राजस्थान की भंवरी देवी का किस्सा आज मीडिया के लिए ही नहीं आमजन के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है | यूँ तो इस घटना के कई पक्ष हो सकते हैं पर मैं जिस विषय पर बात करने जा रही हूँ वो है आज के समय में महिलाओं में आई अति महत्वाकांक्षा की सोच |
ऊँची साख बनाने और प्रसिद्धि कमाने की मानसिकता ने आज के दौर की महिलाओं के हौसले तो बुलंद किये हैं पर कुछ गलतियाँ करने की भी राहें सुझा दी है | भंवरी देवी की तरह किसी भी कीमत पर सब कुछ पाने की सोच रखने वाली महिलाओं का प्रतिशत बीते कुछ बरसों में हर क्षेत्र में चिंताजनक स्तर तक बढ़ा है | स्वयं महिलाओं को भी प्रसिद्धि और पैसा कमाने के लिए यह मार्ग सुगम और सुखदायी लगता है | जबकि सच्चाई तो यह है इन रास्तों पर चलकर अनगिनत महिलाएं ऐसे भंवर में फंस जाती हैं जिसका मूल्य कई बार तो उन्हें जान गंवाकर चुकाना पड़ता है |
मधुमिता ,रूपम या भंवरी ऊंची पहुँच रखने और अपना दबदबा दिखाने के चलते इतनी आत्ममुग्ध हो जाती हैं कि ऐसे संबंधों की परिणति को लेकर शायद कोई विचार तक नहीं करतीं | जब इस भूल भुल्लैया का खेल समझ आता है तो मन में बस क्रोध रह जाता है | तब भंवरी की तरह कोई सीडी बनाती हैं तो कोई रूपम की तरह जान से ही मार डालती है | इस हिमाकत का भी खामियाजा उन्हें ही भुगतान पड़ता है | हमारे समाज में चाहे जितने बदलाव आ जाएँ महिलाओं को यह बात याद रखनी होगी हर बार भुगतना उन्हें पड़ता है | उन्मुक्त जीवन और स्वछंदता का मूल्य उन्हें ही चुकाना पड़ता है | आगे बढ़ने की यह सोच उन्हें सशक्त नहीं करती बल्कि आगे चलकर मजबूरी और समझौतों के दलदल में धकेल देती है | जिसमें न रहते बनता है और न ही बाहर निकलने का रास्ता सूझता है |
क्षमता और योग्यता से ऊंचे लक्ष्य अक्सर हमें उचित-अनुचित हर तरह के कार्यों में कर प्रवृत्त देते हैं | साथ ही अगर इन लक्ष्यों को पाने की जल्दबाजी हो और सही गलत का आत्मबोध भी न रहे, तो किसी कुचक्र में फंसना निश्चित है | ऐसे में अपनी सीमाओं से परे कुछ अलग तरह के मापदंडों पर स्वयं को स्थापित और साबित करने की ललक एक गहरे गर्त में ले जाती है और जब तक इसका आभास होता है अधिकतर मामलों में बहुत देर हो चुकी होती है |
महिलाओं के मन में आगे बढ़ने की, सफल होने की आकांक्षा होना गलत नहीं है पर अति महत्वाकांक्षा की सोच कई बार जीवन की दिशा ही बदल देती है | इन परिस्थितियों में आभास तो बहुत कुछ पाने और बन जाने का होता है पर असल में इस खेल का हिस्सा बनकर महिलाएं अपना सब कुछ खोती ही हैं | वे बस ठगी जाती हैं | भंवरी के साथ हुई इस घटना के इस पक्ष पर विचार कर देश की हर महिला को सबक लेना चाहिए | |
ऐसा भी नहीं है कि जो कुछ भंवरी के साथ हुआ वो सिर्फ सत्ता के गलियारों में ही होता है | हर क्षेत्र में ऐसा देखने को मिल जायेगा जहाँ महिलाएं अति महत्वाकांक्षा की शिकार हो इस तरह ठगी जाती है | ज़रूरी है कि महिलाएं स्वयं यह समझें की सशक्त होने का अर्थ सिर्फ धन कमाना या ऊंची पहुँच बनाना नहीं है | सशक्तीकरण के सही मायने हैं जागरूकता और आत्मनिर्भरता..... संवेदनशील सोच और सतर्कता...और सपने सामाजिक एवं पारिवारिक मूल्यों का बोध ..... क्योंकि इस डोर को थामे रखा तो जीवन दिशाहीन हो ही नहीं सकता |