बस खेल ही बन कर रह जायेगा ।
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
achchha laga....sadhuvad...
सार्थक आलेख. सहमत भी हूँ. अब समस्या तो है. मुह में दांत भी होते हैं और जुबान भी. कभी कभी दांत जुबान को काट देता है गलती से ही सही.
महिला सशक्तीकरण कुछ मिटाने या बनाने का नहीं बल्कि अस्मिता और सामाजिक सरोकार का संघर्ष है, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जीने की लड़ाई है । I AM AGREE WITH YOU .
सार्थक चर्चा... व्यावहारिकता में कमी के कारण ही मुद्दे सार्थकता से भटक जाते हैं...
बहुत सुन्दर ,सार्थक पोस्ट...
सामयिक एवं सटीक पोस्ट । आर्थिक उपार्जन तो होता है पर आर्थिक स्वतंत्रता नही होती । निर्णय लेने की भी नही । बदलाव आ रहा है पर बहुत धीरे ।
बहुत सारगर्भित और सार्थक पोस्ट...
अच्छा लिखा है ...नारी स्वतंत्रता एक जुमला बस भर है ...नारी पुरुष एक दूसरे के पूरक है इस मूल मन्त्र के हिसाब से कार्यान्वित की गयी सामाजिक भूमिका ही चल पायेगी !
bahut kuch sochne ko majboor karti hai aapka lekh.
महिलाओ को सामाजिक सुरक्षा मिलनी चाहिए अन्यथा सशक्तिकरण सफल नहीं होगा !सुन्दर दृष्टिकोण
achhe vichaar ek shashakt kadam ke liye bahut jaroori hai... badhayi is achhe post ke liye...
हमारे पुरुष-प्रधान समाज का दोगलापन और आधिपत्य वाला रवैया किसी भी बदलाव के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है | नारी को या तो घर की लाज या फिर पुरुष की तृप्ति का जरिया ही माना जाता रहा है | नारी कितनी ही काबिल क्यों न हो घर का मुखिया नाकाबिल पुरुष ही होगा | जब-जब नारी ने अधिकार और अवतंत्रता की मांग की है उसे घर से बाहर का रास्ता दिखया जाता रहा है | विदुषी और आर्थिक रूप से स्वनिर्भर स्त्रियाँ भी अपने आत्मसम्मान और विवेक को कुंद कर उसे संतुलन का नाम दे संतुष्ट रहती हैं | दिल के कोने में उठती कसक को दबाती रहती हैं यह सोचकर के उन्होंने परिवार को बिखरने नहीं दिया बस थोड़ा मारा ही तो है अपना आत्मसम्मान !
सार्थक आलेख और एक सकारात्मक सन्देश तथा आह्वान |
bahut hi bdhiya likhti hai aap
महिला सशक्तिकरण पर धारदार और विचारोत्तेजक आलेख.....!
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नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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*चैत्र नवरात्रि और नव संवत २०६९ की हार्दिक बधाई !*
*शुभकामनाएं !*
*मंगलकामनाएं !*
sahmat hun.
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