अपने ही घर में असुरक्षित होने और अपने ही लोगों से मिलने वाली प्रताड़ना यानि की घरेलू हिंसा पूरी दुनिया की महिलाओं के जीवन के लिए एक दंश है | महिलाएं चाहे कामकाजी हों या गृहणी, शिक्षित हों या अशिक्षित यह एक ऐसा विषय जिस के बारे में जब भी देखने सुनने को मिलता है महिलाओं के आगे बढ़ने के सारे दावे अर्थहीन लगते हैं|
विकसित देशों में महिलाओं की स्थिति भारत जैसे देशों से अलग मानी जाती है या यूँ कहा जाय की बस अलग प्रतीत होती है | हकीकत तो यह है की वहां भी महिलाओं का बड़ा प्रतिशत घरेलू हिंसा का शिकार है | कामकाजी और आत्मनिर्भर होने के बावजूद भी शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना सहना इन देशों की महिलाओं के भी हिस्से है आखिर क्यों...?
यह दुखद है की जिस समाज में महिलाओं को सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्राप्त है, हर तरह की शक्तियाँ उनके हाथ हैं ....हमारे यहाँ से बेहतर कानून व्यवस्था है ....... घरेलू हिंसा को लेकर उनकी स्थिति भी सामाजिक बन्धनों में जकड़े अर्धविकसित और विकासशील देशों से बेहतर नहीं है | यूनीफेम की एक रिपोर्ट कहती है की पूरी दुनिया में हर तीन में से एक महिला किसी न किसी तरह की घरेलू प्रताड़ना की शिकार होती है और उनके साथ ऐसा व्यवहार घर-परिवार के ही किसी सदस्य के द्वारा किया जाता है | अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों में भी घरेलू हिंसा के कई सारे मामलों की पुलिस में रिपोर्ट तक नहीं की जाती |
एक बड़ा प्रश्न यह है कि जिन देशों की महिलाओं की आत्मनिर्भरता और शैक्षणिक स्तर से हम प्रभावित हैं वहां तक पहुच भी गए तो भी क्या हमारे यहाँ की औरतों को अपनों से मिलने वाले इस दर्द से छुटकारा मिल पायेगा | कुछ समय पहले बेंगलुरु में हुए एक सर्वेक्षण में तो यह भी सामने आया है की कामकाजी और आत्म निर्भर महिलाएं भी घरेलू हिंसा की उतनी शिकार हैं जितनी की गृहणियां | अगर हम यह मानें की विकसित देशों में हमरे सामाजिक ढांचें की तरह बंधन नहीं हैं, इसलिए वहां महिलाएं रिश्ते से आसानी से आज़ाद तो सकती हैं ..... तो फिर हमारे यहाँ क्यों लिव इन रिलेशन में भी महिलाओं के साथ हाथापाई के मामले आये दिन अख़बारों की सुर्खियाँ बनते हैं ....?
कहने को अब दुनियाभर में महिलाओं की स्थिति पूरी तरह बदल गयी है | यह बताने के लिए बतौर उदहारण अमीर और विकसित देशों का नाम भी लिया जाता है | ऐसे में संसार के कोने-कोने में अपने ही घर में हिंसा का दर्द झेलने वाली महिलाओं का जीवन यह बताता है कि बदलाव आंशिक तौर पर आया है | महिलाओं के प्रति दूषित मानसिकता रखने वालों का मनोविज्ञान आज भी वैसा ही है | हर देश में, हर समाज में .....!
हर तरह कि मुश्किलों से लड़कर आगे बढ़ने वाली महिलाओं की उपलब्धियों के बीच मानवीय व्यवहार का यह स्याह सच मन में कड़वाहट भर जाता है | और यही सवाल मन में बार बार दस्तक देता है कि महिलाएं अगर अपने परिवार के लोगों के बीच......अपने जीवन साथी के साथ ही सुरक्षित नहीं हैं तो घर के बाहर उनकी सुरक्षा और सम्मान को बनाये रखने की मुहीम का क्या अर्थ रह जाता है ?
कहने को अब दुनियाभर में महिलाओं की स्थिति पूरी तरह बदल गयी है | यह बताने के लिए बतौर उदहारण अमीर और विकसित देशों का नाम भी लिया जाता है | ऐसे में संसार के कोने-कोने में अपने ही घर में हिंसा का दर्द झेलने वाली महिलाओं का जीवन यह बताता है कि बदलाव आंशिक तौर पर आया है | महिलाओं के प्रति दूषित मानसिकता रखने वालों का मनोविज्ञान आज भी वैसा ही है | हर देश में, हर समाज में .....!
हर तरह कि मुश्किलों से लड़कर आगे बढ़ने वाली महिलाओं की उपलब्धियों के बीच मानवीय व्यवहार का यह स्याह सच मन में कड़वाहट भर जाता है | और यही सवाल मन में बार बार दस्तक देता है कि महिलाएं अगर अपने परिवार के लोगों के बीच......अपने जीवन साथी के साथ ही सुरक्षित नहीं हैं तो घर के बाहर उनकी सुरक्षा और सम्मान को बनाये रखने की मुहीम का क्या अर्थ रह जाता है ?